घूसखोरी में ‘क्लीनचिट’ और ‘पर्याप्त’ सबूत के बीच फंसे अस्‍थाना

-भ्रष्टाचार का सीबीआई बनाम सीबीआई मामला

भ्रष्टाचार के मामले में सीबीआई के पूर्व निदेशक अब क्लीनचिट और पर्याप्त सबूतों के बीच में फंसते नजर आ रहे हैं। सीबीआई बनाम सीबीआई का यह हाई प्रोफाइल मामला फिलहाल शांत होता दिख नहीं रहा है। मामला कोर्ट में है।
शुक्रवार को दिल्ली की विशेष अदालत में सुनवाई के दौरान वर्तमान और पूर्व जांच अधिकारियों के बीच तीखी बहस देखने को मिली। चार्जशीट पर विचार करने के दौरान वर्तमान जांच अधिकारी सतीश डागर और पूर्व जांच अधिकारी अजय कुमार बस्सी के बीच अदालत में वाद-विवाद हो गया। डागर ने कहा कि पक्षपातपूर्ण जांच के कारण बस्सी को जांच अधिकारी के पद से हटा दिया गया था।

इस पर पूर्व जांच अधिकारी एके बस्सी ने आरोप लगाया कि वर्तमान जांच अधिकारी सतीश डागर ने सीबीआई के पूर्व विशेष निदेशक राकेश अस्थाना को क्लीन चिट देने का मन बना लिया था। उन्होंने कहा कि अस्थाना के खिलाफ पर्याप्त सबूत थे, लेकिन डागर ने न तो उनका मोबाइल फोन जब्त किया न  ही अन्य इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य। इससे ऐसा लगता है कि वह उन्हें बचाना ही चाह रहे हैं।

कोर्ट घूसखोरी के इस मामले में सीबीआई की जांच को लेकर 12 फरवरी को नाखुशी करते हुए पूछा था कि बड़ी भूमिकाओं वाले आरोपी खुलेआम क्यों घूम रहे हैं? जबकि जांच एजेंसी ने अपने ही एक डीएसपी को गिरफ्तार कर लिया। अस्थाना और डीएसपी देवेंद्र कुमार का नाम चार्जशीट के 12वें कॉलम में था, क्योंकि इसमें कहा गया कि उनके खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं है। डीएसपी देवेंद्र को 2018 में गिरफ्तार किया गया था, जिसे बाद में जमानत मिल गई थी।

सीबीआई ने हैदराबाद के कारोबारी सतीश सना की शिकायत के आधार पर अस्थाना के खिलाफ घूसखोरी का मामला दर्ज किया था। सना 2017 के उस मामले में जांच का सामना कर रहा है जिसमें मीट कारोबारी मोइन कुरैशी का नाम आया था। इससे पहले 19 फरवरी को अदालत ने सीबीआई से पूछा था कि रिश्वतखोरी के मामले में एजेंसी के पूर्व विशेष निदेशक राकेश अस्थाना का उसने मनोवैज्ञानिक परीक्षण एवं लाई डिटेक्टर टेस्ट क्यों नहीं करवाया।