जनता फिर भी पूछेगी, कहां गया वह पैसा जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में सस्ता था तेल!

कुछ राज्यों में नवंबर-दिसंबर में चुनाव हैं। उसके बाद आम चुनाव होना है। वित्त मंत्री अरूण जेटली ने केंद्र की एक्साइज ड्य्रटी पेट्रोल और डीजल पर कुछ घटाई है। साथ ही राज्यों को कहा है कि वे भी कटौती करें। ईधन पर हो रही राजनीति पर रोशनी डाल रही हैं सुमन।

जनता के गुस्से को कुछ कम करने और 2019 के पहले तक एक बड़े कदम के तौर केंद्र ने ईधन की कीमत में कटौती डेढ़ रुपए प्रति लीटर कम किया है साथ ही यह भरोसा भी दिया है कि केंद्र सरकार का प्रयास पांच रुपए प्रति लीटर कटौती का है। वित्त मंत्री ने जो घोषणा की है उसके तहत एक्साइज ड्यूटी 1.5 प्रति लीटर कम की गई। तेल कंपनियां भी एक रुपए प्रति लीटर अलग कटौती कर रही हैं। उन्होंने जोड़ा कि वे राज्यों से भी यह अनुरोध कर रहे हैं कि वे वैट (वीएटी) टैक्सों में कटौती करके रुपए 2.5 प्रति लीटर कटौती करें इससे रुपए पांच मात्र की कटौती ईंधन में होगी। उन्होंने कहा कि इस तरह हमें उम्मीद है कि रुपए पांच मात्र की कटौती ईधन की कीमत में होगी।

बेसिक कीमत है रुपए 42 मात्र

भारत में प्रति लीटर ईधन की कीमत करों आदि के चलते लगभग दुगुनी हो जाती है। आज पेट्रोल यदि 90 रुपए प्रति लीटर की दर से मुंबई में है तो उसकी बेसिक कीमत तो महज रुपए 42 मात्र है। उदाहरण के लिए मध्यप्रदेश में पेट्रोल पर पहली अक्तूबर 2018 से 35.93 फीसद वैट लागू है। साथ ही प्रति लीटर डीजल पर यह 23.22 फीसद है। इसी तरह दिल्ली में ईधन में पेट्रोल की कीमतें 89.41 है। इस पर जो टैक्स है वह 43.97 प्रति लीटर हो इसके अलावा कच्चे तेल की कीमत, एक्सेचेज की दर फिर केंद्र की ओर से लगाई गई एक्साइज ड्यूटी केंद्र की और राज्यों से वैट के मुद्दे डीलर का कमीशन जो तेल कंपनियां लेती हैं। जब पेट्रोल पंप के मालिक इन सबको मिला देते हैं तो ईधन की कीमत लगभग दुगुनी हो जाती है। इंडियन आंएल कंपनी (आईओसी) की वेबसाइट के अनुसार, एक ग्राहक को दिल्ली में प्रति लीटर 79.15 प्रति लीटर की दर पर खरीदना पड़ता है जबकि डीलरों को यह रुपए 39.21 मात्र की दर से मिलता है।

पेट्रोल पर सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी 17.98 फीसद और इस पर राज्य वैट 17.86 फीसद है। इसी कारण पेट्रोल और डीजल को जीएसटी में लाने पर शोर है।

दक्षिण एशिया में सबसे ज्य़ादा

दरअसल पूरे दक्षिण एशिया में भारत में ईधन की कीमत भारत में सबसे ज्य़ादा है। उदाहरण के लिए पाकिस्तान में पेट्रोल रुपए 54.51 मात्र की दर पर है। बांग्लादेश में यह प्रति लीटर रुपए 75 मात्र है।

ईधन पर 2014 के बाद राजनीति अच्छी खासी बढ़ गई है। इसके चलते तेल कंपनियां, केंद्र और राज्य सरकारें खासा लाभ कमाने में लगी हैं। जबकि तेल की कीमतें अंतरराष्ट्रीय तौर पर कम हुई हैं। प्रतिदिन ईधन में हो रही थोड़ी थोड़ी बढ़ोतरी से उपभोक्ता खासा निराश हुआ है। इसका राजनीति पर भी खासा असर हुआ है। भाजपा के नेतृत्व की केंद्र सरकार विभिन्न राज्य सरकारों से रुपए 2.50 मात्र की कटौती का अनुरोध कर रही है। इस समय तकरीबन देश में उन्नीस राज्यों में भाजपा सरकारें हैं। माना जा रहा है कि ये सभी किसी न किसी तरह केंद्र सरकार का अनुरोध मान लेंगे। जबकि गैर भाजपा शासित राज्य सरकारों ने केंद्र सकार की यह सलाह मानने से इंकार कर दिया है। पहले जब दाम बढ़े थे तो केरल सरकार ने ईधन कीमतों में एक रुपए की कटौती और कर्नाटक सरकार ने दो रुपए  कम कर दिए थे। तब केंद्र सरकार ने एक पैसे की भी कटौती नहीं की। विपक्ष शासित राज्यों में दिल्ली, कर्नाटक, आंध्र, पश्चिम बंगाल और केरल हैं।

जब राज्य सरकारों की तेल कंपनियों ने पेट्रोल डीजल मूल्य दैनिक आधार पर ही रखने का फैसला लिया। इससे तो सोचा यह गया था कि कच्चे तेल के उतार-चढ़ाव का लाभ उपभोक्ता को मिलेगा। अंतरराष्ट्रीय तौर पर रुपए की तुलना में अमेरिकी डालर के उतार-चढ़ाव से एक्सचेंज दरों में उछाल आया इससे बाजार में साधारण उपभोक्ता को रुपए के लगातार कमजोर होने और अमेरिकी डालर के मजबूत होने का असर ईधन की कीमतों के भारत में ज्य़ादा होने में दिखा।

ईधन की कीमतों में लगातार उछाल ने देश में राजनीतिक विवाद को जन्म दे दिया है। केंद्र की भाजपा नेतृत्व की एनडीए सरकार ने पूरा ध्यान भारी टैक्स की वसूली पर ही रखा। इसी कारण जब केंद्र ने ईधन की कीमतों में कटौती की घोषणा की तो हिंदुस्तान पेटोलियम कारपोरेशन लिमिटेड के शेयर तत्काल बारह फीसद गिर गए। वित्त मंत्री की कीमतें के कमी कहने भर से यह नकारात्मक असर हुआ कि इस टैक्स कटौती से रुपए 10,500 मात्र का नुकसान हुआ। इसमें कोई संदेह नहीं कि तेल पर ऊँचे टैक्स की नीति से पिछले महीने से राजनीतिक विवाद छिड़ गया है क्योंकि वैश्विक तेल कीमतों में अब हो रही बढ़ोतरी से केंद्र सरकार के सामने कोई और चारा नहीं बचा। पूरी दुनिया में 2014 में जब तेल की कीमतें गिरीं तो केंद्र सरकार ने पेट्रोल पर रुपए 11.77 मात्र प्रति लीटर और डीजल पर 13.47प्रति लीटर नवंबर में नियत किया । 2016 तक नौ बार इसमें बढ़ोतरी हुई। पिछले चार साल में रुपए 99.184 करोड़ मात्र 2014-15 से 2017-18 में बढ़ कर 2,29,019 करोड़ मात्र हो गई।

फिर राज्यों ने भी पेट्रो आधारित उत्पादों पर भी वैट जुड़ा। जो रुपए 1,37,157 करोड़ से बढ़ कर रुपए 184091 मात्र करोड़ पर पहुंचा।

केंद्र और राज्य सरकारों ने मिलीभगत करके उपभोक्ताओं को अंतिम हद तक परेशान किया है। जबकि इन्हें मौका था कि ये एक्साइज ड्यूटी और कम कर ईधन की कीमत में काफी हद तक कटौती कर सकते थे। कीमतें इसलिए और भी बढ़ीं क्योंकि तेल कीमतों का अंतरराष्ट्रीय बेंचमार्क कुछ समय पहले ही 80 डालर प्रति बैरेल हुआ था। आज यह कीमत तीन गुनी हो गई है जो 2016 में 29 डालर प्रति बैरेल थी।

यहीं नहीं, ईरान पर दुबारा लगी अमेरिकी पाबंदी से भी यह खेल खासा गहराया। यूरोपीय देश, रूस और चीन भी ईरान समझौते के हिस्सेदार हैं। यह बात साफ नहीं है कि किस हद तक यूरोपीय कंपनियां अमेरिकी दबाव को बर्दाश्त कर सकेंगी और ईरान के साथ इनका व्यापार होगा। तेल की कीमतें इसलिए भी बढ़ीं क्योंकि रूस और सऊदी अरब ने तेल सप्लाई पर अपनी पकड़ और मजबूत कर दी।

ईधन की बढ़ी कीमतों से कुछ तो राहत हाल फिलहाल होगी लेकिन इस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। केंद्र ने एक राजनीतिक संदेश कुछ राज्यों को ज़रूर दिया है। आने वाले दिनों में पेट्रोल और डीजल कीमतों को जीएसटी में लाने को आवाज और भी तेज होगी। क्योंकि पहले केंद्र और राज्य सरकारें ऐतिहासिक तौर पर अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की सस्ती कीमतों से देश में अच्छी खासी कमाई कर रही थीं। अब वह दौर भी खत्म हो चुका है।

अब देखा यह जाना है कि यूपीए सार्वजनिक क्षेत्र तेल कंपनियां ईधन कंपनियों को सब्सीडी दे रहा था। या केंद्र ने रुपए 18 हजार करोड़ मात्र टैक्स की ऊँची दरों के नाम पर बटोरे। जबकि कच्चे तेल की कीमतें नीचे जा रही थी। इस पर बातचीत की जानी चाहिए। इन सबसे उपभोक्ता ही खुश होंगे क्योंकि राहत का लाभ उन्हें मिलेगा। कहा भी जाता है कि ‘ये दिल मांगे मोर। अब समय आ गया है कि ईधन की कीमतों पर राजनीतिक न हो।