त्रासदी और सच्चाई

लेखक और दार्शनिक ‘एल्डस हक्सले’ ने एक बार कहा था- ‘कोई भी त्रासदी पूरे सत्य को उजागर नहीं करती है।’ यह कथन मानवीय तबाही की सच्चाई को दर्शाता है, जिसे हम वर्तमान में भुगत रहे हैं। बिहार के बक्सर में पवित्र गंगा में पाये गये संदिग्ध कोविड पीडि़तों के सैकड़ों शवों का भयानक दृश्य हमारे लिए किसी बुरे सपने की तरह है, जिसे हम कभी नहीं भूल सकते। यह प्रश्नचिह्न भले लग रहा है कि ये शव उत्तर प्रदेश की तर$फ से आये थे, या नहीं? लेकिन पूरी सच्चाई यह है कि ग्रामीण अपने मृतकों का अन्तिम संस्कार भी नहीं कर पा रहे हैं और उन्हें नदी में फेंक रहे हैं। वर्तमान में देश में एक ही दिन में 4,000 से अधिक मौतों के रिकॉर्ड आँकड़े आधिकारिक तौर पर दर्ज किये गये। बिस्तरों, ऑक्सीजन तथा दवाओं की कमी और इनकी कालाबाज़ारी के अतिरिक्त श्मशान घाटों तथा क़ब्रगाहों में जगह की कमी और शवों की लम्बी कतारों ने हमारी स्वास्थ्य प्रणाली की जर्जर हालत को उजागर कर दिया है।

घटिया और मोहताज स्वास्थ्य संरचना और सरकार का भेदभाव वाला स्वार्थी तंत्र, जिसने समय से पहले कोविड के ‘ऐंडगेम’ (अन्त) की घोषणा की थी और ख़ुद को महामारी पर विजय प्राप्त घोषित किया था; आज औंधे मुँह पड़ा है। अब ऐसे समय में जब कोरोना वायरस ग्रामीण इलाक़ो में फैल रहा है, तब भी सरकार महामारी को नियंत्रित करने की कोशिश करने के बजाय ट्विटर पर आलोचना को दबाने में अधिक व्यस्त दिखायी दे रही है। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि स्वतंत्रता के बाद पहली बार इस तरह की महामारी फैली है, जो स्व-प्रेरित प्रतीत होती है। आज सरकार के कई कट्टर समर्थक भी स्वास्थ्य कु-व्यवस्था के लिए उसकी आलोचना कर रहे हैं। इस तथ्य से कोई इन्कार नहीं करेगा कि इसने देश की छवि को धूमिल किया है। यह भी स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली वर्तमान सरकार कुछ कठिन निर्णय के लिए याद नहीं की जाएगी, लेकिन इस अभूतपूर्व संकट के लिए जरूरयाद की जाएगी।

सम्भवत: कोविड-19 की दूसरी लहर के उछाल के दौरान शुरू होने वाले सबसे कठिन दौर के विधानसभा चुनाव अब ख़त्म हो गये हैं। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि नतीजे भाजपा के लिए बेहतर नहीं रहे; विशेष रूप से पश्चिम बंगाल में, जहाँ ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने भाजपा से कहीं अधिक बहुमत के साथ लगातार तीसरी बार सत्ता हासिल की है। पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल में विधानसभा चुनावों और उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनावों के नतीजों से यह सा$फ हो चुका है कि अगर अभी आम चुनाव होते हैं, तो भाजपा को बड़ा झटका लग सकता है। सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनावों में आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया है।

अगले साल उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव हैं, जो कि भाजपा के लिए उसका भविष्य तय करने के तौर पर एक बड़ा साल है। मार्च, 2022 में उत्तर प्रदेश और फिर साल के अन्त तक गुजरात में विधानसभा चुनाव होने हैं। भारत में कोरोना प्रबन्धन में विफलता के दौरान वैश्विक मदद लेने वाली बात भी सत्तारूढ़ दल को प्रभावित करेगी। सन् 2014 में विकास के बहुत प्रचारित गुजरात मॉडल ने भाजपा के लिए जीत सुनिश्चित की थी, जबकि सन् 2019 में पुलवामा हमले और बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक ने पार्टी को सत्ता तक पहुँचा दिया। लेकिन अब उसके पास केवल एक ही मुद्दा है- ‘कोरोना वायरस से हाहाकार और उसका कुप्रबन्धन।’ शिवसेना ने अपने मुख पत्र सामना में एक संपादकीय में कहा है- ‘बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, म्यांमार और श्रीलंका जैसे छोटे-छोटे देशों ने महामारी से निपटने के लिए आत्मानिर्भर भारत को मदद की पेशकश की है। वहीं मोदी सरकार मल्टी-करोड़ सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को पूरा करने में आगे बढ़ रही है। यह कैसी विडंबना है?’

चरणजीत आहुजा