घोटाले का पर्याय बनीं ई-पॉस मशीनें!

राशन वितरण में आ रहीं दिक़्क़तें, लोग कर रहे शिकायत

मशीनों से घोटाले की कल्पना अधिकतर लोग नहीं करते। मगर इस युग में मशीनों से घोटाले होते हैं। सेवानिवृत्त अध्यापक यशवंत सिंह कहते हैं कि आधुनिक मशीनों के आने से लोग परिश्रम के बिना ही सब कुछ पा लेना चाहते हैं। यही कारण है कि अब घोटाले बढ़ रहे हैं। उत्तर प्रदेश में घोटाले न हों, ऐसा कभी हो ही नहीं सकता। राशन घोटाले के समाचार आने से क्रोधित सेवानिवृत्त अध्यापक यशवंत सिंह की तरह ही अन्य कई ग्रामीण भी इसे लेकर क्रोधित दिखते हैं।

विदित हो कि उत्तर प्रदेश में राशन घोटाले को रोकने तथा आम लोगों को सही, सुनिश्चित व सुचारू रूप से राशन वितरण के लिए लगभग आठ वर्ष पूर्व योगी आदित्यनाथ सरकार-1 में ई-पॉस अर्थात् इलेक्ट्रिक पीओएस मशीनों को लगाया गया था। पूरे प्रदेश में 80,000 से अधिक ई-पॉस मशीनें लगायी गयी थीं। सरकार के निर्देशानुसार वर्ष 2016 की शुरुआत से इन मशीनों के माध्यम से राशन वितरण आरम्भ हुआ था। मगर अधिकतर मशीनों ने आरम्भ से ही राशन वितरण कार्य से मानो मना ही कर दिया हो। पूरे प्रदेश में पचासों स्थानों पर राशन न मिलने से मशीनों द्वारा राशन बँटने की लोगों की प्रसन्नता पर पानी फिर गया। तबसे लेकर आज तक इन मशीनों ने राशन उपभोक्ताओं की नाक में दम करके रखा हुआ है। स्थिति ऐसी हो चुकी है कि कभी मशीनों की वजह से, तो कभी किसी अन्य कारण से लोगों को राशन न मिल पाने के समाचार पढऩे व सुनने को मिलते हैं।
जालिम नगला गाँव के पप्पू कैप्टन कहते हैं कि करोड़ों रुपये के व्यय से लगायी गयीं ई-पॉस मशीनें फेल होती दिख रही हैं, तो उन्हें ठीक करने पर भी करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाये जा रहे हैं। योगी सरकार तो स्थिति में सुधार के लिए ई-पॉस मशीनें लेकर आयी थी, मगर राशन वितरकों तथा अधिकारियों की मिलीभगत से घोटाले के द्वार खुलते दिख रहे हैं।

विदित हो कि प्रदेश के सभी 75 जनपदों के ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित राशन की लगभग 80,000 दुकानों पर ई-पॉस मशीनें लगाने का ठेका सरकार ने दो कम्पनियों को दिया था। मशीनें भी लग गयीं। मगर आरम्भ से ही कभी नेटवर्क नहीं रहता है, तो कभी मशीन राशन कार्ड धारक के अँगूठे के निशान को पहचानने से मना कर देती है। प्रकाशित समाचारों से पता चलता है कि अधिकांश क्षेत्रों में 50-55 फ़ीसदी राशन कार्ड धारकों को ठीक तरह से राशन वितरण नहीं हो पा रहा है।

घोटाले की परतें
लिखित में राशन न मिलने की शिकायतों से पता चलता है कि नोएडा, ग़ाज़ियाबाद, बुलंदशहर, अमरोहा, मुरादाबाद, बरेली, सहारनपुर, मेरठ, लखनऊ, प्रयागराज, रायबरेली, उन्नाव, औरैया, बलरामपुर, मुज़फ़्फ़रनगर, शामली, आगरा, मथुरा, मैनपुरी तथा फ़िरोज़ाबाद समेत कई जनपदों में लगभग 350 करोड़ रुपये के राशन घोटाले की बात उत्तर प्रदेश एसटीएफ के माध्यम से उजागर हुई है।

एसटीएफ को मेरठ में हुए राशन घोटाले की शिकायत के आधार पर सितंबर, 2018 में जाँच करने के आदेश मिले थे। यह जाँच 14 जनपदों में की गयी थी। अभी शेष जनपदों में राशन घोटालों की जाँच हो सकती है। जाँच तो यहाँ तक बताती है कि राशन कार्ड धारकों का आधार नंबर मशीन में डालकर राशन निकाल लिया गया, मगर राशन कार्ड धारक को एक दाना भी प्राप्त नहीं हुआ। जाँच में सामने आया है कि केवल मेरठ में ही 27,000 राशन कार्ड धारकों के लिए राशन की 220 दुकानें हैं, जिन पर गड़बड़ी पायी गयी है। इतना ही नहीं, अकेले मेरठ के राशन कार्ड धारकों ने अलग-अलग थानों में 51 प्राथमिकी दर्ज करायी हैं।

करोड़ों का नुक़सान

सरकार ने राशन वितरण में पारदर्शिता लाने के लिए प्रत्येक मशीन 20,000 रुपये में क्रय किया था। सभी 80,000 मशीनों को 160 करोड़ रुपये के व्यय से लगाया गया था। अब तक इन मशीनों का किराया और रखरखाव पर 12,00 करोड़ रुपये से अधिक का व्यय किया जा चुका है। प्रत्येक मशीन के किराये व रखरखाव के लिए पहले सरकार 17 रुपये प्रति कुंतल के हिसाब से भुगतान करती थी, जिसे अब बढ़ाकर 21 रुपये प्रति कुंतल कर दिया गया है। इस तरह मशीन लगाने वाली कम्पनियों को प्रदेश की योगी सरकार प्रति वर्ष किराये व रखरखाव के लिए 240 करोड़ रुपये का भुगतान कर रही है। ये मशीनें वर्ष 2016 से लगातार उपयोग में लायी जा रही हैं।
सरकार के रिकॉर्ड में इन मशीनों के माध्यम से हर माह 15 करोड़ से अधिक राशन उपभोक्ताओं को राशन वितरित हो रहा है। मगर धरातल पर बड़ी संख्या में उपभोक्ताओं को राशन नहीं मिल पाता है। कई लोगों की शिकायत है कि उन्हें राशन नहीं मिला, जबकि उनके हिस्से का राशन बँट गया। लोग कह रहे हैं कि राशन विततरण के नाम पर घोटाले की कोई सीमा नहीं है। राजकुमार मौर्य बताते हैं कि उनका राशन कई बार गड़बड़ हुआ है। कभी चना नहीं मिलता, तो कभी रिफाइंड नहीं मिलता, सो अलग। मशीन बन्द हो गयी है। मशीन काम नहीं कर रही है। ऊपर से इस बार राशन नहीं आया है। इस प्रकार की कहानियाँ राशन वितरक आये दिन सुनाते रहते हैं। कई-कई चक्कर लगाने के बाद राशन मिल जाए, तो गनीमत समझो।

सत्यवीर नाम के एक राशन कार्ड धारक का कहना है कि राशन पहले हाथ से बँटता था, तब ठीक प्रकार से मिलता था, मगर अब तो सब राम भरोसे है। कभी मिल जाता है, तो कभी नहीं भी मिलता है। कभी बहुत जल्दी राशन वितरित हो जाता है, तो कभी महीने के अन्त में भी नहीं मिलता। सत्यपाल गंगवार कहते हैं कि राशन वितरण बन्द करके सरकार को उपभोक्ताओं के खाते में सीधे पैसे भिजवा देने चाहिए जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसानों के खाते में सीधे-सीधे पैसा भेजते हैं। इससे राशन वितरकों को घोटाला करने का मौक़ा ही नहीं मिलेगा। उनका कहना है कि जितना पैसा योगी आदित्यनाथ सरकार ई-पॉस मशीनों पर और राशन पर व्यय कर रही है, उतने पैसे को राशन कार्ड धारकों के बीच प्रति यूनिट के हिसाब से विभाजित करके देखे कि एक यूनिट के हिस्से में कितने रुपये आते हैं, जितने रुपये एक यूनिट के हिस्से में आएँ उस हिसाब से पूरे परिवार के पैसे राशन कार्ड के मुखिया के बैंक खाते में भेज दे। अगर सरकार ऐसा करती है, तो एक यूनिट के हिस्से में कुछ नहीं तो 1,000 रुपये आराम से आ आएँगे। इससे उसे महीने भर के खाने भर को राशन, तेल, दालें सब कुछ मिल जाएगा।

एक बुज़ुर्ग उपभोक्ता कहते हैं कि पहले राशन के साथ चीनी तथा मिट्टी का तेल भी मिलता था, अब तो न चीनी देखने को मिलती है और न मिट्टी का तेल। अब या तो पाँच किलो गेहूँ ले लो या पाँच किलो चावल। कोई मंत्री पाँच किलो राशन से महीना भर भोजन कर सकता है क्या? अगर कर ले, तो हम इतना राशन भी छोड़कर उसी मंत्री को दे देंगे। क्रोध में बुज़ुर्ग उपभोक्ता कहते हैं कि सरकार की आँखों पर पट्टी बँधी है, जो ये मशीनें लगा रखी हैं। ऐसा लगता है कि मशीनें राशन निगल रही हैं। राशन वितरक कहता है कि वह ईमानदार है, तो फिर सरकार यह बताये कि $गरीबों के हिस्से का राशन खा कौन रहा है?
इस विषय में मंत्रियों तथा स्थानीय नेताओं तक शिकायतें पहुँच रही हैं। थानों में भी शिकायतें पहुँच रही हैं तथा खाद्य वितरण विभाग से भी उपभोक्ता शिकायत कर रहे हैं। देखना यह है कि इस घोटाले में योगी आदित्यनाथ सरकार क्या कार्रवाई करती है?