झुकना तो सरकार को ही पड़ेगा

तीन नये कृषि क़ानूनों के विरोध में किसानों को आन्दोलन करते हुए क़रीब आठ महीनों का समय हो चुका है; लेकिन केंद्र सरकार ने शुरू से ही किसानों की माँगों को मानने के बजाय उन्हें दबाने का प्रयास किया है। किसानों को शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से तोडऩे के प्रयास के बाद अब सरकार उनके आन्दोलन को जातिगत रूप से बाँटने की कोशिश में लग गयी है। हालाँकि यहाँ भी उसे कामयाबी नहीं मिली है। हाल यह है कि सत्ता से जुड़े लोग किसान आन्दोलन में आकर किसानों से मारपीट करने तक से नहीं चूके है, ताकि किसी तरह उनका आन्दोलन कमज़ोर किया जा सके। इन दिनों किसान आन्दोलन किस दशा में है और आगे की उसकी दिशा क्या होगी? इन सवालों के जवाब हर कोई चाहता है। किसानों का कहना है कि केंद्र की भाजपा सरकार सत्ता के मद में इस क़दर चूर है कि उसको देश के किसान आज सबसे बुरे लग रहे हैं। किसानों ने सरकार की मनमानी को बर्दास्त नहीं किया है, नये काले कृषि क़ानूनों के विरोध में आवाज़ उठायी है और सरकार को बता दिया है कि उनकी खेती-बाड़ी हड़पने की नीति को वे सफल नहीं होने देंगे।
भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत का कहना है कि सरकार ने सारे हथकंडे अपना लिये, डरा-धमका लिया, फिर भी किसानों का आन्दोलन कमज़ोर नहीं हुआ है। सरकार लगातार बड़े-बड़े सरकारी उपक्रमों को निजी हाथों में पूँजीपतियों के हवाले करती जा रही है। देश को पूँजीपतियों को सौंपने लिए एक सुनियोजत तरीक़े से काम किया जा रहा है। किसानों की ज़मीनों को हड़पने के लिए भी सरकार ने तमाम चालें चल रही है; लेकिन किसानों ने सरकार की मंशा को भाँपकर उसकी देश और किसान-विरोधी नीतियों को देश के सामने रख दिया। आज जब देश-दुनिया में किसानों के मामले में केंद्र सरकार की बदनामी हो रही है, तो सत्ताधारियों में बौखलाहट है। राकेश टिकैत ने साफ़ कहा कि किसान का बेटा हूँ किसानों के अधिकारों की ख़ातिर सरकार से आर-पार की लड़ाई करने पड़े, तो तैयार हूँ।
किसान आन्दोलन में बैठे किसान श्याम किशोर यादव ने कहा कि 2022 में उत्तर प्रदेश, पंजाब, गुजरात और उत्तराखण्ड सहित सात राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में देश के किसान सरकार की किसान-विरोधी और देश-विरोधी नीतियों को जनता के सामने रखेंगे। क्योंकि देश में अन्नदाताओं के साथ सरकार जो अत्याचार कर रही है, उसको लेकर किसान और उनके परिजन पीड़ा में हैं। उन्होंने कहा कि 19 जुलाई से 13 अगस्त तक चलने वाले संसद सत्र के दौरान देश भर के 500 से अधिक किसान संगठन के प्रत्येक संगठन से कम-से-कम पाँच किसान देश की राजधानी में संसद भवन, जंतर-मंतर और रामलीला मैदान से लेकर अन्य प्रमुख जगहों पर धरना-प्रदर्शन करेंगे। इस दौरान किसानों की एकता से सरकार को परिचित कराया जाएगा, ताकि उसे पता चल सके कि उसने किसानों की एकता को तोडऩे के लिए जो प्रयास किये थे, वे व्यर्थ हैं।
किसान महिला सुशीला देवी ने कहा कि जबसे देश आज़ाद हुआ है, तबसे देश में तमाम सरकार आयीं और गयीं; लेकिन ऐसी सरकार पहली बार देखी है, जो किसानों को बर्बाद करने पर तुली है। किसानों की माँगों और अधिकारों को किसी भी सरकार ने अभी तक नहीं टाला है; लेकिन यह सरकार किसानों का अहित करने पर तुली है और टस-से-मस नहीं हो रही है; जबकि किसानों की आन्दोलन के दौरान सैकड़ों किसानों की मौत भी हुई है। गोलीकांड और अग्निकांड तक हुए हैं। उनमें भी जानें गयी हैं। इतने पर भी सरकार किसानों की उपेक्षा कर रही है। सुशीला देवी ने कहा कि सरकार की नीयत में खोट है। आने वाले दिनों में किसानों के परिवार वाले भी धरने पर बैठेंगे, जिसमें महिलाएँ और बच्चे भी शामिल होंगे। किसान उदय गिल का कहना है कि पंजाब और उत्तर प्रदेश को किसानों के राज्य के नाम से जाना जाता है। किसानों ने ठाना है कि इन दोनों राज्यों के आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा को सबक़ सिखाया जाएगा। जब तक भाजपा सरकार सत्ता में नहीं आयी थी, तब तक किसानों के हित में और महँगाई के विरोध में बोलती रही है; लेकिन जैसे ही इस पार्टी की सरकार को किसानों ने कुर्सी सौंपी और वह पूर्ण बहुमत से केंद्र की सत्ता में आयी, तो मनमानी करने लगी और किसानों की ज़मीन को हड़पने के लिए काम करने लगी। इसी तरह महँगाई से जनता बेहाल है। पैट्रोल-डीजल तेलों के दामों में आग लगी है। सरकार अब कुछ नहीं बोल रही है। किसानों का डीजल के बिना खेती का काम नहीं हो सकता। इसलिए किसानों को परेशान करने के लिए डीजल-पैट्रोल के दाम बढ़ाये जा रहे हैं। किसान नेता और वकील चौधरी बीरेन्द्र सिंह ने बताया कि जब किसानों ने 26 नवंबर से दिल्ली की सीमाओं पर आन्दोलन शुरू किया था। तब सरकार ने किसानों की माँगों और आन्दोलन को हल्के में लिया और सोचा कि मौसम की मार, थोड़ी धमकी और पुलिस के अत्याचार से भाग जाएँगे; लेकिन किसान हर मौसम और हर अत्याचार के बावजूद भी जुटे रहे। अब तानाशाही सरकार को उनसे असुविधा हो रही है, तो वह आन्दोलन ख़त्म करने के लिए नये-नये हथकंडे अपना रही है।
बता दें कि किसान आन्दोलन को तोडऩे और बदनाम करने की साज़िश के तहत गाज़ीपुर में बैठे किसानों के साथ जो मारपीट हुई, उससे भी देश के लोगों और किसानों में ग़ुस्सा है। भाकियू नेता राकेश टिकैत और बाल्मीकि समाज के नेता योगेश महरोलिया ने बताया कि किसानों के आन्दोलन को तोडऩे के लिए भाजपा के कार्यकर्ताओं ने मंच पर जबरन चढ़कर तोडफ़ोड़ की और किसानों से हाथापाई की। बाल्मीकि सामाज को एक साज़िश तक तहत बदनाम करने की चाल चली थी, जो बाल्मीकि समाज के लोगों ने नाकाम कर दी है। योगेश महरोलिया ने बताया कि बाल्मीकि समाज किसानों के साथ है और रहेगा; क्योंकि बाल्माकि समाज इस देश की धरती पर रहता है, इस धरती का अनाज खाता है, किसानी करता है और किसानों के साथ रहता है। ऐसे में किसानों का विरोध, उनके साथ मारपीट और तोडफ़ोड़ की बात सोच ही नहीं सकता। बाल्मीकि समाज के नेता जुगल किशोर का कहना है कि जबसे किसान आन्दोलन ग़ीज़बपुर में चल रहा है, तबसे सत्ता से जुड़े लोगों की नाक में दम है; क्योंकि किसान हर रोज़ उनकी पोल खोल रहे हैं। इसीलिए भाजपा के लोग किसान आन्दोलन के बीच किसान बनकर आते हैं और उपद्रव करते हैं। उनका कहना है कि आन्दोलन को कमज़ेर करने के लिए तमाम ऐसे लोग आये हैं, जिनका किसानों से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है। लेकिन इससे किसान घबराते नहीं, सभी देश के किसान इसी तरह आन्दोलन को और मज़बूती देते रहेंगे। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के बातचीत के प्रस्ताव पर राकेश टिकैत ने साफ़ कहा है कि वह (तोमर) बातचीत के लिए फिर शर्तें लगा रहे हैं, जो किसानों को मंज़ूर नहीं हैं।
ग़ाज़ीपुर में आन्दोलनरत किसानों का कहना है कि अगर कृषि क़ानून वापस नहीं होते हैं, तो भाजपा की सरकार भी वापस नहीं होगी; चाहे वह राज्य में हो या केंद्र में। क्योंकि किसान किसी भी क़ीमत पर अपनी माँ समान धरती से समझौता नहीं कर सकते। उनका कहना है कि हम धरती पुत्र हैं और ज़मीन हमारी माँ है, जिसका सीना चीरकर हम देश के हर बेटे-बेटी का पेट भरते हैं। अगर हमसे खेती-किसानी छिन जाएगी, तो हम ही नहीं, पूरा देश परेशान होगा; जिसके संकेत मिलने लगे हैं। किसानों ने लाठियाँ खायी हैं। मौतें देखी हैं। ऐसे में अब हमने सोच लिया है कि हमारी भी जान चली जाए, तो चली जाए; लेकिन किसान आन्दोलन बिना कृषि क़ानूनों के वापस हुए शान्त नहीं होगा। उनका मानना है कि जब किसान सरकार बना सकते हैं, तो उसे गिरा भी सकते हैं। किसान परमबीर ने कहा कि सरकार ने किसानों पर जो लांछन लगाये हैं कि यह किसानों का आन्दोलन नहीं है; फलाँ का है, फलाँ का है; उन लांछनों का जवाब किसान अब सरकार को देंगे। चाहे इसके लिए कितने भी ज़ुल्म सहने पड़ें। अब झुकना तो सरकार को ही पड़ेगा।