टिके रहेंगे भारत-अमेरिकी समझौते

संयुक्त राज्य अमेरिका के नये राष्ट्रपति के तौर पर 20 जनवरी को जोसेफ रॉबिनेट बाइडेन शपथ लेंगे। उनके साथ ही उप राष्ट्रपति पद सँभालेंगी कमला हैरिस। इन्हें अमेरिकी जनता से इतना पर्याप्त मत मिला है कि ये डोनाल्ड ट्रंप के चार साल के शासन को सिमटा सकें। हालाँकि ट्रंप को अब भी यकीन नहीं है कि उन्हें अमेरिकी जनता ने राष्ट्रपति पद से मुक्त कर दिया है।

अमेरिकी समाज को अलग-अलग करके देखने और कोविड-19 की महामारी न सँभाल पाने के कारण ट्रंप को चार साल ही शासन के लिए दिये। लेकिन चार साल में ही ट्रंप ने डेमोक्रेटिक पार्टी के गढ़ राज्यों के भीतर तक अपनी पैठ बना ली है। हो सकता है कि अगले चार साल बाद जब चुनाव हों, तो ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी सरकार में फिर लौटे। अमेरिका में जो बाइडेन के पद सँभालने के साथ ही देश को पहले नंबर पर लाने की कोशिश होगी। अपनी प्राथमिकताओं में बाइडेन ने कोरोना-19 की महामारी से निबटने की पुरज़ोर कोशिश करने की बात कही है। इसके लिए उन्होंने डेढ़ महीने पहले ही विशेषज्ञों का दस्ता भी नियुक्त कर दिया था। उन्होंने यह भी साफ किया कि पिछली सरकार के विभिन्न फैसलों को गुण-दोष के आधार पर परखा जाएगा।

हालाँकि विशेषज्ञों का मानना है कि नयी ड्रेमोक्रेटिक सरकार भारत के साथ हुए विभिन्न समझौतों पर कोई आँच नहीं आने देगी। इसकी वजह है कि भारत-अमेरिकी सम्बन्धों का दायरा वैश्विक रणनीति का रहा है। भारत के साथ हुए अमेरिकी समझौते न केवल रक्षा, बल्कि तकनीक, व्यापार, कृषि, शिक्षा आदि क्षेत्रों से भी सन्बन्धित हैं। भावी समय के साथ अमेरिकी नीतियों के तहत हुए ये समझौते दोनों देशों और उनके नागरिकों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए किये गये हैं। इन समझौतों के तहत दोनों देशों के बीच सामरिक, वाणिज्यिक और आर्थिक विकास की सम्भावनाओं पर भी राय-मशविरा हुआ है।

अमेरिकी चुनाव नतीजों में डेमोक्रेटिक पार्टी की जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो बाइडेन को शुभकामनाएँ दीं। उनसे 18 नवंबर की देर रात बातचीत भी की। दोनों बड़े लोकतांत्रिक देशों में आपसी सम्बन्ध कैसे प्रगाढ़ हो सकते हैं? इस सम्भावना पर भी दोनों नेताओं में अच्छी बातचीत हुई। दोनों ही देशों में सर्वोच्च प्राथमिकता कोविड-19 वायरस की महामारी से निपटने की है। उस पर अच्छा संवाद हुआ। दोनों ही देशों को कोविड-19 महामारी का प्रकोप है। अमेरिका में जहाँ 11 मिलियन से भी ज़्यादा लोग इससे संक्रमित हैं, वहीं भारत में यह तादाद आठ मिलियन से भी ज़्यादा है। अमेरिका में इससे निपटने के लिए बने टीके मैडरना की परीक्षण-प्रक्रिया और उसे सस्ते में जन-जन तक पहुँचाने की सम्भावनाओं पर भी दोनों राजनेताओं में राय-मशविरा हुआ।

अमेरिकी अर्थ-व्यवस्था को मज़बूत बनाने के लिहाज़ से बाइडेन ने यह बताया कि उनकी सरकार बॉय अमेरिकन नीति पर ज़ोर देगी। वह इस दिशा में सोच रहे हैं कि जो कम्पनियाँ अमेरिका में उत्पादन नहीं करतीं, उन्हें अमेरिका में व्यावसायिक लाइसेंस नहीं दिया जाए। क्योंकि देश में नौकरी के मौके फिर घट जाते हैं। दोनों ही देशों में इस बात पर सहमति थी कि दोनों मिलकर काम करें, तो न केवल आपसी सम्बन्ध प्रगाढ़ होंगे, बल्कि वैश्विक शान्ति के लिए एक मज़बूत रणनीति पर भी सक्रियता हो सकती है।

भारत ने जलवायु परिवर्तन पर फिर अमेरिकी सहयोग करने के फैसले का स्वागत किया और अमेरिकी नौसैनिक टुकड़ी के साथ भारतीय युद्धाभ्यास की ओर भी ध्यान खींचा। अमेरिकी सहयोग से भारत न केवल अरब और हिन्द महासागर, बल्कि प्रशान्त महासागर क्षेत्र में तमाम चुनौतियों का सामना करते थे और सक्षम होगा। ओबामा सरकार के दौर में प्रशान्त महासागर में चौकसी की विभिन्न सम्भावनाओं में भारतीय भूमिका की सम्भावना पर विचार हुआ था। अब बाइडेन के नेतृत्व की सरकार के साथ इस पहलू पर और ध्यान देने की गुंजाइश हैं।

जलवायु परिवर्तन पर बाइडेन के नेतृत्व में फिर सक्रियता से भारतीय हलकों में उम्मीद बढ़ी है कि अंतर्राष्ट्रीय सोलर सहयोग योजना पर और व्यापक तौर पर अमल अब हो सकेगा। बाइडेन ने जो नया मंत्रिमंडल बनाया है, उसमें ओबामा सरकार के कई दिग्गज मंत्री शामिल हैं। इससे लगता है कि अनुभव के आधार पर अमेरिका नीतिगत फैसलों को नयी धार देगा। इससे देश और विदेश में उसकी तस्वीर साफ-सुथरी दिख सकेगी। जलवायु परिवर्तन सम्बन्धी मामलों को ओबामा मंत्रिमंडल में दिग्गज मंत्री रहे जान केरी को सौंपा गया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बातचीत से यह संकेत ज़रूर मिलता है कि दोनों देश एक-दूसरे के और करीब आ सकते हैं; बशर्ते राजनयिक स्तर पर नियमित प्रयास किये जाएँ। इसकी ज़रूरत इसलिए भी है, क्योंकि ट्रंप प्रशासन में खासी भारतीय पैठ थी; जिसके चलते अमेरिका स्थित भारतीय समुदाय के आग्रह पर फरवरी, 2020 में अमदाबाद में नमस्ते ट्रंप का भव्य आयोजन हुआ था। लेकिन अब नयी सरकार का प्रशासन इस वािकये को किस हद तक नज़रअंदाज़ करता है, उसे राजनयिक स्तर पर बेहतरी के आधार पर ही समझा जा सकेगा। सम्भावना है कि भारतीय विदेश विभाग इस लिहाज़ से भारत-अमेरिकी सहयोग बढ़ाने पर राय-मशविरा कर भी रहा हो।

मारक हथियारों की क्षमता से विनाश हो सकता है। उससे टूटे दिलों को नहीं मिलाया जा सकता। अमेरिका ने विश्वयुद्ध की विभीषिकाओं को जाना-समझा है। उसकी प्राथमिकता रही है कि दुनिया भर में तानाशाही, सीमाओं को लेकर दो देशों में झगड़े, लोकतंत्र के खतरों और एटमी हथियारों के विरोध के नाम पर युद्ध को बढ़ाने से रोकने की अमेरिकी तरीके से खास रणनीति के तहत हस्तक्षेप। इसकी धमक पूरी दुनिया में रही है।

भारत को उम्मीद है कि चीन का जो प्रभाव प्रशान्त महासागर और चीन सागर में बढ़ रहा है, उस पर अमेरिका चिन्ता जताता रहा है और भारत व अमेरिका आपस में सैन्य सहयोग करके चीन के अपना विस्तार करने के रवैये को थाम सकेंगे। भारत-अमेरिकी और मित्र देशों का समुद्री युद्धाभ्यास इसी दिशा की एक कड़ी रहा हैै।

हालाँकि भारत की एक सोच यह भी है कि बाइडेन प्रशासन शायद चीन पर वैसा दबाव रखना चाहे, जैसा ट्रंप के प्रशासन में था। बाइडेन ने अपने भाषणों में यह संकेत दिया भी है कि ट्रंप प्रशासन के सभी फैसलों की समीक्षा गुण-दोष के आधार पर की जाएगी। इससे चीन में फिलहाल कुछ राहत अब वाणिज्यिक और व्यापारिक मामलों को लेकर है। वहीं रूस को संशय है कि जर्मनी तक ऊर्जा पहुँचाने के लिए प्राकृतिक गैस देने के लिए नार्ड स्ट्रीम पाइपलाइन बिछाने के उसके काम में बाइडेन मंत्रिमंडल में शामिल ओबामा सरकार के दौर के मंत्री और अफसरशाही फिर कहीं हस्तक्षेप की नीति न छेड़े। जबकि नार्ड स्ट्रीम पाइपलाइन को ईयू संसद की अनुमति मिली हुई है। इसी तरह बाइडेन सरकार के कार्यकाल की शुरुआत से खाड़ी के देशों ईरान, वेनेजुएला और क्यूबा में भी नयी उम्मीदें हैं। ट्रंप सरकार ने जिस तरह इज़राइल, संयुक्त अरब अमीरात के साथ समझौता करके गोलन हाइटूस से फिलस्तीनियों की बेदखली का अभियान छेड़ा था। उस पर नये सिरे से विचार अब सम्भव है।

अमेरिकी जनता ने डोनाल्ड ट्रंप के नेतत्व में रिपब्लिकन पार्टी के चार साल के कामकाज पर अपना नतीजा, डेमोक्रेटिक पार्टी को जिताकर जताया। इसकी विभिन्न वजहों में देश के विभिन्न शहरों में श्वेतों और अश्वेतों में झड़प, हालात काबू करने में पुलिस का गोली चलाना और अश्वेतों का मारा जाना ही नहीं, बल्कि देश के समुदायों को (लैटिन अमेरिकी, लैटिनो, स्पैनिश, एशियन) अलग-अलग बाँटने की कोशिश रहा। इसके अलावा काविड-19 के चलते हुए लॉकडाउन में लोगों की बढ़ी बेरोज़गारी, बेरोज़गारी भत्ते के भी न मिलने से किराये के मकानों को छोडऩा भी था। स्थानीय आक्रोश को शान्त करने के लिए ट्रंप का नेशनल गाड्र्स की तैनाती का आदेश देना भी एक बड़ी वजह रहा। डेमोक्रेटिक पार्टी अमेरिका में संविधान के तहत हम अमेरिकी की बात करती रही है। लेकिन पिछले चार वर्षों में अमेरिका बेहद बँटा हुआ देश बना दिखता है। इन वर्षों में डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रभाव वाले इलाकों में रिपब्लिकन पार्टी के समर्थक भी हावी दिखने लगे हैं। विभिन्न सामाजिक संस्थाओं यहाँ तक कि अदालतों तक में यह विभाजन अब दिखता है।

लेकिन डेमोक्रेटिक पार्टी के चुने गये नये राष्ट्रपति जो बाइडेन भावुक होने के साथ ही अनुभवी राजनीतिज्ञ हैं। उन्हें राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के साथ ही अपने कौशल को दिखाना होगा। जो भी फैसला वह लेंगे, उन्हें सीनेट में उसकी मंज़ूरी लेनी होगी। चाहे वह विश्व स्वास्थ्य संगठन में फिर अमेरिका का पहुँचना हो, विश्व व्यापार संगठन को फिर महत्त्व देने की बात हो, जलवायु परिवर्तन में सक्रिय होना हो या फिर ईरान में एटामिन ऊर्जा का बेज़ा इस्तेमाल या चीनी समस्याओं पर अपनी बात रखनी हो।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हुई अच्छी बातचीत से अनेक आशाएँ जगी हैं। अमेरिकी चुनाव मे विजयी जोसेफ बाइडेन से बातचीत के एक दौर के बाद अब भारतीय विदेश मंत्रालय को अमेरिका के साथ बातचीत में अपने देश की अर्थ-व्यवस्था, व्यापार, सामारिक मुद्दों और बहुराष्ट्रीय समझौतों के लिए नयी ज़मीन तैयार करनी है, जिससे भारत का विश्व शक्ति बनने का सपना साकार हो सके।