जुनून ने बनाया ‘चेंजमेकर’

ग्यारह साल की बाली उमर में बाल-विवाह की बेडिय़ों से टकराने और पूरे संवेदन तंत्र को झकझोर देने वाली पायल जांगिड़ ने स्त्री की पारम्परिकता के सिद्धांत पर बड़ा काम किया है। अलवर •िाले में थानागाजी के छोटे से गाँव हीसला में जन्मी पायल जागिड़ ने न सिर्फ अपना बाल-विवाह रुकवाया, बल्कि पूरे देश में बाल-विवाह और बालश्रम रोकने का बीड़ा उठा लिया। इसी जुनून का नतीजा है कि पायल को अमेरिका में बिल गेट्स की संस्था की ओर से ‘चेंजमेकर अवॉर्ड’ से नवाजा गया है। दुनिया के विशाल फलक पर सम्मानित हुई पायल का बयान भाव-विभोर कर देता है, जब उन्होंने कहा- ‘न्यूयार्क’ में जब मुझे अवॉर्ड मिल रहा था, मेरी संघर्ष यात्रा िफल्म की तरह मेरी आँखों में घूमने लगी थी। परम्परा की चीखट काइयों से भरा रास्ता पार करने और समाज को नये ढब में ढालने में कितना कुछ करना पड़ा था? इसका बयान आसान नहीं है। अलबत्ता यह कहते हुए उनके चेहरे पर गहरा सुकून झलकता है कि ‘शुरुआत में मेरी कोशिशों का लोगों ने जमकर मखौल उड़ाया और कह दिया कि पगला गयी है, लडक़ी…. छोटी-सी छोकरी और दुनिया को बदलेगी?’ पायल कहती नहीं अघातीं कि ‘कैलाश सत्यार्थी का संग-साथ नहीं मिलता तो शायद मैं यह काम नहीं कर पाती? कैलाश जी मेरे मार्गदर्शक ही नहीं, गुरु हैं मेरे। सोहबत और उससे मिलनेे वाली शोहरत के बीच नाकाम करने वाली खाइयों को पार करने का दमखम पायल के चेहरे पर साफ झलकता है, जब वे कहती है। सुमेधा कैलाश और उनकी संस्था ने सहयोग किया, तो कई गाँव-ढाणियों में जाकर बाल श्रमिकों को मुक्त कराया। अब तो पायल के माता-पिता भी गर्व से फूले नहीं समा रहे। पायल के पिता पप्पूराम जांगिड़ कहते हैं- ‘वैसे तो हमारी बिटिया का नाम पायल है। लेकिन उपलब्धियों के चलते अब भारत के माथे की बिंदिया बन गयी है।’ उन्होंने पछतावा जताते हुए कहा- ‘वाकई बेटी का बाल-विवाह करके हम बड़ी भूल करने जा रहे थे। इस घटना के बाद अब तो इस रस्मोरिवज़ को भूलने लगे हैं।’ गाँव में अपने सम्मान से पुलकित पायल का कहना था कि मेरा असली सम्मान तो तभी होगा, जब पूरे राजस्थान में बाल-विवाह की प्रथा का खात्मा हो जाएगा। उसने कहा कि इसके लिए मैं हर गाँव-ढाणी और घर तक पहुँचूँगी। उसका कहना है कि मेरी बड़ी बहनों की तरह मेरा भी बाल-विवाह किया जा रहा था। जबकि मैं तो इस बात से ही अंजान थी कि ‘बाल-विवाह’ होता क्या है? लेकिन जब समझी, तो खूब समझी। इसके साथ ही बाल-विवाह के िखलाफ अड़ गयी। कुछ संयोग ही हुआ कि कैलाश सत्यार्थी मिल गये। उन्होंने मेरे परिवार को बाल-विवाह की बुराइयों के बारे में समझाया। लेकिन परिजनों का असमजंस फिर भी बना रहा। अपने अभियान के तहत जब मैं गाँव वालों को समझाने जाती थी, तो लोग तंज कसने लगते थे- ‘तुम तो कलक्टर बन जाओ। लेकिन हमें नहीं बनना।’ लेकिन मैंने तय कर लिया था- ‘हिम्मत नहीं छोड़ूँगी।

बिल गेट्स एंड मंलिगा फाउंडेशन का ‘चेंजमेकर’ अवॉर्ड मिलने के बाद देश दुनिया में छा गयी पायल अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा और उनकी पत्नी मिशेल से मुलाकात के साथ स्वीडन के एक अवॉर्ड की जूरी भी बन गयी। उसकी सहपाठी रही छात्राओं का कहना है कि, ‘जिस स्कूल में पायल ने पढ़ाई की, उसकी एक भी छात्रा की रूढि़वादी परिजन बाल-विवाह नहीं कर पाये। उनका कहना था- ‘मेरा मानना है कि बुराइयों को दूर करने के लिए सामाजिक समरसता ज़रूरी है। उससे छुआछूत की भावना भी खत्म हो सकती है।’ त्यौहारों पर लोगों के यहाँ भोजन करने और मेल-मिलाप से समरसता का बढ़ावा मिलता है। अपने साथियों के साथ लोगों के घरों पर भोजन करने का मेरा यही मकसद रहता है। पायल कहती है- गाँव बेशक छोटे हों, लेकिन उनकी समस्याएँ बड़ी होती है। तभी तो आपको लगता है कि आपने कुछ किया है।