जी-20 और एशिया में उभरते दबाव

पाकिस्तान से लेकर नेपाल तक चीन की गतिविधियों पर नज़र ज़रूरी

नवंबर का दूसरा पखवाड़ा एशिया क्षेत्र में काफ़ी हलचल लेकर आया है। जी-20 शिखर सम्मलेन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने (रूस-यूक्रेन) युद्ध के ख़िलाफ़ आवाज़ उठायी, तो अमेरिका सहित उसके समर्थक देशों ने उनकी ख़ूब तारीफ़ की। मोदी इंडोनेशिया में सम्पन्न हुए जी-20 सम्मलेन से वापस भारत पहुँचे ही थे कि उत्तरी कमांड के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने पाकिस्तान के क़ब्ज़े वाले कश्मीर (पीओके) पर बड़ा बयान देते हुए कह दिया कि सरकार जब आदेश देगी, सेना पीओके पर कार्रवाई करने को तैयार है। भारत से बाहर देखें, तो पाकिस्तान में नया सेनाध्यक्ष बन गया और उनकी नियुक्ति होते ही पाक सेना में बग़ावत की स्थिति बन गयी है; क्योंकि दो बड़े जनरल विरोध में इस्तीफ़ा दे चुके हैं और कुछ और दे सकते हैं। उधर चीन में पहली बार किसी विरोध-प्रदर्शन में राष्ट्रपति शी जिनपिंग, जो एक महीना पहले ही तीसरी बार इस पद के लिए चुने गये हैं; के मुर्दाबाद के नारे लगे।

जी-20 शिखर सम्मेलन भारत के लिए इस लिहाज़ से अच्छा रहा कि अमेरिका ने मुक्त कण्ठ से भारत, ख़ासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ़ की। एक फोटो में वह मोदी को सैल्यूट करते भी दिख रहे हैं, जो भारत में मोदी के समर्थकों को निश्चित ही आह्लादित करने वाला रहा। अमेरिका के भारत के पक्ष में इस तरह बोलने का एक कारण रूस से भारत के रिश्ते भी हैं। अमेरिका चाहता है कि भारत रूस के साथ खड़ा न दिखे।

रूस के ख़िलाफ़ पश्चिम लामबंद हुआ है और वह चाहता है कि एशिया के देश या तटस्थ देश रूस नहीं, अमेरिका के साथ खड़े दिखें। अमेरिका ऐसा करके अपनी लॉबी को मज़बूत करना चाहता है। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने मुक्तकंठ से प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ़ इसलिए की, क्योंकि मोदी ने रूस-यूक्रेन युद्ध के सन्दर्भ में कहा था कि युद्ध समस्या का हल नहीं है। अमेरिका के अपने निहित स्वार्थ हैं। वह ऐसी हर चीज़ को भुनाने की कोशिश करता है, जिससे उसे आर्थिक और कूटनीतिक लाभ मिलता है। भारत की तारीफ़ करना भी भी इसका ही हिस्सा है। लेकिन इसमें कोई दो-राय नहीं कि भारत सरकार ने रूस-अमेरिका के बीच इस जंग में ख़ुद को तटस्थ दिखने में सफलता हासिल की है। भले बड़े मंचों पर अमेरिका के रूस विरोधी प्रस्तावों का भारत ने समर्थन नहीं किया है। युद्ध का समर्थन नहीं करके भारत ने ख़ुद की छवि युद्ध विरोधी देश की बनाने की कोशिश की है।

मोदी का युद्ध-विरोध

हालाँकि ‘आज का युग युद्ध का नहीं होना चाहिए’ कहकर प्रधानमंत्री मोदी ने अपने लिए भी एक लक्ष्मण रेखा बाँध ली है। यह इस सन्दर्भ में काफ़ी अहम है, जब सेना की चिनार कॉप्र्स के कमाण्डर लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी जैसे बड़े सेनाधिकारी ने कहा कि केंद्र सरकार आदेश तो सेना पीओके में कार्रवाई के लिए तैयार है। पीओके भारत का अटूट हिस्सा है, इससे जुड़ा प्रस्ताव भारतीय संसद ने नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के समय 22 फरवरी, 1994 को ध्वनिमत से पास किया था। यही नहीं, जम्मू और कश्मीर की विधानसभा में 24 सीटें दशकों से इसलिए ख़ाली रखी जाती हैं, क्योंकि यह सीटें पीओके की हैं।

दरअसल वृहद् कश्मीर में भारत और पाकिस्तान के क़ब्ज़े वाला कश्मीर (पाकिस्तान इसे आज़ाद कश्मीर कहता है) ही नहीं हैं। पाकिस्तान ने अपने क़ब्ज़े वाले जम्मू और कश्मीर को तीन हिस्सों में विभाजित कर रखा है, जिसमें पीओके के अलावा गिलगिट-बाल्टिस्तान भी है। इसके अलावा उसने एक बड़ा हिस्सा चीन को भेंट कर दिया था, जिसमें चीन अब सडक़ों और रेल लाइनों का जाल बिछा चुका है। इसके अलावा चीन ख़ुद एक बड़े हिस्से को हथिया चुका है। उधर बलूचिस्तान भी है, जहाँ के नागरिकों पर चीन के सहयोग से पाकिस्तान ज़ुल्म कर रहा है। पाकिस्तान और उसकी सेना के ख़िलाफ़ बलूच जनता में नफ़रत का सैलाब है।

जी-20 शिखर सम्मलेन के बाद अमेरिका ने कहा कि सम्मेलन की बाली घोषणा पत्र सम्बन्धी बातचीत में भारत ने अहम भूमिका निभायी। वैसे भी भारत 2023 में जी-20 की अध्यक्षता करने वाला है। व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरेन ज्यां पियरे ने प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ़ में कहा- ‘प्रधानमंत्री मोदी के सम्बन्ध इस नतीजे के लिए महत्त्वपूर्ण थे और हम भारत की अगले साल जी-20 अध्यक्षता के दौरान सहयोग करने के लिए तत्पर हैं. हम अगली बैठक की प्रतीक्षा कर रहे हैं।’

निश्चित ही अमेरिका ने जी-20 सम्मलेन का इस्तेमाल रूस के ख़िलाफ़ माहौल बनाने के लिए भी किया है। भारत की तारीफ़ उसकी रणनीति का बड़ा हिस्सा है। क्योंकि भारत ने ख़ुद को इस स्थिति में खड़ा कर दिया है, जहाँ वह महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता दिखता है। वह न तो अमेरिका और न ही रूस के साथ खड़ा दिखता है और सही पक्ष सामने रखकर अपने एक अलग छवि दुनिया के सामने लाना चाह रहा है, जिसका सन्देश यह है कि वह सिर्फ़ सही के साथ है।

भारत विरोधी सेनाध्यक्ष

भले जी-20 में भारत ने अपनी कूटनीति से ख़ुद को भीड़ से अलग खड़ा करने में सफलता हासिल की है, दक्षिण एशिया की घटनाएँ उसे सावधान रहने का सन्देश दे रही हैं। इनमें सबसे बड़ी घटना पाकिस्तान में नया सेनाध्यक्ष बनना है। नये जनरल आसिम मुनीर भारत विरोधी सेनाधिकारी माने जाते हैं और पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान विरोधी भी। चूँकि वह आईएसआई के चीफ रहे हैं, उनके आने से जो सबसे बड़ा ख़तरा है, वह यह कि जम्मू और कश्मीर में आंतकवाद तेज़ हो सकता है।

यह आरोप लगाये जाते हैं कि फरवरी, 2019 के जिस पुलवामा आतंकी हमले में 40 से ज़्यादा भारतीय जवान शहीद हो गये थे, उस हमले के पीछे मुनीर का ही हाथ था। उस समय मुनीर आईएसआई के प्रमुख थे। जम्मू और कश्मीर में अनुच्छेद-370 ख़त्म होने के बाद आतंकी वारदात में कुछ कमी तो आयी है; लेकिन वहाँ स्थिति अभी भी बेहतर नहीं कही जा सकती। चीन और पाकिस्तान की सीमा से लगते जम्मू और कश्मीर सूबे में पिछले महीनों में हुई घटनाएँ बताती हैं कि वहाँ आतंकवाद पर पूरी नकेल नहीं डाली जा सकी है। यही नहीं, स्थानीय युवकों की आतंकी संगठनों में भर्ती की बातें भी सामने आयी हैं।

हालाँकि पाकिस्तान सेना में मुनीर की नियुक्ति के बाद विद्रोह जैसी स्थिति बन गयी है। वहाँ इमरान समर्थक दो बड़े जनरल इस्तीफ़ा दे चुके हैं। इनमें से एक लेफ्टिनेंट जनरल फ़ैज़ हमीद को इमरान ख़ान ने आईएसआई का प्रमुख बनाया था। हालाँकि तत्कालीन आर्मी चीफ जनरल क़मर जावेद बाजवा ने उन्हें इस पद से हटा दिया था। एक और अधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल अजहर अब्बास हैं, जिन्होंने इस्तीफ़ा दिया है। वह भी इमरान ख़ान के पसंदीदा रहे हैं। पाकिस्तान मीडिया में आयी रिपोट्र्स पर भरोसा करें, तो आने वाले समय में कुछ और वरिष्ठ अधिकारी इस्तीफ़े दे सकते हैं। निश्चित ही यह शाहबाज़ शरीफ़ और नये आर्मी चीफ मुनीर के लिए चुनौती की बात है। पाकिस्तान में अस्थिरता भारत के लिए भी बेहतर नहीं कही जा सकती।

भारत के लिए चिन्ता की बात यह भी है हाल में पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त में चीन के ड्रोन देखे गये हैं। माना जाता है कि पाकिस्तानी सेना से लोहा ले रहे बलूच विद्रोहियों (बलूच मिलिशिया) का दमन करने के लिए पाकिस्तानी सेना चीनी मूल के लड़ाकू सीएच-4 बी ड्रोन का इस्तेमाल कर रहा है। इस प्रान्त के अख़बार बलूचिस्तान पोस्ट ने नवंबर के आख़िर में इस तरह की रिपोर्ट छापी हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक, नवंबर में पाकिस्तान ने एसएसजी कमांडो के साथ मानव रहित हवाई वाहन (यूएवी), लड़ाकू जेट और गनशिप हेलीकॉप्टर्स को तैनात किया है, जिसका मक़सद बलूच विद्रोहियों को ख़त्म करना है। बता दें बलूचिस्तान के लोग पाकिस्तान से मुक्ति के लिए भारत की तरफ़ देखते रहे हैं। हाल के महीनों में बलूच मिलिशिया और पाकिस्तान सेना के बीच कई बार भीषण संघर्ष देखे गये हैं। बलूचिस्तान पोस्ट ने दावा किया कि चीन और तुर्की ने पाकिस्तान को लड़ाकू यूएवी के विभिन्न मॉडलों की आपूर्ति की है।

उधर पाकिस्तान में सेना पर इमरान ख़ान के पार्टी के हमले बढ़े हैं। आर्मी प्रमुख के पद से रिटायर होने वाले क़मर जावेद बाजवा को जाते-जाते बहुत फ़ज़ीहत झेलनी पड़ी, जब यह ख़ुलासा हुआ कि रिटायर होने से पहले बाजवा और उनका परिवार मालामाल हो गया है।

आरोप के मुताबिक, आर्मी चीफ बाजवा ने ख़ुद के लिए अरबों की दौलत इकट्ठा की। इसके बाद इमरान के नज़दीकी नेता आजम ख़ान स्वाति ने बाजवा पर जबरदस्त हमला करते हुए कहा कि हमारे दुश्मन (भारत) का एक जनरल पांडे, जो आर्मी प्रमुख बनता है, उसकी टोटल सम्पत्ति 29 लाख रुपये है। इस क़ौम को बताकर जाओ तुम्हारी (बाजवा) सम्पत्ति कितनी है? कहाँ से लाये हैं ? मैं पाकिस्तान का शहरी हूँ। तुमसे पूछ रहा हूँ और पूछता रहूँगा उस वक़्त जब तक मुझे जवाब नहीं मिलता। हालाँकि इसका जवाब यह मिला कि बाजवा ने उन्हें गिरफ़्तार करवा दिया।

पाकिस्तान में हालात लगातार ख़राब होते दिख रहे हैं। इमरान ख़ान ने अपनी पार्टी के तमाम सदस्यों के असेम्बली से इस्तीफ़े करवा दिये हैं, ताकि नये चुनाव का दबाव शाहबाज़ सरकार पर बनाया जा सके। यह स्थिति पाकिस्तान को किसी भी तरफ़ ले जा सकती है। लिहाज़ा भारत को चौकन्ना रहना पड़ेगा। पाकिस्तान के साथ रिश्ते बेहतर होने की सम्भावना अब कम दिखती है। शाहबाज़ शरीफ़ पिछले डेढ़ साल में इस दिशा में कुछ नहीं कर पाये हैं। अब मुनीर के सेनाध्यक्ष बनने के बाद भारत बेहतर होने की सम्भावना लगभग न के बराबर है।

नेपाल में घुसपैठ

चीन पाकिस्तान के साथ तो पहले से ही क़दम-से-क़दम मिलाकर चलता रहा है, अब नेपाल में भी उसकी गतिविधियाँ काफ़ी तेज़ होती दिख रही हैं। भारत के लिए चिन्ता की नयी बात नेपाल की ज़मीन पर चीन के निर्माण हैं। नेपाल के कृषि मंत्रालय के एक सर्वे दस्तावेज़ में इस बात का ख़ुलासा हुआ है कि चीन ने उत्तरी नेपाल की सीमा पर 10 जगहों पर 36 हेक्टेयर ज़मीन पर क़ब्ज़ा कर लिया है। रिपोट्र्स के मुताबिक, चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने पहली बार सन् 2016 में नेपाल के एक ज़िले में एक पशु चिकित्सा केंद्र बनाया था। ये रिपोट्र्स भी आयी हैं कि फरवरी, 2022 में चीन ने नेपाल पर साझा सीमाओं के अतिक्रमण का आरोप जड़ा था।

नेपाल के आधिकारिक दस्तावेज़ ज़ाहिर करते हैं कि उसके सुदूर पश्चिमी हुमला ज़िले में सीमा चौकी के आसपास चीन नहरें और सडक़ें बनाने का प्रयास कर रहा है। नेपाल चीन पर चीनी सीमा और लालुंग सोंग सीमा क्षेत्र में निगरानी गतिविधियों का आरोप लगा चुका है। चीन की गुंडागर्दी इतनी है कि उसने सीमा पर नेपाली किसानों के पशु चराने का प्रतिबंध लगा दिया है। यही नहीं, आरोप यहाँ तक हैं कि उसने सीमावर्ती क्षेत्रों में हिन्दू और बौद्ध मन्दिरों पर भी प्रतिबंध लगा दिया है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन के नेपाल में अतिक्रमण की यह हालत है कि चीनी सीमा पर नेपाल के दोलखा, गोरखा, दारचुला, हुमला, सिंधुपालचौक, संखुवासा और रसुवा ज़िलों की ज़मीन पर चीन घुसपैठ कर चुका है। दार्चुला और गोरखा ज़िलों में कुछ गाँव चीन के क़ब्ज़े में हैं। हुम्ला ज़िले और रुई गाँव में तो चीन के दर्जन भर निर्माण खड़े कर दिये हैं। नेपाल के एक बड़े अधिकारी के नेतृत्व ने सरकारी टीम ने अपने गृह मंत्रालय को एक रिपोर्ट पिछले साल सौंपी थी, जिसमें चीन के अतिक्रमण का ज़िक्र है। ज़ाहिर है यह स्थिति भारत के लिए सुखद नहीं है।

चीन में शी का विरोध

इसमें कोई दो-राय नहीं कि शी जिनपिंग के नेतृत्व में चीन के साथ भारत की हाल के महीनों में काफ़ी तल्ख़ी रही है। अब जिनपिंग अपने ही देश में विद्रोह जैसी स्थिति झेल रहे हैं। उनकी चीन में शून्य-कोविड नीति के विरोध में नवंबर के आख़िर में कई प्रमुख शहरों में हजारों लोग सडक़ों पर उतर आये। लोगों में शी के प्रति जबरदस्त ग़ुस्सा दिखा। यह पहली बार है, जब विरोध-प्रदर्शनों में राष्ट्रपति जिनपिंग के मुर्दाबाद के नारे लगे। चीन में ऐसा होना बहुत आश्चर्यजनक बात है। इससे संकेत मिलता है कि लोग घुटन में जीते को तैयार नहीं और उनके तेवर तल्ख़ हो रहे हैं। इससे पहले छात्रों ने बीजिंग के इलीट सिंघुआ विश्वविद्यालय में तालाबंदी के विरोध में रैली की थी और वे ‘लोकतंत्र और क़ानून का शासन’ और ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ जैसे नारे लगा रहे थे।

 

“भारत सरकार जब आदेश देगी, सेना पीओके पर कार्रवाई करने को तैयार है। पीओके के विषय पर संसद में प्रस्ताव पास हो चुका है। भारतीय सेना सरकार के हर आदेश के लिए पूरी तरह से तैयार है। सरकार जब भी आदेश देगी, सेना अपनी पूरी तैयारी के साथ आगे बढ़ेगी। भारत में घुसपैठ के लिए पाकिस्तानी लॉन्चपैड पर क़रीब 160 आतंकी मौज़ूद हैं। हम उनके मंसूबे कामयाब नहीं होने देंगे।’’

ले. ज. उपेंद्र द्विवेदी

उत्तरी कमांड प्रमुख