ताजमहल और सरकारी उदासीनता!

नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने चार शताब्दियों से अधिक समय से प्रेम से प्रेरित वास्तुकला की उत्कृष्ट कृति के रूप में विद्यमान ताजमहल को ‘समय के गाल पर एक आँसू’ के रूप में वर्णित किया है। हाल ही में इसके रखरखाव और आधिकारिक उदासीनता पर चिन्ता जतायी गयी है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को सौंपी गयी आईआईटी कानपुर की एक रिपोर्ट में पाया गया कि हवा में पीएम-2.5 कणों की मात्रा कोयले के जलने के कारण बढ़ रही है; क्योंकि इसको जाँचने के लिए ताजमहल में रखे गये फिल्टर पेपर में जले हुए कण और प्लास्टिक, काग़ज़ की राख और ठोस अपशिष्ट दिखायी दे रहे हैं। ताज के आसपास ‘अम्लीय वर्षा’ देखे जाने के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने मथुरा और वृंदावन जैसे शहरों में औद्योगिक इकाइयों के विस्तार पर रोक लगाने का आदेश दिया था।

प्रशासन की सरासर उदासीनता के लिए अधिकारियों को आड़े हाथ लेते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने ताजमहल और पेरिस के एफिल टॉवर के बीच समानांतर रेखा खींची और कहा कि यह मक़बरा शायद अधिक सुन्दर था। लेकिन एफिल टॉवर, जो एक टीवी टॉवर की तरह दिखता है; को देखने हर साल 80 मिलियन (आठ करोड़) आगंतुक आते हैं, जो कि ताजमहल की तुलना में आठ गुना अधिक हैं।

इस अंक में ‘तहलका’ की कवर स्टोरी ताजमहल के लापता हुए क़ीमती पत्थरों के बारे में है। ‘तहलका’ पत्रकारिता के मूल में अडिग विश्वसनीयता और सच्चाई रही है और स्टोरी सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत एकत्र की गयी जानकारी पर निर्भर करती है। आरटीआई के जवाब से पुष्टि होती है कि ताजमहल के क़ीमती पत्थर न केवल शाही द्वार से, बल्कि स्मारक के अन्य हिस्सों से भी $गायब हैं। आरटीआई के जवाब में कहा गया है कि बुरी तरह क्षतिग्रस्त टूटे पत्थरों को स्थायी रूप से हटा दिया जाता है। हालाँकि लापता पत्थरों की संख्या के बारे में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के आरटीआई जवाब में कहा गया है- ‘हमारे पास ऐसे पत्थरों का कोई रिकॉर्ड नहीं है। एएसआई के पास सन् 2011 से सन् 2021 के बीच ताजमहल से पत्थरों के लापता होने की घटनाओं की संख्या का भी कोई रिकॉर्ड नहीं है।’

यह एक सर्वविदित तथ्य है कि मुगलों की रत्नों, क़ीमती धातुओं और सजावटी कलाओं के लिए एक अतृप्त इच्छा रही। जानकारी से पता चलता है कि ताजमहल के बाहरी निर्माण में 28 प्रकार के दुर्लभ पत्थरों का इस्तेमाल किया गया था। स्मारक में इस्तेमाल किये राजस्थान, पंजाब, तिब्बत, चीन, श्रीलंका, अरब और अफ़ग़ानिस्तान से लाये क़ीमती पत्थरों और हीरों के लापता होने पर सवालिया निशान लग गया है। आगंतुकों का मानना है कि इन रंगीन पत्थरों की वजह से ताजमहल दिन में तीन बार अपना रंग बदलता है।

‘तहलका’ की कहानी कुछ अनुत्तरित सवालों के जवाब देने की कोशिश के साथ-साथ ताजमहल में लगे संगमरमर के रंग बदलने, दरारों, मीनारों के झुकाव के संकेत, सामग्री का गिरना, झूमर टूटने, क्षेत्र के चारों ओर नालियों के जाम होने, अवैध अतिक्रमण और उद्योगों के पनपने के अलावा ताज की नींव को ख़तरे में डाल रही यमुना और हमलावर कीड़ों के बढऩे की तरफ़ भी ध्यान दिलाती है। समय आ गया है कि सरकार ताजमहल के लिए दृष्टि दस्तावेज़ (विजन डाक्यूमेंट) तैयार करे।