डिजिटल मीडिया का वायरल फीवर!

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वे दिन लद गए जब लोकप्रिय होने के लिए टीवी या फिल्मों में अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता था. डिजिटल मीडिया और खास तौर पर सोशल मीडिया नेटवर्क ने इन सभी जमे-जमाए समीकरणों को बदल कर रख दिया है. आजकल लोकप्रियता बस एक क्लिक की दूरी पर है. तो इसी दौर में आप एक रोज फेसबुक पर लॉग-इन करते हैं और देखते हैं कि यूट्यूब का एक मजेदार वीडियो वायरल हो गया है. इसे कुछ नौजवानों की टीम ने मिलकर बनाया है. आपकी लिस्ट में मौजूद ज्यादातर लोग उस वीडियो को शेयर कर रहे हैं, उसके बारे में बात कर रहे हैं. इस तरह एक दूसरे से सुनते-सुनाते, कुछ ही दिनों में यूट्यूब के इस वीडियो को बिना किसी टीवी या अखबार की मदद के एक करोड़ से भी ज्यादा बार देख लिया जाता है.

पिछले कुछ दिनों से ऐसा ही एक वीडियो, सोशल मीडिया की आंखों का तारा बना हुआ है. एक लोकप्रिय न्यूज चैनल के प्राइमटाइम शो की नकल करते इस वीडियो का नाम ‘बॉलीवुड आम आदमी पार्टी – अरनब क्यूटियापा’ है. इसने भारतीय राजनीति और बॉलीवुड की समानताओं को काफी मज़ेदार ढंग से सामने रखा है. जिस तरह राजनीति में आम आदमी पार्टी (आप) ने तहलका मचा रखा है, उसी तरह इस वीडियो में बाप यानी (बॉलीवुड आम आदमी पार्टी)  के नेता ‘अर्जुन केजरीवाल’(जीतेंद्र कुमार) बॉलीवुड में फैले वंशवाद की छुट्टी करके देश के ‘महापात्रा, शुक्ला और बंसल’ को लॉन्च करने का दावा करते दिखाई देते हैं. यही नहीं, लोकपाल बिल की ही तरह वे एक ‘स्क्रीनपाल बिल’ को पास करने की बात करते हैं जिससे बॉलीवुड की दक्षिण भारतीय और हॉलीवुड फिल्मों से कहानी ‘चुराने’ की आदत की पोल खोली जा सके. भारतीय राजनीति और सिनेमा के मौजूदा हालात को मुंह चिढ़ाते इस वीडियो को 8 दिन में करीब 21 लाख बार देखा गया.

इस वीडियो को एंटरटेनमेंट कंपनी टीवीएफ नेटवर्क के ऑनलाइन कॉमेडी चैनल ‘क्यूटियापा’ ने बनाया है जो इससे पहले भी इसी तरह के करीब 50 वीडियो बना चुका है. अपने व्यंग्य और हास्य की वजह से ‘क्यूटियापा’ के ये वीडियो सोशल मीडिया नेटवर्क से होते हुए कॉलेज कैंटीन और ऑफिस के गलियारे का हिस्सा बन गए हैं. यूट्यूब पर टीवीएफ – क्यूटियापा चैनल के करीब चार लाख सब्सक्राइबर हैं.

टीवीएफ के फाउंडर और क्रिएटिव एक्सपेरिमेंट ऑफिसर (सीईओ) अरुणाभ कुमार बताते हैं कि जब शुरुआत में कुछ नामी यूथ चैनलों ने उनके शो को यह कहकर रिजेक्ट किया कि भारत में कोई भी इस तरह का शो नहीं देखना चाहता तब उन्होंने खुद यह देखने का फैसला किया कि इस बात में कितनी सच्चाई है.

आईआईटी खड़गपुर से इंजीनियरिंग ग्रैजुएट अरुणाभ कहते हैं, ‘मैंने एमटीवी के लिए कॉलेज क्यूटियापा नाम का एक शो तैयार किया था, लेकिन जब मुझसे बोला गया कि लोग ऐसा कुछ नहीं देखना चाहते तब मुझे लगा कि मैं इतना क्यूतिया तो नहीं हूं.  कुछ सही ही सोच रहा हूं. तब मुझे यूट्यूब ही एक ऐसा माध्यम लगा जहां मैं अपनी पसंद का कंटेंट बनाकर दर्शकों तक सीधे पहुंचा सकता हूं और तभी से मैंने अपने शो को यूट्यूब पर डालना शुरू कर दिया.’

टीवीएफ के शुरुआती वीडियो में से एक ‘राऊडीज’ था जो 2012 में रिलीज किया गया था और यह एमटीवी के चर्चित शो ‘रोडीज’ का हास्य संस्करण था. उस वक्त अरुणाभ की टीम में सात लोग थे जो अब बढ़कर 21 हो गए हैं.

इनमें से एक बिश्वपति सरकार हैं जो टीवीएफ के क्रिएटिव डायरेक्टर हैं और टीवीएफ-क्यूटियापा के शो भी लिखते हैं. बिश्वपति ने यूट्यूब इंडिया पर नंबर वन ट्रेंड करने वाले ‘बाप’ वीडियो में अरनब का रोल भी निभाया है. आईआईटी खड़गपुर से ही ताल्लुक रखने वाले बिश्वपति ने बताते हैं कि उनकी टीम में ज्यादातर लोग लेखक और एक्टर दोनों का काम करते हैं और सभी कॉलेज के वक्त से अभिनय करते आ रहे हैं. रोजमर्रा की बातें और देश-दुनिया की ताजा खबरों में से हास्य व व्यंग्य ढूंढने में उन्हें मजा आता है.

टीवीएफ-क्यूटियापा की ही तरह यूट्यूब का एक और चैनल ‘ऑल इंडिया बक**’ (एआईबी) भी अपने वीडियो को लेकर सोशल मीडिया पर काफी लोकप्रिय है. इस चैनल ने भी पिछले दिनों अरविंद केजरीवाल के सुर्खियां बटोरने  के बाद ‘नायक 2’ नाम का वीडियो बनाया था. केजरीवाल के क्रांतिकारी लहज़े को हास्य-व्यंग्य के अंदाज में प्रस्तुत करने वाले इस वीडियो में अभिनेता आलोक नाथ, ‘बाबूजी’ की भूमिका में नजर आए थे और इसे 20 दिन में 22 लाख से भी ज्यादा बार देखा गया.  एआईबी की टीम में तन्मय  गुरसिमरन खम्बा, रोहन और आशीष शामिल हैं. ये सभी पेशे से लेखक और स्टैंड अप कॉमेडियन हैं.

सिर्फ हंसी मजाक के लिए ही नहीं, ये चैनलों अपनी लोकप्रियता का इस्तेमाल सामाजिक संदेश देने के लिए भी करते हैं. जैसे भारत में लगातार बढ़ रही बलात्कार की घटनाओं पर एआईबी ने अभिनेत्री कल्की केकलां और वीजे जूही पांडे के साथ इट्स युअर फॉल्ट (ये तुम्हारी गलती है) नाम का वीडियो बनाया था जो बलात्कार पीड़ित के प्रति समाज के रवैये पर एक कटाक्ष था और इसे 30 लाख से भी ज्यादा बार देखा गया.

हाल ही में गूगल द्वारा करवाए एक अध्ययन से पता चला है कि यू ट्यूब देखने वाले एक तिहाई भारतीय दर्शक महीने के 48 घंटे इस वेबसाइट पर बिताते हैं, यानी औसतन एक दिन में डेढ़ घंटे से भी ज्यादा. इससे इन वीडियो के देखे जाने की बढ़ती संभावनाओं का अंदाजा लगाया जा सकता है.

पैसा कहां से आता है ?
इन वीडियो के इतना लोकप्रिय होने की एक बड़ी वजह है इनकी आला दर्जे की निर्माण गुणवत्ता जो दर्शकों को उनके निर्माण के पीछे की गंभीरता से भी परिचित करवाती है. जाहिर-सी बात है कि इन पर खर्च भी काफी आता होगा. इस बारे में बात करते हुए टीवीएफ के अरुणाभ कहते हैं, ‘हमारी कंपनी टीवीएफ का टर्नओवर अच्छा-खासा है. हम एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री का हिस्सा हैं और अपना काम करने के लिए जितना पैसा होना चाहिए उतना हमारे पास हमेशा होता है. बल्कि कई मामलों में हम टीवी कंपनियों से ज्यादा प्रोफेशनल हैं. हमारे एक्टर्स और क्रू को टीवी के स्टैंडर्ड पेमेंट से 50 % ज्यादा ही मिलता है.’

मुनाफा कमाने के विभिन्न जरियों का जिक्र करते हुए अरुणाभ बताते हैं, ‘हमारी कंपनी टीवीएफ का एक डिविजन भारत के नामी-गिरामी कॉलेज में लाइव शो करता है जिससे हमें अच्छा-खासा पैसा मिलता है. इसके अलावा हम कई ब्रांड्स के लिए कॉरपोरेट फिल्में बनाते हैं. ऑनलाइन व्यूअरशिप और प्रायोजकों से भी हम पैसा कमाते हैं.’ अरुणाभ दावा करते हैं कि टीवीएफ उन सभी मीडिया कंपनियों से कहीं ज्यादा बड़ी है जिन्हें बाकी लोग दरअसल ‘बड़ा’ समझते हैं.’

तो क्या टीवी और सिनेमा की तरह यूट्यूब पर भी लोकप्रिय होने या शो बनाने के लिए जेब में पैसे या फिर किसी बड़े नाम का साथ होना जरूरी है? मुंबई के एक प्रसिद्ध रेडियो स्टेशन के क्रिएटिव हेड कीर्ति शेट्टी की मानें तो यूट्यूब पर पैसे का नहीं, टैलेंट का खेल खेला जाता है. पिछले कुछ महीनों से यूट्यूब के एक चैनल ‘मैं-डक’ पर कीर्ति ने ‘छपरी चमाट’ नाम का वीडियो शुरू किया है जिसमें वे देश और दुनिया की खबरों को एक मवाली के नजरिये से प्रस्तुत करते हैं. कीर्ति बताते हैं कि वे मुंबई के रेडियो पर मवाली भाई नाम का एक किरदार करते थे जिसे सुनने के बाद उनसे Mainduck (मेंडक) चैनल ने खुद संपर्क किया था.

मेंडक की ही तरह कई कंपनियां, यूट्यूब के साथ मुनाफा साझा करने वाले मॉडल पर काम करती हैं और इसलिए ये पार्टनर लगातार नए टैलेंट की खोज में रहते हैं जो इन्हें कंटेंट दे सकें, साथ ही चैनल का चेहरा बन सकें. वीडियो के शूट, एडिट और प्रमोशन की जिम्मेदारी पार्टनर्स की ही होती है. यानी अगर आपके पास टैलेंट है तो यूट्यूब की दुनिया में आप कहीं किसी के काम आ सकते हैं. और अगर आप चल निकले तो आपकी अच्छी खासी कमाई भी हो सकती है.

कीर्ति का कहना है, ‘ डिजिटल मीडिया के फ्री होने की वजह से यहां आपको अपनी बात रखने के लिए किसी का मुंह नहीं देखना पड़ता. आप चाहें तो अपने मोबाइल से वीडियो बनाकर अपलोड कर दीजिए और क्या पता लोगों को आपकी बनाई चीज इतनी पसंद आ जाए कि आप रातों-रात सुपरस्टार बन जाएं. आलोक नाथ  को ही देख लीजिए, डिजिटल मीडिया की बदौलत वे आज हर तरफ छाए हुए हैं. जो काम टीवी या फिल्मों को करने में बरसों लग जाते हैं, यूट्यूब और सोशल मीडिया उसे बहुत छोटे-से वक्त में कर देता है.’

कीर्ति और अरुणाभ जैसे लोगों का नाम व काम यदि इस समय करोडों लोगों तक पहुंचा है तो इसकी सबसे बड़ी वजह है यूट्यूब जैसी वेबसाइट का लोकतांत्रिक होना. यहां आपको किसी कंपनी या व्यक्ति के आगे चिरौरी नहीं करनी. लेकिन इसकी यही ताकत इस वेबसाइट पर पहले से छाए लोगों के लिए चुनौती बन जाती है क्योंकि उन्हें यहां लगातार स्पर्धा करना है. इस समय अगर कॉमेडी में ही देंखे तो कई छोटे-बड़े यूट्यूब चैनल चर्चित और गैरचर्चित चेहरों के साथ सबका ध्यान बटोरने में लगे हुए हैं. इस मसले पर कीर्ति कहते हैं, ‘ यूट्यूब पर फायदे ज्यादा नुकसान कम हैं. मेंडक चैनल को ही ले लीजिए. इस पर मशहूर वीजे सायरस ब्रोचा के वीडियो भी होते हैं. और जब कोई उन्हें देख रहा होता है तो साइड में मेरा वीडियो भी रिकमेंडेशन के रूप में दिखाई देता है जो मेरे लिए फायदेमंद ही है ना.’

वहीं अरुणाभ की मानें तो यह अच्छी बात है कि यूट्यूब का इकोसिस्टम बड़ा हो रहा है क्योंकि अगर किसी खेल में आप अकेले ही प्लेयर हैं तो इसका मतलब कोई और यह गेम खेलना नहीं चाहता. प्रतिस्पर्धा से प्रेरणा मिलती है और अगर इससे ज्यादा लोग जुड़ रहे हैं तो कहीं  कहीं उन्हें इसमें कुछ फायदा ही नजर आ रहा होगा.

टीवी बनाम डिजिटल मीडिया
गूगल द्वारा किया गया अध्ययन बताता है कि भारत में यूट्यूब को देखने वाले दो तिहाई दर्शक 35 साल से कम उम्र के हैं और भारतीय यूजर30 प्रतिशत यूट्यूब वीडियो अपने मोबाइल पर देखते हैं. ऐसे में यह सवाल सहज ही उठता है कि क्या ये चैनल इन युवाओं की पसंद के अनुरूप कंटेंट बनाकर यूट्यूब पर जमे रहना चाहेंगे या फिर टीवी या बड़ा पर्दा ही इनकी अगली या आखिरी मंजिल है.

अरुणाभ के मुताबिक, ‘ यूट्यूब के बढ़ते यूजर्स को नकारा नहीं जा सकता लेकिन यह भी सच है कि भारत में टेलीविजन बहुत ज्यादा बड़ा है. यूट्यूब उसे अकेले टक्कर नहीं दे सकता. जहां तक हमारी बात है तो जहां भी हमें हमारी तरह की चीज बनाने का मौका दिया जाएगा हम बनाएंगे. हम बतौर क्रिएटर ताकतवर होना चाहते हैं. माध्यम कोई भी चलेगा.’

अपने वीडियो की बढ़ती लोकप्रियता के बारे में अरुणाभ बताते हैं कि उनके चैनल द्वारा बनाया गया ‘लगे रहो शेट्टी भाई’ वीडियो देखकर विधु विनोद चोपड़ा, राजकुमार हिरानी और अभिजात जोशी ने उन्हें बुलाकर उनके काम की सराहना की थी जिसने उनके लिए काफी हौसलाअाफजाई का काम किया.

वहीं बिश्वपति सरकार मानते हैं कि बतौर शो निर्माता और लेखक, यूट्यूब के जरिए लोगों की नब्ज समझने का ज्यादा अच्छा मौका मिल पाता है जो लंबी रेस में काफी फायदेमंद साबित होता है. यूट्यूब से जिस तरह की तुरंत प्रतिक्रिया मिलती है, वह अन्य पारंपरिक माध्यमों से मिलना नामुमकिन है.

बिश्वपति कहते हैं, ‘ट्रेडिशनल मीडिया आपको कभी ठीक से जज नहीं कर सकता. यूट्यूब पर आप वीडियो डालिए, आपको तुरंत अच्छे-बुरे का पता चल जाता है. लोग कमेंट्स करते हैं, आंकड़े सामने होते हैं. कितने लोगों ने देखा, कितनों ने शेयर किया, किस किस जगह देखा गया, कितने लोगों ने सब्सक्राइब किया. जबकि टीवी से आपको कभी भी दर्शकों की पसंद-नापसंद के बारे में सही जानकारी नहीं मिल सकती जिस वजह से या तो आप एक ही चीज परोसते रहेंगे या फिर बाहर निकल चुके होंगे.’

एक तरफ जहां यूट्यूब उन प्रतिभाओं को मौका दे रहा है जिन्हें टीवी पर शायद एक लंबा इंतजार करना पड़ सकता था, वहीं उसने उन दर्शकों का ध्यान अपनी तरफ खींचा है जिन्हें टेलीविज़न पर अपनी पसंद का कंटेंट नहीं मिल पा रहा था. लेकिन इस बात में कोई दोराय नहीं कि अब-भी एक बहुत बड़ा तबका इंटरनेट से ज्यादा टीवी पर ही कार्यक्रम देखना पसंद करता है. पश्चिम की तरह भारत में फिलहाल इंटरनेट पर टीवी शो देखने के चलन ने जोर नहीं पकड़ा है. ऐसे में क्या क्यूटियापा या एआईबी किस्म के चैनल, भविष्य में टेलीविजन की ताकत को कम आंकना का जोखिम उठा सकते हैं?

समाजविद पुष्पेश पंत की मानें तो डिजिटल मीडिया निश्चित रूप से अभिव्यक्ति की स्वंतत्रता का माध्यम तो है लेकिन भारत जैसे देश में पारंपरिक मीडिया की छुट्टी करना इतना आसान नहीं है. भारत में साक्षरों की संख्या अब-भी कम है और यहां ‘पढ़ना’ अब भी एक उपलब्धि है. एफएम के जरिए रेडियो का पुनर्जन्म हुआ है और कई घरों का दूरदर्शन से अभी भी रिश्ता बना हुआ है. अगर स्क्रीन के साइज को एक बार अलग रख दिया जाए तब भी ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी की समस्या, डाउनलोड की स्पीड और बफरिंग में लगने वाला समय डिजिटल मीडिया को भारत में मजबूत विकल्प बनने से रोक रहा है. इन यूट्यूब वीडियो को देखने वाले युवाओं के पास अगर हाई-एंड फोन नहीं है तो वे कितनी देर तक अपनी आंखों को सिकोड़ कर स्क्रीन को देख सकते हैं?

इसमें कोई शक नहीं कि डिजिटल मीडिया ने लोगों को अपनी बात रखने की पूरी आज़ादी दी है. नेता, अभिनेता से लेकर सरकारी नीतियों और कोर्ट के फैसलों तक यहां किसी को बख्शा नहीं जाता. यहां यूजर न्यायाधीश की भूमिका में किसी को अदालत पहुंचने से पहले ही सजा सुनाने को आतुर दिखाई देते हैं तो कभी वे किसी अपराधी को बेकसूर साबित करने के लिए लामबंद हो जाते हैं. इसी डिजिटल मीडिया ने समाज में अपनी पहचान बनाने के एक नए तरीके को भी जन्म दिया है जहां सिर्फ संजीदा और गंभीर बातें ही नहीं, पागलपंती भी जरूरी है. और इसके साथ ही अब वक्त के साथ देखना दिलचस्प होगा कि न्यू मीडिया के ये उभरते हुए नाम, लोगों की लगातार कुछ नया देखने की भूख को शांत कर पाएंगे या फिर यह वायरल फीवर जल्द ही उतर जाएगा

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