चुनावी बांड पर रोक नहीं, लेकिन तीस मई को हिसाब दें- सुप्रीम कोर्ट

चुनावी खर्च में पारदर्शिता लाने के लिए राजनीतिक दलों को चुनावी बांड से धन दिए जाने का जो अंतरिम आदेश दिया है, वह बेहतर है। भाजपा के नेतृत्व की एनडीए सरकार ने चुनाव में ज़्यादा खवर्च न करने और पार्टियों को विभिन्न व्यवासायिक घरानों से मिलने वाले धन को चुनावी बांड में बदल कर देने की व्यवस्था की थी। चुनावी बांड के लिए जो दानकर्ता बैंको में आएंगे उनकी जानकारी सरकार को होगी लेकिन आम लोगों को नहीं। इस पूरे मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट करेगा। इसके खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने उन सभी राजनीतिक दलों को कहा है कि जिन्होंने चुनावी बांड के जरिए दान लिया है, वे 15 मई तक मिले धन और उसके खर्च का पूरा ब्यौरा 30 मई को सील कवर में चुनाव आयोग को दे दें। अदालत इस पूरे मामले पर गहराई से विचार करेगी। अदालत ने सभी राजनीतिक पार्टियों से कहा है कि ब्यौरा, हर चुनावी बांड की रकम, तारीख और उसके एवज में मिली रकम और खर्च दिया जाए।

माकपा और गैर सरकारी स्वंयसेवी संगठनों के संगठन और लोकतांत्रिक सुधार (एडीआर) ने चुनावी बांड की इस पूरी नीति पर सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका दायर की थी। चुनाव आयोग के अनुसार इस योजना के तहत भाजपा को रुपए 210 करोड़ मात्र, बतौर दान 2017-18 के दौरान मिले थे। जबकि कांग्रेस को 2016-17 में रुपए 160 करोड़ मात्र मिले।

भारत के एटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल कहते हैं कि चुनाव में मतदाताओं की सिर्फ इतनी दिलचस्पी होनी चाहिए कि उन्हें किन उम्मीदवारों में से किसे चुनना है। उन्हें क्यों यह चिंता करनी चाहिए कि राजनीतिक दलों को चंदा कहां से मिलता है।

सुप्रीम कोर्ट  की शंकाओं पर वे अपनी बात रख रहे थे। मुद्दा यह था कि मशहूर वकील प्रशांत भूषण और एसोसिएशन फार डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) और माकपा ने सुप्रीम कोर्ट में सरकार कीे ओर से चुनावी बांड योजना में पारदर्शिता न होने पर सवाल उठाया था। इस पर वेणुगोपाल का कहना था कि राजनीतिक पार्टियों के चुनाव में खर्च करने के लिए चुनावी बांड योजना बनी थी। लेकिन इसमें पारदर्शिता कभी इसका मंत्र नहीं हो सकती। इस योजना से दीर्घकाल में काला धन पर रोक लग सकेगी। केंद्र में भाजपा के नेतृत्व में चल रही सरकार ने राजनीतिक दलों को चुनावी खर्च के चुनावी बांड योजना बनाई थी। सरकार यह चाहती है कि चुनावी बांड योजना में दान देने वालों की गोपनीयता बरकरार रखी जाए। लेकिन विपक्ष और पोल पैनेल इस तर्क से सहमत नहीं हैं। उनकी मांग है कि चुनावी फंड प्रक्रिया में और ज़्यादा पारदर्शिता हो और सारे मामले को स्पष्ट करने में सुप्रीम कोर्ट मदद दे।

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता, और संजीव खन्ना इस मामले की सुनवाई में हैं। राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता के मुद्दे पर सरकार के एटार्नी जनरल के बयान पर कहना है कि आज के हालात के मद्देनजऱ फंडिंग में पारदर्शिता पर ध्यान दिया जाना बहुत ज़रूरी है। जिसके बिना इस योजना का आकलन संभव नहीं है।

जस्टिस खन्ना ने कहा कि ऐसी हालत में शेल कंपनियां भी अपना योगदान इस चुनावी बांड के कोष में करती ही होंगी। इस पर एटार्नी जनरल ने कहा कि आयकर अधिकारी तो जब चाहे वे हमेशा ऐसी जानकारी हासिल कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि नई योजना पिछली योजना से ज़्यादा बदतर नहीं है जिसके तहत व्यवस्था में ही काला धन पहुंच जाता था। उन्होंने काला धन कम करने की दिशा में उठाया गया कदम बताया। समय ही बता सकेगा कि काला धन रोकने में यह कितना कामयाब रहा।

उधर चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट की बेंच को बताया कि उसे इस बात की जानकारी है कि बांड की शक्ल में किस पार्टी को कितना दान मिला है कि बांड की शक्ल में किस पार्टी को कितना दान मिला है। वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने बताया कि यह जानकारी खुद राजनीतिक दलों ने ही दी है।

सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश ने आश्चर्य जताया। उन्होंने कहा कि सारा हल्ला हंगामा तो इस बात पर है कि कानून में बदलाव करके बांड प्रक्रिया जारी की गई, और उसमें भी जानकारी देने पर रोक है।