खींच ही लाता है शिल्प का आकर्षण

पॉटरी तैयार करने के लिए कभी 15 दिन में एक बार चलती थी कोयेले की भट्टी

देश की सांस्कृतिक परम्परा को बचाये रखने के लिए शिल्पकारों का बचे रहना ज़रूरी है; साथ ही उनके शिल्प को अहमियत देने की भी ज़रूरत है। समय के साथ बदलाव को देखते हुए लोगों का आकर्षण पुन: देसीपन की ओर गया है। इससे लोग अब शिल्प से जुड़े उत्पादों को अहमियत और प्राथमिकता देने लगे हैं। चंडीगढ़ में 15 से 24 नवंबर तक 11वें राष्ट्रीय शिल्प मेले का आयोजन किया गया। इसमें देश-भर के क्राफ्ट से जुड़े शिल्पकार जुटे और अपने-अपने अनुभव बताये।

खुर्जा से आये सुल्तान अहमद पिछले 18 साल से पॉटरी (मिट्टी के बर्तन) के काम में लगे हैं। सुल्तान ने बताया कि एक समय था, जब कोयले की भट्टी का इस्तेमाल किया जाता था। 15 दिन में एक बार चलती थी और सारा माल तैयार हो जाता था। लेकिन अब ची•ों बदल गयी हैं। अब काफी खर्च किये जाने के बाद अडानी का गैस प्लांट लग गया है; लेकिन इससे छोटे व्यापारियों पर खतरा मँडराने लगा है। कोयल की भट्टी से प्रदूषण फैलने की बात पर सुल्तान कहते हैं कि छोटे व्यापारियों के लिए सरकार िकस्तों में गैस भट्टी लगाने की व्यवस्था करे। अडानी का गैस कनेक्शन फ्री में किया जाए साथ ही प्रशिक्षण की भी व्यवस्था की जाए।

मार्बल क्राफ्ट के कारोबार में आये मोहाली के सेवक सिंह मायूस नज़र आये। जब उनसे जानना चाहा, तो उन्होंने बताया कि लोग हस्तशिल्प से जुड़ी चीज़ों को देखने के लिए तो जुटते हैं, लेकिन छोटे-छोटे आइटम भी बेहद कम खरीद रहे हैं। सेवक सिंह ने बताया कि वह ऑनेक्स मार्बल अफगानिस्तान से मँगवाते हैं। इनकी विशेषता यह है कि पारदर्शी, चमकीला और ओरिजनल है। उनका मानना है कि प्लास्टिक को हटाने में भी यह मार्बल यह सहायक हो सकता है। सेवक को मलाल इस बात कहा है कि निर्यात करने में दिक्कत आती है साथ ही वाया पाकिस्तान आता था; लेकिन ट्रांसपोर्टेशन बन्द होने से यह और महँगा पड़ रहा है। भारतीय मार्बल सफेद और इससे भी कई उत्पाद तैयार किये जाते हैं। तैयार करने में बढ़ते लेबर खर्च को लेकर भी चिन्ता जतायी।

पश्चिम बंगाल के मिदनापुर •िाले के सारता गाँव से पहुँचे शिल्पकार खुश नज़र आये। वे नेचुराल फाइबर से बनी चटाइयाँ, पर्स और अन्य कई चीज़ें लाये, जिनके ज़रिये उन्होंने अच्छा कारोबार किया। शिल्पकार ने बताया कि उनके शिल्प उद्योग में दो से तीन हज़ार तमिल शिल्पकार काम करते हैं।

दरअसल, नेचुरल फाइबर खास िकस्म की घास है, जिसकी साल में तीन पैदावार हो जाती हैं या कहें कि तीन फसल मिल जाती हैं। इस घास को पानी में भिगोने, फिर सुखाने की प्रक्रिया में काफी समय लगता है, इसके बाद बहुद्देश्यीय क्राफ्ट तैयार किया जाता है। इसकी माँग देश से लेकर विदेश तक में भी बढ़ रही है।