चामुर्थी घोड़ों की नस्ल को विलुप्त होने से बचाया

रंग लायीं हिमाचल सरकार की कोशिशें, ‘शीत मरुस्थल का जहाज़’ के नाम से मशहूर हैं चामुर्थी घोड़े

चीन की सीमा से लगते हिमाचल के बर्फ़ीले क़बाइली ज़िलों स्पीति और किन्नौर में चामुर्थी घोड़े सेना से लेकर व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए आम लोगों तक की सबसे बड़ी ज़रूरत हैं। वहाँ इन्हें ‘शीत मरुस्थल का जहाज़’ कहा जाता है। इस नस्ल के घोड़ों की पहचान इनकी क्षमता और शक्ति के लिए है और इस नस्ल को भारतीय घोड़ों की छ: प्रमुख नस्लों में से एक माना जाता है, जो ताक़त और अधिक ऊँचाई वाले बर्फ़ से आच्छादित क्षेत्रों में अपने पाँव जमाने की क्षमता के लिए प्रसिद्ध है। दिलचस्प यह कि यह घोड़े इन बर्फ़ीली घाटियों में सिंधु घाटी (हड़प्पा) सभ्यता के समय से पाये जाते हैं। हालाँकि इनके विलुप्त होने का ख़तरा पैदा हो गया था, जिसके बाद हिमाचल सरकार ने इस नस्ल को बचाने के लिए विशेष कोशिशें कीं और उसे सफलता मिली है।

सरहदों पर भारतीय सेना के लिए युद्ध हथियार पहुँचाने वाले चामुर्थी घोड़ों का कोई विकल्प नहीं है। यदि हिमाचल सरकार ने प्रयास नहीं किये होते तो निश्चित ही इस नस्ल के घोड़े विलुप्त हो गये होते। दरअसल यह घोड़े बर्फ़ से आच्छांदित क्षेत्रों में अपने पाँव जमाने की क्षमता के लिए प्रसिद्ध है, जिस कारण से यह सेना के भी चहेते हैं। इन घोड़ों का उपयोग तिब्बत, लद्दाख़ और स्पीति के लोग युद्ध के समय और सामान ढोने के लिए करते रहे हैं। कुल्लू, लाहुल स्पीति और किन्नौर के अलावा पड़ोसी राज्यों में विभिन्न घरेलू और व्यावसायिक कार्यों के लिए व्यापक रूप से इनका उपयोग किया जाता रहा है।

विभिन्न श्रोतों से उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार, दुनिया भर में चामुर्थी घोड़ों की संख्या छ: हज़ार से कुछ ही ज़्यादा है। इनमें से क़रीब 4,000 हिमाचल में ही हैं। शिमला ज़िले के रामपुर में हर साल लगने वाले अंतर्राष्ट्रीय लवी मेले से पहले वहाँ के पाटबंगला मैदान में अश्व प्रदर्शनी लगती है, जिसमें विभिन्न नस्ल के घोड़े लाये जाते हैं। यह प्रदर्शनी हिमाचल सरकार का पशुपालन महकमा लगाता है। प्रदर्शनी के दौरान घोड़े के रहने-खाने की पूरी ज़िम्मेदारी विभाग ही ढोता है।

नवंबर के पहले हफ़्ते लगने वाली इस प्रदर्शनी का आयोजन किया जाता है। प्रदर्शनी की ख़ास बात यह है कि वहाँ विशेष रूप से लाहुल स्पीति की पिन घाटी और अन्य ऊपरी क्षेत्रों के चामुर्थी घोड़े लाये जाते हैं। कोविड के कारण पिछले साल यह प्रदर्शनी नहीं लगी थी और इस बार भी सम्भावना नहीं है।

चामुर्थी घोड़ों को यहाँ की भौगोलिक स्थिति देखते बहुत उपयोगी माना जाता है। बर्फ़ीले पहाड़ों पर इनके तेज़ी से चढऩे की क्षमता के कारण ही इन्हें ‘शीत मरुस्थल का जहाज़’ कहा जाता है। साथ लगते उत्तराखण्ड से तो लोग एक साथ 10-20 घोड़े ख़रीद लेते हैं और उन्हें अपने राज्य में जाकर बेचते हैं या उन्हें सामान धोने के लिए किराये पर देते हैं। लवी मेले में हर साल 80 से 100 तक चामुर्थी घोड़ों का व्यापार हो जाता है।

चामुर्थी घोड़े को शीत मरुस्थल से लेकर बर्फ़ीले पहाड़ तक सवारी के लिए आरामदायक और सुरक्षित पशु माना जाता है। सँकरे रास्तों पर भी चामुर्थी की गति देखने लायक होती है। साल के ज़्यादातर समय बर्फ़ से ढके रहने वाले पहाड़ों और नदी-नालों वाले पैदल रास्तों पर यह घोड़ा किसी विशेषज्ञ से कम नहीं। ऊँचाई पर पशुपालक नदी-नाले पार करने के लिए इन्हीं घोड़ों का सहारा लेते हैं।

विशेषज्ञों के मुताबिक, चामुर्थी घोड़े में नदी-नाले के ऊपर बर्फ़ की परत की मोटाई समझने की अद्भुत क्षमता होती है और वह पहले ही इसका अनुमान लगा लेता है। इससे इस पर सवारी करने वाला सुरक्षित रहता है। चामुर्थी की ऊँचाई 12-14 हाथ तक होती है और यह माइनस 30 डिग्री तक की भीषण ठण्ड में काम कर सकता है। सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें लम्बे समय तक कुछ न खाने के बावजूद काम करने की क्षमता होती है।

कैसे बचायी प्रजाति

हिमाचल के पशुपालन विभाग ने इन बर्फ़ानी घोड़ों को बचाने और संरक्षित करने और पुन: अस्तित्व में लाने के उद्देश्य से सन् 2002 में स्पीति घाटी के लारी में एक घोड़ा प्रजनन केंद्र स्थापित किया। यह केंद्र्र स्पीति नदी से एक किलोमीटर की दूरी पर स्थापित किया गया है, जो राजसी गौरव और किसानों में समान रूप से लोकप्रिय घोड़ों की इस प्रतिभावान नस्ल के प्रजनन के लिए उपयोग किया जा रहा है।

इस प्रजनन केंद्र्र को तीन अलग-अलग इकाइयों में विभाजित किया गया है, जिसमें प्रत्येक इकाई में 20 घोड़ों को रखने की क्षमता और चार घोड़ों की क्षमता वाला एक स्टैलियन शेड है। इस केंद्र को 82 बीघा और 12 बिस्वा भूमि पर चलाया जा रहा है। विभाग इस लुप्तप्राय प्रजाति के लिए स्थानीय गाँव की भूमि का उपयोग चरागाह के रूप में भी करता है।

‘तहलका’ से बातचीत में हिमाचल के पशुपालन मंत्री वीरेंद्र कँवर ने बताया कि इस प्रजनन केंद्र की स्थापना और कई साल तक चलाये प्रजनन कार्यक्रमों के उपरांत इस शक्तिशाली विरासतीय नस्ल, जो कभी विलुप्त होने के कगार पर थी, की संख्या में निरंतर वृद्धि हुई है। वर्तमान में हिमाचल प्रदेश में इनकी आबादी लगभग 4,000 हो गयी है।

कँवर के मुताबिक, लारी फार्म में इस प्रजाति के संरक्षण के प्रयासों के लिए आवश्यक दवाओं, मशीनों और अन्य बुनियादी सुविधाओं के अलावा पशुपालन विभाग के लगभग 25 पशु चिकित्सक और सहायक कर्मचारी अपनी सेवाएँ दे रहे हैं। इस केंद्र में इस नस्ल के लगभग 67 घोड़ों को पाला जा रहा है, जिनमें 23 स्टैलियन और 44 ब्रूडमेयर्स दोनों युवा और वयस्क शामिल हैं। प्रत्येक वर्ष पैदा होने वाले अधिकांश घोड़ों को पशुपालन विभाग नीलामी के माध्यम से स्थानीय ख़रीदारों को बेचता है। चार-पाँच साल की उम्र के एक वयस्क घोड़े का औसत बाज़ार मूल्य इस समय 35,000 से 40,000 रुपये तक है। वैसे इन घोड़ों की सबसे अधिक लागत हाल के वर्षों में 75,000 रुपये तक दर्ज की गयी है।

लारी फार्म से जुड़े पशु चिकित्सकों के मुताबिक,  जनसंख्या, जलवायु और चरागाह के आधार पर एक वर्ष में औसतन अधिकतम 15 मादाएँ गर्भधारण करती हैं और गर्भाधान के 11-12 महीने बाद बच्चा जन्म लेता है। एक वर्ष की आयु तक उसे दूध पिलाया जाता है। प्रजनन भी पशु चिकित्सा विशेषज्ञों की निगरानी में करवाया जाता है। जन्म के एक महीने के बाद घोड़े के बच्चे को पंजीकृत किया जाता है और छ: महीने की आयु में उसे दूसरे शेड में स्थानांतरित कर दिया जाता है। एक वर्ष का होने पर ही इसे बेचा जाता है। इसके अतिरिक्त विभाग द्वारा वृद्ध अथवा अधिक संख्या होने पर चामुर्थी मादाओं को बेच दिया जाता है। इसके अलावा घोड़े की अन्य नस्लों की देख-रेख, पालन-पोषण और उनका प्राचीन महत्त्व पुन: स्थापित करने के लिए विभाग इस केंद्र पर हर साल क़रीब 35 लाख रुपये ख़र्च करता है।

पशुपालन मंत्री वीरेंद्र कँवर के मुताबिक, चामुर्थी नस्ल के स्टैलियन घोड़ों के संरक्षण के मामले में हिमाचल का स्टैलियन चार्ट में अग्रणी स्थान है और निरन्तर गुणात्मक घोड़ों के उत्पादन में सफलता हासिल की है। चामुर्थी प्रजाति की लोकप्रियता का अंदाज़ा अंतर्राष्ट्रीय लवी और लदारचा मेलों के अलावा समय-समय पर लगने वाली प्रदर्शनियों के दौरान मिले पुरस्कारों से हो जाती है।

 

तिब्बत से जुड़ा है इतिहास

चामुर्थी नस्ल के घोड़ों के वंशज तिब्बत सीमा की ऊँचाइयों पर पाये जाने वाले जंगली घोड़े माने जाते हैं। इस नस्ल का उद्गम स्थल तिब्बत के छुर्मूत को माना जाता है। कहा जाता है कि इसी कारण इस नस्ल के घोड़ों को चामुर्थी नाम मिला। इस नस्ल के घोड़े तिब्बत की पिन घाटी से सटे इलाक़े और लाहुल स्पीति ज़िले के काजा उप मण्डल की पिन घाटी में पाये जाते हैं।

चामुर्थी नस्ल को दुनिया की घोड़ों की मान्यता प्राप्त चार नस्लों में एक माना जाता है। इस नस्ल के घोड़े मज़बूत होने के कारण बर्फ़ीले पहाड़ों के लिए बहुत लाभदायक माने जाते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि इस नस्ल के घोड़ों में बहुत कम ही बीमारियाँ देखी जाती हैं। हिमाचल के किन्नौर ज़िले के पूह उप मण्डल से भी व्यापारी तिब्बत जाकर चमुर्थी घोड़े लाते रहे हैं; लेकिन वहाँ माँग अधिक होने के कारण घोड़ों का व्यापार सिरे नहीं चढ़ रहा है। कहा जाता है कि पिन घाटी में नसबंदी किये घोड़े बेचे जाते हैं। क्योंकि वहाँ के लोगों की मान्यता है कि ऐसा नहीं करने से स्थानीय देवता नाराज़ होते हैं। हालाँकि पशु विशेषज्ञों के मुताबिक, इससे इस नस्ल के विस्तार की कोशिशों को नुक़सान पहुँचता है।

हर साल पिन घाटी में चामुर्थी नस्ल के घोड़े पाये जाने वाले इलाक़ों में अप्रैल-मई में हर गाँव में नस्ल विस्तार वाला नया घोड़ा चुना जाता है। लोग अपने नये जन्मे घोड़ों को एक जगह इकट्ठा करके उनमें से सबसे बढिय़ा घोड़े का चयन किया जाता है। हालाँकि बाक़ी घोड़ों की घरेलू तरीक़े से नसबंदी कर दी जाती है।