क्रूर राजनीति की चक्की में पिसता पश्चिम बंगाल

 

जबसे पश्चिम बंगाल में भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच सत्ता की जंग छिड़ी है, तबसे यह राज्य क्रूर राजनीति की चक्की में पिसता दिख रहा है। कहना न होगा कि यहाँ राज्य के विकास की नहीं, बल्कि सत्ता हथियाने की राजनीति होने लगी है, जो इतनी क्रूर होती जा रही है कि इसमें दोनों पार्टियों के समर्थकों और कार्यकर्ताओं की बलि दी जा रही है। छोटी पार्टी के नेताओं को फँसाने और अपने दल में खींचने से लेकर अन्दरखाने डराने-धमकाने का दौर चल रहा है, जिसमें तृणमूल कांग्रेस को कहीं-न-कहीं कमज़ोर करने की कोशिशें भी देखी जा रही हैं। इस बात को सिद्ध करने की ज़रूरत नहीं है, बल्कि तृणमूल कांग्रेस के चार नेताओं पर सीबीआई की कार्रवाई पर ग़ौर करके समझने की ज़रूरत है।
दरअसल यह मामला नारदा घोटाले से जुड़ा है। लेकिन इसके कुछ दोषियों को सीधे तौर पर बचा लिया गया है। हालाँकि कोलकाता उच्च न्यायालय ने नारदा घोटाला मामले के आरोपी टीएमसी के चारों नेताओं को अंतरिम जमानत दे दी है। सीबीआई ने आरोपी नेताओं को जमानत के कोलकाता उच्च न्यायालय के ख़िलाफ़ सर्वोच्च न्यायालय का रुख़ किया, लेकिन फिर स्वयं ही याचिका वापस ले ली। इधर, पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के बाद हुई राजनीति हिंसा को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य से एक लाख से ज़्यादा लोगों के पलायन के मामले को लेकर दायर याचिका की सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार और राज्य सरकार को नोटिस जारी कर दोनों सरकारों से जवाब माँगा है। इस मामले की अगली सुनवाई 7 जून को होगी।

दरअसल नारदा घोटाला मामले में पिछले दिनों सीबीआई ने चार टीएमसी नेताओं- परिवहन मंत्री फिरहाद हकीम, मंत्री सुब्रत मुखर्जी, विधायक मदन मित्रा, कोलकाता के पूर्व मेयर और पूर्व कैबिनेट मंत्री शोभन चटर्जी के ख़िलाफ़ जाँच करने के बाद उनके ख़िलाफ़ अहम सुबूत मिलने का दावा कर चारों नेताओं को गिरफ़्तार कर लिया था, जिसके बाद खुद बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सीबीआई दफ़्तर के बाहर धरना देकर बैठ गयी थीं और सीबीआई को चुनौती दी कि अगर हिम्मत है, तो सीबीआई अफ़सर उन्हें गिरफ़्तार करके दिखाएँ। हालाँकि इस मामले में तृणमूल कार्यकर्ताओं पर सीबीआई दफ़्तर के बाहर प्रदर्शन और पथराव करने का आरोप भी लगा। लेकिन इस मामले पर कोई बड़ा हंगामा नहीं हुआ। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि नारदा घोटाले में दो तृणमूल नेता, जो अब भाजपा में हैं; के ख़िलाफ़ सीबीआई ने कोई कार्रवाई क्यों नहीं की? जबकि इस घोटाले में इन दोनों नेताओं के शामिल होने को स्टिंग ऑप्रेशन में साफ़-साफ़ देखा जा सकता है। इन दो नेताओं के नाम हैं- सुवेंदु अधिकारी और मुकुल रॉय। सुवेंदु अधिकारी तो अख़बार में लिपटे हुए रुपयों के बंडल रिश्वत के रूप में लेते हुए कैमरे में क़ैद हुए थे; जिसे मुख्यधारा की मीडिया ने अभी तक नहीं दिखाया है।

सवाल यह है कि आख़िर नवनिर्वाचित विधानसभा का सत्र बुलाये जाने से ठीक पहले गिरफ्तारियाँ क्यों की गयीं? विधानसभा अध्यक्ष की अनुमति क्यों नहीं ली गयी? हालाँकि इस मामले में सीबीआई ने लोकसभा अध्यक्ष से सुवेंदु अधिकारी समेत शिकंजा कसे गये चारों तृणमूल नेताओं पर मुक़दमा चलाने के लिए मज़ूरी माँगी थी। मगर बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने हाल ही में पश्चिम बंगाल के चार तृणमूल नेताओं पर मुक़दमा चलाने की मज़ूरी दी थी, जिसके बाद एजेंसी ने अपने आरोप-पत्र को अन्तिम रूप दिया और उन्हें गिरफ़्तार किया था।

हैरत यह है कि जब सीबीआई की पक्षपात वाली कार्रवाई को लेकर सवाल उठे, तो सीबीआई की तरफ से जाँच एजेंसी पर लगाये गये पक्षपात करने के आरोपों को ख़ारिज कर दिया गया। चारों तृणमूल नेताओं की गिरफ़्तारी के बाद तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता कुणाल घोष ने सुवेंदु अधिकारी और मुकुल रॉय को बचाने का आरोप केंद्र सरकार पर लगाते हुए कहा था कहा कि सीबीआई ने अधिकारी और रॉय को छोड़ दिया, क्योंकि वे भाजपा में शामिल हो चुके हैं।


तृणमूल कांग्रेस के विधायक तापस रॉय ने भी भाजपा की केंद्र सरकार पर राज्य में करारी हार का बदला तृणमूल से लेने का आरोप लगाया था। तृणमूल कांग्रेस के नेता कल्याण बनर्जी ने कहा था कि पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने नारदा स्टिंग मामला सीबीआई को ट्रांसफर कर दिया, जो संविधान के ख़िलाफ़ है। उन्होंने कहा था कि हम जानते हैं कि हम उनके ख़िलाफ़ आपराधिक मामला दर्ज नहीं कर सकते। लेकिन हम लोगों से उनके ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज करने का आग्रह कर रहे हैं। वह भारतीय संविधान के हत्यारे हैं। इधर बंगाल सरकार ने 20 मई को कोलकाता नगर निगम (केएमसी) के कामकाज की देखरेख के लिए राज्य के शीर्ष विभागों के सचिवों का एक बोर्ड गठित किया है। ग़ौरतलब है कि कोलकाता नगर निगम का कार्यकाल समाप्त होने के बाद राज्य सरकार क़रीब एक साल से बोर्ड ऑफ एडमिनिस्ट्रेटर नियुक्त कर निगम का कामकाज चला रही थी, जिसके प्रमुख फिरहाद हकीम हैं। लेकिन नारदा घोटाले के आरोप में हकीम की गिरफ़्तारी के बाद निगम के कामकाज को देखने के लिए राज्य सरकार ने अलग से सचिवों का एक बोर्ड गठित किया है, जिसका चेयरमैन मुख्य सचिव अलापन बंधोपाध्याय को बनाया है। जबकि गृह सचिव एसके द्विवेदी एवं शहरी विकास व नगरपालिका विभाग के प्रधान सचिव खलील अहमद को इस बोर्ड का सदस्य बनाया गया है। हालाँकि भाजपा नेताओं ने इस नियुक्ति को लेकर सवाल खड़े किये हैं।

क्या है नारदा घोटाला?
सन् 2016 में बंगाल में विधानसभा चुनाव से पहले नारदा स्टिंग टेप का ख़ुलासा हुआ था। इस स्टिंग टेप को लेकर दावा किया गया था कि ये मामला सन् 2014 का है, तभी इसकी स्टिंग की गयी थी। इस स्टिंग टेप में तृणमूल के सांसद, मंत्री, विधायक और कोलकाता के मेयर को कथित रूप से एक काल्पनिक कम्पनी के प्रतिनिधियों से रक़म लेते दिखाया गया था।


यह स्टिंग ऑपरेशन नारदा न्यूज पोर्टल के सीईओ मैथ्यू सैमुअल ने किया था। सन् 2016 में बंगाल में विधानसभा चुनाव से पहले नारदा स्टिंग टेप सार्वजनिक किये गये थे। इसमें टीएमसी के मंत्री, सांसद और विधायक की तरह दिखने वाले व्यक्तियों को कथित रूप से एक काल्पनिक कम्पनी के प्रतिनिधियों से अख़बार में लिपटी नक़दी लेते देखा गया था, जिसमें सुवेंदु अधिकारी भी दिख रहे हैं। इसके बाद सन् 2017 में कोलकाता उच्च न्यायालय ने इन टेप की जाँच का आदेश सीबीआई को दिया था। लेकिन अब सीबीआई ने इस मामले में कार्रवाई की, जिसमें उसकी पक्षपातपूर्ण कार्रवाई पर उँगलियाँ उठने लगी हैं।

बोलने पर शिकंजा
वहीं दो पूर्वोत्तर राज्यों- त्रिपुरा और मेघालय के पूर्व गवर्नर और पश्चिम बंगाल में भाजपा नेता तथागत रॉय पर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की निगाहें कुछ टेड़ी दिख रही हैं। क्योंकि उनके एक बयान के बाद शीर्ष नेतृत्व से उनका दिल्ली के लिए बुलावा आया, जिससे एक दिन पहले तथागत रॉय ने जानकारी दी कि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की ओर से उन्हें दिल्ली आने के लिए कहा है। दरअसल उन्होंने इस आदेश के एक दिन पहले ही पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा शीर्ष नेतृत्व द्वारा उठाये गये कुछ क़दमों की आलोचना की थी।

दरअसल रॉय ने दावा किया था कि विधानसभा चुनाव से पहले तृणमूल कांग्रेस से अवांछित तत्त्वों को भाजपा में शामिल किया गया और ऐसे नेताओं को राज्य के चुनाव प्रचार में शामिल किया गया, जिन्हें बंगाली संस्कृति और विरासत के बारे में कोई जानकारी या समझ नहीं है। चुनाव परिणाम आने के बाद उनकी यह टिप्पणी भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को खल गयी और उन्हें दिल्ली हाज़िर होने को कहा गया। इसकी जानकारी ट्वीटर पर साझा करते हुए तथागत रॉय ने लिखा- ‘मुझे पार्टी के शीर्ष नेतृत्व द्वारा शीघ्र दिल्ली आने के लिए कहा गया है। यह सामान्य जानकारी के लिए है।’

रॉय ने ट्विटर पर यह भी लिखा कि अपनी गहरी निराशा के समय में मैं अपने प्रेरणास्रोत डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित दीन दयाल उपाध्याय के बारे में सोचता हूँ। उन्होंने कैसे-कैसे मुश्किलों का सामना किया, आज उसकी तुलना अपनी पीड़ा से करता हूँ। ऐसे विचार, ऐसे कष्ट व्यर्थ नहीं जाएँगे; कभी नहीं। केडीएसए (कैलाश-दिलीप-शिव-अरविंद) ने हमारे सम्मानित प्रधानमंत्री और गृहमंत्री का नाम मिट्टी में मिला दिया और दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के नाम पर धब्बा लगाया है। हेस्टिंग्स अग्रवाल भवन में बैठे हैं। अपनी विवादास्पद टिप्पणियों के लिए चर्चा में आते रहने वाले तथागत रॉय ने इससे पहले कहा था कि भाजपा में शामिल अभिनय जगत से जुड़ी तीन महिला सदस्य बड़े अन्तर से हार गयीं, वे राजनीतिक रूप से मूर्ख हैं। उन्होंने कहा कि इन महिलाओं में कौन से महान् गुण थे? कैलाश विजयवर्गीय, दिलीप घोष ऐंड कम्पनी को जवाब देना चाहिए।

भाजपा नेताओं को सुरक्षा
इधर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पश्चिम बंगाल के कांथी संसदीय क्षेत्र से लोकसभा सांसद शिशिर कुमार अधिकारी और तमलुक सीट से सांसद दिब्येंदु अधिकारी को वाई+ सुरक्षा दी है। बता दें कि शिशिर कुमार अधिकारी पूर्व केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं और फ़िलहाल वो लोकसभा सदस्य हैं। वहीं सिसिर कुमार अधिकारी भाजपा के टिकट पर इसी बार नंदीग्राम से विधायक चुने गये सुवेंदु अधिकारी के पिता हैं, जबकि दिव्येंदु अधिकारी सुवेंदु आधिकारी के भाई हैं।

भेदभाव
इधर चक्रवात ‘यास’ से राहत के लिए केंद्र सरकार ने भेदभावपूर्ण रवैया अपनाया है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र पर भेदभाव आरोप लगाते हुए कहा है कि ओडिशा और आंध्र प्रदेश की तुलना में बड़ी और अधिक घनी आबादी के बावजूद आपदा राहत के लिए पश्चिम बंगाल को कम राशि जारी की गयी है। दो तटीय राज्यों की तुलना में राहत राशि के तौर पर पश्चिम बंगाल को 400 करोड़ रुपये मिले, जबकि ओडिशा और आंध्र प्रदेश को 600-600 करोड़ रुपये दिये गये। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चक्रवात से राहत के लिए 15,000 करोड़ रुपये की केंद्र सरकार से माँग की है। फ़िलहाल 15 लाख से ज़्यादा लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेजा गया है।

हमले की राजनीति
पश्चिम बंगाल में पिछले क़रीब ढाई-तीन साल से भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच हमले की राजनीति चल रही है। दोनों तरफ़ के कई नेताओं पर भीड़ तंत्र द्वारा कई बार हमले हो चुके हैं और दोनों ही पार्टियाँ अपने-अपने नेताओं पर हुए हमलों का आरोप एक-दूसरे पर मढ़ती रही हैं। हाल ही में 6 जून को पश्चिम बंगाल के पश्चिम मिदनापुर ज़िले में केंद्रीय राज्यमंत्री वी मुरलीधरन की कार पर हमला हुआ, जिसमें उनका ड्राइवर जख़्मी हो गया।
मुरलीधरन ने ट्विटर पर आरोप लगाया कि उनके क़ाफ़िले पर हमले के पीछे टीएमसी के गुंडों ने का हाथ है। हमले के बाद मुरलीधरन ने कहा कि मैं पश्चिम मिदनापुर में पार्टी के उन कार्यकर्ताओं से मिलने गया था, जिनके ऊपर और घर पर हमला हुआ था। मैं अपने क़ाफ़िले के साथ एक घर से दूसरे घर जा रहा था, तभी लोगों का एक समूह अचानक हमारी ओर बढऩे लगा और हमला कर दिया। इससे पहले चुनावों के प्रचार प्रसार के दौरान ममता बनर्जी पर भी हमला हुआ था, जिससे उनके पैर में विकट चोट आयी थी। इसके अलावा भी दोनों पार्टियों के नेताओं और कार्यकर्ताओं पर कई बार हमले हो चुके हैं।

बड़ी बात यह है कि अभी तक राजनीतिक हिंसा के लिए दोनों पार्टियाँ एक-दूसरे पर आरोप लगा रही हैं। यह लुकाछिपी का खेल राजनीतिक रंग में रंग गया है। भाजपा के नेताओं का आरोप है कि अभ तक उसके कई कार्यकर्ताओं की हत्याएँ हो चुकी हैं। वहीं तृणमूल कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा उसके कार्यकर्ताओं पर हमले करा रही है। कुछ भी हो हिंसा के लिए राजनीति में जगह नहीं होनी चाहिए। क्योंकि यह साज़िशें फिर-फिरकर अपना सिर उठाती रहती हैं और राज्य के सामान्य लोगों का जीवन इससे बहुत बुरी तरह प्रभावित होता है।

यहाँ यह भी बता देना ज़रूरी होगा कि पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा का लम्बा इतिहास रहा है। लेकिन पिछले कुछ साल से यह हिंसा तेज़ी से बढ़ी हैं। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को अपने इस कार्यकाल में इस धब्बे को मिटाने की कोशिश करनी चाहिए। उसे यह भूलना नहीं चाहिए कि राज्य में कोरोना महामारी तेज़ी से फैल रही है, जिसे रोकने के लिए सरकार को अपनी पूरी ताक़त
लगानी चाहिए।
बता दें कि ममता बनर्जी पहले ही कह चुकी हैं कि उनकी सरकार की प्राथमिकता कोरोना महामारी को क़ाबू में करने की होगी, जो बिल्कुल ठीक है। इसके बाद भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) बीएल संतोष ने आरोप लगाया कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी लोकतंत्र के लिए ख़तरा हैं। संतोष ने कहा कि पश्चिम बंगाल को लोकतंत्र की प्रयोगशाला बनना था, लेकिन यह राजनीतिक हिंसा की प्रयोगशाला बन गया है। वहीं तृणमूल के नेता और कार्यकर्ताओं का कहना है कि जबसे भाजपा की नज़र बंगाल पर लगी है, तबसे उसने हमलों की साज़िश करनी शुरू कर दी है। बंगाल में हार के बाद तो भाजपा का शीर्ष नेतृत्व और भी खिसिया गया है और हमलों की राजनीति कर रहा है, जो कि असंवैधानिक और बहुत-ही अशोभनीय कार्य है।

छवि ख़राब करने की शाज़िश
राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहता है। भाजपा और तृणमूल में इस समय यही चल रहा है। बात यह है कि भाजपा तो दंगों की राजनीति में काफ़ी बदनाम है। लेकिन इस बार तृणमूल पर भी कुछ ऐसे ही आरोप लग रहे हैं। भाजपा तृणमूल नेताओं का कहना है कि बेदा$ग छवि की नेता मानी जाने वाली ममता बनर्जी जनहित की सोच रखती हैं। अन्य दल के नेता और कु राजनीतिक जानकार भी बंगाल में हुई हिंसा को भाजपा की साज़िश बता रहे हैं।
बता दें कि प्रकृति से प्यार करने वाली संगीत प्रेमी ममता बनर्जी इतिहास, शिक्षा और कानून की डिग्रियाँ हासिल की हुई एक अच्छी और मझी हुई राजनीतिक खिलाड़ी हैं। और इस बार उन्होंने तीसरी बार बंगाल के विधानसभा चुनाव में दुनिया के सबसे बड़े दल भाजपा को चारों खाने चित करके 294 सीटों में से 211 सीटें हासिल करके यह सिद्ध कर दिया कि उन्हें बंगाल की भूमि पर हराना डंडे से हाथी को मारने की कोशिश करना है।
यूँ तो राजनीतिक गलियारों में दीदी के नाम से मशहूर ममता बनर्जी सामान्य जनजीवन जीने वाली ऐसी आरयन लेडी हैं कि सारी सुविधाएँ होते हुए भी वह हर रोज़ 5-6 किलोमीटर पैदल चलती हैं। कुछ स्थानीय लोगों का कहना है कि बंगाल में लगातार हिंसक झड़पों की आड़ में उनकी छवि को ख़राब किया जा रहा है, जिसे उन्हें ख़ुद ही हिंसा पर कट्रोल करके सुधारना होगा। अन्यथा आने वाले समय में उन्हें भी इसका नुक़सान भी हो सकता है। क्योंकि इसी बार दुनिया की सबसे बड़ी इस पार्टी भाजपा, जिसे बंगाल के लिए बाहरी मद भी कह सकते हैं; के कई नेताओं ने बंगाल के विधानसभा चुनाव में अच्छी बढ़त हासिल की है। हालाँकि इस बढ़त में बड़ा योगदान तृणमूल से भाजपा में छिटककर गये नेताओं का ही है।
तृणमूल में वापसी को बेचैन दलबदलू
इस बार के बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले ममता की पार्टी का दामन छोडक़र भाजपा में शामिल होने वाले दलबदलुओं का इस समय न घर, न घाट वाला हाल दिख रहा है। अब कई विधायक जो भाजपा में जाकर जीत भी गये ममता बनर्जी के साथ आने को परेशान दिख रहे हैं। तृणमूल से भाजपा में गयीं और भाजपा के टिकट पर जीतीं सोनाली गुहा ने तो यहाँ तक कह दिया कि जिस तरह एक मछली पानी से बाहर नहीं रह सकती, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह पाऊँगी दीदी। मैं आपसे माफ़ी चाहती हूँ और अगर आपने मुझे माफ़ नहीं किया, तो मैं जीवित नहीं रह पाऊँगी। उन्होंने अपील की कि कृपया मुझे वापस (तृणमूल कांग्रेस में) आने के लिए की अनुमति दें। इससे सोनाली की बेचैनी का पता चलता है। बता दें कि कभी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की परछाई मानी जाने वाली सोनाली तृणमूल में चार बार विधायक रह चुकी हैं। इसी तरह सरला मुर्मू और अन्य कई भाजपा विधायक और कुछ हारे हुए प्रत्याशी तृणमूल में आने को बेताब हैं।