चुनावी फिल्मों का मौसम!

अपने देश में साहित्य-संगीत-कला के विभिन्न रूपों में सक्रिय लोगों का हमेशा मान रहा है। इसकी एक वजह यह है कि समाज को स्वस्थ दिशा देने में इन कलाओं की अहम भूमिका रही है। भाजपा के नेतृत्व में एनडीए सरकार अचानक 2014 में सत्ता में पहुंची। इसके जिम्मेदार व्यक्तित्व को उभारना और इसे सत्ता में शाश्वत रखने की इच्छा से प्रभावित कई अभिनेता, गायक, फिल्म निर्माता और निदेशकों ने रातो रात उस पर फिल्में बनाईं और वे उनकी रिलीज़ चुनाव के दौरान ही चाहते हैं। जिससे जनता सोचे।

ऐसी फिल्मों को रिलीज़ कराने के लिए एक राजनीतिक दल और उससे जुड़ी दूसरी पार्टियों ने भी मुहिम छेड़ रही है। जबकि विपक्ष लगातार विरोध कर रहा है। केंद्रीय चुनाव आयोग भी फिल्मों की रिलीज़ के पक्ष में नहीं है। गेंद सुप्रीम कोर्ट के पाले में है। सवाल यह है कि यदि समकालीन घटनाओं पर जबर्दस्त और कला के लिहाज से ये वाकई अद्वितीय फिल्में हैं तो इन्हें चुनाव खत्म होने पर देखना समाज के लिए कहीं ज्य़ादा उपयोगी होगा। उससे सीख भी हासिल होगी और आगे वाली चुनौतियों से निपटा भी जा सकेगा।

देश की सुरक्षा, देशभक्ति पर एक से एक अच्छी फिल्में एक ज़माने में बालीवुड में बनती रही हैं। लेकिन उन्हेें बनाने वाले प्रचार फिल्में नहीं बना रहेे थे। ऐसी ऐतिहासिक फिल्मों में उपकार आज भी मील का पत्थर है।

सम-सामाजिक घटनाओं पर अभी हाल प्रदर्शित फिल्म थी ‘ऊरी: द सर्जिकल स्ट्राइक’ यह फिल्म सर्जिकल स्ट्राइक का महत्व बताती है। इसे विषय के नएपन की बेहतर प्रस्तुति के लिहाज से काफी सराहा गया। बॉक्स आफिस पर कामयाब भी रही। इस फिल्म के जोश का राजनीतिक उपयोग हुआ।

इसके बाद विवादों के घेरे में रही फिर भी रिलीज़ हुई ‘एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’। इसमें चर्चित अभिनेता अनुपम खेर ने देश के पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह की भूमिका निभाई। इसके बाद ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी’ फिल्म को रिलीज होने से चुनाव आयोग ने रोक दिया है। जिस पर अब फिल्म निर्माता सुप्रीम कोर्ट में पहुंचे हैं।

कतार में भाजपा हैं, सेंसर बोर्ड की कमेटी में एक सदस्य मिहिर भूरा। उनकी कृति है ‘मोदी: जर्नी ऑफ ए कॉमन मैन’ है। वे 32 साल से प्रधानमंत्री को जानते हैं। तकरीबन एक महीने पहले जब आदर्श चुनाव संहिता अमल में भी नहीं आई थी तब गुजराती में उनकी एक फिल्म ‘हू नरेंद्र मोदी बनवा मांगू छू’ रिलीज हो गई थी।

अभी हाल, एक और फिल्म के बारे में निर्देशक महावीर जैन ने जानकारी दी है कि ‘बालाकोट स्ट्राइक’ नाम की उनकी फिल्म रिलीज के लिए कतार में है। इन्होंने 2018 मेें एक छोटी फिल्म ‘चलो जीतते हैं’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बचपन पर बनाई भी थी।

चुनावी मैदान में ही रिलीज होने की कतार में एक और फिल्म है, ‘मेरा नाम है रागा’। इसकी रिलीज की तारीख अभी तय नहीं है। इस फिल्म के निर्देशक रूपेश पाल हैं। वे पहले पत्रकार थे। उनकी पहले एक फिल्म थीं, माई मदर्स लैपटाप’।

‘ताशकंद फाइल्स’ एक ऐसी फिल्म है जो भारत-पाक के बीच 1965 में हुए युद्ध के बाद सोवियत संघ के ताशकंद में पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अय्यूब खान के बीच हुई बातचीत पर है। इस बातचीत के बाद समझौते पर हुए दस्तख्त के बाद लाल बहादुर शास्त्री जब अपने कमरे में लौटे तो वहीं उन्हें दिल का दौरा पड़ा और उनकी मौत हो गई। इस फिल्म के निर्देशक-निर्माता विवेक अग्निहोत्री हैं। भाजपा के वे सक्रिय समर्थक हैं और सेंसरबोर्ड के सदस्य भी हैं।

कांग्रेस के पूर्व सचित अनिल शास्त्री के पोते ने पिछले दिनों विवेक अग्निहोत्री को कानूनी नोटिस दी है और बताया है कि इस फिल्म बनाने की मंशा ठीक नहीं है। यह पूरी फिल्म ऐतिहासिक तथ्यों के मूल आधार से एकदम अलग है जिसे बनाने की वजह भी स्पष्ट नहीं है। इसे रिलीज नहीं किया जाना चाहिए। फिल्म निर्माता का तर्क है फिल्म प्रेरक फिल्म है!

यह अच्छा है कि बॉलिवुड में आज एक से बढ़ कर एक निर्माता-निर्देशक और कलाकार हैं। ये सेंसर बोर्ड में भी हैं। लेकन बहती गंगा में हाथ धोने वालों से सजग रहने की आज ज़रूरत है फिल्में देखने वाले वर्ग को।