घट रहा ख़रीफ़ की फ़सलों का रक़बा

उत्तर प्रदेश गेहूँ, धान, गन्ना, दाल, तिलहन, मूँगफली, मक्का और सब्ज़ियों की फ़सलों के लिए जाना जाता है। मगर इनमें से कई फ़सलों की तरफ़ से किसानों का मोह भंग होता दिख रहा है। इसके कई कारण हैं, जिन पर विस्तार से चर्चा करेंगे। इन दिनों की अगर बात करें, तो ये ख़रीफ़ की फ़सलों के दिन हैं। ख़रीफ़ की फ़सलें बारिश के मौसम में होती हैं, इस मौसम में ज़ायद की फ़सलें पकती हैं।

खेती किसानी का सर्वेक्षण करने पर पता चलता है कि ख़रीफ़ की फ़सलों का रक़बा कम होता जा रहा है। कहने का तात्पर्य यह है कि किसान भाई ख़रीफ़ की कुछ फ़सलें पहले की अपेक्षा कम करते जा रहे हैं। सरकार, कृषि अनुसंधान केंद्र, वैज्ञानिक तथा कृषि विशेषज्ञ इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं। बड़ी जोत के किसान ओम प्रकाश कहते हैं कि किसान सदैव पाँच बातों को देखकर खेती करता है। एक तो यह कि उस कौन-सी फ़सल से उसे लाभ होगा, परन्तु समस्या यह है कि इस बात का ज्ञान कम ही किसानों को होता है। दूसरी बात यह कि किस फ़सल को पशुओं से कम हानि होगी। तीसरी बात यह कि किस फ़सल में कम लागत आएगी।
चौथी बात यह कि किस फ़सल से उसे नक़द आमदनी होगी। पाँचवीं बात यह कि किस फ़सल को ज़्यादा लोग उगा रहे हैं। यही अधिकतर किसानों की सबसे बड़ी ग़लती होती है कि वे वही फ़सलें अधिक बोते हैं, जो अधिक बोयी जाती हैं। किसानों को बाज़ार में माँग तथा भाव के आधार पर खेती करनी चाहिए। जो किसान ऐसा करते हैं, वे हर साल लाखों रुपये खेती से कमा लेते हैं। युवा किसान ओमवीर सिंह कहते हैं कि किसानों को फ़सल चक्र के आधार पर खेती करनी चाहिए, ताकि उन्हें खेतों से एक ही बार में दोहरा लाभ प्राप्त हो सके। कुल मिलाकर मामला ख़रीफ़ की फ़सलों का रक़बा घटने का है। इनमें कौन-कौन सी फ़सलें शामिल हैं, कृषि विशेषज्ञ इरफ़ान ने इस बारे में विस्तार से बताया।

धान की फ़सल
इरफ़ान कहते हैं कि बड़ी संख्या में उत्तर प्रदेश के किसान धान की फ़सल उगाते हैं। परन्तु पिछले डेढ़-दो दशक से दो समस्याएँ देखने को मिल रही हैं। एक समस्या यह है कि किसानों ने अधिक पैदावार के लालच में अच्छे व स्वादिष्ट धान की बुवाई कम कर दी है। परन्तु वे भूल रहे हैं कि कम पानी से उगने वाले सस्ते बीजों की बुवाई से धान तो ख़राब पैदा होता ही है, साथ ही उसके दाम भी अच्छे नहीं मिल पाते।

इस मामले में किसानों को बीज भण्डार वाले दुकानदार ठगते व गुमराह करते रहते हैं। दूसरी समस्या यह है कि पहले से किसानों ने धान की खेती कम करनी शुरू कर दी है। इसका कारण यह है कि किसानों को धान से उतनी आमदनी नहीं हो पाती, जितनी इस फ़सल की लागत है। अत: वे धान की जगह ज़ायद की फ़सलों को ख़रीफ़ में भी रख लेते हैं, नहीं तो गन्ना आदि ज़्यादा उगाते हैं।

मक्का, ज्वार व बाजरे की खेती
मक्का, ज्वार व बाजरे की खेती भी उत्तर प्रदेश में पहले की अपेक्षा कम होने लगी है। किसान ओम प्रकाश कहते हैं कि आज से 25-30 साल पहले तक मक्का, ज्वार तथा बाजरे की खेती उत्तर प्रदेश में बहुत होती थी। इसकी वजह यह थी कि लोग इन फ़सलों को अनाज के तौर पर उगाते थे। मगर अब किसान इन फ़सलों को बहुत कम उगा रहे हैं। इसके पीछे कई कारण हैं, जिनमें प्रमुख कारण आवारा पशुओं से इन फ़सलों की रक्षा करने में किसानों असमर्थ हैं।

दूसरी प्रमुख समस्या चोरों से फ़सलों को बचाना है। ओम प्रकाश कहते हैं कि मैं ख़ुद मक्का की खेती करता हूँ। परन्तु रखवाली के बावजूद हर रोज़ पाँच-दस भुट्टे लोग तोड़ लेते हैं। एक बात यह भी है कि मक्का के साथ-साथ ज्वार तथा बाजरा की माँग बाज़ार में कम हो चुकी है। इसका एक कारण यह भी है कि लोगों को इन अनाजों की गुणवत्ता व इनके लाभ की जानकारी कम है। कम पैदावार के चलते ये तीनों अनाज आज बहुत महँगे हैं। अत: अगर किसान इन्हें उगाता है और रखवाली करने में सक्षम है, तो उसे घाटा तो नहीं होगा।