जल संकट को हल्के में लेना पड़ेगा भारी

हाल ही में 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाया गया। इस दिवस की शुरुआत 22 मार्च, 1993 से हुई थी। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने हर किसी को स्वच्छ पेयजल मुहैया कराने के लिए इस अभियान की शुरुआत की थी। इस दिवस पर विश्व भर में लोगों को जल संरक्षण और गंदे पानी से होने वाली बीमारियों के बारे में जागरूक किया जाता है। विश्व जल दिवस के मक़सद से साफ़ हो जाता है कि दुनिया में पानी का संकट दिन-ब-दिन गहराता जा रहा है। आज दुनिया में 220 करोड़ लोगों के पास पीने का स्वच्छ पानी तक नहीं है। इधर संयुक्त राष्ट्र ने सतत विकास लक्ष्य-6 के तहत जल संकट का सामना कर रहे करोड़ों लोगों को साल 2030 तक पीने का स्वच्छ पानी मुहैया कराने का बड़ा लक्ष्य रखा है। बडा़ सवाल यह है कि क्या दुनिया के तमाम देश इस लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में ईमानदारी से प्रयास कर रहे हैं। लेकिन उन प्रयासों से क्या अपेक्षित नतीजों की उम्मीद की जा सकती है?

दरअसल जल संकट के समाधान में जल प्रबंधन की अहम भूमिका होती है। इस समस्या को अक्सर एक सामाजिक समस्या के तौर पर देखा जाता है, जिसके स्वास्थ्य पर तात्कालिक व दूरगामी प्रभाव की पुष्टि कई अध्ययन भी करते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, दुनिया भर में क़रीब 200 करोड़ लोग गंदा पानी पीने से बीमार होते हैं। दूषित जल के कारण हर साल डायरिया से 4.85 लाख मौतें होती हैं। दुनिया भर में 36.8 करोड़ लोग असुरक्षित कुओं व अन्य खुले स्रोतों से पानी लेते हैं। जहाँ तक भारत का सवाल है, यहाँ पीने के साफ़ पानी की कमी की समस्या की गम्भीरता को इन आँकड़ों से समझा जा सकता है कि दुनिया की 19 फ़ीसदी आबादी भारत में रहती है, जिसके पास पीने के लिए स्वच्छ जल नहीं है। एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, देश की महज़ 50 फ़ीसदी आबादी को ही साफ़ पानी मिलता है।

नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में साल 2030 तक 60 करोड़ लोगों को भयंकर जल संकट से जूझना पड़ सकता है। यानी महज़ 10 साल बाद यह समस्या और भी बढ़ सकती है। इस और भी ध्यान देना होगा कि आने वाले कुछ वर्षों में भारत ऐसा देश बनने जा रहा है, जहाँ दुनिया के हर देश से अधिक आबादी होगी। आबादी बढऩे का मतलब अधिक पानी की ज़रूरत। इसमें कोई दो-राय नहीं कि देश के सामने खड़ी कई बड़ी चुनौतियों में से एक जनता को स्वच्छ पेयजल मुहैया कराना भी है। इसी चुनौती के मद्देनज़र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त, 2019 को जल जीवन मिशन (जेजेएम) की घोषणा की थी। इस मिशन के तहत देश के सभी ग्रामीण घरों (क़रीब 19.22 करोड़ घरों) में 2024 तक नल से जल पहुँचाने का लक्ष्य रखा गया है। मगर साथ ही साथ जल-स्रोतों की निरंतरता बनाये रखना भी इसका अनिवार्य हिस्सा है। इसके अंतर्गत वर्षाजल संचयन और जलसंरक्षण के ज़रिये जल-स्रोतों के पुनर्भरण को सुनिश्चित किया जाता है। इसके साथ ही ग्रेवॉटर प्रबंधन के द्वारा गंदे पानी का पुनरुपयोग किया जाता है। सन् 2019 में मिशन की शुरुआत में देश के 19.22 करोड़ ग्रामीण परिवारों में से केवल 3.23 करोड़ यानी महज़ 17 फ़ीसदी के पास तक ही नल से जल की आपूर्ति थी।

कोरोना महामारी और उसके कारण होने वाली तालाबंदी का असर तक़रीबन हरेक गतिविधि पर पड़ा। जल जीवन मिशन का कार्य भी कुछ हद तक प्रभावित हुआ। लेकिन प्रतिकूल पारिस्थितियों के बावजूद इस मिशन के तहत अब तक नौ करोड़ से अधिक ग्रामीण घरों में नल से जल आपूर्ति शुरू हो चुकी है। यानी 47.83 फ़ीसदी ग्रामीण घरों में नल से जल की आपूर्ति हो रही है। भारत सरकार की चिन्ता ग्रामीण घरों के साथ-साथ शहरों के उन घरों तक भी नल से जल की आपूर्ति का बंदोबस्त करना है, जहाँ यह उपलब्ध नहीं है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1 फरवरी, 2021 को संसद में पेश आम बजट में शहरी क्षेत्रों के लिए एक सार्वभौमिक जल आपूर्ति योजना की घोषणा की। इस मिशन का लक्ष्य एक सर्वव्यापी जलापूर्ति योजना के तहत 4,378 शहरी निकायों के 2.86 करोड़ शहरी घरों में नल के ज़रिये पीने का साफ़ पानी उपलब्ध कराना है। इस योजना की अवधि 2021-2026 यानी पाँच साल है। जल जीवन मिशन (ग्रामीण) की अवधि 2019-2024 यानी पाँच साल ही है। आँकड़े महत्त्वपूर्ण होते हैं, क्योंकि आँकड़े सुधार करने के साथ-साथ कार्यक्रमों के प्रदर्शन को आँकने का एक मौक़ा मुहैया कराते हैं। बहरहाल जेजेएम ग्रामीण के 21 मार्च, 2022 के आँकड़ों के अनुसार, वर्तमान में नौ करोड़ से अधिक ग्रामीण परिवारों को नल से जल उपलब्ध कराया जा रहा है। ध्यान देने वाली बात यह है कि देश के तीन राज्यों- तेलगांना, हरियाणा व गोवा और तीन केंद्र शासित प्रदेशों- अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, दादरा और नागर हवेली, दमन और दीव तथा पुडुचेरी के सभी ग्रामीण घरों में नल से जल की आपूर्ति की गयी है।

वैसे भारत के मानचित्र पर ग्रामीण इलाक़ों के घरों में नल से जल की आपूर्ति को लेकर निगाह डालें, तो 15 अगस्त, 2019 की स्थिति और 21 मार्च, 2022 की स्थिति के फ़र्क़ दिखता है। लेकिन फिर भी चिन्ता बनी हुई है। घरेलू नल कनेक्शन प्रदान करने के मामले में विभिन्न राज्यों की 21 मार्च, 2022 तक तुलनात्मक स्थिति बताती है कि देश का सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश, जिसकी आबादी क़रीब 23 करोड़ है; जल जीवन मिशन में सबसे पीछे है। डबल इंजन की सरकार वाले इस राज्य में ग्रामीण घरों में नल से जल की आपूर्ति का आँकड़ा 13.42 फ़ीसदी है। हाल ही में सम्पन्न विधानसभा चुनाव में किसी भी चुनावी रैली में न तो प्रधानमंत्री मोदी ने और न ही प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी ने जनता को इस बाबत बताया। वहीं पंजाब, गुजरात, बिहार और हिमाचल प्रदेश ने नल जल में 90 फ़ीसदी से ऊपर का लक्ष्य हासिल कर लिया है। इस मामले में राजस्थान ने 23.14 फ़ीसदी और पश्चिम बंगाल ने 20.96 फ़ीसदी लक्ष्य ही अब तक हासिल किया है। छत्तीसगढ़ ने 20.06 फ़ीसदी व झारखण्ड ने 19.53 फ़ीसदी ग्रामीण घरों तक ही नल से जल मुहैया कराया है। उत्तर प्रदेश इन सबसे भी पीछे खड़ा है। जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के अनुसार, मणिपुर, मेघालय और सिक्किम चालू वर्ष यानी 2022 के अन्त तक हर ग्रामीण घर में नल से जल वाला लक्ष्य हासिल कर लेंगे। असम 2024 में इस लक्ष्य को हासिल करेगा। वैसे जल जीवन मिशन जैसे सामाजिक आन्दोलन के तहत बच्चों के स्वास्थ्य और उनकी देखभाल पर ध्यान केंद्रित करते हुए स्कूलों, आँगनबाड़ी केंद्रों में नल से शुद्ध जल की आपूर्ति को प्राथमिकता के आधार पर लागू किया जा रहा है।

जल जीवन मिशन अब जन आन्दोलन के रूप में चलाया जा रहा है। सिर्फ़ पानी ही उपलब्ध नहीं कराया जाए, बल्कि पानी की गुणवत्ता पर निगरानी रखने की भी व्यवस्था की गयी है। फील्ड टेस्ट किट का इस्तेमाल करके पानी की गुणवत्ता का परीक्षण करने के लिए 8.5 लाख से अधिक महिला स्वयं सेवकों को प्रशिक्षित किया गया है। वे नमूने इकट्ठे कर पानी की गुणवत्ता का परीक्षण करते हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आपूर्ति किया जा रहा जल निर्धारित मानकों के अनुसार है या नहीं। आज देश में 2,000 से अधिक जल परीक्षण प्रयोगशालाएँ हैं, जो पानी की गुणवत्ता का परीक्षण करने के लिए मामूली क़ीमत पर जनता के लिए उपलब्ध हैं। लेकिन एक बड़ा सवाल यह है कि पानी तो कम हो रहा है, जल संसाधनों पर जलवायु परिवर्तन का प्रतिकूल असर साफ़ नज़र आ रहा है। ऐसे में सरकारी मिशनरी क्या करेगी? नल लग रहे हैं, ठीक है। लेकिन उन नलों में सतत स्वच्छ पानी की व्यवस्था करना भी बहुत बड़ी चुनौती है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, अगले तीन दशक में अगर पानी का उपभोग एक फ़ीसदी की दर से भी बढ़ता है, तो दुनिया को गम्भीर जल संकट का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। इसका कारण जलवायु परिवर्तन और झील और जलाशयों का ख़त्म होना होगा। भारत में सन् 1947 में 24 लाख तालाब थे। लेकिन आज यह संख्या घटकर महज़ पाँच लाख रह गयी है। इसमें से 20 फ़ीसदी तालाब बेकार वाली सूची में आ चुके हैं। कई नदियाँ सूख चुकी हैं और कई सूखने के कगार पर हैं। नदियों में गन्दगी तो ख़ैर चरम पर है। इस ओर भी सरकार तथा लोगों को भी ध्यान देना चाहिए।