छवि तार-तार हुई अमेरिका में

केंद्र में भाजपा के नेतृत्व में एनडीए सरकार 2014 में बनी। तब से जांच एजंसियों ने सिविल सोसाइटी संगठनों (सीएसओ) अधिकार संगठनों(राइट्स) पर राष्ट्रविरोधी होने का ठप्पा लगाना शुरू कर दिया है। यदि वे मानव अधिकारों के सरकार के दस्तावेज खंगाले तो पता चलता है कि जो जायज विरोध प्रदर्शन भी होते हैं उन पर भी नाक भौं सिकोड़ी जाती है। सिविल सोसाइटी के सदस्यों पर हर तरह से नज़र रखी जाती है और सोशल मीडिया पर आरोप और गालियों का सिलसिला जारी रहता है।

यह शायद मजबूरी ही कहलाएगी कि किसान, दलित, विश्वविद्यालयों और संबंधित कालेजों के छात्रों ने सड़क पर आकर आंदोलन छेड़ा। इतना ज्य़ादा तनाव है। सिविल सोसाइटी अब सामाजिक तौर पर महत्वपूर्ण मुद्दों पर संवाद नहीं कर पाती। जबकि पहले जहां तहां मुद्दों पर अलग-अलग बातचीत रखी थी। अपना मुद्दा वे रखते थे और लोग संवाद के जरिए एकजुट होने की कोशिश करते थे। अब मीडिया में जो दिखता है वह सिर्फ केंद्र सरकार की तारीफ, गाली-गलोच और घृणा भरी बातचीत है। उसमें गंदे आरोप और घृणित बातचीत और विपक्ष के नेताओं के अब तर्क -वितर्क हैं। दलित और महिलाओं के दमन की एक सी कहानियां हैं।

देश की सिविल सोसाइटी को 2014 से ही तमाम धार्मिक संगठन धर्मों को आधार बना कर कमजोर करने में जुटे हैं। सिविल सोसाइटी का मीडिया भी इस काम में उन्हें सहयोग दे रहा है। सिविल संस्थाओं में धार्मिक रु झान वाले संगठनों या उनके प्रतिनिधियों के लिए कोई जगह नहीं होती अब केंद्र में और दस राज्यों में उनकी सरकारें हैं तो ये संगठन किसी भी हालत में सिविल की सोसाइटी को मजबूत नहीं होने देंगे। आज देश की जनता देख रही है कि किस तरह धर्म, राय-बात, खाने-पीने, चलने-फिरने, लिखने-पढऩे और पहनावे आदि केा लेकर अंदर-बाहर किस तरह व्याख्यायित किया जाने लगा है। अब समाज में इतना अबोलापन, हिंसा, आतंक और संदेह इतना ज्य़ादा गहरा गया है कि समाज में हिंसा को थामने और सभ्याचार बनाने के लिए सिविल सोसाइटी ही पहल नहीं करती।

मुस्लिम समुदाय के खिलाफ क्रूर हिंसा की पहली वारदात 2015 में हुई। दादरी जिले में मोहम्मद अखलाख की हत्या से हुई थी। उस पर संदेह था कि उसने बछड़े की हत्या कर दी थी जो लापता था। उसे पीट-पीट कर मार डाला गया। उसके बेटे दानिश और दादी पर भी हमले किए गए। आज तक आरोपियों को सजा नहंी मिली।

इसके बाद 2016 में ऊना में दलितों पर हमले किए गए। मुसलमानों को भी नहीं बख्शा गया। आरोप था कि ये गाय ले जा रहे थे। सरकार चला रहे किसी भी मंत्री ने इन घटनाओं पर अफसोस नहीं जताया। लोगों का दिन दहाड़े जला कर मार डालना या हत्या कर देना उन जागरूक संस्थाओं का नित्यप्रति का काम हो गया। वजह यही थी कि न तो राज चला रहे मंत्री इन घटनाओं पर कुछ कहते और न पुलिस ही सामने आती।

यदि आंकड़े देखें तो 2018 के आधे साल में ऐसे लोग जो स्थानीय लोगों के दायरे में नहीं थे और किसी भी मकसद से मारे गए। लोगों की गिनती बहुत अधिक है। पीट-पीट कर मार देने के ढेरों वीडियो यूट्यूब और हवाट्सएप पर मिलते हैं जिनसे पता चलता है कि बे वजह लोगों को तब तक पीटा जाता रहा जब तक उनके प्राण पखेरू उड़ नहीं गए। आठ जून को दो बेजुबान नीलात्पल दास, ओडियो इंजीनियर और अभिजीत नाथ एक डिजिटल आर्टिस्ट असम के क्र्बी आंग्लांग जिले में भटक जाने पर सिर्फ राह पूछ रहे थे। उन्हें बाहरी मान कर और बच्चे उठाने वाला बतार कर दो -ढाई सौ लोगों की भीड़ ने पीट-पीट कर मार डाला कुछ लोग उन्हें पीटे जाते रहे थे बाकी लोग दहशत में दृश्य देखते रहे। मोबाइल से फोटो लेते रहे।

इसी साल संयुक्त राज्य अमेरिका के इलीनाएस के शिकागो के उपनगर लोकबार्ड में विश्व हिंदू कांग्रेस सात और आठ सितंबर को हुई। इस बैठक में नारेबाजी, मारपीट, और धर-पकड़ तक हुई। अमेरिकी जो भारत की संस्कृति के प्रति थोड़े भी जिज्ञासु होंगे इस घटना से उनके मन में सुरक्षा को लेकर अवश्य डर बैठ गया होगा। यह बैठक शुरू से ही विवादित रही। इसमें आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत को बीज भाषण देना था।

इस आयोजन के कर्ता धर्ता विश्व हिंदू परिषद के अमेरिका इकाई के अध्यक्ष अभय अस्थाना थे। आयोजन स्थल वेस्टिन होटल के बाहर प्रदर्शनकारी नारे लगा रहे थे ‘आरएसएस भारत छोड़ो, भारत को फासीवाद से बचाओÓ मानवता के खिलाफ अपराध करने वालों को सज़ा दोÓ। बैठक के दोनों दिन प्रदर्शन सड़कों पर हुए और हाल के अंदर जब किए गए तो प्रदर्शनकारी पांच महिलाओं के साथ मार-पीट की गई। उन्हें हाल के बाहर कर दिया गया। प्रदर्शनकारियों को गुरु द्वारे से लंगर दिया गया।

विश्व हिंदू सम्मेलन में भारत के उपराष्ट्रपति वेंकैयानायडू भी थे। पहले दिन सम्मलेन में छह प्रदर्शनकारी होटल के बालरूम में मौजूद लोगों के बीच थे। जैसे ही आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने बोलना शुरू किया, प्रदर्शनकारियों ने नारेबाजी शुरू कर दी ‘आरएसएस, वापस जाओ। इस कस्बे में आपकी ज़रूरत नहीं। आयोजकों के अनुसार प्रदर्शनकारी महिलाएं युवा थीं और वे दक्षिण एशियाई महिलाएं थीं। ये सभी एलायंस फार जस्टिस एंड एकाउंटैबिलिटीÓ की सदस्य थीं। इन्हें आयोजकों के स्वयं सेवकों ने लातें मारी उनके गले दबाए और इनसे मार-पीट की। बालरूम में बैठे अधेड़ और बुजृुर्ग कार्यकर्ता फौरन ‘भारतमाता की जयÓ का समूह गान करने लगे।

इस आयोजन में मौजूद ज्य़ादातर लोग ऊंची जातियों के हिंदू थे। इन लोगों ने प्रदर्शनकारियों को गंदा मुसलमान कहा और उन्हें मारने की धमकी भी दी। इस आयोजन में जो दरिंदगी दिखी उससे देश का नाम तो बदनाम हुआ ही साथ ही हिंदुओं की विचारधारा भी हिंसक है इसका इन लोगों ने परिचय दिया।

इस आयोजन में भाग लेने से इलिनॉएस राज्य के चुने गए सिनेटर राम विलिवालस और शिकागो एल्डरमैन अमेन पवार ने इंकार कर दिया। हवाई से पहली बार जीती अमेरिकी कांग्रेस वुमन तुलसी गाबर्ड ने इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करने से इंकार कर दिया था।