झीलों के आईनों में चेहरा देखता शहर

उदयपुर कला और संस्कृति की जीती-जागती मिसाल है। इसे झीलों का शहर कहा जाता है। अतीत के अभिशाप को ढोता हुआ यह शहर वर्तमान में झीलों के आईनों में अपना चेहरा देखता रहता है। यह भी कह सकते हैं उदयपुर अपने आँचल में मंदिर, दुर्ग और दर्शनीय स्थलों को समेटे हुए समृद्धि, संस्कृति और प्राकृतिक कला की मिसाल है। बड़ी बात यह है कि यहाँ सांस्कृतिक विरासतों को सहेजने के लिए शासन-प्रशासन पूरी तरह मुस्तैद रहता है। राजस्थान का यह एक ऐसा अनूठा शहर है, जिसने पुरातन सभ्यता, संस्कृति को छोड़े बिना आधुनिकता से ऐसा अनूठा तालमेल बिठाये रखा है कि इस शहर की लोक संस्कृति के मोह में सैलानी खुद-ब-खुद बँध जाते हैं।

विगत वैभव की साक्षी अनेक इमारतें इस शहर में आज भी मौज़ूद है। शायद इतनी एतिहासिक इमारतें किसी और शहर में नहीं होगी। आकर्षक भवाई, घूमर, कच्ची घोड़ी, कालबेलिया और तेरह ताली जैसे नृत्य उदयपुर की समृद्ध सांस्कृतिक निधि के रूप मेें पूरे विश्व में विख्यात हैं। इसका वर्तमान अद्भुत है, तो अतीत के अवशेष भी गहरी उत्कंठा जगाते हैं। 20वीं सदी के अवशेषों के अध्ययन को समझें तो कभी यह शहर आहार नदी के तटीय क्षेत्र में बसा था। यहाँ दो तरह की प्रजातियों के अवशेष पाये जाते हैं -एक भील और दूसरे राजपूत। देसी आदिवासियों की मूल जन्म स्थली इस क्षेत्र में फैली-पसरी अरावली पर्वत मालाओं को ही माना जाता है। बाद में इस क्षेत्र में भील विलुप्त तो नहीं हुए, किन्तु राजपूतों का आधिपत्य होता चला गया।

इतिहास

उदयपुर को महाराणा उदय सिंह ने 1559 ईसवीं में बनास नदी के किनारे दक्षिणी पश्चिमी क्षेत्र में स्थित गिरवा उपत्यकाओं के उपज़ाऊ क्षेत्र में बसाया था। उदयपुर मेवाड़ राजवंश की नयी राजधानी के रूप में स्थापित हुआ। गिरवा को चित्तौड़ राजवंश की वजह से खास पहचान मिली। चित्तौडग़ढ़ तो वैसे भी आक्रांताओं के हमले के कारण चर्चित रहा है। नवंबर 156। में मुगल शासक अकबर ने चित्तौड़ दुर्ग पर कब्ज़ा कर लिया था। कालांतर में चित्तौड़ महरानी पद्मिनी को लेकर भी चर्चित रहा। 16वीं शताब्दी में मेवाड़ के शासक उदयसिंह द्वितीय ने सुरक्षित स्थान को राजधानी बनाने के उद्देश्य से कुंभलगढ़ को चुना। किन्तु उदयपुर के प्रति उनका लगाव यथावत् बना रहा। उन्होंने उदयपुर को शत्रुओं के हमलों से बचाये रखने के लिए छ: किलोमीटर लम्बी दीवार बनवायी, जो शहर पनाह की तरह थी। इस दीवार में क्रमश: सूरजपो, चाँदपोल, हाथीपोल, अम्बापोल और उदयपुर के नाम से सात दरवाज़े बनवाये गये। इसे आज पुराने शहर के नाम से जाना जाता है। उदयपुर हमेशा मुगल शासकों की निगाहों में खटकता रहा। महाराणा प्रताप और दिल्ली के मुगल शासक अकबर के बीच हल्दीघाटी का युद्ध यहीं हुआ था। अलबत्ता पहाडिय़ों से घिरा हुआ क्षेत्र होने के कारण सशस्त्र मुगल सेनाओं के लिए इस पर सीधे हमलावर होना सम्भव नहीं हुआ। उदयपुर राजस्थान में अरावली पहाडिय़ों के दक्षिणी ढलान पर स्थित है। इसका पठारी दक्षिणी क्षेत्र पहाड़ों और सघन जंगलों से भी घिरा हुआ है।

कहा जाता है ‘झीलों का शहर’ 

झीलों के शहर के नाम से मशहूर यह शहर एक विशिष्ट जलीय पद्धति से परस्पर जुड़ा हुआ है, जो भूगर्भ जल का संतुलन बनाये रखता है। झीलों की बहुलता से यहाँ कृषि और उद्योग समुन्नत स्थिति में हैं। पेयजल की भी यहाँ कोई समस्या नहीं। शहर की तीन झीलें तो ऊपरी केचमेंट क्षेत्र में हैं; जबकि छ: झीलें निगम क्षेत्र में आती है। झीलों के खूबसूरत नज़ारों ने इसे पर्यटन के क्षेत्र में बढ़ावा देने में मदद दी है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि यहाँ पर्यटकों के लिए कोई समस्या नहीं है। इसके अलावा रोज़गार की भी भरपूर सम्भावनाएँ हैं।

कहाँ क्या है मशहूर?

उदयपुर की पिछोला झील का पूर्वी तटीय क्षेत्र तो ऐतिहासिक इमारतों से घिरा हुआ है। इसका मुख्य प्रवेश द्वार त्रिपोलिया के नाम से जाना जाता है। त्रिपोलिया में प्रवेश के साथ ही शुरू हो जाते हैं- बगीचे और उत्कृष्ट मेहराबों वाले महल मालिए। यहाँ एक म्यूजियम बना दिया गया है। इसमें सज़ावटी फर्नीचर के अलावा पुराग्रंथ तथा दुर्लभ पेंटिंग उपलब्ध है। पिछोला झील में ही टापू की तरह बना हुआ है- लेक पैलेस। राजवंश के लोग अपनी गर्मियाँ यहीं बिताते थे। सफेद संगमरमर का बना हुआ लोक पैलेस अब फाइव स्टार होटल में बदल गया है और ताज होटल रिसोर्ट के बैनर तले चल रहा है। जग मंदिर भी पिछोला झील में टापू की तरह दिखाई देता है। यहाँ लेक गार्डन पैलेस के नाम से प्रख्यात इमारत का निर्माण मेवाड़ राजवंश के तीन महाराणाओं ने किया था। राज परिवार के लिए यह भी ग्रीष्मकालीन मौसम की तरह आरामगाह था।

सज्जनगढ़ के नाम से प्रख्यात इमारत राजपरिवार के लिए बरसाती मौसम बिताने की बेहतरीन ठिकाना थी। इसे मानसून पैलेस भी कहा जाता है। सज्जनगढ़ एक ज्योतिषीय भवन के रूप में विख्यात रहा है। प्रथम जैन तीर्थंकर भगवान ऋषभ देव को समर्पित केसरिया जी मंदिर वास्तुकला का अद्भुत वैभव दर्शाता है। काले पत्थर से निर्मित भगवान ऋषभ देव की प्रतिमा अनूठी और ओजपूर्ण है। हिन्दुओं का अराधना स्थल जगदीश मंदिर शहर के बीचों बीच बसा हुआ है। इसका निर्माण महाराणा जगत सिंह ने किया था। मरू-गुर्जर वास्तुकला के अद्भुत समन्वय की दृष्टि से यह एक अनूठी मिसाल है और सैलानियों को रिझाने का सबसे आकर्षक स्थल। फतह सागर एक कृत्रिम झील है। मूल रूप से इसका निर्माण महाराणा जय सिंह ने करवाया था। किन्तु कालांतर में महाराणा फतह सिंह ने इसमें काफी तब्दीलियाँ करवायी। इसे एक एक्वेरियम यानी ‘सूर्य की आभा से दमकती इमारत’ की संज्ञा दी जा सकती है। सहेलियों की बाड़ी यहाँ का सबसे रमणीक बगीचा है और सैलानियों को सबसे अधिक लुभाने वाला क्षेत्र है। निर्माण का अद्भुत आकर्षण समोये सहेलियों की बाड़ी फुहार छोड़ते फव्वारे, पानी के कुण्ड में खिले हुए कमलदल और संगमरमर से बनी हाथियों की प्रतिमाओ को लेकर पर्यटकों में गहरा रुझान पैदा करता है। मोतीमगरी राजपूत नायक महाराणा प्रताप की स्मृति में बनाया गया है। बुनियादी तौर पर यह एक छोटी-सी पहाड़ी है। यहाँ महाराणा प्रताप की कांस्य प्रतिमा है, तो निकट ही उनके प्रिय चेतक अश्व की समाधि है। नीमच माता का मंदिर श्रद्धालुओं का अटूट सैलाब खींचता रहता है। यह मंदिर फतह सागर पहाड़ी के निकट स्थित है।

कलाकृति का अद्भुत संगम

कभी सिसोदिया राजपूतों की आन, बान और शान रहा उदयपुर विभिन्न कलाकृतियों, नक्काशी की शैलियों और सांस्कृतिक संगठनों के आयोजनों का अद्भुत संगम है। राजस्थान में जिन तीन शहरों में पर्यटकों की सबसे ज्यादा गहमा-गहमी रहती है, उनमें उदयपुर अव्वल नम्बर पर है। इसके तीन बड़े कारण है; पहला- शान्त, सुरम्य और सुरक्षित माहौल; दूसरा-प्रकृति प्रेमियों और इतिहास से लगाव रखने वालों के लिए यह अध्ययन का क्षेत्र और तीसरा- यहाँ अतुल्य सांस्कृतिक वैभव हैं। राजस्थान के सम्पूर्ण सांस्कृतिक वैभव की झाँकी देखनी हो, तो भारतीय लोक कला मंडल उत्कृष्ट संस्थान है। उदयपुर में सैलानियों को सबसे ज्यादा रिझाता है, तो वो है शिल्पग्राम। यहाँ राजस्थान समेत गोवा, गुजरात और महाराष्ट्र के परम्परागत काष्ठ कला से निर्मित घर बने हुए है। शिल्पग्राम में हर साल आयोजित होने वाला 10 दिवसीय उत्सव अगर किसी ने नहीं देखा, तो उदयपुर में क्या देखा।

हर साल आते हैं हज़ारों सैलानी

उदयपुर को देखने के लिए हर साल हज़ारों सैलानी आते हैं। यह राजस्थान का सबसे पसंदीदा पर्यटन क्षेत्रों में से एक है। यहाँ साल के हर महीने सैलानियों का आना-जाना लगा रहता है। लेकिन गॢमयों में यहाँ पर्यटकों की खासी भीड़ रहती है। यही वजह है कि यह शहर स्थानीय युवाओं को रोज़गार देने में काफी सक्षम है। साथ ही सरकार को राजस्व भी भरपूर मिलता है। यहाँ पर्यटक सडक़ और रेल मार्ग के ज़रिये पहुँच सकते हैं।