खरीफ की फसलों के लिए न्यूनतम मूल्य घोषित लेकिन किसान नाराज़

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने खरीफ की फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) घोषित कर दिया है। सरकार का कहना है कि इससे किसानों को डेयोढ़े का लाभ बाजार में फसलों पर मिलेगा। यह बढ़ोतरी केंद्रीय मंत्रिमंडल ने खास तौर पर चावल और दाल पर की है। यह दावा किया गया है कि इससे बजट में किया गया वादा पूरा कर दिया गया है, पर दूसरी ओर फसलों की कीमत पर किसान की चिंता भी काफी हद तक पूरी होने की बजाए और गहरा गई है।

यह बढ़ोतरी एक फसल उपजाने में लगी परिवार के श्रम की लागत और वास्तविक लागत को जोड़ कर निकाली गई है। किसानों में इस बात पर नाराज़गी है कि लागत मूल्य जो तय किया गया है वह गलत है। खेती लागत का कोई फार्मूला तैयार करते हुए दूसरे कई किस्म के खर्च भी जोड़े जाने चाहिए । मसलन फसल उत्पाद में जो पूंजी लगी है और ज़मीन और कुल खर्च पर जो ब्याज बनता है। यह सब उत्पाद की लागत काफी ऊंची कर देता है।

कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन ने कहा था कि किसानों को उनकी उपज का ज़्यादा डेयोढ़ा मिलना चाहिए। जबकि तब के वित्तमंत्री अरुण जेटली ने फरवरी में कहा था कि खरीफ की फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करते हुए यह लागत का डेढ़ गुना होना चाहिए।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक किसान ने मेरठ के पास एक गांव में बताया कि जब फसल उपजाते हैं तो उसमें भूमि, पानी, खाद, बीज, कीटनाशक की लागत और परिवारिक श्रम के लिहाज से न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाया जाना चाहिए। सरकार ने जो घोषणा की है उससे ऐसी संभावना नहीं बनी है कि वह इसे देखकर मयूर की तरह नाच उठे।

दरअसल किसानों की बड़ी रैलियों, तमिलनाडु और दूसरे राज्यों के किसानों के गन्ना की बकाया वूसली और फसलों पर सही उत्पाद मूल्य की मांग के साथ राजधानी में प्रदर्शन करने की घटनाओं के लिहाज से केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नया न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किया है।

जबकि उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान, पंजाब और महाराष्ट्र के किसानों का कहना है कि यदि सी 2 लागत को जोड़ कर न्यूनतम समर्थन मूल्य निकाला जाता तो वह घोषित समर्थन मूल्य का कम से कम चालीस फीसद ज़्यादा हो जाता।

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने धान के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य में तकरीबन रुपए. 250 मात्र प्रति क्विंटल से बढ़ाकर रुपए. 1800 मात्र प्रति क्विंटल कर दिया है। इसके पहले इसकी कीमत रुपए.1550 मात्र प्रति क्विंटल थी। यदि इसमें सी 2 लागत भी जोड़ी जाती तो कुल कीमत रुपए. 2250 मात्र हो जाती।

फिलहाल जो पुनर्निधारित न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किया गया है। वह केंद्र के रुपए 33,500 करोड़ मात्र पड़ेगा। न्यूनतम समर्थन मूल्य एक तरह की बाजार में कीमत ऊंची रखने का एक सरकारी प्रयास है। जिससे खरीद के समय बाजार में कीमतें न गिरें। यह सरकार की ओर से नियत मूल्य है जिससे नीचे बाजार में खरीद नहीं होनी चाहिए।

कृषि संगठनों ने केंद्र सरकार की खेती उपज के समर्थन मूल्य पर चिंता जताई है और मांग की है कि राज्य सरकार को खरीद और भंडारण का सुरक्षित उचित प्रबंध करना चाहिए। जिससे व्यापारी तबका किसानों से मनमानी कीमत पर अनाज न ले सके। भारतीय किसान संघ के एक पदाधिकारी ने कहा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जून के आखिरी सप्ताह में घोषणा की थी कि केंद्रीय मंत्रिमंडल फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करते हुए यह ध्यान रखेगा कि उत्पाद का न्यूनतम समर्थन मूल्य डेढ़ गुना से कम न हो।

खरीफ की फसलों में धान मुख्य फसल है। इसकी बुवाई दक्षिण पश्चिम मानसून की शुरूआत के साथ ही शुरू भी हो गई है। खरीफ की कुछ फसलों में जहां खरीद की कीमत पहले से ही उत्पाद खर्च में डेढ़ गुना ज़्यादा है वहां यह बढोतरी कोई मायने नहीं रखती ‘खासतौरÓ पर धान, रागी और मूंग । जहां लागत कीमत डेढ़ सौ गुना से कम है।

न्यूनतम समर्थन मूल्य का असर ज़्यादातर धान और दालों पर और दूसरे पोषक उत्पाद मसलन जौ, आदि पर पड़ता है। ऐसे में सकल उत्पादन का 0.2 फीसद न्यूनतम समर्थन मूल्य में जोड़ा गया।

न्यूनतम समर्थन मूल्य के दायरे में आने वाली फसलों में सिर्फ चावल और गेंहू ही नहीं है। खरीद की क्या प्रक्रिया सरकारें करेंगी उसकी घोषणा बाद में होगी। उत्पाद की लागत का हिसाब लगाने में 53 फीसद तो श्रम को जाता है। बाकी खर्च मसलन, खाद, कृषि में प्रयुक्त श्रम, कीटनाशक, बीज और सिंचाई का जोड़ घटाव के लिए बाकी 47 फीसद होता है।

सरकार ने इस बार खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा करने में देर लगाई जबकि कई राज्यों में तो बुवाई शुरू भी हो चुकी थी । दरअसल सरकार यह हिसाब लगाने में जुटी थी कि समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी का क्या असर बाजार पर पड़ेगा। कृषि विशेषज्ञों का अनुमान है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी से भारत का चावल उत्पाद का फीसद बढ़ सकता है। इस संबंध में चीन में भारतीय प्रधानमंत्री ने बातचीत भी की थी। पिछले साल यानी 2017-18 में लगभग 111 मिलियन टन फसल थी जो घरेलू मांग से कहीं ज़्यादा थी।

धान के उत्पाद में पानी की काफी ज़रूरत पड़ती है। ऐसे में इसकी बजाए धान के उन उत्पादों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए जिससे कम पानी में ज़्यादा धान बने और सरकारी खरीद ज़्यादा हो। इस बार न्यूनतम समर्थन मूल्य में हुई बढ़ोतरी का महत्व यह है कि इसके तहत वे फसलें आ जाती हैं जो खरीफ के मौसम में कुल अनाज की 50 फीसद हैं। पिछले वर्षों में हुई खरीद की तुलना में यह बारह हजार करोड़ का अतिरिक्त अनुमानित बोझ है।