खिलाडिय़ों से अनैतिकता

सरकार जब ‘खेलो इंडिया’, जो कि खेल के विकास के लिए एक राष्ट्रीय कार्यक्रम है , जिसमें बड़े पैमाने पर भागीदारी और खेलों में उत्कृष्टता को बढ़ावा देने के दोहरे उद्देश्यों को प्राप्त किया जाना है, भारतीय कुश्ती महासंघ एक बदसूरत लड़ाई में उलझा है। तूफ़ान की केंद्र में और कोई नहीं, बल्कि डब्ल्यूएफआई के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह हैं, जो केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी के सांसद भी हैं। यह बेहद गम्भीर मुद्दा है, क्योंकि ओलंपिक पदक विजेता बजरंग पुनिया, साक्षी मलिक और राष्ट्रमंडल खेलों के पदक विजेता विनेश फोगाट ने आरोप लगाया है कि डब्ल्यूएफआई के ताक़तवर बॉस और कुछ अन्य कोच शिविरों में कई युवा महिला एथलीटों का यौन उत्पीडऩ कर रहे हैं। कुश्ती एक ऐसा खेल है, जो वैश्विक प्रतियोगिताओं में देश के लिए सबसे अधिक पदक ला रहा है। इस तरह की घटनाएँ देश के लिए पदक जीतने की उम्मीद रखने वाली युवा महत्त्वाकांक्षी महिला एथलीटों के सपनों को हमेशा के लिए चकनाचूर कर सकती हैं।

लगातार तीन बार के महासंघ के सांसद अध्यक्ष के ख़िलाफ़ कार्रवाई की माँग को लेकर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के जंतर-मंतर पर खेल जगत के दिग्गजों के नेतृत्व में सैकड़ों नवोदित पहलवानों ने प्रदर्शन किया था। अनुभवी पहलवान अपने युवा समकक्षों को समर्थन दे रहे थे, जो शक्तिशाली लॉबी का सामना करने से बहुत डरते थे। दु:खद सच यह है कि अतीत में भी कोचों और अधिकारियों के ख़िलाफ़ आरोप लगते रहे हैं। हाल में एक जूनियर महिला कोच द्वारा यौन उत्पीडऩ के आरोप लगाये जाने के बाद हरियाणा के मंत्री संदीप सिंह को खेल मंत्री के पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा था। उन्हें खेल मंत्रालय के प्रभार से वंचित कर दिया गया है; लेकिन विडंबना यह है कि वह मुद्रण और स्टेशनरी पोर्टफोलियो रखने वाले मंत्री बने हुए हैं। पिछले साल एक साइकिलिस्ट ने आरोप लगाया था कि आईओए के कोषाध्यक्ष चाहते थे कि वह अपना कमरा साझा करे और वह विदेशी शिविर छोडक़र चली गयी।

भारतीय ओलंपिक संघ, जिसके साथ डब्ल्यूएफआई संबद्ध है; ने पहलवानों द्वारा अपने अध्यक्ष को एक पत्र भेजे जाने और धरना शुरू करने के बाद आरोपों की जाँच के लिए एक समिति का गठन किया है। इस मामले को संवेदनशीलता के साथ सँभालने की ज़रूरत है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इच्छुक महिला एथलीट जो पहले से ही पीडि़त हैं, उन पर निजता का हनन न हो। अपनी ताक़त के बल पर पहले तो सिंह ने कहा कि वह पद नहीं छोड़ेंगे, केंद्र के दबाव के बाद आख़िर डब्ल्यूएफआई अध्यक्ष को पद से हटना पड़ा।

हालाँकि खेल प्रशासन में सड़ांध को रोकने के लिए यह पर्याप्त क़दम नहीं है। नवोदित महिला एथलीटों और उनके माता-पिता के बीच अधिक आत्मविश्वास पैदा करने के लिए, भारतीय खेलों को प्राधिकरण के पदों पर अधिक महिलाओं की आवश्यकता है, जो कोच और खेल संघों के प्रमुख के रूप में हों। संरक्षकों के ही यौन शोषण जैसे जघन्य अपराध में शामिल होने से ज़्यादा डरावना और क्या हो सकता है? यौन शोषण एक मनोवैज्ञानिक आघात देता है, जो पीडि़तों को हमेशा के लिए ज़ज़ख़्म दे देता है। खेलों के मामले में यह स्थिति एक दु:खद टिप्पणी है। समय आ गया है कि सभी हितधारक सामने आएँ और इस सड़ी व्यवस्था से छुटकारा पाने के लिए हाथ मिलाएँ। आरोप पुलिस जाँच की माँग करते हैं। ऐसे अपराधों के लिए जीरो टॉलरेंस का आदर्श होना चाहिए। ‘खेलो इंडिया’ जैसी कोई भी पहल तब तक वास्तव में सफल नहीं होगी, जब तक व्यवस्था में सुधार नहीं हो जाता।