जम्मू-कश्मीर में परिसीमन प्रस्तावों पर बवाल

Jammu and Kashmir, July 09 (ANI): Delimitation commission members speak to the media, in Jammu on Friday. (ANI Photo)

जम्मू में छ:, कश्मीर में एक विधानसभा सीट बढ़ाने का हो रहा विरोध

कश्मीर में नई दिल्ली के विरोध का एक नया एजेंडा तैयार हो रहा है। परिसीमन में हिन्दू बाहुल जम्मू की छ: सीटें जबकि कश्मीर की महज़ एक सीट बढ़ाने के सुप्रीम कोर्ट की पूर्व न्यायाधीश रंजना देसाई की अध्यक्षता वाले परिसीमन आयोग के प्रस्ताव से घाटी में नाराज़गी है और इसे भेदभाव की नज़र से देखा जा रहा है। इस कोशिश के कुछ और भी मायने हैं। दरअसल केंद्र ने 5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 के तहत मिले विशेष दर्जे को संसद में क़ानून लाकर जब ख़त्म किया था, उसे राष्ट्रपति से भी मंज़ूरी मिल गयी थी। लेकिन इस पर अभी जम्मू-कश्मीर विधानसभा की मुहर लगवाया जाना बा$की है। घाटी के राजनीतिक दलों को लगता है कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार जम्मू-कश्मीर में मर्ज़ी की सरकार बनवाकर अपने इस असंवैधानिक फ़ैसले को वैध करवाना चाहती है। फ़िलहाल परिसीमन आयोग की सिफ़ारिशें घाटी में ग़ुस्से का कारण बन रही हैं और आने वाले समय में इसके ख़िलाफ़ राजनीतिक आन्दोलन की सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता। यहाँ तक कि उन्होंने इस परिसीमन के तहत विधानसभा चुनाव में हिस्सा लेने से इन्कार करने जैसी चेतावनी दी है।

परिसीमन आयोग के प्रस्ताव सामने आने के बाद अब यह साफ़ हो गया है कि केंद्र सरकार अगले साल के मध्य तक जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव करवा सकती है। ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल के महीनों में इस तरह के संकेत दिये हैं कि केंद्र जल्द-से-जल्द जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक प्रक्रिया बहाल करना चाहता है। ऐसे में अगला साल जम्मू-कश्मीर के लिए काफ़ी हलचल भरा हो सकता है। हालाँकि परिसीमन के प्रस्तावों पर जैसी प्रतिक्रिया विरोधी दलों की तरफ़ से आयी है, उससे यह संकेत मिलते हैं कि इन्हें स्वीकार नहीं किया जा सकता जाएगा। सम्भावना है कि परिसीमन आयोग की अध्यक्ष पूर्व न्यायाधीश रंजना देसाई 6 मार्च, 2022 तक अपनी रिपोर्ट फाइनल कर लेंगी। जम्मू सम्भाग में कठुआ, सांबा, उधमपुर, रियासी, राजोरी और किश्तवाड़ ज़िलों में एक-एक विधानसभा सीट और कश्मीर के कुपवाड़ा ज़िले में एक सीट बढ़ाने का प्रस्ताव है।

परिसीमन को लेकर प्रस्ताव सामने आने के बाद घाटी के राजनितिक दलों की तरफ़ से कड़ी प्रतिक्रिया देखने में आयी है। तमाम बड़ी पार्टियों नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस और अपनी पार्टी ने परिसीमन आयोग के इन प्रस्तावों पर नाराज़गी जतायी है। इन दलों का आरोप है कि भाजपा के राजनीतिक एजेंडे की आयोग की सिफ़ारिशों में साफ़ झलक दिख रही है। यहाँ तक कि सज्जाद लोन की पीपुल्स कॉन्फ्रेंस, जिसे राजनीतिक तौर पर भाजपा का क़रीबी माना जाता है; ने भी परिसीमन आयोग के प्रस्तावों पर बहुत कड़ी टिप्पणी की है। याद रहे महबूबा मुफ़्ती के नेतृत्व में चार साल पहले भाजपा-पीडीपी की साझी सरकार में सज्जाद लोन भाजपा के कोटे से मंत्री बने थे।

इस तरह देखा जाए, तो सज्जाद लोन ने वही रूख़ अख़्तियार किया है, जो मुख्य धरा की बड़ी पार्टियों नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी और जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी ने अपनाया है। जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी को लेकर अभी तक यही कहा जाता रहा है कि उसे नई दिल्ली ने अपना एजेंडा चलाने के लिए खड़ा किया है। इन दलों ने जो सबसे तल्ख़ बात कही है, वह यह है कि परिसीमन यदि वर्तमान प्रस्तावों के आधार पर आगे बढ़ाया जाता है, तो यह दल विधानसभा के भविष्य में होने वाले चुनाव में शामिल नहीं होंगे। नेशनल कॉन्फ्रेंस के फ़ारूक़ अब्दुल्ला ने तो परिसीमन आयोग की रिपोर्ट पर दस्तख़त करने से ही मना कर दिया।

 

क्या हैं प्रस्ताव?

परिसीमन आयोग ने अपने प्रस्तावों में जम्मू-कश्मीर विधानसभा में सात सीटें बढ़ाने का प्रस्ताव दिया है। इनमें छ: जम्मू और एक कश्मीर में बढ़ायी जाएँगी। इस संशोधन के बाद विधानसभा में सीटों की संख्या 83 से बढ़कर 90 हो जाएगी। इस परिवर्तन के बाद विधानसभा की कुल 90 सीटों में से 43 जम्मू में, जबकि 47 सीटें कश्मीर में होंगी। विधानसभा की 87 सीटें हैं। प्रस्ताव का अब कश्मीर के ग़ैर-भाजपाई दल कड़ा विरोध कर रहे हैं।

पीडीपी की अध्यक्ष ने फोन पर ‘तहलका’ से बातचीत में कहा- ‘आयोग के प्रस्ताव महज़ धार्मिक और क्षेत्रीय आधार पर लोगों को बाँटने की भाजपा की कोशिशों का हिस्सा हैं। इन भाजपा के राजनीतिक हित साधने के लिए तैयार किया गया है। हमें यह क़तर्इ मंज़ूर नहीं हैं। इसका मक़सद साफ़ तौर पर जम्मू-कश्मीर में एक ऐसी सरकार बनाने का है, जो अगस्त, 2019 के अनुच्छेद-370 के अवैध और असंवैधानिक फ़ैसले को वैध करेगा।‘

याद रहे मोदी सरकार ने अगस्त, 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 वापस लेकर उसका विशेष दर्जा ख़त्म कर दिया था। इसके बाद उसने इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बाँट दिया था। जिनमें जम्मू-कश्मीर विधानसभा सहित जबकि लेह (लद्दाख) को बिना विधानसभा बनाया था।

भाजपा के क़रीब माने जाने वाले पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के प्रमुख सज्जाद लोन ने कहा- ‘आयोग के प्रस्ताव पूरी तरह से नामंज़ूर हैं। यह वे पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं और उन सब लोगों के लिए बड़ा झटका हैं, जो देश के लोकतंत्र पार भरोसा रखते हैं।‘

पूर्व मंत्री अल्ताफ़ बुख़ारी की अध्यक्षता वाली जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी ने भी आयोग के प्रस्ताव को ख़ारिज किया है। बुख़ारी ने कहा- ‘अपनी पार्टी जनसंख्या और ज़िलों के आधार पर बिना किसी पूर्वाग्रह के निष्पक्ष परिसीमन की माँग करती है।‘

हालाँकि भाजपा इन सिफ़ारिशों को सही बता रही है। राज्य से पार्टी सांसद और केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने बैठक के बाद कहा- ‘आयोग ने अच्छा काम किया है। किसी भी पक्ष से कोई आपत्ति नहीं थी। अब परिसीमन आयोग ने सीट संख्या बढ़ाकर 90 करने का प्रस्ताव दिया है। उन्होंने अलग-अलग ज़िलों की जनसंख्या, पहुँच, स्थलाकृति और क्षेत्र के आधार पर वस्तुनिष्ठ मापदंडों का पालन किया है। मुझे नहीं लगता कि कोई इससे असन्तुष्ट होगा। कोई भी राजनीतिक दल इसमें दोष नहीं ढूँढ सकता।‘

घाटी के सबसे बड़े दल नेशनल कॉन्फ्रेंस ने इस पर कहा- ‘प्रस्तावों से साफ़ ज़ाहिर है कि इसमें दुर्भावनापूर्ण इरादे से तथ्यों को ग़लत तरीक़े से पेश किया गया है। हमने परिसीमन आयोग के मसौदे पर सीट बँटवारे की पक्षपाती प्रक्रिया पर अपनी नाराज़गी स्पष्ट रूप से व्यक्त की है। हमारी पार्टी इस रिपोर्ट पर हस्ताक्षर नहीं करेगी।‘

दरअसल परिसीमन आयोग ने घाटी के दलों के साथ दूसरी बैठक के बाद एक बयान जारी करके कहा था कि हम सहयोगी सदस्यों के सहयोग की सराहना करते हैं। आयोग ने केंद्र शासित प्रदेश का दौरा किया और बड़ी संख्या में लोगों से मुलाक़ात की और उन्होंने आश्वासन दिया कि परिसीमन के काम में सभी आवश्यक सहायता प्रदान की जाएगी। सुप्रीम कोर्ट की की पूर्व न्यायाधीश रंजना देसाई की अध्यक्षता वाले आयोग की इसे लेकर बैठकें हुई हैं। जम्मू-कश्मीर के पाँच लोकसभा सदस्य आयोग के सहयोगी सदस्य और मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा इसके पदेन सदस्य हैं।

दूसरी बैठक में उप चुनाव आयुक्त चंद्र भूषण कुमार ने सहयोगी सदस्यों के समक्ष प्रजेंटेशन देते हुए बताया कि पिछले परिसीमन के बाद से ज़िलों की संख्या 12 से बढ़कर 20 और तहसीलों की संख्या 52 से 207 हो गयी है। सूबे में ज़िलेवार जनसंख्या घनत्व किश्तवाड़ में 29 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर से लेकर श्रीनगर में 3,436 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी तक है। इन सभी को ध्यान में रखते हुए, परिसीमन आयोग ने सभी 20 ज़िलों को तीन व्यापक श्रेणियों ए, बी और सी में वर्गीकृत किया है, जिसमें ज़िलों को निर्वाचन क्षेत्रों के आवंटन का प्रस्ताव करते हुए प्रति विधानसभा क्षेत्र की औसत आबादी का 10 फ़ीसदी (प्लस/माइनस) का अन्तर दिया गया है। साथ ही आयोग ने कुछ ज़िलों के लिए एक अतिरिक्त निर्वाचन क्षेत्र बनाने का भी प्रस्ताव किया है, ताकि अंतरराष्ट्रीय सीमा पर उनकी दुर्गम परिस्थितियों के कारण अपर्याप्त संचार और सार्वजनिक सुविधाओं की कमी वाले भौगोलिक क्षेत्रों के प्रतिनिधित्व को सन्तुलित किया जा सके। दिलचस्प यह भी है कि जम्मू-कश्मीर में पहली बार जनसंख्या के आधार पर 90 सीट में से अनुसूचित जनजातियों के लिए नौ सीटें आवंटित करने का प्रस्ताव है। अनुसूचित जाति के लिए सात सीटें प्रस्तावित हैं। यहाँ यह भी महत्त्वपूर्ण है कि पहले की ही तरह विधानसभा की 24 सीट ख़ाली रखी जाएंगी जो पाकिस्तान के क़ब्जे वाले कश्मीर (पीओके) के तहत आती हैं। भारत पीओके को अपना हिस्सा बताता है।

अब आयोग राजनीतिक दलों से सीट संख्या में प्रस्तावित वृद्धि पर 31 दिसंबर तक अपने विचार लेगा उसके बाद अपना फ़ैसला सुनाएगा। बहुत ज़्यदा सम्भावना है कि यह वर्तमान प्रस्तावों के आधार पर ही होगा। याद रहे 5 अगस्त, 2019 में संसद में जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन विधेयक के पारित होने के बाद फरवरी 2020 में परिसीमन आयोग की स्थापना की गयी थी। इसे एक साल में अपना काम पूरा करने को कहा गया था, लेकिन इस साल मार्च में इसे एक वर्ष का विस्तार दिया गया, क्योंकि कोविड-19 महामारी के कारण काम पूरा नहीं हो सका। आयोग को केंद्र शासित प्रदेश में संसदीय और विधानसभा क्षेत्रों को फिर से निर्धारित करने का काम सौंपा गया है। आयोग ने इस साल 23 जून को एक बैठक की थी, जिसमें जम्मू और कश्मीर के सभी 20 उपायुक्तों ने भाग लिया था। इस दौरान विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों को भौगोलिक रूप से अधिक सुगठित बनाने के लिए विचार मांगे गए थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी जून में जम्मू-कश्मीर के नेताओं के साथ एक बैठक के दौरान कहा था कि परिसीमन की जारी क़वायद जल्द पूरी होनी चाहिए, ताकि एक निर्वाचित सरकार स्थापित करने के लिए चुनाव हो सके। लिहाज़ा यह साफ़ है कि परिसीमन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद अगले साल के मध्य तक केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव करवा सकती है।

पिछले विधानसभा चुनाव के नतीजे

यहाँ यह जानना भी दिलचस्प है कि पिछले विधानसभा चुनाव के क्या नतीजे रहे थे। हालाँकि हाल के महीनों में इस स्थिति में बदलाव आया है क्योंकि अनुच्छेद-370 ख़त्म होने के बाद स्थिति बदली है। जम्मू में लोगों की समस्यायों में इज़ाफ़ा हुआ है जिससे उनमें दिसंबर में दूसरे पखबाड़े जम्मू में लोंगों को लगातार दो दिन तक बिजली नहीं मिली। उनका कहना है कि अनुच्छेद-370 हटाने का राजनीतिक मक़सद भले रहा हो उन्हें इसका कोई फ़ायदा नहीं मिला। उनकी समस्याएँ जस-की-तस ही हैं।

वैसे पिछले विधानसभा चुनाव में पीडीपी को सबसे ज़्यदा 28, भाजपा को 25, नेशनल कॉन्फ्रेंस को 15 और कांग्रेस को 12 सीटें मिलीं, जबकि सज्जाद लोन की पार्टी को 2 सीटें मिली थीं। भाजपा को सबसे ज़्यदा सीटें जम्मू में मिलीं, जहाँ हिन्दुओं का प्रभाव है। साल 2014 में भाजपा बहुमत से 44 सीटें कम थी। अब परिसीमन के बाद भाजपा को लाभ मिल सकता है, बशर्ते उसे जम्मू में एकतरफ़ा समर्थन मिले। यह ज़्यदा सम्भव नहीं दिखता। जम्मू में एससी और एसटी के बूते भाजपा अगले चुनाव में 45 सीटों का सपना देखा रही है। भाजपा का कहना है कि जम्मू 26,293 वर्ग किलोमीटर में फैला है और कश्मीर 15,948 वर्ग किलोमीटर में और इसलिए परिसीमन केवल जनसंख्या नहीं, बल्कि इला$के को ध्यान में रखते हुए करना चाहिए।

देखें तो सज्जाद लोन जैसे सहयोगियों के बूते भाजपा कश्मीर में भी अपना प्रभाव बढ़ाना चाहती है। उसने इसकी भरसक कोशिश की है। लेकिन डीडीसी के चुनावों में उसे उसे कोई उत्साहजनक नतीजे नहीं मिले थे। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष रवींदर रैना भी इसमें ख़ास कुछ नहीं कर पाये हैं। भले वो काफ़ी सक्रिय दीखते हैं। गुज्जर और बक्करवाल समुदाय को अपने साथ जोडऩा चाहते हैं। अनुसूचित जनजाति से भाजपा ने वादा किया है कि उनका जीवन स्तर सुधर जाएगा।

 

प्रस्तावों का क्या असर होगा?

देखें तो 2011 की जनगणना के मुताबिक, जम्मू की आबादी क़रीब 53.72 लाख है, जबकि कश्मीर की जनसंख्या क़रीब 68, 88,475 है। फ़िलहाल विधानसभा में कश्मीर की 46 और जम्मू से 37 सीटें हैं। आयोग ने अब जम्मू-कश्मीर में सीटों की संख्या बढ़ाकर 90 करने का प्रस्ताव किया है।

नये प्रस्ताव के मुताबिक, जम्मू में अब 43 सीटें हो जाएँगी, जबकि कश्मीर में यह आँकड़ा 47 हो जाएगा। आयोग का कहना है कि उसने जनसंख्या, ज़िलों के भूगोल और सामाजिक सन्तुलन को ध्यान में रखते हुए ये सिफ़ारिशें दी हैं। परिसीमन आयोग के प्रजेंटेशन के दौरान डिप्टी इलेक्शन कमिश्नर चंद्र भूषण कुमार ने कहा कि पिछली बार हुए परिसीमन के बाद से अब तक ज़िलों की संख्या 12 से बढ़कर 20 हो गयी है। इसके अलावा तहसीलें भी अब 52 से बढ़कर 207 हो गयी हैं।

सन् 2011 की जनगणना के मुताबिक, कश्मीर में 68,88, 475 जनसंख्या है, यह राज्य की क़रीब 54.93 फ़ीसदी आबादी है। घाटी में 46 सीटें हैं, जो कि विधानसभा में प्रतिनिधित्व के हिसाब से 52.87 फ़ीसदी हैं। जम्मू में 53,78,538 लोग रहते हैं। वहाँ 37 सीटें और वहाँ प्रतिनिधित्व 42.52 फ़ीसदी है। कश्मीरी पार्टियों की माँग है कि सीटों का बँटवारा जनसंख्या के आधार पर होना चाहिए। घाटी की राजनीतिक पार्टियाँ तर्क देती हैं कि कश्मीर घाटी की आबादी जम्मू के मुक़ाबले 15 लाख ज़्यदा है और ऐसे में इसे विधानसभा में ज़्यदा प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। याद रहे भाजपा ने अपने चुनावी घोषणा-पत्र में अनूसूचित जनजाति को आरक्षण देने की बात कही थी। जम्मू-कश्मीर में इनकी आबादी 11.9 फ़ीसदी है, और भाजपा की इन पर वोटों के लिहाज़ से नज़र है। इनके लिए परिसीमन आयोग ने 9 सीटों का प्रस्ताव दिया है। इनकी सबसे ज़्यदा आबादी जम्मू रीज़न में ही है, यानी क़रीब 70 फ़ीसदी और कश्मीर में यह आँकड़ा 30 फ़ीसदी का है। इनमें गुज्जर बक्करवाल, सिप्पी और गड्डी है। अनुसूचित जाति के लिए 7 सीटों का प्रस्ताव रखा है। राज्य में इनकी आबादी 9,24, 991 है और यह आबादी का 7.38 फ़ीसदी हैं। कश्मीर घाटी में इनकी तादाद बेहद कम है।

इस मसले पर जम्मू-कश्मीर में पाँच क्षेत्रीय राजनीतिक दलों वाला गुपकार गठबन्धन भी सक्रिय हैं। इसके अध्यक्ष एनसी नेता फ़ारूक़ अब्दुल्ला हैं, जिन्होंने कहा कि वो समूह के साथ-साथ अपनी पार्टी के सहयोगियों को आयोग के विचार-विमर्श के बारे में जानकारी देंगे। उन्होंने कहा कि हम पहली बार बैठक में इसलिए शामिल हुए; क्योंकि हम चाहते थे कि जम्मू-कश्मीर की जनता की आवाज़ सुनी जाए। अब्दुल्ला ने कहा कि परिसीमन आयोग को अपनी राय भेजने से पहले अपने पार्टी नेताओं के साथ मशविरा किया जाएगा।

यहाँ माना जाता है कि परिसीमन के ज़रिये भाजपा जम्मू में अपनी स्थिति को और मज़बूत करना चाहती है। कश्मीर में उसका आधार न के बराबर है। हिन्दुओं के प्रभाव वाले जम्मू में सीटें बढ़ती हैं तो भाजपा को लगता है कि इससे उसे लाभ मिलेगा जहाँ कांग्रेस का भी ख़ासा प्रभाव है। भाजपा का अब सीधा मंतव्य सत्ता में आकर सूबे में अपना मुख्यमंत्री बनाना है। जम्मू में सीटें बढ़ती हैं तो इसका फ़ायदा भाजपा को पहुँचेगा, क्योंकि वह यहाँ के वोट बैंक पर ही निर्भर है। हालाँकि अभी भी यह इतना आसान नहीं दिखता। पिछले विधानसभा चुनाव में घाटी में भाजपा एक भी सीट नहीं जीत सकी थी।

 

“परिसीमन का प्रस्तावित मसौदा अस्वीकार है। नयी विधानसभा में छ: सीटें जम्मू के लिए और एक सीट कश्मीर के लिए है। यह जनगणना 2011 की जनसंख्या के आधार पर सारगर्भित नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि आयोग ने भाजपा के एजेंडे के अनुसार सिफ़ारिशों को तय करने की अनुमति दी है, न कि आँकड़ों की; जिस पर न केवल विचार किया जाना था, बल्कि उसी के अनुरूप परिसीमन होना था। वादा किया गया था कि परिसीमन वैज्ञानिक दृष्टिकोण से किया जाएगा; लेकिन यह इसके बिल्कुल विपरीत है।’’

                                 उमर अब्दुल्ला

पूर्व मुख्यमंत्री और एनसी अध्यक्ष

 

“परिसीमन आयोग के जम्मू सम्भाग में छ: सीटें और कश्मीर में एक सीट बढ़ाने के प्रस्ताव पर ग़ौर किया जाएगा और 31 दिसंबर तक आयोग को सुझाव दे देंगे। प्रस्ताव तैयार करने में आयोग ने काफ़ी मेहनत की है। जम्मू-कश्मीर में हर क्षेत्र को विधानसभा में पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने का प्रयास किया गया है।’’

                          जुगल किशोर शर्मा

भाजपा सांसद, जम्मू

 

“एससी और एसटी के लिए तो सीटें पहले से रिजर्व हैं। जहाँ तक परिसीमन की बात है तो इसे आबादी के आधार पर होना चाहिए। साल 2011 की जनगणना के अनुसार जम्मू और कश्मीर की आबादी 1.22 करोड़ है। आबादी के लिहाज़ से तो परिसीमन नहीं हो रहा।’’

                                   गुलाम अहमद मीर

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष