जेवर हवाई अड्डे से जगी लोगों में उम्मीद

उत्तर प्रदेश ही नहीं, वरन पूरे देश के लिए भी जेवर परियोजना ऐतिहासिक है। लेकिन क्या यह परियोजना इस प्रदेश के साथ-साथ देश के लिए मील का पत्थर साबित होगी? देश की जनता को जेवर हवाई अड्डे के अलावा कई अन्य ऐसी मेगा परियोजनाओं की सौगात मिल रही है, जिससे उत्तर प्रदेश के साथ-साथ देश की तरक़्क़ी के द्वार खुलेंगे। माना जा रहा है कि क़रीब 30,000 करोड़ की जेवर परियोजना पर तेज़ी से काम चल रहा है और 2024 तक जेवर हवाई अड्डे से हवाई जहाज़ उड़ान भरने लगेंगे। लेकिन यह हवाई अड्डा पूरी तरह 2030 तक तैयार हो सकेगा। हवाई अड्डे के अलावा उत्तर प्रदेश सरकार की कई बड़ी परियोजनाएँ पूरी हो चुकी हैं, तो कई परियोजनाएँ 2024 तक पूरी करने का लक्ष्य तय किया गया है, जिनमें केंद्र की मोदी सरकार पूरी दिलचस्पी दिखा रही है।

सरकारी सूत्रों का कहना है कि ये वो मेगा परियोजनाएँ हैं, जिनका निर्माण कार्य मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सत्ता सँभालने के बाद शुरू कराया था। इन मेगा परियोजनाओं में पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे और काशी विश्वनाथ मन्दिर कॉरिडोर का निर्माण कार्य पूरा हो गया है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन मेगा परियोजनाओं को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मौज़ूदगी में सूबे की जनता को सौंपने का काम किया। इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जेवर हवाई अड्डा, फ़िल्म सिटी और गंगा एक्सप्रेस-वे जैसी मेगा परियोजनाओं की आधारशिला भी रखी।

माना जा रहा है कि राज्य में यह पहला अवसर है, जब जनता के उपयोग वाली करोड़ों रुपये ख़र्च कर तैयार करायी गयी कई मेगा परियोजनाएँ जनता को सौंपी जा रही हैं। इसके तहत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मौज़ूदगी में क़रीब 42,000 करोड़ रुपये की लागत से तैयार कराया गया 340.82 किलोमीटर लम्बा पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनता को सौंपा। यह एक्सप्रेस-वे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ज़िले मेरठ से शुरू होकर प्रयागराज पर समाप्त होगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की स्वप्निल परियोजना (ड्रीम प्रोजेक्ट) कहे जाने वाले पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे का शिलान्यास जुलाई, 2018 में आजमगढ़ में प्रधानमंत्री मोदी ने किया था। इस एक्सप्रेस-वे को पूर्वी उत्तर प्रदेश के लिए लाइफ लाइन कहा जा रहा है। लखनऊ से आजमगढ़ और मऊ होते हुए ग़ाज़ीपुर तक 340.824 किमी लम्बे इस एक्सप्रेस-वे पर वाहनों के फर्राटा भरने से जहाँ समय के लिहाज़ से पूर्वी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बीच की दूरी कम हो जाएगी, वहीं व्यापार और वाणिज्य को पंख लगेंगे। क़रीब 15,000 करोड़ रुपये की लागत से 296 किलोमीटर लम्बा बुन्देलखण्ड एक्सप्रेस-वे के निर्माण का कार्य तेज़ी से हो रहा है।

बुन्देलखण्ड एक्सप्रेस-वे का शिलान्यास बीते वर्ष फरवरी में किया था। चित्रकूट से शुरू होने वाला यह एक्सप्रेस-वे बाँदा, महोबा, हमीरपुर, जालौन होते हुए इटावा के कुदरौल गाँव के पास लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस-वे से जुड़ेगा। इस एक्सप्रेस-वे के बनने से बुंदेलखण्ड पहुँचना आसान होगा। वहाँ कृषि, वाणिज्यिक, पर्यटन और उद्यमिता के लिए राह आसान होगी और बुंदेलखण्ड का विकास होगा। इस प्रकार गौतमबुद्धनगर (नोएडा) में बनने वाले जेवर हवाई अड्डा, फ़िल्म सिटी और अन्य परियोजनाएँ भविष्य में सूबे की शान साबित होंगी और इन महत्त्वपूर्ण परियोजनाओं से हज़ारों लोगों को रोज़गार मिलेगा। बता दें कि जेवर हवाई अड्डा देश का सबसे बड़ा और दुनिया का चौथा सबसे बड़ा हवाई अड्डा होगा, जो दिल्ली के इंदिरा गाँधी हवाई अड्डे से तक़रीबन 72 किलोमीटर दूर होगा। सर्वविदित है कि जेवर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के विनिर्माण के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को सभी ज़रूरी अनापत्ति प्रमाण-पत्र (एनओसी) सरकार को मिल चुके हैं। हवाई अड्डे का पहला चरण तीन साल में पूरा होगा। शुरू में हर साल 1.20 करोड़ यात्री सफ़र कर सकेंगे। अनुमान लगाया जा रहा है कि साल 2040-50 तक इस हवाई अड्डे पर तक़रीबन सात करोड़ यात्रियों का भार होगा। ज़ाहिर है जेवर हवाई अड्डा कार्गो हवाई अड्डा भी है। इसलिए साल 2040-50 तक 2.6 मिलियन टन कार्गो की क्षमता का विकास यहाँ होगा। नोएडा इंटरनेशनल ग्रीनफील्ड हवाई अड्डे के रनवे की संख्या दो से बढ़ाकर छ: की गयी है। माना जा रहा है कि जेवर हवाई अड्डे के सुचारू होने से दिल्ली के हवाई अड्डों का बोझ हल्का होगा। जेवर हवाई अड्डा राष्ट्रीय राजधानी के निकट बनने वाला एक बड़ा हवाई अड्डा होगा, जिससे पश्चिमी उत्तर प्रदेश की $कीमत और देश का रुतबा दोनों बढ़ेंगे।

इतना ही नहीं जेवर हवाई अड्डे को हाई स्पीड रेल से जोड़ा जाएगा। साथ ही इंदिरा गाँधी हवाई अड्डे से सडक़ मार्ग द्वारा जोड़े जाने तथा मेट्रो रेल से जोड़े जाने पर भी काम चल रहा है।

विदित हो कि जेवर हवाई अड्डे का नाम पिछले साल ही प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने नोएडा इंटरनेशनल ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट, जेवर करने का प्रस्ताव पास किया था। लेकिन अभी तक यह साफ़ नहीं हो सका है कि इस हवाई अड्डे का नाम जेवर हवाई अड्डा ही रहेगा या के नाम नोएडा इंटरनेशनल ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट, जेवर यानी नोएडा अंतरराष्ट्रीय हरित क्षेत्र, जेवर होगा। लेकिन यह तय है कि जेवर के इस हवाई अड्डे में परम्परा और आधुनिकता की झलक दिखेगी। यह हवाई अड्डा भारतीय परम्परा को समेटे हुए होगा। हवाई अड्डे में प्रवेश करते समय वाराणसी के घाटों का अहसास होगा, तो लोग प्रयागराज संगम जैसा अनुभव भी महसूस कर सकेंगे। अवसान भवन (टर्मिनल बिल्डिंग) में प्रवेश करने के बाद आँगन जैसा स्वरूप मिलेगा।

हवाई अड्डे के निर्माण में यह अवधारणा भारतीय मन्दिरों से ली गयी है। जेवर हवाई अड्डे की बनावट (डिजाइन) में इन बातों पर ज़ोर दिया गया है। कुल मिलाकर जेवर हवाई अड्डा अपने आप में कई इतिहास समेटे हुए नज़र आयेगा। इसकी बनावट भारतीय परम्परा को प्रदर्शित करेगी। हवाई अड्डा की डिजाइन कुछ तरह से तैयार की गयी है कि प्रवेश करते समय लोग उत्तर प्रदेश की आतिथ्य सत्कार परम्परा का अनुभव कर सकेंगे। हवाई अड्डा परिसर में क़रीब 300 मीटर चलने के बाद टर्मिनल बिल्डिंग के सामने पहुँच जाएँगे। यात्रियों को चेक इन प्रक्रिया के लिए एलिवेटर और एस्केलेटर से एक मंज़िल ऊपर जाना होगा। इसका डिजाइन कुछ इस तरह होगा, जैसे आप किसी हवेली में दाखिल हो रहे हैं। यही नहीं टर्मिनल बिल्डिंग के प्रवेश द्वार पर व्यावसायिकता नज़र नहीं आएगी। यमुना इंटरनेशनल हवाई अड्डा प्राइवेट लिमिटेड के सीईओ क्रिस्टोफर श्नेलमैन के मुताबिक, हवाई अड्डे की शुरुआत में टर्मिनल बिल्डिंग तक कार नहीं ले जा सकेंगे। कार छोडऩे के बाद यात्री टर्मिनल बिल्डिंग के सामने पहुँचेंगे। यहाँ पर टर्मिनल बिल्डिंग के सामने एक इमारत वाराणसी के घाटों जैसी दिखायी देगी। यहाँ पर घाटों वाली चहल-पहल का दृश्य दिखायी देगा।

पहले जेवर का नोएडा इंटरनेशनल हवाई अड्डा को 5,000 हेक्टेयर में बनाया जाना था। अब इसका क्षेत्रफल बढ़ाकर 5,845 हेक्टेयर कर दिया गया है। तय हुआ है कि मेंटेनेंस रिपेयरिंग ओवरहालिंग हब भी हवाई अड्डा परिसर में ही विकसित किया जाएगा। यमुना एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण ने सेक्टर-30 और सेक्टर-31 की 845 हेक्टेयर ज़मीन भी हवाई अड्डा में समाहित कर दी है। इसके बाद नोएडा इंटरनेशनल हवाई अड्डा का क्षेत्रफल बढक़र 5,845 हेक्टेयर हो गया है, जो इसे दुनिया का चौथा सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बनाता है। आधुनिक विकास तो ठीक है; लेकिन अगर दूसरी तरफ़ देखा जाए तो हम प्रकृति के ख़िलाफ़ भी पेड़ों को काटकर नुक़सान कर रहे हैं; लेकिन इसके लिए सोचता कौन है।

उल्लेखनीय है कि जेवर हवाई अड्डा परियोजना में क़रीब 11 हज़ार से अधिक पेड़ काटे जाने की योजना हैं। इन पेड़ों की जियो टैगिंग की गयी है, ताकि इनका पूरा विवरण तैयार हो जाए। विशेष वृक्षों की अलग से सूची बनायी गयी है। पहली श्रेणी में संरक्षित करने वाले पेड़ों को रखा गया है। दूसरी श्रेणी में ऐसे पेड़ रखे गये हैं, जिन्हें प्रत्यारोपित किया जाएगा। तीसरी श्रेणी में ऐसे पेड़ हैं, जिन्हें काटा जाएगा। नीम, कदंब जैसे पेड़ संरक्षित किये जाएँगे। नीम व कदंब के पेड़ भगवान श्रीकृष्ण से सम्बन्ध रखते हैं। भावी पीढिय़ों के लिए इन्हें संरक्षित किया जाएगा।

ज़ाहिर है बीते माह सूबे को मिलने वाली उक्त परियोजनाओं के पहले प्रधानमंत्री पिछले महीने वाराणसी, कुशीनगर को कई विकास परियोजनाओं की सौगात दे चुके हैं। सरकार ने भगवान बुद्ध की क्रीड़ास्थली सिद्धार्थनगर की रैली में घोषणा करते हुए नौ नये राजकीय मेडिकल कॉलेजों की सौगात प्रदेश को दी थी। तब एक साथ इतने मेडिकल कॉलेज की सौगात पाने वाला उत्तर प्रदेश देश का इकलौता राज्य बना था।

सवाल यह है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने पिछले पौने पाँच साल में इतनी तेज़ी से काम क्यों नहीं किया, जितनी तेज़ी से वह अब कर रही है? दूसरा सवाल यह कि अगर भाजपा की सरकार दोबारा नहीं बनी, तो फिर अधूरी परियोजनाओं को अगली सरकार पूरा करेगी? या मान लीजिए प्रदेश में फिर भाजपा की सरकार बनी, तो वह इन्हें कब तक पूरा करेगी?

(लेखक दैनिक भास्कर के राजनीतिक संपादक हैं।)