झारखण्ड में राजनीतिक लड़ाई से हो रही जनता की भलाई

बचपन में एक कहानी पढ़ी थी- दो बिल्लियाँ रोटी के लिए लड़ रही थीं। इसका फ़ायदा बंदर को मिला। झारखण्ड में इन दिनों ऐसा ही कुछ हो रहा। केंद्र और राज्य की लड़ाई का लाभ जनता को मिलता जा रहा है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सदस्यता पर ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में संकट बरक़रार है।

इस मामले में राज्यपाल को फ़ैसला लेना है। अवैध खनन और मनी लॉन्ड्रिंग मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) का शिकंजा कसता जा रहा है। ईडी के अधिकारियों ने 17 नवंबर, 2022 को मुख्यमंत्री को पूछताछ के लिए बुलाया था। उनसे नौ घंटे तक पूछताछ हुई। भविष्य में फिर बुलाये जाने की उम्मीद जतायी जा रही है। वर्तमान राज्य सरकार पर संकट है। इन सबके बीच मुख्यमंत्री 1932 खतियान आधारित स्थानीयता, ओबीसी को 27 फ़ीसदी आरक्षण जैसे एक के बाद एक ऐसे फ़ैसले लेते जा रहे हैं, जिससे वह राजनीतिक रूप मज़बूत हो सकें। इसी क्रम में 22 नवंबर को अवैध निर्माण को नियमित करने का फ़ैसला लिया गया है। इस फ़ैसले से निश्चित रूप से शहरी क्षेत्र में रहने वाले हर वर्ग के एक बड़े समूह को लाभ पहुँचेगा। राज्य के शहरी क्षेत्र के लाखों लोगों द्वारा बनाये गये अवैध रूप से घर नियमित हो जाएँगे। बुलडोजर की आवाज़ थम जाएगी। आशियाना उजडऩे से बच जाएगा। पर सवाल है कि आख़िर यह कब तक होता रहेगा? कब तक अवैध निर्माण को राजनीतिक लाभ (वोट बैंक बनाने) के लिए वैध कर शहरों को अस्त-व्यस्त ही रखा जाएगा? कब तक सुन्दर, व्यवस्थित व स्मार्ट शहर के लिए बने मास्टर प्लान की धज्जियाँ उड़ती रहेंगी? जिन लोगों का पूर्व में अवैध निर्माण ढाया गया, उनका क्या दोष था? सरकार के मौज़ूदा फ़ैसले से अवैध निर्माण करने वाले भले ही ख़ुश हों; लेकिन अन्य लोग ऐसे तमाम सवाल तो उठ ही रहे हैं।

मकान होंगे नियमित

झारखण्ड में बिना नक्शे के बने (अनधिकृत) निर्माण को नियमित करने के प्रारूप को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने मंज़ूरी दी है। इसके मुताबिक, 31 दिसंबर, 2019 के पूर्व निर्मित आवासीय और ग़ैर-आवासीय या व्यावसायिक भवनों का नियमितीकरण किया जाएगा। नियमित किये जाने वाले भवनों पर बिल्डिंग बाइलॉज में किये गये प्रावधान लागू नहीं होंगे। 15 मीटर तक की ऊँचाई वाले जी प्लस थ्री भवनों को इसके तहत नियमित किया जाएगा। इसके लिए 500 वर्ग मीटर से कम प्लॉट का प्लिंथ क्षेत्र 100 प्रतिशत और 500 वर्ग मीटर से बड़े प्लाट का प्लिंथ क्षेत्र 75 प्रतिशत या 500 वर्ग मीटर (दोनों में जो भी कम हो) होना चाहिए।

नियमित कराने के लिए शुल्क भी चुकाना होगा। आवासीय और ग़ैर-आवासीय भवनों को नियमित करने लिए अलग-अलग शुल्क का निर्धारित किया गया है। नगर निगम, नगर परिषद्, नगर पंचायत क्षेत्र के हिसाब से 50 से 150 रुपये प्रति वर्ग मीटर तक तय किया जा रहा है। अवैध भूमि पर किये गये अनधिकृत निर्माण को नियमितीकरण की इस योजना का लाभ नहीं मिलेगा। ग़लत तरीक़े से ख़रीदी या क़ब्ज़ा की गयी आदिवासी या सरकारी भूमि पर किये गये निर्माण को योजना के तहत नियमित नहीं किया जाएगा।

तीसरी बार बनेंगे नियम

राज्य में अवैध निर्माण के ख़िलाफ़ कार्रवाई हर कुछ महीनों पर चलता रहा है। पिछले वर्ष राजधानी रांची में कई घरों पर बुलडोजर चले थे। कुछ महीने पहले भी अवैध रूप से बने घरों को तोड़ा गया था। राज्य गठन का 22 साल हो चुका है। इस दौरान हज़ारों घर उजाड़े गये हैं। सरकार किसी की भी हो, संकट के समय या फिर चुनाव से ठीक पहले लोगों का आशियाना नहीं उजड़े जैसे मामलों की याद आती है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने जो अवैध निर्माण को नियमित करने का फ़ैसला लिया है, वह पहली बार नहीं हो रहा है। राज्य के शहरों में किये गये अवैध निर्माण को नियमित करने के लिए तीसरी बार योजना बनायी गयी है।

सबसे पहले सन् 2011 में अनधिकृत निर्माण को नियमितीकरण शुल्क के माध्यम से वैध करने के लिए झारखण्ड अधिनियम अधिसूचित किया गया था। इसके बाद ठीक चुनाव से पहले सन् 2019 में अवैध निर्माण नियमित करने के लिए योजना लागू की गयी। नियमित करने के लिए अधिक शुल्क निर्धारण और नीतिगत ख़ामियों की वजह से दोनों बार योजना सफल नहीं हो सकी। बहुत कम संख्या में लोगों ने निर्माण नियमित कराने के लिए आवेदन किया था। क्योंकि पहले के नियम में कई ख़ामियाँ थीं। नियमित करवाने में कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था। इस बार इन ख़ामियों को दूर कर नयी सरल पॉलिसी सरकार लाने का दावा कर रही है।

योजनाओं की उड़ रहीं धज्जियाँ

झारखण्ड की राजधानी रांची की बात करें, तो यहाँ क़रीब 1.25 लाख अवैध मकान होंगे। अवैध मकानों का आँकड़ा तो सरकार के पास भी नहीं है; लेकिन एक अनुमान और समय-समय पर विभिन्न संगठनों के रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में सात लाख से अधिक अवैध मकान होंगे। झारखण्ड में सभी शहरों का मास्टर प्लान (महायोजना) और जोनल प्लान (आंचलिक योजना) बनकर तैयार हैं।

वर्ष 2037 तक के लिए प्लान बनवाने में करोड़ों रुपये ख़र्च किये गये। यह मास्टर प्लान या जोनल प्लान फाइलों में धूल फाँक रहा है। इसके अनुसार, शायद ही किसी भी शहर में विकास हो रहा है। अवैध और बेतरतीब रूप से शहर में विकास कार्य हो रहे हैं। न घरों का नक्शा है और न ही व्यावसायिक क्षेत्र का व्यवस्थित विकास। सँकरी गलियों के बीच तीन-चार मंज़िला इमारत खड़ी है। जहाँ लोग रह भी रहे हैं और व्यवसाय भी चल रहा है।

शहर के बीचों-बीच सँकरी गलियों में ऐसी बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी हैं, जहाँ आपात स्थिति में फायर बिग्रेड की गाडिय़ाँ नहीं पहुँच सकती हैं। समय-समय पर इनके ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाती थी। लेकिन जैसे ही चुनाव का समय आता है, इन्हें नियमित करने की क़वायद शुरू हो जाती है। पिछले कुछ महीनों से हेमंत सरकार संकट में है, तो 1932 खतियान आधारित स्थानीयता, ओबीसी को 27 फ़ीसदी आरक्षण, अवैध भवनों को नियमित करने जैसे जनता से जुड़े ताबड़तोड़ फ़ैसले ले रही है। इसी क्रम में अवैध मकानों को नियमित करने का फ़ैसला भी लिया गया।

ग़लत परम्परा की न हो शुरुआत

अवैध निर्माण की समस्या केवल झारखण्ड में नहीं है। इससे शायद ही कोई राज्य या कोई शहर अछूता हो। यह सही है कि इसका समाधान भी आसान नहीं है। अवैध निर्माण किसी भी सरकार के लिए बड़ा और संवेदनशील मसला है। वह चाहे रिहायशी हो या व्यावसायिक। प्रशासनिक व्यवस्था दुरुस्त कर अवैध निर्माण होने से तो रोका जा सकता है; लेकिन जो निर्माण हो चुका है, उसका क्या किया जाए? अगर क़ानून के मुताबिक सख़्त कार्रवाई की जाती है, तो भविष्य के लिए लोगों को कड़ा सन्देश मिलता है और इस पर रोक लगती है; लेकिन राजनीतिक रूप से यह फ़ैसला थोड़ा मुश्किल है। यही कारण है कि राजनीतिक दल इससे बचते हैं और सरकार में जो हुआ, सो हुआ; लेकिन अब न करें की नीति अपनाती हैं।

यह अच्छी बात है कि झारखण्ड सरकार ने तोडफ़ोड़ की जगह नियमित करने का फ़ैसला लिया है। निर्धारित शुल्क चुकाने पर शहरी क्षेत्र में व्यावसायिक स्थल और रिहायशी भवनों को नियमित कर दिया जाएगा। सरकार के इस कदम से अवैध निर्माण कर चुके लोगों में ख़ुशी है। पर सरकार को यह देखना होगा कि उसकी नरमदिली ग़लत परम्परा न बन जाए। लोग अपनी सुविधानुसार निर्माण कार्य कर लें कि बाद में तो सरकार नियमित कर ही देगी, लोगों में ऐसी धारणा नहीं बन जाए। वरना कभी भी अवैध निर्माण नहीं रुकेगा। इसी तरह बेतरतीब तरीक़े से शहर विकसित होते रहेंगे। प्रदूषण बढ़ता जाएगा। सीवरेज-ड्रेनेज और जल-भराव समेत अन्य समस्याओं से लोग जूझते रहेंगे। इसलिए सरकार को कम-से-कम इस मुद्दे पर राजनीति से हटकर काम करना चाहिए।