गाँवों में शिक्षा की ज्योति जला रहा जेएसओ

यह संगठन अपने दम पर गाँवों में आधुनिक लाइब्रेरियाँ खोलकर सुविधाहीन बच्चों की पढऩे में मदद कर रहा है

शिक्षा के बाज़ारीकरण के इस दौर में जब अनेक लोग प्राइवेट स्कूल-कॉलेज खोलकर मोटी कमायी कर रहे हैं, कुछ लोग तथा संगठन अपने दम पर उन बच्चों को शिक्षा और शैक्षणिक सुविधाएँ मुहैया करा रहे हैं, जो सुविधा और संसाधनहीन हैं। कहने का मतलब है कि देश के अनेक गरीब बच्चों को ऐसे लोग या संगठन शिक्षा के संसाधन मुहैया करा रहे हैं; ताकि ये बच्चे भी पढ़-लिखकर अपने जीवन को बेहतर बना सकें। इन प्राइवेट स्कूलों और यहाँतक कोचिंग सेंटरों का धंधा इसी बाज़ारीकरण के चलते पनप रहा है, जिसकी एक वजह ग्रामीण क्षेत्र के अधिकतर सरकारी स्कूलों में बेहतर पढ़ाई का न होना भी है। आज देश के छोटे-छोटे गाँवों में भी प्राइवेट स्कूल खुले मिल जाएँगे। लेकिन गाँवों के लाखों बच्चे उच्च स्तर की शिक्षा हासिल नहीं कर पाते। इसके दो कारण हैं, पहला है अधिकतर गाँवों में उच्च स्तरीय शिक्षण संस्थानों का अभाव और दूसरा गरीबी। ऐसे में हरियाणा में जमींदारा छात्र सभा (जेएसओ) नाम का संगठन गाँवों के बच्चों को मुफ्त में शिक्षा सुविधाएँ मुहैया कराने के लिए आगे आया है। जेएसओ ने गाँवों में आधुनिक लाइब्रेरियाँ खोलनी शुरू कर दी हैं। यह लाइब्रेरियाँ इतनी आधुनिक हैं कि इनके आगे कई सरकारी लाइब्रेरियाँ भी फीकी हैं। इन लाइब्रेरियों में छोटी कक्षाओं से लेकर उच्च शिक्षा और विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी हेतु किताबें मौज़ूद हैं। इतना ही नहीं इस संगठन द्वारा खोली गयी लाइब्रेरियों में कम्प्यूटर, जेनरेटर और पढऩे वालों के लिए स्वच्छ पानी आदि की पूरी व्यवस्था की गयी है।

जमींदारा छात्र सभा के प्रमुख इंद्र्रजीत बराक ने इसे शुरू किया है, जिसमें और भी कई पदाधिकारी तथा सदस्य अपने-अपने स्तर पर आर्थिक तथा अन्य तरह की मदद कर रहे हैं। इंद्रजीत बराक, नवीन चहल और मीत मान ने बताया कि लाइब्रेरी बनाने से पहले गाँव जेएसओ इसके लिए गाँव को गोद लेता है। उन्होंने और संगठन के बाकी सदस्यों ने पहले मालकोष गाँव को गोद लिया और फिर गाँव में यह लाइब्रेरी बनायी। बराक के अनुसार, हम देश भर में ऐसे सदस्य बना रहे हैं, जो समर्थ हैं और गाँवों के ही नहीं शहरों के भी गरीब बच्चों की शिक्षा में कुछ योगदान करना चाहते हैं। सदस्य बनाने के बाद हम ऐसे लोगों से लाइब्रेरी निर्माण में सहयोग की अपील करते हैं और हमें इस काम में सभी की कुछ-न-कुछ मदद मिल भी रही है। उन्होंने कहा कि अभी लाइब्रेरी बनाने की शुरुआत हमने के मालकोष गाँव, चरखी दादरी से की है। इस लाइब्रेरी में आरम्भिक शिक्षा से लेकर उच्च स्तरीय शिक्षा तथा प्रतियोगी परीक्षाओं तक की अधिक-से-अधिक किताबों के अलावा कम्प्यूटर की सुविधा भी है। बच्चों के बैठने की अच्छी व्यवस्था इस लाइब्रेरी में की गयी है। उन्होंने कहा कि लॉकडाउन और कोरोना की वजह से हम थोड़ा पिछड़ गये; लेकिन फिर भी अब तक हरियाणा में तीन लाइब्रेरी बनकर तैयार हो चुकी हैं, जिनमें जल्द ही झज्जर ज़िले भुरावास गाँव और लोहारू ज़िला के बराहलू गाँव में भी बाकी दो लाइब्रेरी भी सुचारू हो जाएँगी। इसके अलावा जल्द ही ज़्यादा-से-ज़्यादा गाँवों में ज़्यादा-से-ज़्यादा लाइब्रेरियाँ बनाने की दिशा में काम किया जाएगा। इंद्रजीत बराक ने बताया कि मालकोष गाँव की लाइब्रेरी गाँव के लोगों की एक समिति बनाकर तैयार की गयी है। इसके लिए हमने सरकार से कोई भी मदद नहीं ली है। हमारा उद्देश्य गाँवों के बच्चों को बेहतरीन शिक्षा के लिए प्रेरित करना और उन्हें पढ़ाई के संसाधन उपलब्ध कराना है।

इंद्रजीत बराक कहते हैं कि अभी लाइब्रेरी बनाने का काम हरियाणा से शुरू हुआ है, जिसे हम दूसरे राज्यों में ले जाएँगे और ग्रामीण लोगों को प्रेरित करेंगे कि वह इस मुहिम में हिस्सा लें, ताकि उनके बच्चे अच्छी शिक्षा ग्रहण करके अपना भविष्य उज्ज्वल कर सकें। उन्होंने कहा कि हमारा लक्ष्य ज़मीनी स्तर पर बेहतर काम करने का है। जमींदारा छात्र संगठन के महासचिव मीत मान बताते हैं कि गाँवों में लाइब्रेरियाँ बनाना एक बहुत ही ज़रूरी तथा खास कदम है, जो कि आज के समय की माँग है। उन्होंने कहा कि जल्द ही पूरे राज्य (हरियाणा) में इसी तरह की एक आधुनिक लाइब्रेरी हर गाँव में खोलने का जेएसओ का लक्ष्य है; ताकि गाँवों के बच्चे पढ़-लिख सकें और धर्म, भाषा, क्षेत्र तथा ज़ात-पात के नाम पर खेली जा रही गन्दी राजनीति का शिकार होने से बचे रहें और एक सही दिशा में चलकर एक बेहतर राष्ट्र का निर्माण करें। संगठन के प्राथमिक सदस्य मालकोष गाँव के निवासी नवीन चहल ने बताया कि किसानों और मज़दूरों के बच्चों की पढ़ाई में कई अड़चने आती हैं, जिन्हें हम बहुत ज़्यादा तो दूर नहीं कर पा रहे हैं; लेकिन गाँव के बच्चों की पढ़ाई न रुके इसके लिए लाइब्रेरी बना रहे हैं, जिनमें गाँवों के बच्चे बिना कोई फीस दिये पढ़ सकते हैं। जब हमने गाँव वालों के सामने यह बात रखी, तो अनेक लोगों ने खुशी-खुशी जो भी सम्भव हो सकी, मदद की। अब मालकोष गाँव की इस लाइब्रेरी में कम्प्यूटर और एकेडमिक किताबें हैं। लाइब्रेरी में पंचायत के सहयोग से इन्वर्टर, बैट्री और सोलर पैनल की व्यवस्था करवा दी गयी है, ताकि बिजली न होने पर बच्चों की पढ़ाई में कोई दखल न पड़े। हम लोग हर 15 दिन में लाइब्रेरी के सम्बन्ध में एक सामाजिक बैठक करते हैं, जिसमें यहाँ पढऩे वाले बच्चों को देश के वर्तमान हालात से अवगत कराया जाता है। चहल बताते हैं कि पहले-पहल इस लाइब्रेरी में बहुत कम बच्चे पढऩे आते थे; लेकिन अब बच्चे की संख्या काफी हो गयी है; यहाँ तक कि पड़ोस के गाँवों के बच्चे भी अब लाइब्रेरी में पढऩे आते हैं। लाइब्रेरी में किसी बच्चे से कोई शुल्क नहीं लिया जाता है। हमने कोई सरकारी मदद भी अब तक नहीं ली है। उन्होंने कहा अब शहरों तक में बहुत-सी सरकारी लाइब्रेरियों की दशा खराब होती जा रही है। आज अनेक सरकारी लाइब्रेरियाँ केवल औपचारिकता पूरी करने के लिए खड़ी हैं, उनमें कई लाइब्रेरियाँ ऐसी हैं, जिनमें आधुनिक कुछ भी नहीं है; वो जैसी वर्षों पहले थीं, आज भी वैसी ही हैं। इसके अलावा गाँव के बच्चों के लिए उन लाइब्रेरियों में जाना इसलिए भी मुश्किल है, क्योंकि वो बहुत दूर होती हैं। इसलिए मालकोष की इस लाइब्रेरी को हम गाँव के बच्चों के लिए नयी रोशनी की किरण भी कह सकते हैं। इस लाइब्रेरी में बच्चों को किताबी ज्ञान देने के अलावा सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर भी मज़बूत किया जा रहा है, ताकि वह देश की तरक्की में अपना बहुमूल्य योगदान दे सकें।

बराक ने बताया कि 2013 में मालकोष गाँव में सांसद निधि से एक छोटा-सा पंचायत घर बनाया गया था, जिसका उद्देश्य पंचायत आदि की बैठक आयोजित करना था। लेकिन यह पंचायत घर कई साल से जर्जर हालत में था, जिसकी मरम्मत नहीं हो रही थी। हमने वर्तमान पंचायत समिति से इस पंचायत घर को जेएसओ के नाम अधिकृत करवाया, जिसके बाद इसकी मरम्मत करवाकर, बिजली, पानी, शौचालय और अन्य सुविधाएँ मुहैया कराकर इसे लाइब्रेरी का रूप दे दिया गया। इस काम में अनेक दिक्कतें भी आयी; मसलन शुरू में यह एक राजनीतिक मुद्दा बनने लगा था, लेकिन किसान बिजेन्द्र चहल और अन्य समझदार लोगों की मदद से इस लाइब्रेरी का काम पूरा हुआ और अब इसमें अनेक बच्चे पढ़ते हैं। उन्होंने कहा कि बड़ी बात यह है कि मालकोष गाँव में आज भी मूलभूत सुविधाओं की कमी है, गाँव में पीने का साफ पानी तक उपलब्ध नहीं है। इसके बावजूद हमने और ग्रामीणों ने मिलकर इस गाँव को एक आधुनिक लाइब्रेरी दी है, जो यहाँ के बच्चों का भविष्य उज्ज्वल करने में सहयोग करेगी। उन्होंने कहा कि बड़े सम्मान की बात है कि इस गाँव के हर परिवार का कोई-न-कोई सदस्य सेना में है; लेकिन यह भी अफसोस है कि गाँव का एक भी खिलाड़ी राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय स्तर का नहीं है, जिसके लिए बच्चों को अब प्रेरणा भी दी जा रही है। बराक ने कहा कि संविधान के रचयिता बाबा साहब भीमराव अंबेडकर का सपना था कि गाँव-गाँव में शिक्षा की ज्योति जले और हर बच्चा शिक्षित हो। यह लाइब्रेरी बाबा साहब के सपने को साकार करने में मील का पत्थर साबित होगी। आज जब कोरोना वायरस के चलते स्कूल-कॉलेज बन्द हैं और डिजिटल पढ़ाई हो रही है, तब अधिकतर गाँवों के बच्चे, खासकर गरीबों के बच्चे सुविधाओं के अभाव में ऑनलाइन पढ़ाई से वंचित रह रहे हैं। ऐसे बच्चों के लिए भी यह लाइब्रेरी काफी महत्त्वपूर्ण है।

बता दें कि बराक बिल्डिंग मैटेरियल का व्यवसाय करते हैं और अभी तक जमींदारा छात्र सभा संगठन में हर तरह के सहयोग से लेकर वह काफी कुछ कर चुके हैं। उन्होंने बताया कि जेएसओ में अब 10 हज़ार से भी अधिक सदस्य हैं, जिनकी संख्या बढ़ाने के लिए मुहिम चालू है, ताकि ज़्यादा-से-ज़्यादा गाँवों में लाइब्रेरियाँ खोली जा सकें। उन्होंने बताया कि संगठन का मकसद गरीब बच्चों को लाइब्रेरी के ज़रिये वे किताबें और सुविधाएँ मुहैया कराना है, जिनके अभाव में वे पढ़ नहीं पाते। अभी इस कड़ी में एक लाइब्रेरी शुरू हुई है और दो अन्य लाइब्रेरियाँ बनकर तैयार हैं; लेकिन भविष्य में इस मुहिम को पूरे देश में ले जाने की योजना है, जिसे इस संगठन से जुड़ रहे लोगों की मदद से पूरा किया जाएगा।