चुनाव आयोग ने आचार-संहिता के हनन पर मोदी-शाह को कभी नोटिस नहीं दिया

अशोक लवासा चुनाव आयोग में एक चुनाव आयुक्त हैं। चुनाव आयोग पैनेल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह के खिलाफ माडल कोड ऑफ कन्डक्ट आदर्श चुनाव संहिता हनन करने के आरोपों पर चार मई से कोई सुनवाई ही नहीं की।

आदर्श चुनाव संहिता के हनन के आरोपों पर चुनाव आयोग का पैनेल सुनवाई करता है। अमूमन शिकायत पर चुनाव में खड़ा उम्मीदवार उसकी पार्टी के नेताओं और सरकार आदि के व्यवहार की पड़ताल इस बैठक में होती है। लेकिन अशोक लवासा ने खुद को पैनेल से अलग कर लिया तो बैठक भी नहीं हुई। उनका कहना है कि चुनाव आयोग के फैसले के दायरे में जब असंतोष वाले नोट और माइनॉरिटी फैसले शामिल किए जाएंगे तभी  वे इसमें भाग लेंगे। चुनाव आयोग ने तमाम आरोपों से तीन मई को मोदी और शाह को मुक्त कर दिया था। इन फैसलों से लवासा असहमत थे। हालांकि उनकी असहमति को नकार कर आदेश जारी कर दिए गए।

कांग्रेस की नेता सुष्मिता सेन ने जब शाह मोदी के ऊपर आदर्श चुनाव संहिता का पालन न करने पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका देकर इस मुद्दे पर निर्देश चाहा तो चुनाव आयोग के हाथ-पैर फूल गए हैं।

महाराष्ट्र के नांदेड में छह अप्रैल को प्रधानमंत्री और शाह ने अपने भाषण में कहा था कि बहुसंख्यक अब वायनाड में अल्पसंख्यक हो गए हैं। वाराणसी में उन्होंने कहा कि पुलवामा में 40 सिपाहियों की हत्या का बदला 42 आतंकवादियों को  मार कर ले लिया गया है। शाह ने केरल में कहा था कि यह कह पाना कठिन है कि वायनाड केरल मेें है या पाकिस्तान में।

जानकारों के अनुसार लवासा ने मुख्य चुनाव आयुक्त को चार मई के बाद कई बार रिमाइंडर भेजे जिनमें मांग की कि अंतिम आदेशों के साथ ही माइनारिटी फैंसले या विरोधी टिप्पणियां भी रखी जाएं। लेकिन चुनाव आयोग ने चुनाव संहिता के हनन पर कोई आदेश ही जारी नहीं किया। चुनाव आयोग ने आचार संहिता के कोई आदेश जारी नहीं किया जबकि संबंधित पक्षों से कथित हनन पर सफाई ज़रूर मांग ली।

पहले कमिश्नर लवासा ने यह जानना चाहा था कि उनके विरोधी तर्कों को भी कमीशन की ओर से जारी आखिरी आदेशों का हिस्सा क्यों नहीं बनाया जा रहा है?

 पूर्व वित्त सचिव  रहे लवासा पहले भी चुनाव पैनेल के दूसरे दो सदस्यों सुनील अरोड़ा और सुशील चंद्र से असहमति जता चुके हैं, क्योंकि इन लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के खिलाफ आदर्श चुनाव संहिता के हनन की शिकायतो ंपर ‘क्लीन चिट’ जारी कर दी थी। जबकि इन मामलों पर लवासा चाहते थे कि मोदी को नोटिस जारी की जाए। दोनों ही अधिकारियों ने उसे नही माना। कम से कम ऐसी छह शिकयतें थीं जिसमें प्रधानमंत्री को ‘क्लीन चिट’ दी गई। एक मामले में  कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को बख्शा गया।

आदर्श चुनाव संहिता का पालन न करने की प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ कई शिकायतें आयोग के पास पहुंची थी। इनमें एक यह भी थी कि उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को ‘भ्रष्टाचारी नंबर एक’ कहा था। इस पर आायोग अभी भी शुभ दिन और शुभ घड़ी के इंतजार में है।

यह पूछने पर कि क्या आयोग उनकी (लवासा  की) गैर हाजिरी में भी बैठक कर सकता है। उन्होंने कहा कि नियमों में है कि बहुमत से जो फैसला हो उसे ही माना जाए तो उनकी गैर हाजिरी में भी फैसला हो सकता है।

चुनाव आयोग (कंडीशन्स ऑफ सर्विस ऑफ इलेक्शन कमिशनर्स  एंड ट्राजैक्शन ऑफ बिजिनेस) एक्ट 1991 के अनुसार यदि मुख्य चुनाव कमिश्नर और दूसरे चुनाव कमिश्नर में किसी मुद्दे पर राय-बात नहीं हो पाती तो बहुमत के आधार पर उसका समाधान हो। आयोग अपना कामकाज नियमित तौर पर बैठकों को करके करता है। तमाम चुनाव आधिकारियों को अपनी बात रखने का मौका मिलता है।

इस बार ऐसा लगा कि विपक्ष ने काफी पहले से न तो मतदाता सूचियों की तैयारी की और न चुनाव आयोग के अधिकारियों ने ही पूरी सूची को इक्कीसवीं सदी के अनुरूप बनाने की कोशिश की। नतीजा यह रहा कि भारत सरकार के निर्वाचन आयोग के पास कोई जवाब नहीं था न तो मतदाता सूची में नाम न होने पर और न ईवीएम (इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन) और वीवीपीएटी की उपलब्धता पर।

जानबूझ कर सुरक्षा दस्ते एक निर्वाचन क्षेत्र से दूसरी जगह जा सकें। इस तर्क पर सात चरण में इतने दिनों तक फैला कर चुनाव कराए गए। ऐसा लगा कि सुरक्षा दस्ते और ईवीएम नहीं बल्कि एक खास पार्टी के कार्यकर्ताओं की भारी खेप दूसरी जगह पहुंच कर काम संभालले इस लिहाज से यह व्यवस्था की गई। जब सब तब उजागर हुआ जब पता लगा कि चुनाव आयोग अपने ही एक

सदस्य के फैसले की अवेहलना कर रहा है। अब दुनिया भर में भारत के निर्वाचन आयोग की क्या छवि बनी है। इसका भी जायजा लिया जाना चाहिए।