जीएसटी का ख़ौफ़

इन दिनों जीएसटी एक बड़े मुद्दे के रूप में लोगों में चर्चा का विषय बनी हुई है। साथ ही लोगों को इस बात का डर सताने लगा है कि न जाने आने वाले दिनों में किस-किस चीज़ के लिए जीएसटी देनी पड़े। अख़बारों और पत्रिकाओं में जीएसटी को लेकर तरह-तरह के कार्टून और लेख प्रकाशित हो रहे हैं। विपक्षी राजनीतिक दल केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री मोदी को इस पर घेरने की कोशिश में लगे हुए हैं। लेकिन खुलकर विरोध नहीं हो रहा है। कभी दो फ़ीसदी वैट के लिए लोग धरने दिया करते थे; लेकिन अब आठ फ़ीसदी से लेकर 28 फ़ीसदी जीएसटी वसूले जाने पर भी लोग पहले जैसा विरोध नहीं है।

जीएसटी लागू करने के दौरान प्रधानमंत्री ने कहा था कि पहले दूध, दही, अनाज सब पर टैक्स लगता था, यह पहली बार है कि इन चीज़ों को टैक्स मुक्त रखा गया है। लेकिन यह सफ़ेद झूठ था। ब्रिटिश हुकूमत के बाद शायद यह पहली बार हुआ है कि आटा, दाल, चावल, खाद्य तेल और दही जैसी चीज़ों पर भी जीएसटी लगा दिया गया है।
अभी हाल ही में आगरा रेलवे स्टेशन पर बने पेशाबघरों में पेशाब करने पर भी 12 फ़ीसदी जीएसटी ने सुर्ख़ियाँ बटोरीं। पेशाब पर भी जीएसटी लगाने को लेकर लोगों को कई शंकाएँ होने लगी हैं। चर्चा इस बात की है कि कहीं केंद्र सरकार आने वाले समय में हर चीज़ पर जीएसटी न लगा दे। लोगों की शंका जायज़ है, क्योंकि रेलवे स्टेशन के पेशाबघर में पेशाब करने के 100 रुपये और उस पर 12 रुपये जीएसटी के वसूले जाने का मामला सामने आने के बाद इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि आने वाले समय में कोई भी चीज़ जीएसटी से मुक्त होगी। स्पष्ट है जब पेशाब करने पर किसी एक आदमी को 112 रुपये देने पड़ सकते हैं, तो बाक़ी चीज़ों के बदले कितना पैसा देना पड़ेगा? इसकी कल्पना की जा सकती है। यह कोई मामूली बात नहीं है। जहाँ अब तक पेशाब करने का कहीं कोई पैसा नहीं देना होता था, वहीं अगर इस काम के लिए भी जेब ढीली करनी पड़ेगी, वह भी बड़ी रक़म चुकाकर, तो हर कोई चौंकेगा भी और डरेगा भी। मुर्दाघर में दाह संस्कार पर 18 फ़ीसदी जीएसटी की ख़बरें भी पिछले दिनों ख़ूब चलीं।

सरकार ने जिस जीएसटी को 1 जुलाई, 2017 को 101वें संविधान संशोधन अधिनियम-2016 के तहत अधिनियमित करके यह कहकर लागू किया कि इससे कई-कई टैक्स देने के झंझट से लोगों को राहत मिलेगी और नुक़सान होने से बचेगा। लेकिन इसके लागू होते ही झंझट बढऩे लगे और टैक्स भी। व्यापारियों ने शुरू से ही जीएसटी का विरोध किया। अब जिस तरह से एक-एक करके कई चीज़ों पर जीएसटी लागू हो चुकी है, उससे एक बात तो साफ़ है कि भविष्य में बाक़ी चीज़ों पर भी जीएसटी लागू होगी।

इसी बात को लेकर देश भर में कई जगह जीएसटी के विरोध में लोग उतरने लगे हैं। व्यापारियों के बाद अब कर्मचारी भी इसका विरोध कर रहे हैं। बीमा पर जीएसटी लगने के बाद बीमा एजेंटों का धरना-प्रदर्शन करना इस बात का गवाह है।

इधर उन व्यापारियों के यहाँ छापेमारी होने लगी है, जिन पर जीएसटी चोरी का आरोप अथवा शक है। मध्य प्रदेश के खंडवा ज़िले में इसी महीने जीएसटी टीम ने दो बड़े सरिया व्यापारियों के ठिकानों पर छापेमारी की। इसके अलावा बीबीएन की एक औद्योगिक इकाई पर दक्षिण प्रवर्तन क्षेत्र परवाणु की ओर से जीएसटी में हेराफेरी को लेकर कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है। कम्पनी अगर इस नोटिस का जवाब नहीं देती है, तो इस कम्पनी को 62 करोड़ रुपये की जीएसटी चोरी और उस पर ब्याज तो चुकाना ही होगा, साथ ही ज़ुर्माना भी झेलना पड़ सकता है। अब तक देखा गया है कि लोन लेने और उसकी क़िस्तें चुकाने पर भी जीएसटी देनी पड़ती है। लेकिन अब इनकम टैक्स जमा करने पर जीएसटी वसूले जाने की चर्चा भी छिड़ गयी है।

बात जीएसटी लागू होने की नहीं है, बात तो उन लोगों की परेशानी की है, जिनकी आय बहुत कम अथवा केवल घर चलाने भर की है। बात उन लोगों की है, जो विकट ग़रीब हैं और अभावों भरा जीवन जी रहे हैं। ऐसे लोग जीएसटी कहाँ से देंगे? कितने ही लोग हैं, जिनकी आय पहले से घटी है। कितने ही लोग ऐसे हैं, जिनके पास कमाने के संसाधन नहीं हैं। स्पष्ट है कि जब खाने-पीने की चीज़ों पर भी जीएसटी लगने से देश के ग़रीब-से-ग़रीब नागरिक भी इसे बिना चुकाये नहीं बच सकेगा।

सरकार की महँगाई रोकने की असफलता और हर चीज़ पर जीएसटी लगाने की ज़िद ने दो तस्वीरें देश के सामने रखी हैं। एक, अब महँगाई रोकना और रोज़गार देना सरकार के वश की बात नहीं है। दूसरी, ग़रीबों की थाली से रूखी-सूखी रोटी भी छिनने की नौबत आ चुकी है। जीएसटी को लेकर स्थिति अभी से इतनी असहनीय हो चुकी है कि लोगों के पास सिवाय विरोध के अब और कोई चारा नहीं बचा है। स्पष्ट है कि जीएसटी भारतीय उद्योग एवं व्यापार के लिए एक बड़ी और लम्बे समय की समस्या पैदा करेगी, जिसका नुक़सान लोगों को सीधे तौर पर होगा।

लोगों को परेशानी से बचाने के लिए सरकार को जीएसटी लागू करने से पहले इसकी समस्याओं को समझना चाहिए था। इन समस्याओं में स्पष्टता की कमी सबसे बड़ी कमी है। सरकार ने जीएसटी को लेकर ग़रीबों को ज़रा भी ध्यान में नहीं रखा। उसने जीएसटी को लेकर लोगों को जो सपने दिखाये थे, उन पर भी पानी डाल दिया। अब व्यापारियों को जीएसटी चोरी के नोटिस धड़ल्ले से मिल रहे हैं। इसलिए ज़रूरी है कि सरकार जीएसटी से जुड़ी समस्याओं को अब गम्भीरता से ले और शीघ्र ही उसका निदान भी निकाले। क्योंकि जीएसटी को लेकर सबसे बड़ा ख़तरा इसके सरलीकरण के नाम पर लाया गया एक जजिया की तरह है, जिसकी वसूली हर आदमी से एक ही पैमाने के आधार पर जबरन हो रही है। सीधी बात है कि जीएसटी की वसूली व्यापारी ग्राहकों से करेंगे। धनाढ्य लोगों को भी इससे कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ेगा। लेकिन ग़रीबों की समस्याएँ बढ़ेंगी।

ज्ञातव्य है कि जीएसटी से पहले जो अप्रत्यक्ष कर का क़ानून था, उसमें सुधार की आवश्यकता तो थी; लेकिन इस बहाने से इस हद तक वसूली नहीं की जानी चाहिए थी। अभी भी समय है कि अनावश्यक तरीके से कई चीज़ों पर लगायी गयी जीएसटी को सरकार वापस लेकर लोगों को राहत प्रदान करे, ताकि ग़रीबों की थाली में पहले से ही कम भोजन में और कमी नहीं आये।