खेलों में भारत का परचम लहराती महिला खिलाड़ी

अंतर्राष्ट्रीय खेलों में भारतीय अंक तालिका अब उतनी निराशा नहीं देती जितनी कुछ साल पहले तक देती थी। खासकर महिलाओं ने खेलों में तिरंगे की शान बढ़ाई है।  सिर्फ इसी साल की बात करें तो तीन महिला खिलाडिय़ों ने भारत का नाम खेलों की दुनिया में ऊंचा किया है।

सबसे पहले जि़क्र वर्ल्ड बैडमिंटन चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रचने वाली पीवी सिंधु का। सिंधु ने वर्ल्ड बैडमिंटन चैंपियनशिप में जापान की नोजोमी ओकुहारा को हराकर भारत के लिए गोल्ड जीता और पुरषों और महिलाओं में ऐसा करने वाली पहली भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी बनीं। सिंधु ने ओकुहारा को सीधे गेमों में 21-7, 21-7 से परास्त किया। मुकाबला महज 38   मिनट चला एयर इस जीत के साथ ही सिंधु ने ओकुहारा से खिलाफ अपना करियर रिकॉर्ड 9-7 कर लिया है। भारतीय बैडमिंटन स्टार सिंधु ने इस ऐतिहासिक जीत के साथ ही 2017 के फाइनल में ओकुहारा से मिली हार का हिसाब भी बराबर कर लिया।

साल 2017 और 2018 में रजत के अलावा  2013 और 2014 में कांस्य पदक जीत चुकीं सिंधु ने पहले गेम में अच्छी शुरुआत की और 5-1 की बढ़त बना ली। फिर   वह 12-2 से आगे हो गईं। लगातार तीसरे साल फाइनल में पहुंचने वाली सिंधु ने इसके बाद पीछे मुडक़र नहीं देखा और 16-2 की लीड लेने के बाद 21-7 से पहला गेम जीत लिया। भारतीय खिलाड़ी ने 16 मिनट में पहला गेम अपने नाम किया। दूसरे गेम में सिंधु ने 2-0 की बढ़त के साथ शुरुआत करते हुए अगले कुछ मिनटों में 8-2 की लीड कायम कर ली। ओलम्पिक पदक विजेता भारतीय खिलाड़ी ने आगे भी अपने आक्रामक खेल के जरिए अंक लेना जारी रखा।

सिंधु ने मुकाबले में 14-4 की शानदार बढ़त बना ली। इसके बाद उन्होंने लगातार अंक लेते हुए 21-7 से गेम और मैच समाप्त करके बीडब्ल्यूएफ बैडमिंटन वर्ल्ड चैम्पियनशिप में पहली बार स्वर्ण पदक जीत लिया। बीडब्ल्यूएफ बैडमिंटन वर्ल्ड चैम्पियनशिप में सिंधु के अब पांच पदक हो गए हैं। इनमें एक स्वर्ण, दो रजत और दो कांस्य पदक शामिल हैं। सिंधु की नजर अब 2020 के टोक्यो ओलंपिक पर है। सिंधु ने कहा – “अभी काफी वक्त बचा है और एक एक करके ही कदम बढ़ाती हूं। अभी तो फिलहाल इस जीत का मजा उठाना चाहती हूं।‘‘ उन्होंने सभी चाहने वालों का शुक्रिया किया। उनका कहना था वह कड़ी मेहनत में भरोसा रखती हैं और युवाओं को भी ऐसा ही करने की सलाह देती हैं। ‘‘यह मेरे लिए बहुत मायने रखता है और जरूर मैं चाहती हूं कि देश के लिए और बहुत सारे मेडल जीत पाउं। मैं इस कामयाबी पर काफी खुश हूं।‘‘

सिंधु ने इस टूर्नामेंट में 2013 में पहली बार भाग लिया था और उसके बाद से अब तक वह इसमें 21 मैच जीत चुकी हैं। उनसे ज्यादा अब तक इसमें विश्व की किसी भी महिला खिलाड़ी ने पदक नहीं जीते हैं। सिंधु के नाम अब इसमें पांच पदक हो गए हैं।  इनमें एक स्वर्ण, दो रजत और दो कांस्य पदक शामिल हैं। अब सिंधु महिला एकल में एक स्वर्ण, रजत और कांस्य पदक जीतने वाली दुनिया की चैथी खिलाड़ी बन गई हैं।  उनसे पहले ली लिंगवेई, गोंग रूइना और झांग निंग यह उपलिब्ध हासिल कर चुकी हैं। भारत की प्रसिद्ध महिला बैडमिंटन खिलाड़ी सायना नेहवाल ने 2015 और 2017 में इस टूर्नामेंट में कांस्य पदक जीते थे। पुरुष भारतीयों में प्रकाश पादुकोण (1983) और बीसाई प्रणीत (2019) ने इसमें अब तक कांस्य पदक जीते हैं। सिंधु पद्मश्री अवार्ड जीतने वाली सबसे युवा खिलाड़ी रहीं उन्हें यह सम्मान 2015 में दिया गया था। इससे पहले वह अर्जुन अवार्ड और राजीव गांधी खेल रत्न भी हासिल कर चुकी हैं।

स्वर्ण परी – हिमा दास

इक्कीस दिन में 6 स्वर्ण पदक। यह लाजवाब प्रदर्शन हिमा दास ही कर सकती हैं। खेल की दुनिया में एथलीट हिमा दास ने जबरदस्त धाक जमा दी है। चेक गणराज्य में आयोजित ट्रैक एंड फील्ड प्रतिस्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने का सिलसिला बरकरार रखा। महज 21 दिन के अंदर छह स्वर्ण पदक जीतकर जो कारनामा हिमा ने कर दिखाया है, वह इतिहास बन गया है।

पिछले एक साल में भारत की जो खिलाड़ी चैंपियन बनकर उभरी हैं वो हैं हिमा दास। पिछले साल जकार्ता एशियन गेम्स से पहली बार दुनिया की नजरों में आईं हिमा अब देश के हर खेल प्रेमी की आंखों का तारा बन गयी हैं। सिर्फ 18 साल की हिमा आज अपने प्रदर्शनों से सभी को चैंका रही है।

जकार्ता एशियन गेम्स में राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ते हुये उसने रजत पदक जीता था, लेकिन इस साल चेक गणराज्य में आयोजित ट्रैक एंड फील्ड प्रतिस्पर्धा में 21 दिन के अंदर छह स्वर्ण पदक जीतकर जो कारनामा हिमा ने कर दिखाया है, वह सामान्य बात नहीं। इस प्रतियोगिता के दौरान हिमा ने 400 मीटर की दौड़ में 51.46 सेकंड का समय निकालकर स्वर्ण पदक जीता है और वह ये उपलब्धि हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला एथलीट बन गई हैं।

उल्लेखनीय है कि हिमा ने असम बाढ़ पीडि़तों को अपनी पुरस्कार राशि का एक बड़ा हिस्सा दान कर दिया है। किसी नए खिलाड़ी के लिए इस तरह का भावनात्मक कदम प्रशंसनीय और प्रेरक पहल है। वर्ल्ड अंडर 20 चैंपियनशिप में पांच गोल्ड जीतकर हिमा दास ने इतिहास रच दिया है। हिमा (19) का जन्म असम के छोटे से इलाके धींग में हुआ। अलग-अलग स्तर पर उन्होंने निपन दास, नबजीत मलकर और गलिना बुखारिन से कोचिंग ली।

वैसे 400 मीटर महिला वर्ग में हिमा दास की वर्तमान रैंकिंग 87 है जबकि ओवर ऑल वो 1250 रैंक पर हैं। अगर उनका प्रदर्शन ऐसे ही शानदार रहा तो जल्द ही वो ऊपरी पायदान पर नजर आएंगी। उनके सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन की बात करें तो 100 मीटर्स में 11.74 सेकेंड, 200 मीटर्स में 23.10 सेकेंड, 400 मीटर्स में 50.79 सेकेंड रहा है। हिमा अंडर 20 चैंपियनशिप से पहले भी अपने नाम गोल्ड मेडल कर चुकी हैं। उन्होंने 400 मीटर में दो बार गोल्ड जीते हैं। इनके अलावा वो सिल्वर और ब्रॉन्ज मेडल भी अपने नाम कर चुकी हैं।   हालांकि खेल के जानकार मानते हैं कि हिमा दास के लिए अभी लंबा रास्ता सामने है और अंतर्राष्ट्रीय स्टार पर नाम कमाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी।

आगे बढ़ती दुती चंद

नपोली में राष्ट्रीय रिकॉर्डधारी दुती चंद विश्व यूनिवर्सिटी खेलों में 100 मीटर की दौड़ में स्वर्ण पदक जीतकर इन खेलों में अव्वल रहने वाली पहली भारतीय महिला ट्रैक और फील्ड खिलाड़ी बन गई। 23 साल की दुती ने 11.32 सेकंड का समय निकालकर रेस जीती। चैथी लेन में दौड़ते हुए दुती आठ खिलाडिय़ों में पहले नंबर पर रही। स्विट्जरलैंड की डेल पोंटे (11.33 सेकंड) दूसरे स्थान पर रही। जर्मनी की लिसा क्वायी ने कांस्य पदक जीता।

ओडिशा की दुती वैश्विक स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाली हिमा दास के बाद दूसरी भारतीय ऐथलीट बन गई। हिमा ने पिछले साल विश्व जूनियर एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में 400 मीटर में पीला तमगा जीता था। दुती ने एशियाई खेल 2018 में 100 और 200 मीटर में रजत पदक जीता था। वह यूनिवर्सिटी खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली दूसरी भारतीय खिलाड़ी बन गई।

उनसे पहले इंदरजीत सिंह ने 2015 में पुरुषों के शॉटपुट में स्वर्ण जीता था। हाल ही में समलैंगिंक रिश्ते में होने की बात कबूल करने वाली दुती ने जीत के बाद कहा – ‘‘मुझे नीचे गिराने की कोशिश करो लेकिन मैं मजबूती से वापसी करुंगी।‘‘ उन्होंने कहा, ‘‘इतने सालों की मेहनत और आपके आशीर्वाद से मैंने विश्व यूनिवर्सिटी खेलों में 100 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीता।‘‘ इससे पहले उन्होंने 11.41 सेकंड का समय निकालकर फाइनल के लिए क्ॅवालीफाई किया था। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने दुती को ट्विटर पर बधाई देते हुए कहा, ‘यूनिवर्सिटी खेलों में 100 मीटर फर्राटा जीतने पर दुती को बधाई। यह भारत का इन खेलों में पहला स्वर्ण है और हम काफी गौरवान्वित हैं। इस प्रदर्शन को ओलिंपिक में बरकरार रखें।’

वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतने वाली पीवी सिंधु की  के बीच भारत ने बैडमिंटन में एक और गोल्ड जीता। पैरा वर्ल्ड बैडमिंटन चैंपियनशिप में भारत की मानसी जोशी ने महिला एकल वर्ग के फाइनल में भारतीय पारुल परमान को 21-12, 21-7 से हराया। पारुल डिफेंडिंग चैंपियन थीं।

जीवट से भरपूर मानसी की कहानी लाजवाब है। गुजरात और महाराष्ट्र में पली-बढ़ी मानसी 6 साल की उम्र से अपने साइंटिस्ट पापा के साथ बैडमिंटन खेलती थीं।  मानसी ने 2010 में इलेक्ट्रॉनिक्स से इंजीनियरिंग की लेकिन बैडमिंटन खेलना जारी रखा। साल 2011 उनके लिए बहुत बुरा रहा। मानसी टू-व्हीलर से कहीं जा रही थीं और ट्रक ने टक्कर मार दी। हादसे में उन्होंने अपना बायां पांव खो दिया। इस दौरान वह करीब 2 महीने तक अस्पताल में रहीं। इसके 3 साल बाद उन्होंने फिर से बैडमिंटन खेलना शुरू किया था। वह पुलेला गोपीचंद के अकादमी में ट्रेनिंग करती रही हैं। सितंबर 2015 में उन्होंने पारा बैडमिंटन वर्ल्ड चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल जीता। 2017 में उन्होंने पैरा बैडमिंटन वर्ल्ड चैंपियनशिप में ब्रॉन्ज मेडल जीता। 2018 में उन्होंने एशियन पैरा गेम्स में ब्रॉन्ज मेडल जीता था। मानसी जोशी को बचपन से ही बैडमिंटन में दिलचस्पी थी। मुंबई के भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में पिता काम करते थे और यहीं मानसी ने इस खेल की बारीकियां सीखनी शुरू कीं। मानसी के खेल में निखार आने लगा और स्कूल और जिला स्तर पर उन्होंने खिताब जीतने शुरू कर दिए। लेकिन 2011 में उनकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल गई। एक सडक़ दुर्घटना के चलते वह करीब दो महीने तक अस्पताल में रहीं।

पढ़ाई से इलेक्ट्रॉनिक इंजिनियर 30 वर्षीय मानसी ने हार नहीं मानी और 8 साल बाद उन्होंने पैरा बैडमिंटन चैंपियनशिप, बासेल स्विट्जरलैंड में सोने का तमगा जीता। रविवार को पीवी सिंधु के खिताब जीतने से कुछ घंटे पहले मानसी पदक जीत चुकी थीं। फाइनल में उनके सामने उन्हीं के राज्य की पारुल परमार थीं। पारुल डिफेंडिंग चैंपियन थीं। मानसी ने महिला एकल के फाइनल में जीत हासिल की। इस कैटिगरी में वे खिलाड़ी शामिल होते हैं जिनके एक या दोनों लोअर लिंब्स काम नहीं करते और जिन्हें चलते या दौड़ते समय संतुलन बनाने में परेशानी होती है।