झारखण्ड लोक सेवा आयोग विवादों के बावजूद युवाओं में जगी आस

राज्य में पंजीकृत बेरोज़गार युवाओं की संख्या लगभग 7.5 लाख है। जबकि अनुमान के अनुसार बेरोज़गार युवा 10 लाख से अधिक होंगे। रोज़गार के रास्ते खोलने वाले झारखण्ड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) पर युवाओं की नज़रें टिकी रहती हैं। मगर हक़ीक़त यह है कि यह रास्ता काँटों भरा बन गया है। राज्य गठन को क़रीब 20 साल हो चुके हैं और अब तक जेपीएससी सिविल सेवा के लिए केवल छ: परीक्षाओं का आयोजन कर सका है। उन पर भी विवाद ही रहा है। इसके बाद भी 19 सितंबर को एक साथ सिविल सेवा की प्रारम्भिक चार परीक्षाओं का आयोजन करके युवाओं में एक आस जगा दी है। पाँच साल बाद हुई इन परीक्षाओं से नि:सन्देह रोज़गार का रास्ता खुलता दिखा रहा है और जेपीएससी द्वारा जारी रिक्तियों के हिसाब से सिर्फ़ 252 युवाओं को नौकरी मिलेगी। भले ही 10 लाख से अधिक बेरोज़गार युवाओं में यह रिक्तियाँ ऊँट में जीरा हों; लेकिन 252 युवाओं को भी नौकरी मिल गयी, तो यह उम्मीद तो जगेगी कि भविष्य में और परीक्षाएँ भी आयोजित होंगी और जेपीएससी के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि होगी।

जेपीएससी का विवादों से पुराना रिश्ता रहा है। सिविल सेवा परीक्षा हो या कोई अन्य परीक्षा उस पर विवाद सामने आता ही है। जेपीएससी की 16 परीक्षाएँ सीबीआई के जाँच के दायरे में हैं। इनमें प्रथम, द्वितीय सिविल सेवा, मार्केटिंग सुपरवाइजर, चिकित्सक, इंजीनियर नियुक्ति, फार्मासिस्ट, व्याख्याता नियुक्ति, झारखण्ड पात्रता परीक्षा, प्राथमिक शिक्षक नियुक्ति, सहकारिता पदाधिकारी, विश्वविद्यालय में डिप्टी रजिस्ट्रार के अलावा अन्य परीक्षाएँ शामिल हैं। कभी पैरवी पुत्रों की नियुक्ति, तो कभी नियम विरुद्ध नियुक्ति के कारण जेपीएससी सुर्ख़ियों में रहा।

हर परीक्षा विवादित

सन् 2000 में राज्य गठन के बाद सन् 2003 में झारखण्ड लोक सेवा आयोग द्वारा 64 पदों के लिए प्रथम सिविल सेवा परीक्षा का आयोजन किया गया। उस समय डॉ. दिलीप कुमार प्रसाद अध्यक्ष थे। इसके बाद 172 पदों के लिए द्वितीय सिविल सेवा परीक्षा ली गयी, जिसमें काफ़ी विवाद हुआ। इसमें आयोग के पदाधिकारियों, राजनेताओं और शिक्षा माफिया के रिश्तेदारों की नियुक्ति के आरोप लगे। जमकर पैसे के लेन-देन, अंक (नंबर) बढ़ाने के आरोप लगे।

मामले ने तूल पकड़ा, तो फॉरेंसिक जाँच भी करायी गयी। सन् 2009 में राष्ट्रपति शासन लगने के बाद पूर्व राज्यपाल सैयद सिब्ते रज़ी ने पूरे मामले की जाँच निगरानी को सौंप दी। इस प्रकरण में अध्यक्ष, दो सदस्य और सचिव जेल भी गये। बाद में मामला झारखण्ड उच्च न्यायालय पहुँचा, जिसने नियुक्तियाँ रद्द कर दीं। फिर मामला सर्वोच्च न्यायालय पहुँच गया। नियुक्ति घोटाले की जाँच का ज़िम्मा सीबीआई को सौंपा गया। सर्वोच्च न्यायालय ने मामले की सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय के आदेश पर स्टे लगा दिया और मामले की सुनवाई होने तक सभी नियुक्त लोगों को कार्य करने की अनुमति प्रदान कर दी।

इसके बाद आयोग में तीसरी सिविल सेवा परीक्षा 242 पदों के लिए आयोजित की गयी। इसमें कुछ अभ्यर्थियों ने परिणाम में गड़बड़ी की शिकायत को लेकर उच्च न्यायालय में मामला दायर किया। हालाँकि न्यायालय ने उस पर संज्ञान नहीं लिया और परीक्षा परिणाम जारी हो गया। आयोग द्वारा चतुर्थ सिविल सेवा परीक्षा का आयोजन 219 पदों के लिए किया गया।

इसमें प्रारम्भिक परीक्षा में अंक की गणना और उत्तीर्ण होने के आधार स्केलिंग को लेकर विवाद उठा, जो उच्च न्यायालय पहुँच गया। हालाँकि न्यायालय ने रिजल्ट निकालने की अनुमति प्रदान कर दी; जबकि मामला अभी भी वहाँ लम्बित है। इसके बाद 277 पदों के लिए पाँचवीं सिविल सेवा की प्रारम्भिक परीक्षा में आरक्षण देने की माँग को लेकर विवाद उठा और मामला उच्च न्यायालय पहुँचा। बाद में उच्च न्यायालय ने परीक्षा परिणाम जारी करने का आदेश दिया। फिर 326 पदों के लिए छठी सिविल सेवा परीक्षा में भी पहले आरक्षण, फिर उत्तीर्ण अंकों (क्वालिफाइंग माक्र्स) को लेकर विवाद उठा। मामला फिर उच्च न्यायालय पहुँचा। 11 माह बाद उच्च न्यायालय ने 7 जून, 2021 को योग्यता सूची (मेरिट लिस्ट) ही निरस्त कर दी। अब यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में चल रहा है।

न्यायालय ने फटकारा

जेपीएससी की स्थिति का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि वह दो दशक में सिर्फ़ सिविल सेवा की छ: परीक्षाएँ आयोजित कर सका है, जबकि अन्य परीक्षाएँ कई साल से अटकी पड़ी हैं। इसे लेकर झारखण्ड उच्च न्यायालय भी नाराज़गी जता चुका है। झारखण्ड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डॉ. रवि रंजन और न्यायमूर्ति एस.एन. प्रसाद की खण्डपीठ ने पिछले दिनों एक मामले की सुनवाई के दौरान टिप्पणी की थी कि यदि जेपीएससी संवैधानिक संस्था नहीं होती, तो इसे बन्द करने का आज ही आदेश दे दिया जाता। जेपीएससी कुछ काम नहीं कर रहा है। लगता है कि सरकार हर संस्थान को ध्वस्त करना चाहती है। दरअसल उच्च न्यायालय में धनबाद के जज उत्तम आनंद की मौत के मामले की सुनवाई चल रही थी। न्यायालय ने राज्य के फॉरेंसिक साइंस लैबोरेट्री (एफएसएल) में विभिन्न पदों पर नियुक्ति के लिए 10 साल पहले पद सृजित होने के बाद भी अब तक नियुक्ति नहीं किये जाने पर कड़ी नाराज़गी जतायी। न्यायालय ने पूछा कि सन् 2011 में पद सृजित होने के बाद भी अभी तक नियुक्तियाँ क्यों नहीं की गयीं? इन पदों पर बाह्य स्रोत (आउटसोर्सिंग) से नियुक्ति क्यों की जा रही हैं?

सफलता पर नज़र

जेपीएससी को हर साल सिविल सेवा का परीक्षा आयोजित करनी थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, जिसका खामियाज़ा युवाओं को उठाना पड़ा है। कई ऐसे युवा हैं, जो सिविल सेवा का सपना सँजोये तैयारी में लगे थे और उम्र गुज़र गयी। छठी सिविल सेवा परीक्षा के विवाद के बीच ही जेपीएससी ने इस बार सन् 2016 के बाद सिविल सेवा की परीक्षा का आयोजन किया। सातवीं, आठवीं, नौवीं और 10वीं सिविल सेवा के लिए प्रारम्भिक का आयोजन 17 सितंबर को हुआ, जिसमें 252 पदों के लिए 3,70,000 परीक्षार्थी में शामिल हुए। इस परीक्षा में चयनित अभ्यर्थी मुख्य परीक्षा (मेन्स) में शामिल होंगे। विद्यार्थियों को उम्मीद है कि इस बार बग़ैर किसी विवाद के परीक्षा पूरी हो जाएगी। हालाँकि कहावत है पूत के पाँव पालने से ही नज़र आने लगते हैं, वैसे ही इस परीक्षा को लेकर भी विवाद शुरू हो चुका है। सातवीं, आठवीं, नौवीं और 10वीं सिविल सेवा परीक्षा के लिए विज्ञापन जारी होते ही उम्र सीमा को लेकर विवाद उठा। हालाँकि बाद में सरकार ने उम्र सीमा में संशोधन कर परीक्षा लेने की अनुमति प्रदान कर दी। काफ़ी जद्दोजहद के बाद पीटी की परीक्षा का आयोजन किया जा सका है। अब भविष्य में कोई विवाद खड़ा न हो और सफलतापूर्वक युवाओं की नियुक्ति हो जाए इस पर सभी की नज़र टिकी हुई है।

10 लाख युवाओं को उम्मीद

राज्य के रोज़गार कार्यालय में दर्ज आँकड़ों के मुताबिक, 7,22, 887 बेरोज़गार युवा हैं। इनमें केवल स्नातक पास ही 2,24,664 युवा हैं। हालाँकि जिस तरह से हर परीक्षा में छात्र आवेदन करते हैं, वह दिखाता है कि बेरोज़गारों की संख्या इनसे अधिक है। इसलिए एक अनुमान है कि 10 लाख बेरोज़गार राज्य में होंगे। जेपीएससी की परीक्षा ने इन बेरोज़गार युवाओं के सपने को फिर से जीवंत करने का काम किया है। अगर उनके पंख कतरने की कोशिश नहीं हुई और बिना विवाद के परीक्षा में शामिल हुए कुछ युवाओं को मौक़ा मिल गया, तो निश्चय ही यह एक बड़ी सफलता होगी।

 

“जेपीएससी में सुधार के लिए कई क़दम उठाये जाने की ज़रूरत है। सबसे पहले परीक्षाओं के आयोजन के लिए कैलेंडर तय किया जाना ज़रूरी है। समय पर हर साल परीक्षा नहीं होना विवाद का मुख्य कारण है। दूसरी समस्या यह है कि परीक्षा आयोजन के बीच में सरकार का हस्तक्षेप होने से भी पेंच फँसता है। जेपाएससी को स्वायत्त तरीक़े से काम करने के लिए छोड़ देना चाहिए। परीक्षा के बीच में कम-से-कम किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए; नहीं तो विवाद बढऩे की आशंका रहती है। संस्थान को इस बार पूर्व की त्रुटियों को दूर कर नयी नियमावली बना कर परीक्षा ली जा रही है। सम्भव है कि इस बार किसी तरह का विवाद नहीं होना चाहिए। समय पर हर साल परीक्षा लेने और पहले से परीक्षा का कैलेंडर तय होने से बेरोज़गार युवाओं में भरोसा जमेगा। उन्हें लगेगा कि इस बार नहीं तो अगली बार फिर परीक्षा होगी। विवाद कम हो सकता है।”

सुधीर त्रिपाठी

पूर्व मुख्य सचिव एवं पूर्व जेपीएससी अध्यक्ष

 

“राज्य गठन के 20 साल पूरे हो चुके हैं। अब तक कम-से-कम राज्य सिविल सेवा की 15 परीक्षाएँ हो जानी चाहिए थीं। जबकि केवल छ: हो पायी हैं। इसकी मुख्य वजह जेपीएससी पर क्षमता से अधिक भार है। जेपीएससी में कभी भी पूरी क्षमता के साथ सदस्य, अधिकारी और कर्मचारी नहीं रहे हैं। बीच-बीच में कई महीनों तक अध्यक्ष का पद भी ख़ाली रह जा रहा है। सदस्य तो हमेशा ही कम रह जाते हैं। अधिकारी और कर्मचारियों की घोर कमी है। जेपीएससी के ज़िम्मे कॉलेजों के प्रोफेसर की नियुक्ति, प्रमोशन समेत सारे काम डाल दिये गये हैं; जबकि इसके लिए अलग से व्यवस्था सम्भव है। इसी तरह जेपीएससी को अन्य कामों से मुक्त किया जा सकता है। दूसरा परीक्षा का कैलेंडर तय किया जाना ज़रूरी है। अगर क्षमता पूरी होगी और कैलेंडर तय होगा, अभ्यर्थियों को समय पर परीक्षा की उम्मीद होगी, तो विवाद भी कम होगा और न्यायालय में भी मामला कम जाएगा।”

रमेश शरण

शिक्षाविद् एवं पूर्व कुलपति