जासूसी की राजनीति

पेगासस स्पाइवेयर के ज़रिये ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से देश के लोगों की जासूसी पर बवाल, सरकार मौन
इजरायल की तकनीक आधारित निजी कम्पनी एनएसओ के स्पाइवेयर सॉफ्टवेयर ‘पेगासस’ के ज़रिये ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से मोबाइल द्वारा देश के लोगों की जासूसी किये जाने से कई सवाल खड़े हो गये हैं। इस जासूसी मसले को लेकर भारतीय संसद का मानसून सत्र धुलता नज़र आ रहा है। 300 भारतीयों की जासूसी में से अब तक 142 सम्भावित नाम सामने आ चुके हैं। जासूसी कांड का शिकार होने वालों में सर्वोच्च न्यायालय के कर्मचारी, दो मौज़ूदा केंद्रीय मंत्री, विपक्षी दलों के प्रमुख नेता और उनके क़रीबी, कारोबारी, वकील, छात्र नेता, ट्रेड यूनियन के नेता, दलित-सामाजिक-मानवाधिकार कार्यकर्ता और कई पत्रकारों के नाम शामिल हैं। इस जासूसी कांड से पूरे देश में खलबली मची हुई है। पूरे मसले पर मुदित माथुर की रिपोर्ट :-

दशकों से सबसे उन्नत निगरानी तकनीक का दुरुपयोग किया जा रहा है। क्योंकि महज़ एक मिस कॉल से पेगासस स्पाइवेयर आपके मोबाइल फोन में घुसकर आपकी गोपनीयता को ख़त्म कर देता है। यह लोगों के मौलिक और निजता के अधिकार का उल्लंघन है। सरकार पेगासस का उपयोग कर रही है या नहीं? इस विवरण (डाटा) को सँभालने वाली जनशक्ति आख़िर कौन है? इसे देने के लिए पैसा कहाँ से आ रहा है? क्या भारत एक निगरानी देश बनता जा रहा है? ऐसे ही ज्वलंत मुद्दे उठाकर विपक्षीनेताओं ने संसद में आवाज़ बुलंद करते हुए सदन की कार्यवाही कई दिनों दिन
ठप रखी।
एनएसओ समूह के स्पाइवेयर सॉफ्टवेयर ‘पेगासस’ की ख़रीद को लेकर मोदी सरकार में पारदर्शिता की कमी और टालमटोल का रवैया लोगों में कई तरह के सन्देह पैदा कर रहा है। सरकार की भूमिका तब और संदिग्ध लगी, जब एनएसओ ने कैलिफोर्निया के एक न्यायालय में स्पष्ट किया कि वह स्पाइवेयर को सिर्फ़ सरकारों को ही बेचती है, जिसका इस्तेमाल आतंकियों और अपराधियों पर नज़र रखने के लिए किया जाता है। इसमें सरकार और उसकी एजेंसियों को सहूलियत होती है। लेकिन व्हाट्स ऐप लॉ सूट के जवाब में ऐसे बचाव से अदालत सन्तुष्ट नहीं हुई और उसने इसकी गहनता से जाँच करने का आदेश दिया। मसलन, व्हाट्स ऐप उपयोगकर्ताओं की गोपनीयता में भी इस स्पाइवेयर ने घुसपैठ की, जिनके साथ शुरू से अन्त तक कूटलेखन (एंड टू एंड एन्क्रिप्शन) की गारंटी होती है। एनएसओ ने अपने ग्राहकों के साथ अनुबन्ध की गोपनीयता खण्ड का हवाला दिया और इस पर चुप्पी साधे रखी। साथ ही अपना मुक़दमा लडऩे के लिए क़ानूनी फर्म किंग एंड स्पाल्डिंग को तैनात किया है। इसकी क़ानूनी टीम में ट्रंप प्रशासन के पूर्व डिप्टी अटॉर्नी जनरल रॉड रोसेनस्टीन शामिल हैं।
इसी मामले में मोदी सरकार घिरती नज़र आ रही है। अगर यह एनएसओ के स्वामित्व वाले पेगासस स्पाइवेयर की ख़रीद को स्वीकार करती है, तो सरकार बताना होगा कि उसने अपने ही देश के क़रीब 300 नागरिकों की निगरानी क्यों की? अगर इससे इन्कार करती, तो मामला और जटिल हो सकता है; क्योंकि इससे लगेगा कि सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता क्यों किया और ग़ैर-क़ानूनी जासूसी को आउटसोर्स की इजाज़त कैसे दी? 28 नवंबर, 2019 को राज्यसभा में मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के ज़रिये व्हाट्स ऐप के माध्यम से कुछ लोगों के फोन विवरण से समझौता करने के लिए स्पाइवेयर पेगासस के कथित उपयोग के मुद्दे को उठाया था। तत्कालीन सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सदन के पटल पर स्पष्ट शब्दों में स्वीकार किया था कि एनएसओ को नोटिस दिया गया है।
फ्रांस स्थित मीडिया ग़ैर-लाभकारी संगठन है, जो ‘फॉरबिडन स्टोरीज’ के लिए 17 मीडिया संगठनों का एक समूह है। ये अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खोजी पत्रकारिता में एक-दूसरे को सहयोग करते हैं; इनकी जासूसी भी पेगासस से करवायी गयी। इसके अलावा इससे दुनिया भर में हज़ारों व्यक्तियों की जासूसी करने का आरोप है। 10 देशों के 17 मीडिया संगठनों के 80 से अधिक खोजी पत्रकारों की फोन से निगरानी की गयी। पेगासस मोबाइल में प्रवेश करने के बाद अपने सर्वर से सम्पर्क करता है और लक्ष्य के निजी विवरण को वापस भेजता है। इस विवरण में पासवर्ड, सम्पर्क सूचियाँ, कैलेंडर इवेंट, टेक्स्ट सन्देश और लाइव वॉयस कॉल और एंड-टू-एंड- एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग ऐप भी इसमें शामिल हैं। स्पाइवेयर के ज़रिये फोन के कैमरे और माइक्रोफोन को भी नियंत्रित किया जा सकता है और जीपीएस फंक्शन पर भी क़ाबू पाया जा सकता है। यह किसी भी दस्तावेज़, फोटो और वीडियो को मोबाइल फोन से अपने लक्ष्य तक को भेजने में सक्षम होता है।
स्पाइवेयर को फॉरेंसिक विश्लेषण से बचने, एंटी-वायरस सॉफ्टवेयर द्वारा पता लगाने से बचने के हिसाब से विकसित किया गया है और ज़रूरत पडऩे पर इसे हटाया भी जा सकता है। फॉरबिडन स्टोरीज ने 50 से अधिक देशों में एनएसओ के ऐसे ग्राहकों जासूसी किये जाने वाले नंबरों तक पहुँच हासिल की। ख़ुलासा हुआ कि इजरायली कम्पनी एनएसओ ग्रुप के ग्राहकों द्वारा निगरानी के लिए चुने गये 50,000 से अधिक फोन नंबर वर्षों इस सूची में थे। लीक आँकड़ों से पता चला है कि भारत, मैक्सिको, हंगरी, मोरक्को और फ्रांस जैसे देशों में कम-से-कम 180 पत्रकारों को निशाना बनाया गया। सऊदी अरब के पत्रकार जमाल ख़शोगी की हत्या के मामले में दो महिलाओं समेत ख़शोगी के 37 क़रीबी लोगों के स्मार्टफोन की निगरानी की गयी। फोन के क्रॉस-सेक्शन की फोरेंसिक जाँच में सार्वजनिक हुई सूची में 37 फोन पर स्पाइवेयर की मौज़ूदगी पायी गयी।
वाशिंगटन पोस्ट ने बताया कि सूची में भारत के 1,000 से अधिक फोन नंबर दिखायी दिये। नामों की पहली सूची में राजनेता, विदेशी मामलों और रक्षा को कवर करने वाले 40 भारतीय पत्रकार शामिल थे। इसके बाद राहुल गाँधी, चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर, नवनियुक्त आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव और शीर्ष वायरोलॉजिस्ट गगनदीप कांग जैसे दिग्गजों नेताओं के नाम भी सूची में सामने आये। एनएसओ समूह ने पेगासस प्रोजेक्ट जाँच के दावों का खण्डन किया और रिपोर्ट को ग़लत धारणाओं वाली के साथ ही अपुष्ट क़रार दिया।
‘द वाशिंगटन पोस्ट’ के साथ एक साक्षात्कार में एनएसओ समूह के संस्थापक शालेव हुलियो और उनके साथी ओमरीलावी ने दावा किया कि इसे तीन मार्गदर्शक सिद्धांतों के आधार पर स्थापित किया गया, जो आज भी क़ायम हैं। कम्पनी की स्थापना के पहले हफ़्तों यानी 2010 में हमने इसकी शर्तें तय की थीं। 1. सिर्फ़ कुछ सरकारी संस्थाओं को लाइसेंस देंगे; क्योंकि इस प्रौद्योगिकी का दुरुपयोग निजी हाथों में किया जा सकता है। 2. सॉफ्टवेयर लाइसेंस बेचने के बाद ग्राहकों द्वारा लक्षित व्यक्तियों में उनकी कोई दृश्यता नहीं होगी। 3. हुलियो ने सबसे महत्त्वपूर्ण इजरायल के रक्षा मंत्रालय की निर्यात नियंत्रण इकाई से इसके अनुमोदन प्राप्त करने को सबसे अहम बताया था। इसकी वजह यह असाधारण निर्णय था; क्योंकि उस समय यूनिट केवल विदेशी हथियारों की बिक्री को नियंत्रित करती थी (इजरायल ने 2017 में एक साइबर क़ानून बनाया था)। एनएसओ को ग्राहकों को केवल क़ानून प्रवर्तन या आतंकवाद विरोधी उद्देश्यों के लिए सॉफ्टवेयर का उपयोग करने का वादा करने वाले समझौते पर हस्ताक्षर करने की भी शर्त की बात कही गयी है।
हुलियो ने स्वीकार किया कि एनएसओ के कुछ सरकारी ग्राहकों ने अतीत में इसके सॉफ्टवेयर का दुरुपयोग किया था। इसे भरोसा तोडऩे वाला माना गया। एनएसओ ने पिछले कई वर्षों में मानवाधिकार ऑडिट करने के बाद पाँच ग्राहकों की पहुँच बन्द कर दी थी और कुछ अन्य मामलों में भी अनुबन्ध ख़त्म किया। एनएसओ ग्रुप ने कैलिफोर्निया कोर्ट सहित कई मंचों पर इस स्टैंड को दोहराया है कि यह केवल आतंकवादियों और अपराधियों को ट्रैक करने के लिए सरकारी ग्राहकों और क़ानून प्रवर्तन एजेंसियों को स्पाइवेयर बेचता है। पेगासस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे समाचार संगठन स्वतंत्र रूप से 10 देशों के 1,500 से अधिक नंबरों के मालिकों की पहचान की है। ऐसे मोबाइल फोन के एक छोटे से क्रॉस-सेक्शन की फोरेंसिक जाँच की गयी। ‘द वायर’ ने उन 142 लोगों के नामों का ख़ुलासा किया है, जिनकी एनएसओ समूह ने इस स्पाइवेयर के ज़रिये निगरानी की।
पेगासस स्पाइवेयर की निगरानी की दूसरी सूची में कांग्रेस नेता राहुल गाँधी, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी और पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा के मोबाइल फोन का पता चला। एमनेस्टी इंटरनेशनल की सिक्योरिटी लैब द्वारा किये गये डिजिटल फोरेंसिक के अनुसार, बंगाल विधानसभा चुनाव, चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर का फोन भी हैक किया गया। इस रिपोर्ट पर भाजपा सरकार पर हमला करते हुए, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने आरोप लगाया कि भगवा पार्टी भारत को एक लोकतांत्रिक देश रखने के बजाय एक निगरानी राज्य में बदलना चाहती है। हमारे फोन टैप किये जाते हैं। मैंने अब अपने फोन के कैमरे पर ब्लैक टेप लगा दिया है। पेगासस ख़तरनाक और क्रूर है। कई बार मैं किसी से बात नहीं कर पाती। मैं दिल्ली या ओडिशा के मुख्यमंत्री से भी बात नहीं कर सकती। ममता ने 21 जुलाई को शहीद दिवस के अवसर पर एक वर्चुअल सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए ये बातें कहीं।
केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल और रेल और आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव के मोबाइल फोन भी 300 भारतीयों की निगरानी में शामिल हैं। कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर देशद्रोह का आरोप लगाया। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से इस्तीफ़े का आह्वान किया और और सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी में इसकी जाँच कराये जाने की माँग की। प्रधानमंत्री और गृह मंत्री ने इस हथियार का इस्तेमाल भारतीय राज्य और हमारी संस्थाओं के ख़िलाफ़ किया है। उन्होंने इसे सियासी फ़ायदे के लिए इस्तेमाल किया है। राहुल गाँधी ने कहा कि भाजपा ने कर्नाटक में सत्ता हथियाने के लिए इसका दुरुपयोग किया, जो सीधे-सीधे देशद्रोह है।

ममता कराएँगी जाँच


पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 26 जुलाई को इजरायल की साइबर-ख़ुफिया कम्पनी एनएसओ ग्रुप द्वारा विकसित पेगासस स्पाइवेयर का उपयोग कर फोन की कथित निगरानी की जाँच के लिए आयोग के गठन का ऐलान किया। सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर और कलकत्ता उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) ज्योतिर्मय भट्टाचार्य को आयोग के सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया है। आयोग व्यापक रूप से रिपोर्ट की गयी अवैध हैकिंग, निगरानी के मामले को देखेगा। पश्चिम बंगाल में विभिन्न व्यक्तियों के मोबाइल फोन की भी निगरानी का आरोप है।
संवैधानिक पदाधिकारी
अशोक लवासा : नौकरशाह जब वह चुनाव आयुक्त थे, तब वह निगरानी सूची में थे। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन पर उनकी अलग राय और चुनाव आयोग के अन्य दो सदस्यों द्वारा क्लीन चिट देने पर उनकी असहमति मीडिया में छा गयी थी।
सीबीआई अफ़सर, नौकरशाह
रणदीप सिंह सुरजेवाला ने ट्वीट किया, राफेल में आसन्न प्राथमिकी का डर! आलोक वर्मा को सीबीआई प्रमुख पद से हटाने के लिए मध्यरात्रि में तख़्तापलट! पेगासस के माध्यम से जासूसी! कालक्रम पूरा हो गया है! क्या राष्ट्र को और सुबूत चाहिए?
1. आलोक वर्मा : केंद्रीय जाँच ब्यूरो के पूर्व प्रमुख, वर्मा को मोदी सरकार द्वारा अपदस्थ किये जाने के तुरन्त बाद सूची में जोड़ा गया था। उनकी पत्नी, बेटी और दामाद के व्यक्तिगत टेलीफोन नंबरों को अंतत: सूची में भी रखा जाएगा यानी इस एक परिवार के कुल आठ नंबर रिकॉर्ड किये गये।
2. राकेश अस्थाना : तत्कालीन सीबीआई के एक वरिष्ठ अधिकारी अस्थाना को वर्मा के साथ ही सूची में जोड़ा गया था। उन्हें मोदी सरकार के क़रीबी के रूप में माना जाता है। बीएसएफ के प्रमुख के बाद अब उन्हें दिल्ली पुलिस का कमिश्नर बनाया गया है।
3. ए.के. शर्मा : सीबीआई के एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी को अस्थाना और वर्मा के साथ सूची में जोड़ा गया।
4. राजेश्वर सिंह : प्रवर्तन निदेशालय के एक वरिष्ठ अधिकारी, जिन्होंने अपनी एजेंसी द्वारा की गयी कई हाई-प्रोफाइल जाँच का नेतृत्व किया; को इजरायली स्पाइवेयर फर्म एनएसओ ग्रुप के एक भारतीय ग्राहक द्वारा निगरानी के लिए सम्भावित लक्ष्य के रूप में चुना गया था। सिंह के दो नंबरों के साथ परिवार की तीन महिलाओं के नंबर में भी इस सूची में हैं।
5. वी.के. जैन : भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक पूर्व अधिकारी, जिन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के निजी सहायक के रूप में काम किया।

राष्ट्रीय सुरक्षा के आँकड़े
आधिकारिक नीति को चुनौती देने वाले दो सेवारत कर्नल, एक सेवानिवृत्त ख़ुफिया अधिकारी जो रॉ को अदालत में ले गये और दो सेवारत बीएसएफ अधिकारी भी पेगासस प्रोजेक्ट डाटाबेस में शामिल हैं।
1. के.के. शर्मा : 1982 बैच के एक आईपीएस, वह सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के प्रमुख थे, जब उन्हें निगरानी के सम्भावित लक्ष्य के रूप में रखा। शर्मा ने आरएसएस के राष्ट्रीय समन्वयक कृष्ण गोपाल, इसके संयुक्त राष्ट्रीय समन्वयक मुरलीधर, एक सदस्य के साथ मंच साझा किया। सत्तारूढ़ भाजपा के बौद्धिक प्रकोष्ठ के मोहित रॉय, और एक पूर्व पत्रकार और आरएसएस से जुड़े कई ग़ैर-सरकारी संगठनों के ट्रस्टी, रंतीदेब सेनगुप्ता। शर्मा के सेवानिवृत्त होने के तत्काल बाद चुनाव आयोग (ईसी) ने उन्हें पश्चिम बंगाल और झारखण्ड में आसन्न लोकसभा चुनावों के लिए विशेष केंद्रीय पुलिस पर्यवेक्षक नियुक्त किया।
2. जगदीश मैथानी : बीएसएफ के महानिरीक्षक, जो केंद्रीय गृह मंत्रालय की व्यापक एकीकृत सीमा प्रबन्धन प्रणाली (सीआईबीएमएस) या स्मार्ट फेंसिंग परियोजना का अभिन्न अंग थे।
3. जितेंद्र कुमार ओझा : रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के एक वरिष्ठ अधिकारी। जनवरी 2018 में सेवा से बाहर होने के बाद उन्हें निगरानी के सम्भावित लक्ष्य के रूप में खा था और इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण में चले गये थे।
4. कर्नल मुकुल देव : एक सैन्य अधिकारी, जिन्होंने शान्ति क्षेत्रों में तैनात अधिकारियों के लिए मुफ़्त राशन ख़त्म करने का सरकारी आदेश नहीं माना।
5. कर्नल अमित कुमार : सेना के एक अन्य अधिकारी ने सशस्त्र बल (विशेष बल) अधिनियम यानी अफस्पा के आसन्न कमज़ोर पडऩे के ख़िलाफ़ 356 सेनाकर्मियों की ओर से सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी।

सामाजिक कार्यकर्ता, ट्रेड यूनियन नेता, वकील और शिक्षाविद्, वैज्ञानिक व चिकित्सा क्षेत्र के लोग


लीक हुई सूची के अनुसार, भीमा कोरेगाँव मामले के सिलसिले में गिरफ़्तार किये गये 16 कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों में से आठ के नाम भी इसमें हैं। ये हैं रोना विल्सन, हनी बाबू, वर्नोन गोंजाल्विस, आनंद तेलतुम्बडे, शोमा सेन, गौतम नवलखा, अरुण फरेरा और सुधा भारद्वाज। रेलवे सम्पत्तियों के निजीकरण का सबसे मुखर चेहरा रहे रेलवेमेन फेडरेशन के राष्ट्रीय महासचिव शिव गोपाल मिश्रा के फोन की भी जासूसी की गयी। मिश्रा ने कहा, निगरानी से पता चलता है कि केंद्र की भाजपा सरकार को लोगों की परवाह नहीं है।
1. हनी बाबू एम.टी. : दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर, एल्गार परिषद् मामले में आरोपी।
2. रोना विल्सन : एक क़ैदी अधिकार कार्यकर्ता, एल्गार परिषद् मामले में एक अन्य आरोपी।
3. वर्नन गोंजाल्विस : मानवाधिकार कार्यकर्ता और एल्गार परिषद् मामले में भी आरोपी।
4. आनंद तेलतुम्बडे : एक अकादमिक और नागरिक स्वतंत्रता कार्यकर्ता, एल्गार परिषद् मामले में आरोपी।
5. शोमा सेन : सेवानिवृत्त प्रोफेसर और एल्गार परिषद् मामले में आरोपी।
6. गौतम नवलखा : एक पत्रकार और अधिकार कार्यकर्ता, एल्गार परिषद् मामले में आरोपी।
7. अरुण फरेरा : एक वकील, एल्गार परिषद् मामले में आरोपी।
8. सुधा भारद्वाज : एल्गार परिषद् मामले की कार्यकर्ता और वकील और आरोपी।
9. पवना : तेलुगू कवि वरवर राव की बेटी, एल्गार परिषद् मामले में आरोपी।
10. मीनल गाडलिंग : एल्गार परिषद् मामले में आरोपी वकील सुरेंद्र गाडलिंग की पत्नी।
11. निहालसिंह राठौड़ : सुरेंद्र गाडलिंग के वकील और सहयोगी।
12. जगदीश मेश्राम : वकील, जो सुरेंद्र गाडलिंग से जुड़े हैं।
13. मारुति कुरवाटकर : ग़ैर-क़ानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत कई मामलों में आरोपी।
14. शालिनी गेरा : एक वकील, जिन्होंने सुधा भारद्वाज का केस लड़ा।
15. अंकित ग्रेवाल : सुधा भारद्वाज के क़रीबी क़ानूनी सहयोगी।
16. जैसन कूपर : केरल स्थित अधिकार कार्यकर्ता, आनंद तेलतुम्बडे के मित्र।
17. रूपाली जाधव : सांस्कृतिक मंडली कबीर कला मंच की सदस्य।
18. लालसुनागोटी : वकील, महेश राउत के क़रीबी और एल्गार परिषद् मामले में आरोपी।
19. सोनी सोरी : आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता।
20. लिंगाराम कोडोपी : एक पत्रकार और सोनी सोरी के भतीजे।
21. डिग्री प्रसाद चौहान : एक जाति-विरोधी कार्यकर्ता, पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज के छत्तीसगढ़ प्रदेश अध्यक्ष।
22. राकेश रंजन : श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स में सहायक प्रोफेसर।
23. अशोक भारती : अखिल भारतीय अम्बेडकर महासभा के अध्यक्ष।
24. उमर ख़ालिद : जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के पूर्व छात्र।
25. अनिर्बान भट्टाचार्य : जेएनयू का एक और पूर्व छात्र, जिसे उमर ख़ालिद के साथ देशद्रोह के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था।
26. बंज्योत्सना लाहिड़ी : जेएनयू की छात्रा।
27. बेला भाटिया : छत्तीसगढ़ में स्थित एक वकील और मानवाधिकार कार्यकर्ता।
28. शिव गोपाल मिश्रा : रेलवे यूनियन के नेता।
29. अंजनी कुमार : दिल्ली स्थित श्रम अधिकार कार्यकर्ता।
30. आलोक शुक्ला : कोयला खनन विरोधी कार्यकर्ता और छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन के संयोजक।
31. सरोज गिरी : दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर।
32. शुभ्रांशु चौधरी : बस्तर स्थित पीस एक्टिविस्ट।
33. संदीप कुमार राय : बीबीसी के पूर्व पत्रकार और ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता।
34. ख़ालिद ख़ान : संदीप कुमार राय के एक सहयोगी।
35. इप्सा शताक्षी : झारखण्ड की एक कार्यकर्ता।
36. एस.ए.आर. गिलानी : दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर, जिन्हें संसद बम विस्फोट मामले में आरोपी बनाया था, पर बरी हो गये थे।
37. जी. हरगोपाल : हैदराबाद विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर एवं साईंबाबा रक्षा समिति के अध्यक्ष थे।
38. वसंत कुमारी : दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जी.एन. साईंबाबा की पत्नी।
39. राकेश रंजन : दिल्ली विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर।
40. जगदीप छोकर : वॉचडॉग एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉम्र्स के सह-संस्थापक।
41. गगनदीप कांग : भारत के अग्रणी वायरोलॉजिस्ट में से एक जो निपाह वायरस के ख़िलाफ़ टीम में शामिल थे।
42. हरि मेनन : बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के भारतीय प्रमुख।

पूर्वोत्तर से जुड़े लोग
1. समुज्जल भट्टाचार्य : असम समझौते के खण्ड छ: के कार्यान्वयन को देखने के लिए अखिल असम छात्र संघ के सलाहकार और उच्च स्तरीय समिति के सदस्य।
2. अनूप चेतिया : यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम के एक नेता।
3. मालेम निंगथौजा : दिल्ली के एक लेखक, जो मणिपुर से हैं।
सर्वोच्च न्यायालय की एक पूर्व कर्मचारी
अप्रैल, 2019 में भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई पर यौन उत्पीडऩ का आरोप लगाने वाले सर्वोच्च न्यायालय की पूर्व कर्मचारी से जुड़े तीन फोन नंबरों की निगरानी की गयी। पूर्व अदालत सहायक और उसके परिवार के 11 नंबरों पर नज़र रखी गयी।

नगा नेता
1. एतमवशुम : नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालिम (एनएससीएन-इसाक मुइवा) के एक नेताजो समूह के अध्यक्ष और मुइवा का उत्तराधिकारी माना जाता है।
2. अपम मुइवा : एनएससीएन (आई-एम) के एक अन्य नेता जो गु. मुइवा के भतीजे हैं।
3. एंथनी शिमरे : एनएससीएन (आई-एम) की नगा सेना के कमांडर इन चीफ।
4. फुनथिंगशिमरंग : एनएससीएन (आई-एम) की नगा सेना के पूर्व कमांडर इन चीफ।
5. किटोवी झिमोमी : नगा राष्ट्रीय राजनीतिक समूहों (एनएनपीजी) के संयोजक। मोदी सरकार नगा मुद्दे का एक समाधान खोजने के लिए वार्ता कर रही थी।

कारोबारी
1. अनिल अंबानी : रिलायंस एडीएजी के अध्यक्ष। 2018 में इनका नंबर जोड़ा गया, जब राफेल सौदे पर विवाद बढ़ गया था।
2. टोनी जेसुदासन : एडीएजी में कॉर्पोरेट संचार प्रमुख। जेसुदासन की पत्नी का नंबर भी शामिल।
3. वेंकट राव पोसिना : भारत में डसॉल्ट एविएशन के प्रतिनिधि।
4. इंद्रजीत सियाल : साब इंडिया के पूर्व प्रमुख।
5. प्रत्युष कुमार : बोइंग इंडिया बॉस।
6. हरमन जीतनागी : फ्रांसीसी ऊर्जा फर्म ईडीएफ के प्रमुख।

तिब्बती अधिकारी, कार्यकर्ता
1. टेम्पा सेरिंग : नई दिल्ली में दलाई लामा के दूत।
2. तेनजिन तकला : दलाई लामा के वरिष्ठ सहयोगी।
3. चिम्मी रिग्जेन : दलाई लामा के वरिष्ठ सहयोगी।
4. लोबसंग सांगे : निर्वासन में तिब्बती सरकार के पूर्व प्रमुख।

कश्मीर से जुड़ी हस्तियाँ


1. बिलाल लोन : एक अलगाववादी नेता और पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के नेता सज्जाद लोन के भाई।
2. तारिक़ बुख़ारी : अपनी पार्टी के नेता अल्ताफ़ बुख़ारी के भाई।
3. सैयद नसीम गिलानी : एक वैज्ञानिक, प्रमुख अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी के पुत्र।
4. मीरवाइज उमर फ़ारूक़ : अलगाववादी नेता, हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के प्रमुख एवं जामा मस्जिद के प्रमुख मौलवी।
5. वकार भट्टी : प्रमुख मानवाधिकार कार्यकर्ता।
6. जफ़र अकबर भट : एक प्रभावशाली शिया धर्मगुरु, जो हुर्रियत से जुड़े हैं और प्रमुख अलगाववादी नेता हैं।

वैश्विक नेता
1. एंड्रेस मैनुअल लोपेज ओब्रेडोर : अब मेक्सिको के राष्ट्रपति हैं, लेकिन 2018 में उनके चुनाव से पहले उन्हें निशाना बनाया
गया था।
2. इमैनुएल मैक्रों : फ्रांस के राष्ट्रपति।
3. इमरान ख़ान : पाकिस्तान के प्रधानमंत्री।
4. मुस्तफ़ा मदबौली : मिस्र के प्रधानमंत्री।
5. साद एदीन अल उस्मानी : मोरक्को के प्रधानमंत्री।
6. बरहम सालिह : इराक के राष्ट्रपति।
7. सिरिल रामफोसा : दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति।
8. मोहम्मद सिक्स्थ : मोरक्को के बादशाह।
9. साद हरीरी : लेबनान के पूर्व प्रधानमंत्री।
10. रूहकाना रगुंडा : युगांडा के पूर्व प्रधानमंत्री।
11. नूरुद्दीन बेदौई : अल्जीरिया के पूर्व प्रधानमंत्री।
12. चाल्र्स मिशेल : बेल्जियम के पूर्व प्रधानमंत्री, यूरोपीय परिषद् के अध्यक्ष।
13. पनाह हुसैनोव : अजरबैजान के पूर्व प्रधानमंत्री।
14. फेलिप काल्डेरन : पूर्व मैक्सिकन राष्ट्रपति।

निगरानी में सियासतदान


1. राहुल गाँधी : कांग्रेस पार्टी के नेता, जिन्हें पिछले दो आम चुनावों के लिए प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार माना गया था।
2. अलंकार सवई : राहुल गाँधी के क़रीबी।
3. सचिन राव : राहुल गाँधी के एक और सहयोगी, कांग्रेस कार्यकारी समिति के सदस्य।
4. प्रशांत किशोर : चर्चित चुनावी रणनीतिकार, जिन्होंने भाजपा और कांग्रेस सहित कई राजनीतिक दलों के लिए काम किया है। उनके फोन का फोरेंसिक विश्लेषण किया गया और हैकिंग के सुबूत मिले।
5. अभिषेक बनर्जी : तृणमूल कांग्रेस के सांसद, जो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे हैं।
6. अश्विनी वैष्णव : पूर्व आईएएस अधिकारी, जिन्हें हाल के मोदी मंत्रिमंडल विस्तार में केंद्रीय मंत्री बनाया गया।
7. प्रह्लाद सिंह पटेल : केंद्रीय मंत्री, उनकी पत्नी, सचिव, सहायक, रसोइया और माली आदि।
8. प्रवीण तोगडिय़ा : विश्व हिन्दू परिषद् के पूर्व प्रमुख।
9. प्रदीप अवस्थी : राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया के निजी सचिव।
10. संजय काचरू : एक कॉर्पोरेट कार्यकारी, जिसे तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने 2014 में विशेष कर्तव्य पर अपने अधिकारी के रूप में चुना था; लेकिन कभी औपचारिक रूप से नियुक्त नहीं किया गया था। अपने पिता और नाबालिग़ बेटे के साथ सूचीबद्ध।

तीन याचिकाएँ


वरिष्ठ पत्रकार एन. राम, शशि कुमार और सीपीएम सांसद ने जाँच के लिए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की है। पत्रकार एन. राम (पूर्व मुख्य संपादक द हिन्दू) और शशि कुमार (संस्थापक एशियानेट, निदेशक एसीजे) ने सर्वोच्च न्यायालय के मौज़ुदा या सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में पेगासस स्पाइवेयर निगरानी की जाँच की माँग की है। याचिका में भारत संघ और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय को यह बताने का निर्देश देने की भी माँग की गयी है कि क्या उसने या उसकी किसी एजेंसी ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी भी तरह से निगरानी करने के लिए पेगासस स्पाइवेयर इस्तेमाल को मंज़ूरी दी। पेगासस स्पाईवेयर मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय में दायर की गयी यह तीसरी जनहित याचिका है। सीपीआई (एम) की जॉन ब्रिटास याचिका ने इजरायली स्पाइवेयर एक्सप्रेस का उपयोग करने वाले कार्यकर्ताओं, राजनेताओं, पत्रकारों और संवैधानिक पदाधिकारियों की जासूसी की अदालत की निगरानी में जाँच की माँग की है। इसमें आरोप लगाया कि या तो जासूसी सरकार द्वारा करायी या फिर किसी विदेशी एजेंसी द्वारा। अधिवक्ता एम.एल. शर्मा ने भी इस विषय पर अलग से जनहित याचिका दायर की हुई है।

कांग्रेस हुई हमलावर


राहुल गाँधी के साथ ही प्रियंका गाँधी ने भी सरकार पर हमला कर ट्वीट किया, पेगासस के ख़ुलासे घृणित हैं। अगर सच है, तो लगता है कि मोदी सरकार ने निजता के अधिकार पर एक गम्भीर और भयावह हमला शुरू कर दिया है। भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार की गारंटी दी गयी है। यह लोकतंत्र का अपमान है और हमारी स्वतंत्रता के लिए घातक है। कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट किया कि अगर पेगासस से परदा हट गया, तो गोपनीयता उजागर हो जाएगी।

पत्रकारों को बनाया निशाना
द वायर, हिन्दुस्तान टाइम्स, मिंट, द इंडियन एक्सप्रेस, द वाशिंगटन पोस्ट, द गार्जियन और द हिन्दू जैसे मुख्यधारा के भारतीय प्रकाशनों से जुड़े कई वर्तमान या पूर्व में 40 से अधिक पत्रकारों को निशाना बनाया गया था। लक्ष्य सूची में शामिल व्यक्तियों के कुछ फोन, जिन्हें फोरेंसिक जाँच के अधीन किया गया था, उनमें हैक किये जाने के सुबूत मिले। सात पत्रकारों के फोन की फोरेंसिक जाँच में से पाँच में पेगासस की मौज़ूदगी पायी गयी।
द वायर के मुताबिक, रोहिणी सिंह का नाम केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के क़रीबी व्यवसायी निखिल मर्चेंट के व्यावसायिक मामलों पर रिपोर्ट करने के तुरंत बाद सूची में आ गया। उस दौरान वह व्यवसायी अजय पीरामल के साथ केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल के व्यवहार की भी जाँच कर रही थीं।
1. एम.के. वेणु : द वायर के संस्थापक संपादक। उसके फोन का भी फोरेंसिक विश्लेषण किया गया और पेगासस मिला।
2. सुशांत सिंह : पूर्व इंडियन एक्सप्रेस पत्रकार, जो राष्ट्रीय सुरक्षा पर लिखते हैं। फोन के फोरेंसिक विश्लेषण के बाद एमनेस्टी इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि उसके साथ समझौता किया गया था। उनका नंबर सूची में तब दिखायी दिया, जब वह फ्रांस के साथ भारत के विवादास्पद राफेल विमान सौदे को देख रहे थे।
3. सिद्धार्थ वरदराजन : द वायर के संस्थापक संपादक।
4. परंजॉय गुहा ठाकुरता : पूर्व ईपीडब्ल्यू संपादक, जो अब न्यूजक्लिक के लिए लिखते हैं।
5. एस.एन.एम. आब्दी : आउटलुक के पूर्व पत्रकार।.
6. विजया सिंह : गृह मंत्रालय को कवर करने वाली हिन्दू पत्रकार।
7. स्मिता शर्मा : टीवी18 की पूर्व एंकर।
8. शिशिर गुप्ता : हिन्दुस्तान टाइम्स के कार्यकारी संपादक।
9. रोहिणी सिंह : स्वतंत्र पत्रकार, जिन्होंने राजनेताओं या उनके परिवार के सदस्यों के विवादास्पद व्यापारिक सौदों के बारे में द वायर के लिए कई ख़ुलासे किये हैं।
10. देवीरूपा मित्रा : द वायर की राजनीतिक संपादक।
11. प्रशांत झा : हिन्दुस्तान टाइम्स के व्यूज एडिटर, पूर्व में ब्यूरो प्रमुख।
12. प्रेम शंकर झा : एक अनुभवी पत्रकार, जिन्होंने हिन्दुस्तान टाइम्स, टाइम्स ऑफ इंडिया और कई अन्य समाचार पत्रों में संपादकीय पदों पर कार्य किया। द वायर में उनका नियमित योगदान है।
13. स्वाति चतुर्वेदी : स्वतंत्र पत्रकार, जिन्होंने द वायर में योगदान दिया है। उन्होंने भाजपा आईटी सेल के बारे में एक किताब लिखी।
14. राहुल सिंह : हिन्दुस्तान टाइम्स के रक्षा संवाददाता।
15. औरंगजेब नक्शबंदी : एक राजनीतिक रिपोर्टर, जो पहले हिन्दुस्तान टाइम्स के लिए काम करते थे और कांग्रेस पार्टी कवर करते थे।
16. रितिका चोपड़ा : इंडियन एक्सप्रेस की एक पत्रकार, जो शिक्षा और चुनाव आयोग की बीट देखती हैं।
17. मुजम्मिल जलील : एक और इंडियन एक्सप्रेस पत्रकार, जो कश्मीर को कवर करते हैं।
18. संदीप उन्नीथन : इंडिया टुडे पत्रकार, जो रक्षा और भारतीय सेना पर रिपोर्ट करते हैं।
19. मनोज गुप्ता : टीवी18 में जाँच और सुरक्षा मामलों के संपादक।
20. जे. गोपीकृष्णन : द पायनियर के एक खोजी रिपोर्टर, उन्होंने 2जी दूरसंचार घोटाले का ख़ुलासा किया।
21. सैकत दत्ता : पूर्व में एक राष्ट्रीय सुरक्षा रिपोर्टर।
22. इफ़्तिखार गिलानी : पूर्व डीएनए रिपोर्टर, जो कश्मीर पर रिपोर्ट करते हैं।
23. मनोरंजन गुप्ता : पूर्वोत्तर स्थित फ्रंटियर टीवी के प्रधान संपादक।
24. संजय श्याम : बिहार के एक पत्रकार।
25. जसपाल सिंह हेरन : लुधियाना स्थित पंजाबी दैनिक रोज़ाना पहरेदार के प्रधान संपादक।
26. रूपेश कुमार सिंह : झारखण्ड के रामगढ़ में स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार। 2017 में एक निर्दोष आदिवासी की न्यायेतर मुठभेड़ पर रिपोर्ट करने के बाद उसका नाम सूची में आया।
27. दीपक गिडवानी : डीएनए के पूर्व संवाददाता, लखनऊ।
28. सुमिर कौल : न्यूज एजेंसी पीटीआई के पत्रकार।
29. शब्बीर हुसैन : कश्मीर पर राजनीतिक टिप्पणीकार।

बदनाम करने की कोशिश : केंद्र सरकार


नवनियुक्त सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि आरोप भारतीय लोकतंत्र को बदनाम करने की कोशिश है। सरकार ने जासूसी कराये जाने के आरोपों को ख़ारिज किया। मंत्री ने कहा कि विवरण निगरानी से सरकार का कोई लेना-देना नहीं है और ऐसे आरोपों का कोई ठोस आधार नहीं है।
इससे पहले भी व्हाट्स ऐप पर पेगासस से निगरानी के आरोप लगाये गये थे; लेकिन उनका कोई तथ्यात्मक आधार नहीं था। जो मामला सर्वोच्च न्यायालय तक गया था, पर किसी भी तरह की ख़ामी सामने नहीं आयी थी। आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने तथ्यों और तर्क का हवाला देते हुए कहा कि इस रिपोर्ट का आधार यह है कि एक संघ है, जिसे 50,000 फोन नंबरों के लीक डाटाबेस तक पहुँच हासिल हुई है। मंत्री ने स्पष्ट किया कि रिपोर्ट ख़ुद कहती हैं कि विवरण में एक फोन नंबर की मौज़ूदगी से यह पता नहीं चलता कि कोई डिवाइस पेगासस से संक्रमित था या हैक किया गया। अश्विनी ने कहा कि हमारे क़ानूनों और मज़बूत संस्थानों में जाँच और संतुलन के साथ किसी भी प्रकार की अवैध निगरानी सम्भव नहीं है।
गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि जासूसी के लिए पेगासस स्पाइवेयर के इस्तेमाल का दावा करने वाली रिपोर्ट जानबूझकर संसद के मानसून सत्र को बाधित करने के लिए जारी की गयी थी। उन्होंने राजनेताओं, पत्रकारों और अन्य प्रमुख लोगों के कथित फोन टेपिंग पर सरकार के ख़िलाफ़ विपक्ष के आरोपों को ख़ारिज किया। शाह ने कहा कि विघटनकारी वैश्विक संगठन हैं, जो भारत की प्रगति को पसन्द नहीं करते हैं। भारत में कुछ ऐेसे सियासी नेता हैं, जो नहीं चाहते कि भारत प्रगति करे। भारत के लोग यह सब समझते हैं। शाह ने ट्वीट किया कि देश को प्रगति के रास्ते से रोकने की कोशिश कर रहे हैं, पर वे इसमें सफल नहीं होंगे। भाजपा के वरिष्ठ नेता रविशंकर प्रसाद ने कहा कि पेगासस के सरकार या भाजपा से जुड़े होने के कोई सुबूत नहीं हैं।