ख़तरनाक मोड़ पर मणिपुर हिंसा

स्थिति से निपटने को लेकर मुख्यमंत्री पर उठ रहे सवाल

मणिपुर में हालात लगातार ख़राब हो रहे हैं। हिंसा ने राज्य में अब तक 100 के क़रीब लोगों की जान ले ली है और समुदायों के बीच पैदा हुई दूरी बढ़ती जा रही है। एक साल पहले ही दोबारा सत्ता में आयी भाजपा की सरकार इस बार इस मसले पर नाकाम साबित होती दिख रही है। मुख्यमंत्री नोंगथोम्बम बीरेन सिंह की छवि पर भी इससे बट्टा लगा है और उनकी कुर्सी ख़तरे में दिख रही है। मणिपुर में एन. बीरेन सिंह को कांग्रेस से भाजपा में आने के बाद 2017 में भाजपा ने मुख्यमंत्री बनाया था। दिलचस्प बात यह है कि मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह मैतेई समुदाय से ताल्लुक़ रखते हैं, जो अपने लिए अनुसूचित जनजाति के दर्जे की माँग कर रहा है। सरकार को हिंसा बढऩे के कारण कई क्षेत्रों में कफ्र्यू और इंटरनेट पर बैन लगाना पड़ा है, जिससे आम जनजीवन ठहर-सा गया है।

एक मोटे अनुमान के मुताबिक, राज्य भर में स्थिति से निपटने के लिए 10,000 से ज़्यादा सैन्य और अर्ध-सैन्य कर्मियों को तैनात करना पड़ा है। राज्य का एक बड़ा पहाड़ी हिस्सा है, जो नगालैंड, मिजोरम, असम के अलावा पड़ोसी देश म्यांमार से सटा है; जनजातियों पर आधारित है। यहाँ की बड़ी आबादी राज्य की कुल आबादी का क़रीब 37 फ़ीसदी है। वहाँ तनाव का असली कारण यह है कि बहुसंख्यक मैतेई समुदाय अनुसूचित जनजाति का दर्जा चाहता है। हालाँकि पहाड़ी क्षेत्र की जनजातियाँ, जिनमें कुकी और नगा जनजातियाँ प्रमुख हैं, इसका जबरदस्त विरोध कर रही हैं।

मणिपुर की हिंसा से केंद्र सरकार भी चिन्तित है। इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को तीन दिन तक वहाँ दौरा करना पड़ा। अमित शाह के दौरे के दौरान मणिपुर केबिनेट के साथ 30 मई को हुई बैठक में पाँच अहम फ़ैसले किये गये। इन निर्णयों को शान्ति प्रक्रिया के तहत पूरे राज्य में तुरन्त लागू किया जाएगा। शाह ने कुकी आदिवासी नेताओं के साथ एक बैठक में केंद्रीय जाँच ब्यूरो की तरफ़ से हिंसा की जाँच की भी बात कही है। बैठक में क़ानून व्यवस्था को दुरुस्त करने, राहत कार्यों में तेज़ी लाने, जातीय संघर्ष में मारे गये लोगों के परिवारों को 10 लाख रुपये का मुआवज़ा देने और परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने और अफ़वाहों को दूर करने के लिए बीएसएनएल की टेलीफोन लाइन फिर से खोलने के लिए आवश्यक कार्रवाई करने का निर्णय किया गया। दोनों ही समुदाय विरोध से पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। केंद्र सरकार भी इस मायने में नाकाम साबित हुई है कि उसने कई महीनों से सुलग रही आग को समझने में देरी की।

इधर चर्चित पत्रकार और फुटबॉलर रहे बीरेन सिंह को वैसे तो राज्य की ज़मीनी हक़ीक़त का माहिर माना जाता है; लेकिन हिंसा के इस दौर से वह राज्य को बाहर नहीं निकाल नहीं पाये हैं। कुकी और नगा जनजातियों और मैतेई समुदायों के बीच भडक़ी हिंसा को बीरेन सिंह रोकने में सफल नहीं रहे हैं। वहाँ बड़े पैमाने पर आगजनी और हिंसा हुई है। अर्ध सैनिक बलों को क़ानून-व्यवस्था सँभालने का ज़िम्मा दिया गया है। लेकिन असल मसला सि$र्फ क़ानून व्यवस्था का नहीं है, बल्कि समुदायों में बढ़ती दूरी का है, जो राज्य में भविष्य के लिए चिन्ता की बात है। राजनीतिक नेतृत्व सँभालने में फ़िलहाल नाकाम रहा है। राज्य में अब तक हज़ारों लोग बेघर हो चुके हैं। उन्हें शिविरों में रहना पड़ रहा है। मणिपुर में मैतेई समुदाय बहुसंख्यक समुदाय है। वह अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की माँग कर रहा है। कुकी और नगा जनजातियाँ इस माँग के विरोध में और नतीजा यह है कि इससे वहाँ हिंसा भडक़ रही है। मैतेई ट्राइब यूनियन (एमटीयू) ने इसे लेकर मणिपुर उच्च न्यायालय में एक याचिका भी डाली है, जिस पर मई के शुरू में सुनवाई करने के बाद उच्च अदालत ने राज्य सरकार से इस पर विचार करने को कहा था।

हालाँकि उच्च अदालत के सरकार को दिये गये सुझाव के अगले ही दिन ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन (एटीएसयू) ने चुराचांदपुर में एक रैली निकाली, जिसे उसने आदिवासी एकजुटता मार्च का नाम दिया। लेकिन इस मार्च के दौरान हिंसा भडक़ गयी, जिसने अब तक राज्य को अपनी लपटों में ले रखा है। राज्य के जानकारों का कहना है कि इतनी बड़ी हिंसा प्रदेश में पहले कभी नहीं हुई।

हिंसा पूरे राज्य में फैली है। इंफाल से लेकर दूरदराज़ के कांगपोकपी तक। वहाँ बड़ी संख्या में जले हुए मकान और वाहन हिंसा की कहानी ख़ुद कहते हैं। धार्मिक स्थलों पर भी हमले हुए हैं। राज्य में ऐसे बहुत से जानकार लोग हैं, जो मुख्यमंत्री को हिंसा में रोकने के लिए नाकाम रहने पर कठघरे में खड़ा करते हैं। मई के शुरू में जब राज्य में हिंसा भडक़ी थी, उससे पहले मुख्यमंत्री का एक बयान देश भर में सुर्ख़ियाँ बना, जिसमें उन्होंने कहा कि उनका राज्य म्यांमार से अवैध आप्रवासन का बड़ा ख़तरा झेल रहा है। मुख्यमंत्री के मुताबिक, उन्होंने इन अवैध आप्रवासियों की जाँच के लिए को समिति बनायी थी, जिसने 2,000 से ज़्यादा म्यांमार के नागरिकों की पहचान की है। राज्य सरकार ने म्यांमार के ऐसे 410 लोगों को हिरासत में लिया है।

जनजाति समुदायों की आशंका

कुछ रिपोटर्स के मुताबिक, कुकी जनजाति के बीच मुख्यमंत्री के रोल को लेकर नाराज़गी है। मैतेई समुदाय का कहना है कि अनुसूचित जनजाति श्रेणी में शामिल होने से उन्हें आरक्षण का लाभ मिल सकता है, साथ ही वन भूमि तक उनकी पहुँच बढ़ सकती है। यह चीज़ भी कुकी लोगों को परेशान किये हुए हैं, लिहाज़ा वे मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्ज देने के र्ख़िलाफ़ हैं और इसका जबरदस्त विरोध कर रहे हैं।

दरअसल कुकी और नगा जनजातियाँ इस आशंका से भरी हैं कि मैतेयी समुदाय जनजाति का दर्जा मिलने से उनकी वन भूमि तक पहुँच बढ़ जाएगी। इससे उनके इलाक़ों में बाहरी लोगों का दख़ल बढ़ जाएगा और उनकी सम्पदा के लिए ख़तरा पैदा हो जाएगा। लिहाज़ा वे इसका जबरदस्त विरोध कर रहे हैं। मुख्यमंत्री बीरेन सिंह का कहना है कि उन्हें मिली रिपोर्ट के मुताबिक, 40 आतंकवादी मारे गये हैं और उनसे एम-16 और एके-47 असॉल्ट राइफलों और स्नाइपर गन जैसे हथियार मिले हैं। सरकार पहले से ही वहाँ सेना और सुरक्षा बलों को मदद के लिए बुला चुकी है। क़ानून व्यवस्था की समीक्षा के लिए सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे तक मणिपुर का दौरा कर आये हैं।

यह कहा जाता है कि मुख्यमंत्री जिन लोगों के उग्रवादियों के रूप में मारे जाने की बात कर रहे हैं, उनमें काफ़ी लोग जनजातीय कुकी और नगा विद्रोही हैं। एक मौक़े पर लग रहा था कि मणिपुर में हिंसा थम जाएगी; लेकिन मई के आर्ख़िरी पखवाड़े में हालात फिर ख़राब हो गये। स्थिति यह हुई कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के मणिपुर दौरे की घोषणा के बाद भी वहाँ हिंसा जारी रही। इस दौरान दूसरे दौर की हिंसा में 28 मई को एक ही दिन में पुलिस कर्मी सहित पाँच लोगों की मौत हो चुकी थी, जबकि कई घायल हुए थे। सम्पत्ति का नुक़सान अलग से हुआ था। कुकी-मैतेई समुदाय से शान्ति बनाने रखने की मुख्यमंत्री बीरेन सिंह की अपील का भी कोई असर होता नहीं दिखा है।