खसरा व रूबेला के ख़तरे से निपटेगा भारत

भारत सरकार जी-20, 2023 की अध्यक्षता में व्यस्त है। भारत सरकार का जी-20 का जो एजेंडा है, उसमें स्वास्थ्य पर भी फोकस है। इसमें भारत ऐसी वैश्विक स्वास्थ्य संरचना का नज़रिया सामने रखेगा, जो अमीर और ग़रीब देशों को एक साथ वैश्विक स्वास्थ्य संरचना का लाभ मिले और वे बीमारियों व महामारियों से पैदा आपात स्थितियों का सामना कर सके। एक स्वस्थ पृथ्वी का भारत का सिद्धांत वसुधैव कुटुम्बकम के उस दृष्टिकोण से निकलता है, जिसका अर्थ है- एक धरती, एक भविष्य।

इस एजेंडे के लिए जी-20 स्वास्थ्य समूह व्यस्त है। अंतत: जी-20 के देशों के बीच क्या सहमति बनती है, यह तो आने वाला वक़्त ही बताएगा। लेकिन बहरहाल भारत के सामने स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक बड़ी चुनौती खसरा व रूबेला का दिसंबर 2023 तक उन्मूलन करना है। भारत सरकार ने पहले यह लक्ष्य वर्ष 2019 तक हासिल करने का रखा था; लेकिन बाद में कोरोना महामारी के चलते इसे आगे बढ़ा दिया और अब 11 महीने ही भारत सरकार के पास है। 11 महीने का वक़्त और बीते कुछ महीनों में देश के कई राज्यों में खसरा व रुबेला के बढ़ते मामलों ने सरकार की चिन्ता बढ़ा दी है।

ग़ौरतलब हैं कि बीते माह जूनियर स्वास्थ्य मंत्री भारती परवीन पवार ने संसद में एक सवाल के जवाब में देश को सूचित किया कि चालू वर्ष (2022) में देश में खसरा से क़रीब 10,000 बच्चे प्रभावित हुए और 40 बच्चों की मौत हो गयी। मंत्री भारती परवीन ने यह भी बताया कि महाराष्ट्र में सबसे अधिक मामले (3,075) दर्ज किये गये और 13 बच्चों ने खसरे के कारण अपनी जान गँवा दी। इसके बाद झारखण्ड राज्य आता है, जहाँ 2,683 मामले सामने आये और आठ बच्चों की मौत हो गयी। इसके अलावा खसरे के बिहार में 1,650, गुजरात में 1,537, हरियाणा में 1,276 और केरल में 196 मामले दर्ज किये गये। बिहार, गुजरात, हरियाणा में भी खसरे से बच्चे मरे। देश में सिर्फ़ खसरे के ही मामले नहीं बढ़े, बल्कि रूबेला के मामलों में भी वृद्वि दर्ज की गयी है।

ग़ौरतलब है कि खसरा सबसे संक्रामक मानव विशाणुओं में से एक है। यदि खसरे से पीडि़त व्यक्ति खाँसता या छींकता है तो उस व्यक्ति के थूक के कणों में वायरस आ जाते हैं ओर हवा में फैल जाते हैं। ये किसी स्वस्थ व्यक्ति को प्रभावित कर सकते हैं। इसी तरह रूबेला भी एक वायरस से फैलने वाला संक्रमण है। यह बच्चों को भी हो सकता है और गर्भवती महिलाओं को भी। खसरा व रूबेला के लिए टीके उपलब्ध हैं और वैज्ञानिक व शोध इस पर रोशनी डालते हैं कि इन दो जानलेवा बीमारियों को टीके से रोका जा सकता है।

भारत के नियमित टीकाकरण कार्यक्रम के तहत बच्चों की 12 बीमारियों से बचाव के लिए लगने वाले टीकों में खसरा-रूबेला युक्त वैक्सीन भी शामिल है। खसरा-रूबेला वैक्सीन की पहली ख़ुराक नौ माह से लेकर 12 माह की उम्र वाले बच्चों को व दूसरी ख़ुराक 16 माह से 24 माह तक के आयु वाले बच्चों को दी जाती है। भारत ने अगले वर्ष दिसंबर, 2023 तक खसरा-रूबेला उन्मूलन का लक्ष्य रखा है।

अब सवाल यह है कि क्या भारत इस लक्ष्य को तय समय सीमा के भीतर हासिल कर बाल स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक और उपलब्धि हासिल करेगा? सवाल इसलिए उठाया जा रहा है क्योंकि कोरोना महामारी ने इस दिशा में हुई प्रगति को प्रभावित किया है। अमेरिकी संस्था सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन की ओर से प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2017-2021 के दरम्यान खसरे के मामलों में 62 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज की गयी और रूबेला के मामलों में गिरावट की यह दर 48 फ़ीसदी है।

‘खसरा और रूबेला उन्मूलन की दिशा में प्रगति – भारत 2005-2021’ शीर्षक की रिपोर्ट में बताया गया है कि 2017-2021 के दौरान खसरा से पीडि़त नये मामलों की संख्या प्रति 10 लाख आबादी पर 4 रह गयी है, जबकि पहले यह 10.4 थी। रूबेला के मामले प्रति 10 लाख आबादी पर 2.3 से घटकर 1.2 रह गये हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि हालाँकि भारत ने खसरा और रूबेला उन्मूलन की दिशा में काफ़ी प्रगति की है; लेकिन 2023 तक खसरा और रूबेला के उन्मूलन के लक्ष्य को हासिल करने के लिए तेज़ प्रयासों की ज़रूरत है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के नियमों के अनुसार, एक देश को खसरा और रूबेला मुक्त तब माना जाता है, जब वहाँ कम-से-कम तीन वर्ष से अधिक समय तक खसरा और रूबेला वायरस के स्थानिक संचरण का कोई भी मामला सामने नहीं आता है।

भारत में इस टीकाकरण कवरेज की पहली ख़ुराक की दर 2019 में 95 फ़ीसदी थी, जो कि 2021 में 89 फ़ीसदी हो गयी और दूसरी ख़ुराक की दर भी इस अवधि में 84 फ़ीसदी से घटकर 82 फ़ीसदी हो गयी है। यह चिन्ता का सबब है, क्योंकि टीकाकरण की दर में गिरावट व टीके नहीं लगाने से प्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर हो सकती है। टीके ऐसे जानलेवा रोगों से बचाने में अहम भूमिका निभाते हैं। वैसे कोरोना महामारी ने दुनिया भर में दूसरी बीमारियों के लिए चुनौती खड़ी कर दी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि इसके चलते दुनिया भर में क़रीब 4 करोड़ बच्चे खसरे के टीकाकरण से छूट गये। इस संगठन ने कहा है कि खसरा से बचाव के लिए 95 फ़ीसदी आबादी के टीकाकरण की आवश्यकता होती है; लेकिन वर्तमान में यह दर दुनिया भर में 81 फ़ीसदी से कम हो गयी है। यह चिन्ता का विषय है। भारत के लिए और भी चिन्ता बढ़ जाती है, क्योंकि इसी साल भारत चीन को पछाड़ दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा।

भारत में हर साल क़रीब तीन करोड़ महिलाएँ गर्भधारण करती हैं और हर साल 2.7 करोड़ बच्चे जन्म लेते हैं। बीते कुछ महीनों से देश के कई हिस्सों से खसरा के मामले सामने आने पर स्वास्थ्य मंत्रालय ने प्रषासन को संवेदनशील इलाकों में नौ महीने से पाँच साल के बच्चों को खसरा और रूबेला युक्त वैक्सीन की एक अतिरिक्त ख़ुराक देने की सलाह दी है। दरअसल वैक्सीन दर में गिरावट, निगरानी तंत्र का कमज़ोर पडऩा, लोगों के मन में टीके को लेकर झिझक, कोरोना से पैदा रुकावटों का असर फ़िक्र पैदा करता है। इसके चलते खसरा के मामले फिर सामने आ रहे हैं। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और यूनिसेफ ने बीते दिनों एक कार्यशाला का आयोजन किया जिसमें खसरा व रूबेला सम्बन्धित ऐसे सभी बिंदुओं पर विस्तार से चर्चा की गयी।

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की अतिरिक्त सचिव (टीकाकरण) डॉ. वीणा धवन ने कार्यशाला में कहा कि हमें समुदायों को शिक्षित करने और उन्हें अपने बच्चों को खसरे के साथ-साथ सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम के तहत लगने वाले सभी टीकों के लिए प्रोत्साहित करने की ज़रूरत है। यूनिसेफ इंडिया के स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. आशीष चौहान ने कहा कि खसरा प्रतिरक्षण प्रणाली की ताक़त को जाँचने का एक ट्रैसर है। जहाँ टीकाकरण कवरेज कम होता है, वहाँ खसरे का ख़तरा बढ़ जाता है। खसरे की बीमारी फिर से न लौटे, इसे खसरे के टीकाकरण में तीव्रता लाकर रोका जा सकता है।’ भारत में टीके को लेकर झिझक भी एक बहुत बड़ी रुकावट है। इस झिझक को दूर करने की चौतरफ़ा कोशिशें की जा रही हैं। भारत सरकार के स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय ने इस संदर्भ में एक पुस्तिका भी निकाली है, जिसमें खसरा व रूबेला को लेकर आमजन के मन में जो ग़लत धारणाएँ हैं, उनके बाबत तथ्यात्मक जानकारी दी गयी है। जैसे- वैक्सीन की सुरक्षा व प्रभावशीलता बाबत जो मिथ है, उसका ज़िक्र है। खसरा व रूबेला के टीके के प्रतिकूल प्रभाव होते हैं। इससे बच्चे की प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होती है और उनकी एकाग्रता की क्षमता पर भी इसका असर होता है।

इसके बारे में सरकार की ओर से यह तथ्य दिया गया है कि यह एक सुरक्षित व प्रभावशाली वैक्सीन है, और 40 वर्षों से अधिक समय से विश्व के बहुत से देशों में इसका इस्तेमाल हो रहा है। अन्य वैक्सीन की तरह इस लगवाने की जगह पर हल्का दर्द हो सकता है या वह जगह लाल हो सकती है। हल्का बु$खार व मांसपेशियों में दर्द हो सकता है। लेकिन वक़्त के साथ यह अपने आप ख़त्म हो जाता है।

अब अहम सवाल यह है कि क्या भारत दिसंबर 2023 तक खसरा व रूबेला उन्मूलन के महत्त्वपूर्ण लक्ष्य को हासिल कर पाएगा?  ग़ौरतलब है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक घोषणा के अनुसार, मालदीव व श्रीलंका वर्ष 2023 के निर्धारित लक्ष्य से पूर्व ही दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्र में खसरा व रूबेला का उन्मूलन करने वाले दो देश बन गये हैं। इस सम्बन्ध में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इन देशों को अपने बधाई संदेश में कहा- ‘इस प्रकार के रोगों के विरुद्ध बच्चों की रक्षा करना, स्वस्थ आबादी प्राप्त करने के वैश्विक प्रयास का एक महत्त्वपूर्ण क़दम है।’