जम्मू-कश्मीर में नये भूमि कानून से बदलेगी फिज़ा!

जम्मू-कश्मीर में नये भूमि कानून की अधिसूचना जारी होने के साथ ही सियासत नये सिरे से गरमा गयी है। 70 साल से अधिक समय से कायम भूमि कानूनों को केंद्र सरकार की ओर से खत्म करने को कश्मीरी नेताओं ने बड़ा मुद्दा बना दिया है। इस एकीकृत करने वाले फैसले से केंद्र शासित प्रदेश के लोगों से मिली-जुली प्रतिक्रिया मिली है।

यह कदम जम्मू-कश्मीर से 5 अगस्त, 2019 को संविधान के अनुच्छेद-370 और 35(ए) के मिले विशेष दर्जा को खत्म किये जाने के एक साल बाद आया है। इस पर स्थानीय लोगों की राय थी कि बाहरी आकर ज़मीन पर कब्ज़ा कर लेंगे। इस प्रावधान के रहते भारत के भी राज्य के बाहर के लोग जम्मू-कश्मीर में ज़मीन नहीं खरीद सकते थे।

तमाम आशंकाओं के बावजूद राजौरी और पुंछ के लोग भी इस फैसले से खुश हैं। यहाँ के लोगों को उम्मीद है कि अब उनके क्षेत्र में केंद्र की बड़ी विकास परियोजनाएँ लगेंगी, जिससे क्षेत्र में रोज़गार के मौके मिलेंगे। नयी व्यवस्था के तहत केंद्र शासित प्रदेश में गैर-कृषि भूमि खरीदने के लिए कोई अधिवास या स्थायी निवासी प्रमाण-पत्र की आवश्यकता नहीं है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सभी भारतीय नागरिकों द्वारा जम्मू-कश्मीर में ज़मीन खरीदने का अधिकार प्रदान करने का रास्ता खोल दिया है और इसके लिए रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम-2016 को भी अधिसूचित किया है। जम्मू-कश्मीर अलगाववाद भूमि अधिनियम (पाँचवाँ संवत् 1995), जम्मू और कश्मीर बड़ा भू-सम्पदा उन्मूलन अधिनियम (17वाँ संवत् 2007), जम्मू और कश्मीर आम भूमि (विनियमन अधिनियम), 1956 को निरस्त कर दिया गया है। जम्मू और कश्मीर समेकन होल्डिंग्स अधिनियम-1962, जम्मू और कश्मीर बाढ़ के मैदान क्षेत्र (विनियमन और विकास) अधिनियम, जम्मू और कश्मीर भूमि सुधार योजना अधिनियम (1972 का 24वाँ), जम्मू और कश्मीर कृषि होल्डिंग अधिनियम के विखण्डन की रोकथाम अधिनियम व अन्य भूमि से जुड़े अधिनियम अब लागू नहीं होंगे।

आर्थिक समृद्धि

फेडरेशन ऑफ इंडस्ट्रीज जम्मू (एफओआईजे) के अध्यक्ष ललित महाजन इस फैसले का स्वागत करते हुए कहते हैं कि इससे स्थानीय और बाहरी दोनों के लिए एक जीत की स्थिति होगी। महाजन ने कहा कि भूमि कानूनों में संशोधन निश्चित रूप से यहाँ औद्योगिक विकास को बड़ा बढ़ावा देगा। राज्य में औद्योगिक क्षेत्र, स्वास्थ्य, चिकित्सा शिक्षा, पर्यटन उद्योग, रियल एस्टेट और अन्य क्षेत्र में भारी निवेश के रास्ते खुलेंगे, जो स्थानीय युवाओं को निजी क्षेत्र में रोज़गार के अवसर प्रदान करेंगे।

सम्भावनाएँ

पर्यटन पिछड़े क्षेत्रों के विकास में एक अहम िकरदार अदा करता है और पूरे जम्मू-कश्मीर में इसकी अपार सम्भावनाएँ हैं। ज़मीन खरीद का रास्ता खुलने से निजी व्यक्तियों और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से निवेश आयेगा, जिससे अर्थ-व्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा। शिक्षा संस्थाओं का निर्माण करके यहाँ पर युवाओं को पढऩे के लिए मौके प्रदान किये जा सकते हैं। निवेश में वृद्धि से रोज़गार के अवसर बढ़ेंगे और राज्य में सामाजिक-आर्थिक बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करने में मदद मिलेगी। राजौरी शहर के एक स्थानीय दुकानदार ने नये भूमि संशोधन का स्वागत कर कहा कि अनुच्छेद- 370 के खात्मे से सड़कों और संचार सुविधाओं का तेज़ी से विस्तार देखा गया है। कई स्कूलों और कॉलेजों को अपग्रेड किया गया। हालाँकि यहाँ पर लोग नये बदलाव का स्वागत कर रहे हैं; पर जम्मू-कश्मीर में 5 अगस्त, 2019 के बाद से हाई-स्पीड मोबाइल इंटरनेट सेवाओं के बन्द होने के बाद छात्र और युवा हथियार उठा रहे हैं। पिछले साल से, जबसे कम्युनिकेशन सुविधा से राज्य के लोगों को महरूम किया गया है; छात्र और शिक्षक ज़्यादा इससे पीडि़त हैं। जम्मू के युवाओं का कहना है कि देश में नौकरी के अवसरों से भी अपने आपको वंचित रख रहे हैं; क्योंकि इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध नहीं है और कोरोना-काल में ज़्यादातर अवसर ऑनलाइन ही मयस्सर हैं।

कोविड-19 के दौरान छात्र सबसे ज़्यादा पीडि़त हैं; जबकि उनके शैक्षणिक संस्थानों को वर्चुअल कक्षाओं में स्थानांतरित कर दिया गया है। वे कक्षाएँ लेने में खुद को अक्षम पाते हैं; क्योंकि राज्य में सभी के पास ब्रॉडबैंड सेवाएँ नहीं हैं। 12वीं कक्षा के छात्र धनुष शर्मा कहते हैं कि कश्मीर के पापों का भुगतान जम्मू को करना पड़ रहा है। सरकार को चाहिए कि जम्मू में हाई स्पीड इंटरनेट सेवा तत्काल बहाल करे।

11 भूमि कानून किये गये निरस्त

सरकार ने जम्मू-कश्मीर के 11 भूमि कानूनों को निरस्त कर दिया है, जिसमें आधुनिक, प्रगतिशील और लोगों के अनुकूल प्रावधानों वाले कानून के लिए अधिसूचना जारी की है। नये भूमि कानून जम्मू-कश्मीर में 90 फीसदी से अधिक भूमि को न केवल बाहरी लोगों से सुरक्षा प्रदान करेंगे, बल्कि कृषि क्षेत्र को बढ़ावा, तेज़ी से औद्योगिकीकरण, आर्थिक विकास में सहायता करने और जम्मू-कश्मीर में नौकरियाँ पैदा करने में भी मदद करेंगे। जम्मू-कश्मीर सरकार के प्रवक्ता और प्रमुख सचिव सूचना रोहित कंसल ने टिप्पणी की कि पुरानी कृषि आधारित अर्थ-व्यवस्था की सेवा के लिए निरस्त कानून बनाये गये थे और आधुनिक आर्थिक ज़रूरतों के लिए संशोधित किये जाने की आवश्यकता थी। नये भूमि कानून बाहरी लोगों के लिए भूमि खरीदने के लिए पर्याप्त सुरक्षा प्रदान किये जाने के साथ ही आधुनिक और प्रगतिशील हैं। इसी तर्ज पर कई नये कानून, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखण्ड जैसे अन्य राज्यों में भी बनाये गये हैं। अब राजस्व बोर्ड का गठन करने, भूमि के उपयोग को विनियमित करने के लिए क्षेत्रीय नियोजन, अलगाव और रूपांतरण, भूमि पट्टे, समेकन और अनुबन्ध खेती के लिए प्रावधान हैं।

जम्मू क्षेत्र की बदल सकती है िकस्मत

जम्मू कश्मीर विश्वविद्यालय में समाज शास्त्र के पूर्व एचओडी प्रोफेसर हरिओम नये जम्मू-कश्मीर भूमि कानून को प्रगतिशील मानते हैं। वह कहते हैं- ‘जम्मू के सियासी दलों और सभी धर्मों के नेताओं को इस अवसर पर उठना चाहिए और जम्मू क्षेत्र के नेताओं जम्मू-कश्मीर के चंगुल से आज़ाद होने के  स्थायी समाधान के लिए काम करना चाहिए। मैं उन कथित नेताओं से पूछना चाहता हूँ, जिन्होंने अक्टूबर, 1949 में महाराज हरिसिंह के जम्मू-कश्मीर को अनुच्छेद 306-ए (अनुच्छेद 370) को अपनाकर राज्य को मुख्यधारा से दूर कर दिया था और शेख अब्दुल्ला की चाहत के मुताबिक ही काम हुआ था। खास प्रावधान से राजनीति के लिए उन्मुखीकरण और डोगरों की विशिष्ट पहचान खत्म की गयी? उन्होंने कहा कि सन् 1950 में डोगरा महाराजा हरि सिंह के कृषि कानूनों को क्षतिपूर्ति के बिना डोगरा समुदाय से कम से 5.4 लाख लोगों से भूमि छीनकर शेख अब्दुल्ला के लोगों को दे दी थी। अब नये कानून में इसे वापस लेने का रास्ता खुल सकता है।’

प्रो. हरिओम कहते हैं कि दुर्भाग्य से जम्मू-कश्मीर की सियासी पार्टियाँ- नेशनल कॉन्फ्रेंस, कांग्रेस, पीडीपी और जेकेएपी नये भूमि कानून के खिलाफ आवाज़ बुलंद कर रही हैं। वे गुपकारियों की भाषा बोल रही हैं, जिनके पाकिस्तान समर्थक और चीन समर्थक होने की बात अच्छी तरह से जानी जाती है और उनका एजेंडा जम्मू प्रान्त के राष्ट्रवादी और शान्तिप्रिय लोगों के बीच भय की भावना पैदा करना है। यहाँ यह उल्लेख करना उचित है कि जम्मू प्रान्त में बेरोज़गार युवाओं की संख्या सबसे अधिक है; जबकि जम्मू-कश्मीर में सरकारी और अर्ध-सरकारी प्रतिष्ठानों में 4.5 लाख नौकरियों में से कश्मीरी युवा पहले से ही लगभग 3.80 लाख हैं। जम्मू के युवा केवल 70,000 नौकरियों पर सेवाएँ दे रहे हैं। कश्मीर में बेरोज़गारी की दर 30 फीसदी से कम है। जम्मू क्षेत्र में यह दर 69 फीसदी से अधिक है। निष्पक्ष आँकड़े देखेंगे, तो पाएँगे कि जम्मू प्रान्त की जनसंख्या कश्मीर की तुलना में कम-से-कम 8 से 10 लाख अधिक है।

नये संशोधनों का स्वागत है

जम्मू स्थित एनजीओ आईआईकेजेयूटी के अध्यक्ष और वकील अंकुर शर्मा ने जम्मू की जनसांख्यिकी को बदलने की कोशिश करने वालों के खिलाफ अभियान का समर्थन करते हुए नये संशोधनों का स्वागत किया है और कश्मीर केंद्रित राजनेताओं पर जम्मू क्षेत्र के राज्य प्रायोजित जनसांख्यिकीय अतिक्रमण में शामिल होने का आरोप लगाया है।

यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें नौकरी के लिए खतरा है? क्योंकि जम्मू में पहले से ही रोज़गार की कमी है। उन्होंने कहा कि अब उन्हें कोई खतरा नहीं है। क्योंकि जो कोई भी निवेश करना चाहेगा, वह निश्चित रूप से जम्मू आयेगा; कश्मीर क्यों जायेगा? ध्यान देने वाली बात यह है कि सन् 2014 में वकील अंकुर शर्मा ने जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था और रोशनी अधिनियम के तहत राज्य की भूमि के आवंटन में अनियमितता के आरोप लगाये थे। रोशनी अधिनियम के तहत शीर्ष राजनेताओं और नौकरशाहों, प्रभावशाली व्यापारियों और उच्च रैंकिंग वाले सरकारी अधिकारियों को भूमि हस्तांतरण की अदालती निगरानी में जाँच की माँग की थी। आरोप है कि जम्मू शहर में बाज़ार दर से बहुत कम कीमत में मुसलमानों को 50 लाख कनाल ज़मीन आवंटित की गयी थी। हिन्दू बहुल क्षेत्र में पहले से ही मुस्लिम कॉलोनियों और बस्तियों का निर्माण किये जाने को जगह घेर ली गयी है। इससे जम्मू शहर में और आसपास मुस्लिम आबादी को फैलाया जा सके; साथ ही इस पर किसी का ध्यान न जा सके। शर्मा कहते हैं- ‘इससे सरकारी खजाने को 25,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। रोशनी अधिनियम को निरस्त करना जिहादी युद्ध को पराजित करने के लिए एक बड़ा कदम था; जो जम्मू क्षेत्र में जनसांख्यिकीय अतिक्रमण के रूप में शुरू होने वाला था। इससे अवैध कब्ज़ेदारों ने राज्य की भूमि पर बहुमंज़िला परिसर, महलनुमा इमारतें, आलीशान घर खड़े कर दिये थे। उन्हें बहुत कम राशि पर आवंटित किया गया।’

बयानबाज़ी से नहीं मिल रहे अच्छे संकेत

31 वर्षों से निर्वासित जीवन बिता रहे पनुन कश्मरी के संयोजक डॉ. अजय चुरंगू ने नये भूमि कानूनों का स्वागत करते हुए खुद को अपनी मातृभूमि यानी कश्मीर में झेलम नदी के उत्तर पूर्वी तट पर बसाने की माँग की है। उनकी भू-राजनीतिक आकांक्षाएँ और सन् 1991 से पहले वाली स्थिति के अनुसार की हैं। जब उनसे पूछा गया कि पहले पुनर्वास किया जाना चाहिए था, फिर नये कानूनों को लागू किया जाता? उन्होंने कहा कि बहुत-सी चीज़ें हैं, जिन्हें किया जाना चाहिए था, जैसे- समुदाय की मान्यता को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। अनुच्छेद-370 का खात्मा, राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बाँटना और जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) पर प्रतिबन्ध लगाना, निश्चित रूप से उम्मीदें जगाता है; लेकिन राज्य और केंद्र में ईमानदारी से बहाली की पहल पर बयानबाज़ी से अच्छे संकेत नहीं मिल रहे हैं। जब आप नरसंहार से इन्कार करते हैं, तो यह भी नरसंहार है, जो अपराध है। हिन्दुओं के कश्मीर से छोडऩे को मजबूर किया गया। निर्वासन में रहते हुए विस्थापित हिन्दुओं को अपने नरसंहार से इन्कार करना पड़ा। उन्होंने कहा कि वास्तविक समस्या को हाल ही में तब तक मान्यता नहीं दी गयी थी, जब तक कि जेकेएलएफ पर प्रतिबन्ध नहीं लगाया गया था और सरकार ने पहली बार स्वीकार किया कि जेकेएलएफ कश्मीरी पंडितों के नरसंहार के लिए ज़िम्मेदार था। उन्होंने कहा कि पनुन कश्मीर ने भारत सरकार को पहले ही हिन्दू नरसंहार और अत्याचार निरोधक बिल को सौंप दिया है और उम्मीद की है कि इस विधेयक पर विचार किया जाएगा और भारत की संसद इसे कानून का रूप प्रदान करेगी।