तालाबों से बदलेगी उत्तर प्रदेश के गाँवों की तस्वीर

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार प्रदेश के विकास के लिए बुनियादी संसाधनों पर ध्यान दे रही है। विकास के इसी क्रम में पुराने तालाबों का पुनरुद्धार किया जा रहा है। नये तालाब भी बनाये जा रहे हैं तथा खेत तालाब योजना-2023 के तहत किसानों को अपने अपने खेत में तालाब खोदने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। इस योजना के तहत सरकार किसानों द्वारा अपने खेत में तालाब खोदने पर सब्सिडी भी दे रही है। उत्तर प्रदेश खेत तालाब योजना-2023 के लिए किसानों से ऑनलाइन आवेदन आमंत्रित किये जा रहे हैं।

प्रदेश सरकार का मानना है कि खेती तभी हो सकती है, जब सिंचाई की समुचित व्यवस्था हो। अभी प्रदेश के अनेक क्षेत्र ऐसे हैं, जहाँ पानी की समुचित व्यवस्था नहीं है। ऐसे क्षेत्रों में हरियाली लाने तथा फ़सलों के अच्छे उत्पादन के लिए तालाब होना अति आवश्यक है।

भौजीपुरा क्षेत्र के बड़े किसान नत्थू लाल कहते हैं कि आज से कोई 30-32 वर्ष पूर्व कई किसानों के पास रहट हुआ करते थे, जिनसे बैलों द्वारा पानी निकालकर खेतों की सिंचाई की जाती थी। कुछ किसानों को नहर से पानी मिलने की सुविधा हुआ करती थी। मगर बिजली का विस्तार होने के बाद सरकार ने कुएँ लगवाने शुरू कर दिये। किसानों ने अपने ही खेतों में बोरिंग करवाकर पंपसेट से पानी निकालकर खेतों को सींचने की प्रक्रिया अपना ली। अब हालात यह हैं कि भूमि के अंदर का पानी भी कम हो चला है। नहरों में भी पानी कभी आता है, तो कभी नहीं आता है। प्रदेश की कई नहरों का अस्तित्व भी नहीं बचा है। रही रहटों की बात, तो उनका तो अस्तित्व ही समाप्त हो गया। ऐसे में अगर मुख्यमंत्री योगी इस तरह की योजना पर काम कर रहे हैं, तो यह अच्छी बात है।

कुल मिलाकर अगर निष्पक्ष रूप से तालाब योजना पर चिंतन मनन करें, तो इस योजना के कई लाभ भी स्पष्टट दिखते हैं तथा कई तरह की हानियाँ भी दिखती हैं। इसे लेकर किसानों तथा कृषि विशेषज्ञों में मतभेद भी हो सकते हैं। इसलिए तालाबों से होने वाले लाभों तथा हानियों का आकलन करना उचित होगा।

धन व जल की बचत

कृषि विज्ञान पढ़ाने वाले अध्यापक सोमपाल कहते हैं कि प्रदेश में पुरानी परम्परा की ओर किसानों के लौटने से कई लाभ होंगे। तालाब ख़ुदने से किसानों का सिंचाई पर होने वाला व्यय बचेगा जिससे उनकी आर्थिक स्थिति सुधरेगी। अगर सिंचाई की लागत देखें, तो अपना पंपसेट लगाकर एक एकड़ भूमि को सींचने के लिए प्रति वर्ष अनुमानित लागत पाँच-छ: हज़ार रुपये आती है। सरकारी ट्यूबवेल से यही लागत एक-डेढ़ हज़ार आती है। अपना ट्यूबवेल हो तो यह लागत ढाई-तीन हज़ार आती है। अगर किसान वर्षा का जल संचित कर लेंगे, तो सिंचाई की लागत मामूली ही आएगी। इसके अतिरिक्त तालाबों के ख़ुदने से भूजल का दोहन कम होने लगेगा, जिससे भूजल स्तर में सुधार होगा।

हरियाली तथा आय बढ़ेगी

वर्षा का जल संचित करने से प्रदेश में हरियाली बढ़ेगी। दूसरे जीवों को पीने का पानी आसानी से उपलब्ध होगा। इसके अतिरिक्त तालाबों में मछली पालन तथा मोती पालन करके किसान अपनी आय बढ़ा सकेंगे। मछली पालन तथा मोती पालन के अतिरिक्त तालाब में खेती भी की जा सकती है। तालाब में होने वाली खेतियों में सिंघाड़े और भसीड़े (जल ककड़ी) की खेती आसानी से की जा सकती है। जो लोग मछली नहीं पालना चाहते, वे ये खेती करके लाभ कमा सकते हैं। जिनके पास पर्याप्त भूमि है, वे तालाब का सौंदर्यीकरण करके उसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करके लाभ कमा सकते हैं।

अगर कोई किसान पर्यटन स्थल की तरह तालाब को विकसित करता है, तो उसमें वोटिंग, स्वीमिंग पूल तथा मछली पालन आसानी से किया जा सकता है। मछलियों के होने से पर्यटक भी आकर्षित होंगे। इसके अतिरिक्त पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए ढावा, विश्राम स्थल, होटल आदि भी खोले जा सकते हैं। हरियाणा तथा राजस्थान के कुछ किसानों ने शुद्ध तथा देशी भोजन उपलब्ध कराकर अपने खेतों में इस तरह के पर्यटन स्थल विकसित किये हुए हैं, जो पर्यटकों को अनायास अपनी ओर आकर्षित करते हैं।

सूखाग्रस्त क्षेत्रों में लाभ

सूखाग्रस्त क्षेत्रों में तालाबों के होने से लाभ यह होगा कि वहाँ जल संचय से हरियाली बढ़ेगी। ऐसे क्षेत्रों के किसानों तथा निवासियों को चाहिए कि वे अपने यहाँ अधिक-से-अधिक पौधे लगाएँ। क्योंकि अधिक वृक्ष होने से वर्षा भी अधिक होगी तथा जब वर्षा अधिक होगी, तो जलापूर्ति अच्छी होने से खेती भी अच्छी होगी। इसके लिए पहले तालाब बनाये जाएँ, ताकि जब भी वर्षा हो उनमें जल इकट्ठा हो सके। पौधरोपण तालाब के किनारों पर अधिक करना चाहिए, जिससे वे हरे भरे रह सकें तथा भूमि का कटान होने से रोकें। किसान फल वाले पौधों को लगाएँ, जिससे उन्हें भविष्य में धन लाभ भी हो सके। अगर फल वाले पौधे लगाना सम्भव न हो तो ऐसे पौधे लगाये, जिनकी लकड़ी क़ीमती हो। मगर सूखाग्रस्त क्षेत्रों के किसानों को कड़े परिश्रम तथा धैर्य की आवश्यकता होगी।

शारीरिक परिश्रम बढ़ेगा

खेतों तथा गाँवों में तालाब खोदने से किसानों को अपने खेतों में सिंचाई के लिए अतिरिक्त परिश्रम की आवश्यकता होगी। यह परिश्रम तालाब खोदने के लिए तो करना ही पड़ेगा, सिंचाई के लिए खेतों तक जल ले जाने के समय भी करना होगा। स्पष्टट है कि तालाबों का पानी भूमि तल से नीचे रहता है, जिसे ऊपर समतल पर लाकर खेतों तक ले जाने के लिए विभिन्न संसाधनों के माध्यम से ऊपर लाना होगा। अगर कोई किसान पुरानी पद्धति अपनाकर इस पानी को सिंचाई के लिए निकालता है, तो उसे अधिक समय तथा अधिक परिश्रम की आवश्यकता पड़ेगी। मगर अगर कोई किसान पंपसेट से इस पानी को खींचकर सिंचाई के उपयोग में लाना चाहेगा, तब उसे डीजल और पंपसेट की आवश्यकता पड़ेगी। अंतर इतना है कि भूमि से जल निकालने के लिए पंपसेट अधिक डीजल खपत करेगा, जबकि तालाब से जल अधिक खिंचेगा; जिससे लागत थोड़ी कम आएगी।

पुरातन परम्परा लौटेगी या नहीं?

पुराने तालाबों के पुनरुद्धार होने तथा नये तालाबों के ख़ुदने से वाद विवाद चर्चा परिचर्चा को हवा मिल रही है। कुछ लोगों का कहना है कि इससे पुरातन परम्परा को बल मिलेगा। लोगों को पहले की तरह ही सिंचाई की परम्परा अपनानी पड़ेगी जिसके लिए पशुपालन करना पड़ेगा। सिंचाई की पूर्व परम्परा में पशुओं का योगदान महत्त्वपूर्ण था। मगर पुरातन परम्परा की ओर लौटना असम्भव लगता है। इसका कारण यह है कि अब किसानों को आधुनिक खेती करने की आदत हो चुकी है।

अधिकतर किसान कम समय तथा कम परिश्रम करके खेती करने की परम्परा पर चलने लगे हैं। इसके कई कारण हैं। पहला यह कि आधुनिक खेती का दौर है जिसके लिए मशीनरी खेती का एक अभिन्न हिस्सा बन चुका है। दूसरा यह कि पहले संयुक्त परिवार होते थे, जिसमें चार-पाँच लोग होना आम बात थी, जो मिलजुलकर खेती सँभाल लेते थे। अधिकतर किसानों के पास खेती ही जीवनयापन का माध्यम होती थी। मगर अब परिवार में सदस्यों की संख्या भी कम है लोगों के पास आय के श्रोत भी बढ़े हैं तथा पशुपालन भी घटा है। इसके अतिरिक्त आज का किसान खेतों में दिन-रात लगे रहना नहीं चाहता।

छोटे किसान असहाय

खेतों में वही लोग तालाब ख़ुदवा सकते हैं, जिनके पास पर्याप्त भूमि है। छोटे किसानों तालाब ख़ुदवा लेंगे, तो खेती कहाँ करेंगे? तालाब ख़ुदवाने के लिए कुछ नहीं तो एक-दो एकड़ तो भूमि होनी ही चाहिए। हालाँकि छोटे किसान, जिनकी आय छोटी खेती से न के बराबर होती है, तालाब खोदकर तालाब को ही आय को स्रोत बना सकते हैं। मान लीजिए किसी किसान के पास एक-दो बीघा भूमि है, तो उसे खाने भर की पैदावार भी करने लिए परिश्रम तथा धन दोनों की आवश्यकता होगी। मगर अगर वही किसान एक-दो बीघा का तालाब ख़ुदवा लेता है, तो उसे इस तालाब से खेती से अधिक लाभ मिलेगा। मगर तालाब को अच्छी आय का स्रोत बनाने के लिए उसे इसका प्रशिक्षण लेना होगा।

गाँवों में भूजल होगा दूषित

पहले के गाँवों तथा आज के गाँवों में बहुत अंतर आ चुका है। पहले लोग सौंच के लिए गाँव से दूर खेतों में जाते थे। इससे उनके मल को कुछ कीड़े मिट्टी तथा खाद में बदल देते थे। इससे खेती की भूमि उपजाऊ होती थी। मगर अब अधिकतर घरों में शौचालय हैं। इससे लोगों का मल भूमि में सड़ता रहता है तथा गंदा पानी मूत्र नालियों के माध्यम से तालाबों में जाता है। इससे भूमि का जल दूषित होता जा रहा है। स्थिति यह है कि कई गाँवों का भूजल इतना दूषित हो चुका है कि पीने योग्य नहीं बचा है।

कई गाँवों का भूजल तो पीला पड़ चुका है। कहने का अर्थ यह है कि तालाबों के ख़ुदने से भूजल अधिक प्रदूषित होगा। अगर इस जल को प्रदूषित होने से बचाना है तो घरों में बने शौचालयों को बन्द करना होगा तथा पहले की ही तरह लोगों को शौच के लिए खेतों तथा जंगलों में जाना होगा जिसके लिए आज की पीढ़ी तैयार नहीं होगी। स्त्रियों के लिए यह अत्यंत दुष्कर होगा।

चुनौतियाँ तथा समस्याएँ

पुराने तालाबों के पुनरुद्धार में कई तरह की चुनौतियाँ तथा समस्याएँ आ रही हैं। इनमें पहली समस्या अतिक्रमण है तथा दूसरी समस्या दलदल बन चुके तालाबों का पुनरुद्धार करना है। जिन लोगों ने सरकारी भूमि तता तालाब की भूमि पर अतिक्रमण कर रखा है, वे अब उसे छोडऩा नहीं चाहते। गाद बन चुके तालाबों को साफ़ करना कठिन भी है तथा ख़तरनाक भी है। ऐसे तालाबों के पुनरुद्धार से सरकारी अमला भी हाथ खड़े कर रहा है।

प्रदेश सरकार ने निर्णय तो ठीक लिया है, मगर इसके लिए उसे तालाबों से होने वाले लाभ तथा हानि दोनों पहलुओं को ध्यान में रखकर कार्य करने की आवश्यकता है। विदित हो कि खेत तालाब योजना उत्तर प्रदेश-2023 के तहत प्रदेश सरकार किसानों को खेत में तालाब खोदने पर कुल लागत मूल्य का 50 प्रतिशत अनुदान देगी। सरकार के अनुसार, एक छोटे तालाब के निर्माण पर लगभग एक लाख रुपये से अधिक तथा बड़े तालाब के निर्माण पर लगभग सवा लाख रुपये व्यय होंगे, जिसमें आधा व्यय सरकार करेगी। योगी सरकार का लक्ष्य है कि प्रदेश के हर गाँव में न्यूनतम दो से तीन तालाब होने ही चाहिए।

प्रदेश में पाँच वर्ष में 37,500 खेत तालाबों के निर्माण का लक्ष्य है। गाँवों में पुराने तालाबों के पुनरुद्धार तथा नये तालाबों के निर्माण पर भी कार्य हो रहा है। खोदे जा रहे तालाबों को अमृत सरोवर नाम दिया गया है। अब तक लगभग 30 प्रतिशत नये पुराने से अधिक तालाब तैयार हो चुके हैं।