ज़िन्दगी की खोज

‘ज़िन्दगी की खोज – जीवन के आध्यात्मिक पहलुओं को जानना’ एक बड़े आकार का खण्ड है। शायद, जीवन को ध्यान में रखते हुए, इसके सभी विभिन्न आयामों और बहुस्तरीय पहलुओं के साथ। लेकिन सबसे ख़ास बात किताब के डिजाइन की है।

पुस्तक का अनौपचारिक लेआउट मन को काफ़ी लुभाता है। अच्छी तरह से उकेरे गये ग्राफिक्स, चित्र और लिखित सामग्री सभी बेहतरीन है। आँखों और दिमाग़ पर बिना किसी दबाव के इसे आसानी से पढ़ा जा सकता है।

सेवानिवृत्त नौकरशाह बलविंदर कुमार की इस पुस्तक में जीवन और इसके हर पहलू पर उनके विचार और टिप्पणियाँ हैं। दो पहलू सामने हैं। पुस्तक मृत्यु पर ध्यान केंद्रित करती है – वास्तव में और यथार्थवादी तरीक़े से। मृत्यु के बारे में लेखक बलविंदर कुमार यही लिखते हैं- ‘हमें मृत्यु को स्वीकार करने और शालीनता से मरने की कला सीखनी चाहिए… तथ्य यह है कि मृत्यु को स्वीकार और इसकी चर्चा न करके, हम ख़ुद को और अधिक नुक़सान पहुँचाते हैं। हमारे जीवन की गुणवत्ता में काफ़ी सुधार होगा यदि हम मृत्यु को शान से गले लगा सकना ही सीख लें। हमें जीवन में मृत्यु को एक प्राकृतिक घटना के रूप में लेना चाहिए और अपने अवरोधों को दूर करना चाहिए।’

पुस्तक में जो बात अलग है, वह हमारी आत्म-जागरूकता जैसी बुनियादी चीज़ पर उनके विचार हैं। हम अपने बारे में जानने की कितनी कम परवाह करते हैं। शायद, अगर हम ख़ुद को समझ लें, तो हम अधिक सहज होंगे, विभिन्न असफलताओं और कथित असफलताओं को समझ पाएँगे। जैसा कि वे कहते हैं- ‘हम अपने बारे में बहुत कम जानते हैं। यह जीवन की सबसे बड़ी दुविधाओं में से एक है। ज़्यादातर मामलों में हम अपने बारे में बहुत कम जानते हैं; लेकिन अपनी आत्म-जागरूकता के बारे में अत्यधिक आत्मविश्वास महसूस करते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि भले ही 95 फ़ीसदी लोग कहते हैं कि वे स्वयं जागरूक हैं। लेकिन वास्तव में ऐसा करने वाले केवल 10-15 फ़ीसदी लोग ही हैं। इसका मतलब है कि लोगों का एक बड़ा तबक़ा ख़ुद से झूठ बोल रहा है। इस अध्ययन से पता चलता है कि हम अपने बारे में बहुत कम जानते हैं।’

अपनी टिप्पणियों को आगे बढ़ाते हुए, बलविंदर कुमार जुड़ी हुई वास्तविकताओं पर भी ध्यान केंद्रित करते हैं कि आज के इस युग में कोई भी हमें आत्म-जागरूकता नहीं सिखाता है। यह, जब प्रमुख महत्त्व का है, बेहतर अस्तित्व की कुंजी है।

यह पुस्तक किसी को भी बैठकर विचार करने और आत्मनिरीक्षण करने के लिए बाध्य करती है। जैसा कि कोई पढ़ता है, तो इसमें हमारे बहुत-ही बुनियादी अस्तित्व के विभिन्न पहलू हैं। पढऩे और फिर से पढऩे के लिए प्रेरित करती है। पुस्तक की ख़ासियत, शायद सरल, स्पष्ट और तरीक़े से इसे पाठक के सामने रखना है।

लेखक ने पाठक को प्रभावित करने की कोशिश नहीं की है। वह पाठक के साथ जुडऩे और बँधने की कोशिश करते हैं। इस उम्मीद में कि सैकड़ों लोग साधारण दर्शन से दैनिक जीवन तक लाभान्वित हो सकते हैं।

काश, किताब की क़ीमत कम होती, ताकि हममें और भी बहुत-से लोग इस क़ीमती किताब को ख़रीद पाते।