गृहस्थों की हत्याओं का काला इतिहास

कोटा की लडक़ी रिद्धि ने पति की अय्याश ज़िन्दगी, विवाहेतर रिश्तों के काले पन्ने बाँचने और तलाक के लिए मजबूर किये जाने के बावजूद अपनी शादी बचाने की भरपूर कोशिश की…। पति द्वारा लगातार हिंसा,मारपीट, गाली-गलौच और दुत्कार सहने के बाद भी वह पति के प्यार में सिर से पाँव तक डूबी रही; लेकिन पति ने उसकी कद्र नहीं की…। हैवानियत की तमाम हदें पार करते हुए उस वहशी शख्स ने ‘दूसरी औरत’ के फेर में पत्नी रिद्धि से पीछा छुड़ाने के लिए बेरहमी से उसका गला रेत दिया…। राजस्थान के उच्च मध्यम वर्ग में इन दिनों इसी तरह की अपराधवृत्ति की दुनिया बड़े भयानक तरीके से व्यापक होती जा रही है। इन हत्याओं में ऐसे कलयुगी पति हैं, जो दूसरी औरत के प्रेमजाल में बुरी तरह फँसकर ऐसे पगला जा रहे हैं कि जिसे रीति-रिवाज़ से पत्नी बनाते हैं, उसकी ही हत्या कर देते हैं। दूसरी तरफ ऐसी पत्नियाँ भी हैं, जो अपने पति की प्रेमिकाओं से प्रतिशोध लेने के लिए हिंसक हो रही हैं, यहाँ तक कि वे हत्याएँ कर या करा रही हैं।

हर घटना में दरकते दाम्पत्य रिश्तों, अवैध सम्बन्धों की त्रासदी है। राजस्थान में गृहस्थों की हत्याओं का काला इतिहास लिखा जा चुका है। ऐसी ही कुछ घटनाएँ खुलने के बाद भौचक्का करने वाली निकली हैं। इनन घटनाओं में कई ऐसी हैं, जिन्हें अभिजात्य परिवारों और सफेदपोशों ने अंजाम दिया है। पहले दाम्पत्य जीवन में आये तनाव की वजह पारिवारिक परम्पराओं के निर्वाह में वैचारिक मतभेद हुआ करता था। लेकिन अब अनेक घरों के आँगन में बात-बात पर खून की लकीरें खींच दी जाती हैं। कालांतर में ‘कमाऊ पत्नी’ की एक नयी नस्ल ने आज़ादी की चाहत में इस आग में घी का काम किया। नतीजतन दाम्पत्य सम्बन्धों की अन्त्येष्टि तलाक पर जाकर होने लगी। पारिवारिक अदालतें दरकते वैवाहिक रिश्तों की नयी गवाह बनने लगी। लेकिन अब खून झरते दाम्पत्य सम्बन्धों की उधड़ती सीवन बुरी तरह दहशतज़दा करती है। पेशेवर अपराधियों की निर्ममता को भी मात करने वाली घटनाएँ यह जानकर स्तब्ध करती  है कि इसका कर्ता उच्च वर्ग का है।  नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के रिपोर्ट कार्ड की मानें तो ‘अब रंजिशन घटनाओं का अपराध तो काफी गिर चुका है। लेकिन अधिकतर हत्याएँ कथित प्रेम सम्बन्धों और नाजायज़ रिश्तों के कारण होने लगी है।’ सबसे भयावह सच है इंसान का इंसान पर कब्ज़ा।’ समाजशास्त्री ऋतु सारस्वत का कहना है कि भारतीय समाज पिछले कुछ दशकों में एक सामाजिक-सांस्कृतिक संक्रमण से गुज़र रहा है। जहाँ सब कुछ त्वरित रूप से पाने की चाह है। चाहे वे रिश्ते हो या भौतिक चाह? इस त्वरित चाह ने व्यक्ति को दुस्साहसी बना दिया है। अभी हाल ही में जयपुर की पॉश कॉलानी प्रतापनगर की घटना को क्या कहा जाए, जिसमें रोहित तिवारी ने अपनी पत्नी श्वेता और मासूम बच्चे को सुपारी किलर से मरवा दिया। रोहित का किसी औरत से अफेयर था। दूसरी शादी कर नये सिरे से ज़िन्दगी शुरू करने के लिए रोहित ने मासूम बच्चे की भी हत्या कर दी, ताकि श्वेता की निशानी उसकी राह में बाधक न बने? रोहित आईओसीएल में मैनेजर था। कहा जाता है कि शादी के बाद के पिछले 11 साल से ही श्वेता और रोहित के दाम्पत्य सम्बन्धों में कड़ुवाहट चली आ रही थी। श्वेता के साथ आये दिन की मारपीट कोई नयी बात नहीं थी। श्वेता अपनी आशंका को माँ से साझा कर चुकी थी कि मुझे लगता है कि कोई दिन रोहित मेरी हत्या कर देगा? लेकिन सवाल है कि क्यों उसने निर्मम पति के साथ बने रहना कुबूल किया? टिप्पणीकार मेघा चावला की मानें तो महिलाओं की ज़िन्दगी,संघर्ष, अंदेशों और सपनों की तह तक पहुँच पाना भी तो इतना सहज नहीं? यहाँ कृष्ण कुमार की ‘चूड़ी बाज़ार में लडक़ी’ पुस्तक का अंश उद्धृत करना प्रासंगिक होगा कि ‘हमारा पूरा सामाजिक तंत्र पुरुष के भीतर मौज़ूद स्त्रीत्व को निर्मूल करने में सक्रिय रहता है। इसलिए पुरुष के भीतर स्त्री को लेकर एक अपराध बोध होता है। इसकी परिणतियाँ कई तरह की हिंसा और अन्याय में होती है।’ ऋतु सारस्वत कहती है- ‘कड़वाहट भरे दाम्पत्य जीवन का निर्वाह करने वाली श्वेता कोई अकेली महिला नहीं है; देश में ऐसे हज़ारों दम्पति हैं, जो कड़ुवाहट भरा दाम्पत्य जीवन इस आस में जीते हैं कि शायद भविष्य में रिश्ते बेहतर बन जाएँ? यहाँ रिद्धि का उदाहरण दिया जा सकता है। पति कपिल की बेवफाई के बावजूद उसे रिश्ते सुधरने की उम्मीद थी कि शायद कोई कोशिश उसकी टूटती गृहस्थी को बचा ले? लेकिन कपिल के कृपालु चेहरे के पीछे एक दानवी चेहरा छिपा था। उसे वो कहाँ देख पा रही थी? तलाक के कागज़ों पर दस्तखत कराने के लिए कपिल ने बड़े अनुरागपूर्ण ढंग से रिद्धि को बाहों में लेते हुए कहा- ‘रिद्धि माई डाॄलग, मैं तुम्हें उतना ही चाहता हूँ, जितना हर्षा को? वो मेरा पहला प्यार है और तुम मेरी हसीन बीवी। मैं चाहता हूँ, तुम दोनों मेरी ज़िन्दगी में बनी रहो। रिद्धि ने सच्चा, लेकिन कड़ुवा जवाब दे दिया- ‘आज हर्षा की खातिर मुझे छोड़ रहे हो? कल किसी ओर की खातिर हर्षा को छोड़ देना… फिर कोई और, फिर कोई और? चलता रहेगा यही सिलसिला क्यों? तू नहीं और सही…और नहीं और सही…! यह रिद्धि के आिखरी शब्द थे। उसके बाद कपिल के हाथों में फलदार चाकू लहराया और रिद्धि की गर्दन को रेतता हुआ चला गया। कपिल को बेशक उम्र कैद की सज़ा हो गयी। लेकिन ऐसे िकस्सों का सिलसिला तो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा? यहाँ मद्रास न्यायालय की टिप्पणी बहुत कुछ कह जाती है कि क्यों वैवाहिक सम्बन्ध इतने घातक मोड़ पर पहुँच जाते हैं कि दम्पति एक दूसरे की हत्या करने और करवाने से भी नहीं हिचकते।

वरिष्ठ पत्रकार गायत्री जयरामन द्वारा खील-खील होते दाम्पत्य सम्बन्धों पर किये गये शोध में इस बात की तरफ संकेत किया गया था कि आजकल इंटरनेट किस तरह पति-पत्नी को धोखा देने के औज़ार के रूप में उभर रहे हैं। उनका कहना था- ‘अवैध सम्बन्ध उन लोगों का एक सुकून भरा विकल्प है, जो शादी के बन्धन में खुद को कैद पाते हैं और शादी उन्हें किसी दूसरे के साथ सैक्स का आनंद लेने से रोकती है। कुछ लोग शादी को बचाये रखने का नाटक भी करते हैं। ऐसे लोगों का मानना है कि आप उसे खत्म कर देंगे, तो बचेगा क्या? बहरहाल इस तरह के लोग बस गिनती के हैं। पिछले दिनों भरतपुर की घटना ने तो पूरे सूबे में कोहराम मचा दिया था। विवाहित डॉक्टर सुदीप गुप्ता, अपने क्लिनिक की रिसेप्शनिस्ट दीपा गुर्जर पर आसक्त क्या हुए कि उनकी पत्नी डॉक्टर सुरेखा गुप्ता ने पति और ‘वो’ को सबक सिखाने के लिए उसे ज़िन्दा जला डाला। जीवित अग्निदाह में दीपा मासूम बेटे शौर्य की भी बलि दे दी गयी। कहा जाता है कि इस साज़िश में डॉक्टर सुदीप गुप्ता बराबर का साझीदार था। वजह, विवाहेतर सम्बन्ध डॉक्चर गुप्ता पर भारी पडऩे लग गये थे। दीपा उसे ब्लेकमेल पर उतारू हो गयी थी कि ‘मुझसे शादी करो और बेटे को पिता का नाम दो!’ वर्चस्व का बोध और लालसा ने कितना कोहराम मचाया? कहने की ज़रूरत नहीं। मद्रास हाई कोर्ट की टिप्पणी ऐसे मामलों में बहुत कुछ कह जाती हैं कि ऐसे रिश्ते गम्भीर अपराधों का आधार बनते हैं।

एक सर्वेक्षण कहता है कि जो लोग शादीशुदा ज़िन्दगी में रहने के बावजूद विवाहेतर सम्बन्ध बनाये रखते हैं।, उनकी संख्या करीब 55 प्रतिशत है। सोशल मीडिया में इस बात के भी संकेत मिलते हैं कि कुछ विवाहित लोग अविवाहित होने का स्वाँग रचकर मेट्रोमोनियल या डेेटिंग साइटों पर अपना प्रोफाइल दर्ज कराने में जुटे रहते हैं। लेकिन मुश्किलों का दौर तो तब शुरू होता है, जब यह रिश्ते ज़िन्दगी पर भारी पडऩे लगते हैं।

समाजशास्त्रियों का कहना है कि नये ज़माने की उन्मुक्त स्त्री के िकरदार के दो छोर है- ‘मर्द भी चाहिए, और मर्द से आज़ादी भी।’ असली चुभन की शुरुआत यहीं से होती है। नतीजतन पत्नी और प्रेमिका दोनों एक-दूसरे के सामने बरक्स खड़े हैं। मनेाचिकित्सक डॉक्टर प्रमिला अग्रवाल कहती हैं कि पति-पत्नी के बीच बेहतर तालमेल नहीं बैठ पाने की स्थिति में ही उनके दाम्पत्य जीवन में ‘वो’ का प्रवेश होता है। समाजशास्त्री विनीत मिश्रा कहते हैं कि तलाक आजकल महिलाओं के लिए सबसे सशक्त हथियार है। स्त्री बड़ी रकम हथियाकर ही पुरुष को मुक्त करती है। मर्दों के लिए यह आसान विकल्प नहीं है। नतीजतन वो हिंसा का दामन थामता है कि ‘न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी।’ लेकिन यह विकल्प तो आिखर जीवन का अन्त ही है। रोहित तिवारी और डॉक्टर सुदीप ने शायद यही विकल्प चुना! मनोचिकित्सक डॉक्टर प्रमिला अग्रवाल कहती है कि कहीं आधुनिक जीवन शैली ही तो इसकी बड़ी वजह नहीं? आज तो डेटिंग, लिव-इन रिलेशन आदि ने एक-दूसरे को जानने के बेहतर मौके दे दिये हैं। फिर भी न सिर्फ शादियाँ टूट रही है, बल्कि इसके गर्भ से दो भयावह चेहरे उभर रहे हैं। तलाक के लिए वसूली पर उतारू स्त्री और छुटकारे के लिए हत्यारा बनता पति!