जन सहयोग से बदली तस्वीर

क्या हमारे देश के किसी सरकारी स्कूल में विश्व स्तर की सुविधाएँ उपलब्ध करवाई जा सकती है? स्कूल में लगभग सभी विषयों संबंधी विभिन्न प्रयोगशालाओं के साथ साथ बच्चों के खेलने के लिए सिंथेटिक टफऱ् युक्त मैदान, पुस्तकालय आदि सुविधाएं हो सकती है? छात्र-छात्रों के लिए आधुनिक ब्लैक बोर्ड और डेस्क हो सकते हैं? अमीर घरों के सदस्य अपने बच्चों के सरकारी स्कूल में प्रवेश के लिए बड़ी बड़ी सिफ़ारिशे लगाते हों और गरीब बच्चों को बिना सिफ़ारिश के प्रवेश मिलता हो। यह सब एक सपने जैसा लगता है। कम से कम ऐसा उदाहरण उत्तर भारत में कंही नहीं देखने को मिलता और लगभग असंभव सा लगता है, परन्तु यह सच है और केरल के कालीकट स्थित लड़कियों के सरकारी व्यावसायिक वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल (जीवीएसएसएस) में यह सारी सुविधाएँ उपलब्ध है। यह संभव हुआ है केरल के मुयमंत्री पी विजयन और उत्तरी कालीकट के विधायक प्रदीप कुमार की सोच के कारण। इसी सोच के कारण सीपीआई (एम) ने प्रदीप कुमार को कोषिक्कोड लोकसभा सीट से चुनाव हेतु चुनाव मैदान में उतारा है।

 कालीकट में यह एक मात्र स्कूल नहीं हैं, यहाँ पर बच्चों को विश्व स्तर की सुविधांए उपलब्ध करवाई जा रही हैं। बल्कि कालीकट में ही इस प्रकार के 10 स्कूल हैं, यहाँ सरकारी स्कूलों को निजी स्कूलों से बेहतर बनाने की मुहिम चलाई जा रही है। इस कार्य के लिए सारा पैसा सरकारी फ़ंड से ख़र्च नहीं किया जा रहा, बल्कि प्राईवेट कंपनियों और ग़ैर सरकारी संस्थाओं से भी पैसा लिया जा रहा है। कालीकट के 10 स्कूलों के लिए फैज़ल और शबाना फांउडेशन द्वारा 16 करोड़ रुपए की राशि उपलब्ध करवाई गई हैं। मुयमंत्री पी विजयन द्वारा कालीकट शहर के बदल रहे स्कूलों की रुपरेखा को देखते हुए बिना किसी भेदभाव के प्रदेश के सभी 140 विधायकों को पाँच पाँच करोड़ रुपए की राशि जारी कर उन्हें अपने-अपने क्षेत्र के किसी एक सरकारी स्कूल को विश्व स्तर का बनाने का आग्रह किया गया है।

प्रदीप कुमार ने बताया कि जब वह छोटे थे और शिक्षा ग्रहण कर रहे थे तब वह स्वंय ऐसे कई आंदोलनों में भाग ले चुके हैं, जोकि शिक्षा को प्राईवेट हाथों में देने के खिलाफ थे। ऐसे आंदोलनों के कई वर्षों बाद जब वह पहली बार विधायक बने तो उन्हें अपने सपने को साकार करने का अवसर मिल गया। उसके बाद विजय तो था सबसे बड़ी समस्या पैसे को लेकर सामने आई। तब ग़ैर सरकारी संस्थाओं को अपने इस मिशन के साथ जोड़ा गया, ताकि सरकारी स्कूल को विश्व स्तर का बनाया जा सके। प्रदीप कुमार ने बताया कि सबसे ज़्यादा समस्याओं का सामना मात्र पहले सरकारी स्कूल को अपग्रेड करने में ही आई, उसके बाद धीरे धीरे लोगों के सहयोग से सब कुछ ठीक होता चला गया।

प्रदीप कुमार ने बताया कि कालीकट स्थित लड़कियों के सरकारी व्यावसायिक वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल (जीवीएसएसएस) को विश्व स्तर का बनाने के लिए उन्होंने वर्ष 2008 में राज्य सरकार से अनुरोध किया, परन्तु राज्य सरकार ने यह कहते हुए फ़ंड देने से साफ़ इंकार कर दिया कि किसी एक सरकारी स्कूल को इतनी बड़ी राशि जारी करने का मतलब राज्य के अन्य सरकारी स्कूलों के साथ भेदभाव होगा। इसके बाद प्रदीप कुमार ने फ़ंड हेतु अपनी प्रपोज़ल राज्य नियोजन बोर्ड को भेजी, वहाँ से हरी झंडी तो मिल गई, परन्तु बहुत इंतज़ार के बाद भी फ़ंड नहीं आया। जिसके बाद फैज़ल और शबाना फांउडेशन जैसी ग़ैर सरकारी संस्थाओं का सहयोग लिया गया।

कालीकट स्थित लड़कियों के सरकारी व्यावसायिक वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल (जीवीएसएसएस) के बारे में प्रदीप कुमार ने बताया कि यह स्कूल लगभग 125 वर्ष पुराना है। कभी यहाँ अंग्रेज़ रहा करते थे। इस स्कूल को विश्व स्तर का बनाते हुए इस बात का विंशेष ध्यान रखा गया है कि इस भवन की जो पुरानी लुक है, उसमें किसी प्रकार का बदलाव न किया जाए। ताकि हैरिटेज बिल्डिंग की लुक बनी रहे। अब इस स्कूल में 3715 बच्चियाँ शिक्षा ग्रहण कर रही हैं।

फैज़ल और शबाना फांउडेशन की ओर से स्कूल में कार्य कर रही रोशन जॉन ने बताया कि इस समय स्कूल में शिक्षा ग्रहण करने वाली बच्चियों की संया 3700 का आँकड़ा पार कर गया है, जिस कारण मजबूरी में अब नए बच्चों को स्कूल में प्रवेश नहीं दिया जा रहा। यह स्कूल पाँचवी से बारहवी कक्षा की छात्राओं के लिए हैं, जिस कारण यहाँ 50 प्रतिशत प्रवेश सरकारी स्कूलों से आने वाले छात्राओं को ही दिया जाता है, जबकि 35 प्रतिशत सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों के लिए और शेष 15 प्रतिशत सीटें अन्य स्कूलों के बच्चों के लिए रिज़र्व रखी गई हैं।

हालाँकि वर्ष 2011 के आँकड़ों के अनुसार केरल में पढ़ें लिखे लोगों की संया देश में सर्वाधिक 94 प्रतिशत थी, जिसमें 92.07 प्रतिशत महिलाएँ थी, जबकि पुरुषों की संख्या 96.11 प्रतिशत पुरुष थे, लेकिन फिर भी मुयमंत्री पी विजयन का विजन है कि केरल के सभी सरकारी स्कूलों में विश्व स्तर की सुविधा उपलब्ध हो। उनका मानना है कि यह मानसिकता बदलनी चाहिए कि सरकारी स्कूल निजी स्कूलों से बेहतर नहीं हो सकते। सरकारी स्कूलों में विश्व स्तर की सुविधाएँ उपलब्ध नहीं करवाई जा सकती। उनका यह भी मानना है कि एक बच्चा अगर गरीब के घर पैदा हुआ है तो यह उसका क़सूर नहीं है, फिर वह अच्छे घरों के बच्चों को मिलने वाली सुविधाओं से वंचित क्यों रहे?