घटते जा रहे दुर्लभ वृक्ष

 धरती से लुप्त हो रहे हैं हज़ारों अनमोल वृक्ष 7  आँगनों से भी ग़ायब हो चुके 60 फ़ीसदी वृक्ष

वृक्षों (पेड़ों) के बिना धरती से जीवन नष्ट हो जाएगा। क्योंकि अगर धरती पर वृक्ष नहीं होंगे, तो छाया, ऑक्सीजन, फल और कई तरह की औषधियाँ भी नहीं होंगी। एक रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय वृक्षों की प्रजातियाँ तेज़ी से लुप्त हो रही हैं। खगोलीय संरचना के अनुसार, भारत में दुनिया के अधिकतर देशों से ज़्यादा वनस्पतियाँ और पेड़-पौधों की प्रजातियाँ हैं।

पूरी धरती की अगर बात करें, तो यह माना जाता है कि क़रीब 60,000 प्रकार की वृक्षों की प्रजातियाँ पूरी धरती पर मौज़ूद हैं। हालाँकि कुछ खगोलविज्ञानियों का मानना है कि समस्त धरती पर कितनी प्रजाति के वृक्ष मौज़ूद हैं? यह कहना अभी मुश्किल है। क्योंकि अभी अनेक जंगल और स्थान हैं, जहाँ के वृक्षों को गिना नहीं जा सका है। क्योंकि वहाँ पहुँचना आज तक किसी के लिए सम्भव नहीं हो सका है। धरती पर मौज़ूद विभिन्न प्रजातियों को धरती का बायोमास का सबसे बड़ा हिस्सा कहा जाता है। यह बायोमास धरती के वन आवरणों के वितरण, संयोजन और संरचना के आधार बना हुआ है।

 सब समझें वृक्षों की उपयोगिता

जब किसी चीज़ की उपयोगिता का पता लोगों को न हो, तो वे उस चीज़ का सदुपयोग नहीं कर सकेंगे और उसे नष्ट होने से नहीं रोकेंगे। वृक्षों की जानकारी से लोग जिस तरह से अनभिज्ञ होते जा रहे हैं, यह चिन्ता का विषय है। जबकि बहुत-से लोग जानते हैं कि वृक्ष हमारे जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। वृक्षों की बदौलत ही इंसानों और दूसरे जीवों को ऑक्सीजन मिल पा रही है। इसके अलावा वृक्षों से भोजन, ईंधन, उपयोगी लकड़ी, हवा, औषधियाँ और अन्य कई उपयोगी पदार्थ मिलते हैं। इसके अलावा अलग-अलग वृक्षों की उपयोगिता भी अलग-अलग है। लेकिन आज की पीढ़ी वृक्षों की उपयोगिता के बारे में भूलती जा रही है। इसलिए वनस्पति विज्ञान में वृक्षों की उपयोगिता के बारे में पढ़ाये जाने और सभी लोगों को इनकी उपयोगिता बताये जाने की ज़रूरत है।

 वृक्षों के प्रति हो संवेदनशीलता

भारतीय संस्कृति में कई उपयोगी हरे वृक्षों को काटने पर अनुचित माना गया है। यहाँ तक कि कई तरह के वृक्षों की तो पूजा होती है। पहले लोग वृक्षों के बीच जीवन जीना पसन्द करते थे; लेकिन अब इंसानों और वृक्षों के बीच की दूरियाँ बढ़ती जा रही हैं। ईंट-पत्थरों के बढ़ते घरों और शहरों में बढ़ती आबादी ने वृक्षों से इतनी दूरी बना ली है कि अब शहरों में वृक्षों की संख्या इंसानों से कई गुना कम हो चुकी है। गाँवों के घरों के आँगनों से अब 60 फ़ीसदी वृक्ष कम हो गये हैं। एसी-पंखे के सहारे जीने वाले शहरी इसीलिए बीमारियों से घिरे हुए हैं।

इंसानों और वृक्षों के बीच बढ़ती जा रही इस दूरी को कम करने के लिए द स्टेट ऑफ द वल्ड्र्स ट्रीज में सितंबर, 2021 में पहली बार एक रिपोर्ट प्रकाशित की गयी। यह काम वैज्ञानिकों और संगठनों के अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क ग्लोबल ट्री स्पेशलिस्ट ग्रुप ने पाँच साल तक 58,497 पेड़ों की प्रजातियों पर अध्ययन करके किया। यह वैज्ञानिक और संगठन यूनाइटेड किंगडम में वनस्पति संरक्षण पर काम करने वाली ग़ैर-लाभकारी संस्था बोटैनिक गार्डेंस कंजर्वेशन इंटरनेशनल (बीजीसीआई) और इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर्स स्पीशीज सर्वाइवल कमीशन (आईयूसीएन/एसएससी) के तहत काम करते हैं।

इस रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में क़रीब 142 प्रजातियाँ यानी क़रीब 30 फ़ीसदी प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं। रिपोर्ट में एक चिन्ता करने वाला ख़ुलासा यह किया गया है कि दुनिया भर में अभी क़रीब 17,510 वृक्षों की प्रजातियों पर विलुप्त होने का संकट मँडरा रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरी दुनिया में पाये जाने वाले सभी वृक्षों का अध्ययन किया जाए, तो लुप्त होने वाले वृक्षों की संख्या क़रीब 38.1 फ़ीसदी हो सकती है। हालाँकि वृक्षों की प्रजातियाँ समशीतोष्ण क्षेत्रों की तुलना में उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में ज़्यादा हैं। इनमें क़रीब 40.4 फ़ीसदी प्रजातियाँ नियोट्रोपिक्स में, क़रीब 23.5 फ़ीसदी इंडो-मलाया में, क़रीब 15.8 फ़ीसदी एफ्रोट्रोपिक्स में, 12.7 फ़ीसदी आस्ट्रालेशिया में, 10.2 फ़ीसदी पेलीआर्कटिक में, और क़रीब 3 फ़ीसदी नीआर्कटिक और ओशिनिया में पायी जाती हैं।

भारत इंडो-मलाया और पेलीआर्कटिक क्षेत्र में आता है, जो वृक्ष विविधता में दुनिया के 17 अत्यधिक विविधता वाले देशों में शामिल है। स्टेट ऑफ द वल्ड्र्स ट्रीज रिपोर्ट के विश्लेषण और आईयूसीएन की सप्लिमेंट्री इंफॉर्मेशन के अनुसार, भारत में कुल 2,608 प्रजातियों के वृक्ष हैं।

 भारत में लुप्त होतीं प्रजातियाँ

वर्तमान भारत में वृक्षों की 413 प्रजातियाँ यानी क़रीब 18 फ़ीसदी प्रजातियाँ विलुप्त होने के कगार पर हैं। इनमें दुर्लभ औषधियों, फलों और महत्त्वपूर्ण लकड़ी के वृक्ष शामिल हैं। कोरों के वृक्ष, जिसकी लकड़ी, जो भारत में सबसे अधिक होती थी और घरों से लेकर ट्रेन, पानी के जहाज़ आदि तक में काम में ली जाती थी, अब देखने को नहीं मिलते। कहते हैं कि कोरों की लकड़ी को लोहे की तरह मज़बूत बनने में 200 साल लगते हैं। 120-130 साल में इसका पेड़ तैयार होता है और 70-80 साल उसे काटकर पानी में रखा जाता है, तब कोरों तैयार होता है। यह एक ऐसी लकड़ी होती है, जिसमें सैकड़ों साल तक न कीड़े लगते हैं और न यह गलती है, न कमज़ोर होती है।

इसी तरह चंदन के वृक्षों की घटती संख्या गम्भीर चिन्ता का विषय है। इसके अलावा शीशम, जो पूरे उत्तर भारत में पाया जाता है, इसके वृक्षों की संख्या लगातार कम होती जा रही है। वेंडलैंडिया एंगस्टिफोलिया, जो तमिलनाडु में कभी बहुतायत में पाया जाता था। लेकिन अब इसके बहुत कम वृक्ष ही बचे हैं। साइनोमेट्रा बेड्डेमेई, जो पश्चिमी भारत में पाया जाता था, अब इसके भी बहुत कम वृक्ष बचे हैं। गम्भीर रूप से लुप्तप्राय सूची में कुछ महत्त्वपूर्ण स्थानिक प्रजातियों में से इलेक्स खासियाना, आदिनांद्रा ग्रिफिथआई, पायरेनेरिया चेरापुंजियाना और एक्विलरिया खासियाना शामिल हैं, जो पूर्वोत्तर राज्य मेघालय में पायी जाती हैं। इसके साथ ही केरल की अगलिया मालाबेरिका, डायलियम ट्रैवनकोरिकम, सिनामोमम ट्रैवनकोरिकम व बुकाननिया बरबेरी भी इस सूची में हैं। जबकि तमिलनाडु की बर्बेरिस नीलगिरिएँसिस व मेटियोरोमिट्र्स वायनाडेन्सिस के साथ ही अंडमान क्षेत्र की शायजिअम अंडमानिकम और वेंडलांडिया अंडमानिकम शामिल हैं। इनमें मसाले की इलिसियम ग्रिफिथआई प्रजातियाँ, इत्र की एक्वीलेरिया मैलाकेंसिस प्रजाति, दवा की कमिफोरा वाइटी प्रजाति, फल की एलियोकार्पस प्रूनिफोलियस प्रजाति शामिल है। इसके अलावा लुप्त हो चुके वृक्षों में पूर्व हिमालय में मिलने वाला होपिया शिंकेंग वृक्ष, सदाबहार प्रजाति का आइलेक्स गार्डनेरियाना वृक्ष, कर्नाटक में पाया जाने वाला मधुका इंसिनिस वृक्ष, मेघालय में पाया जाने वाला वृक्ष स्टरकुलिया खासियाना आदि शामिल हैं। शिंगकेंग और कोराइफा टैलिएरा प्रजातियाँ भी विलुप्त हो चुकी हैं। रिपोर्ट के अनुसार भारत में वृक्षों की 55 प्रजातियाँ गम्भीर रूप से लुप्तप्राय हैं, 136 प्रजातियाँ संकटग्रस्त हैं, 113 प्रजातियाँ संवेदनशील स्थिति में हैं, 49 प्रजातियाँ तेज़ी से घट रही हैं, 736 प्रजातियों की संख्या 20 फ़ीसदी कम हो चुकी है। इसके अलावा 57 प्रजातियों का विवरण अपर्याप्त है और (57) और क़रीब 1,459 प्रजातियों का मूल्याँकन नहीं हो सका है।

 कैसे बचाये जाएँ वृक्ष?

वृक्षों की प्रजातियों को बचाने के लिए भारत को अधिक-से-अधिक वृक्ष लगाने के साथ-साथ वन संरक्षण की ओर ध्यान देना होगा। इसके साथ ही वृक्षों के अवैध कटानों को रोकना होगा, जंगलों को आग से बचाना होगा और अधिक-से-अधिक पौधरोपण कराना होगा। वनों को बचाने के लिए वन क़ानून प्रवर्तन और वृक्षों की निगरानी व संबद्धता में कमी पर ध्यान केंद्रित करना होगा। द यूएन स्ट्रैटिजिक प्लान फॉर फॉरेस्ट 2017-2030, ग्लोबल फॉरेस्ट गोल-5 पर भी विचार करना होगा। लोगों को पौधरोपण की ओर आकर्षित करने के लिए पुरस्कार वितरण समारोह आयोजित करने होंगे। भारत में वृक्षों के अवैध कटान अपराध की श्रेणी में आता है, लेकिन इसका सख़्ती और ईमानदारी से पालन नहीं होता। फॉरेस्ट अधिकारियों की भी निगरानी करनी होगी और उन्हें सुरक्षा प्रदान करनी होगी। पुलिस को ईमानदार बनाना होगा। फ़िलहाल किसी हरे वृक्ष के काटने पर भारतीय वन क़ानून-1927 की धारा-68 के अंतर्गत पर्यावरण न्यायालय में मामला दर्ज हो सकता है।