क्या महिला दिवस मनाने भर से आ सकेगी लैंगिक समानता?

महिला अधिकारों के आन्दोलन पर ध्यान केंद्रित करने, लैंगिक समानता, प्रजनन अधिकार और महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध जैसे मुद्दों पर ध्यान देने के लिए अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस प्रतिवर्ष 8 मार्च को मनाया जाता है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2023 की थीम ‘क्रैकिंग द कोड : इनोवेशन फॉर ए जेंडर इक्वल फ्यूचर’ है।

भारत में साल-दर-साल महिला दिवस के उत्सव के बावजूद, लिंग वेतन अंतर एक बड़ा मुद्दा है, जिसमें महिलाएँ अक्सर समान कार्य करने के लिए पुरुषों की तुलना में काफ़ी कम वेतन पाती हैं। वल्र्ड इकोनॉमिक फोरम की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में महिलाएँ पुरुषों की तुलना में सिर्फ़ 71 फ़ीसदी ही कमाती हैं। यह असमानता न केवल अनुचित है, बल्कि इसका देश की आर्थिक स्थिरता और विकास पर भी महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी, जो रिपोर्ट से नाराज़ थीं; ने दावोस में एक भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया था और विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) ने भविष्य की ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट में देशों को रैंक करने के लिए पंचायत स्तर पर महिलाओं की भागीदारी को ध्यान में रखने की बात कही थी, जिससे वैश्विक स्तर पर भारत की स्थिति बेहतर होगी। स्मृति ईरानी को दिये गये एक लिखित आश्वासन के अनुसार, अंतरराष्ट्रीय संस्था रैंकिंग के लिए फिर से जाँच कर रही है और सूचकांकों में बदलाव कर रही है। उन्होंने वल्र्ड इकोनॉमिक फोरम के ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स असेसमेंट पर सवाल उठाया था, जिसमें लैंगिक समानता के मामले में भारत को 135वें स्थान पर रखा गया था। ईरानी ने कहा था कि सूचकांक ज़मीनी स्तर पर महिलाओं के राजनीतिक सशक्तिकरण और वित्तीय समावेशन को ध्यान में रखने में विफल रहा है।

हालाँकि अकेले डब्ल्यूईएफ की रिपोर्ट ही हम पर ऐसा अभियोग लगाने वाली नहीं है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2023 तक भारत में लिंग वेतन अंतर 27 फ़ीसदी है। इसका मतलब है कि भारत में महिलाएँ पुरुष के समान काम करने के लिए औसतन 73 फ़ीसदी ही कमाती हैं। यह अंतर कुछ उद्योगों में और भी व्यापक है, जैसे कि प्रौद्योगिकी क्षेत्र, जहाँ महिलाएँ पुरुषों की तुलना में केवल 60 फ़ीसदी कमाती हैं।

विडंबना यह है कि प्रौद्योगिकी क्षेत्र में भी लैंगिक अंतर है। इस तथ्य के बावजूद कि महिलाएँ भारतीय प्रौद्योगिकी कार्यबल का लगभग 30 फ़ीसदी हिस्सा बनाती हैं, उन्हें अक्सर उनके पुरुष समकक्षों की तुलना में कम भुगतान किया जाता है। नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर एंड सर्विसेज कम्पनीज के एक अध्ययन में पाया गया कि प्रौद्योगिकी भूमिकाओं में महिलाएँ पुरुषों की तुलना में 29 फ़ीसदी कम वेतन पाती हैं। वरिष्ठ प्रबंधन स्तर पर यह अंतर और भी व्यापक है। यह असमानता न केवल अनुचित है, बल्कि यह इस क्षेत्र में आर्थिक विकास की संभावना को भी सीमित करती है, क्योंकि यह महिलाओं को भारत में सूर्योदय प्रौद्योगिकी क्षेत्र में प्रवेश करने से हतोत्साहित करती है।

भारत में लैंगिक वेतन अंतर का एक और उदाहरण खुदरा क्षेत्र में असमानता है। रिटेलर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के एक अध्ययन में पाया गया कि महिलाएँ भारत में अपने खुदरा कर्मचारियों का 70 फ़ीसदी हिस्सा हैं; लेकिन उन्हें समान काम करने के लिए अक्सर पुरुषों की तुलना में कम भुगतान किया जाता है। अध्ययन में पाया गया कि महिलाएँ खुदरा क्षेत्र में पुरुषों की कमायी का सिर्फ़ 67 फ़ीसदी ही पाती हैं। ऊपरी प्रबंधन स्तर पर यह अंतर और भी व्यापक है। यह असमानता न केवल खुदरा क्षेत्र में आर्थिक विकास की क्षमता को सीमित करती है, बल्कि महिलाओं और उनके परिवारों की आर्थिक स्थिरता पर भी इसका महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।

भारत में लिंग वेतन अंतर के मुख्य कारणों में से एक भारत में नेतृत्व की स्थिति में महिलाओं की कमी है। मैकिन्से की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वरिष्ठ स्तर के पदों पर केवल 14 फ़ीसदी ही महिलाएँ हैं। संगठनों के शीर्ष स्तरों पर प्रतिनिधित्व की यह कमी महिलाओं के लिए रोल मॉडल की कमी और लैंगिक समानता का समर्थन करने वाली नीतियों और प्रथाओं की कमी की ओर ले जाती है। भारत में लैंगिक वेतन अंतर न केवल एक आर्थिक मुद्दा है, बल्कि एक सामाजिक भी है, क्योंकि यह सांस्कृतिक और सामाजिक पूर्वाग्रहों में गहराई से निहित है।

लैंगिक समानता हासिल करने और पुरुषों और महिलाओं के बीच की खाई को पाटने का संघर्ष लंबा और कठिन है। सन् 2022 के अंतिम ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स ने भारत को 146 देशों में से 135वें स्थान पर रखा। सन् 2021 में भारत की रैंकिंग 156 देशों में 140वीं थी। ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स चार आयामों में लैंगिक समानता की वर्तमान स्थिति और विकास को बेंचमार्क करता है- आर्थिक भागीदारी और अवसर; शिक्षा प्राप्ति; स्वास्थ्य और अस्तित्व, और राजनीतिक सशक्तिकरण। भारत अपने पड़ोसियों के मुक़ाबले भी ख़राब पायदान पर है। भारत बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, मालदीव और भूटान से पीछे है। केवल ईरान, पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान इस क्षेत्र में भारत से ख़राब स्थिति में हैं। 

ज़मीनी स्तर की संख्याएँ यह संकेत देने के लिए पर्याप्त हैं कि क़रीब 66 करोड़ की महिला आबादी वाले भारत में लैंगिक समानता लडख़ड़ा रही है। भारत की निराशाजनक रैंकिंग में सुधार करने का सबसे अच्छा तरीक़ा यह है कि इसे महिलाओं द्वारा ही दुरुस्त किया जाए। उसके लिए सभी स्तरों पर नेतृत्व के पदों पर महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाना अनिवार्य है, ताकि उन्हें नौकरियों और संसाधनों तक अधिक पहुँच प्राप्त हो सके। यह सरकार पर निर्भर है कि वह प्रतीकात्मकता से आगे बढ़े और महिलाओं को चौंका देने वाली आर्थिक और सामाजिक बाधाओं को दूर करने में मदद करे।

यह महिलाओं की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक या सांस्कृतिक उपलब्धियों का जश्न मनाने का समय है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर हमें यह याद रखना होगा कि जब तक एक महिला भेदभाव, उत्पीडऩ, असमानता या उत्पीडऩ का सामना करती है, तब तक इस दिवस को मनाने का कोई उद्देश्य नहीं होगा।

हर बच्चा अपनी पूरी क्षमता तक पहुँचने का हक़दार है; लेकिन उनके जीवन में और उनकी देखभाल करने वालों के जीवन में लैंगिक असमानताएँ इस वास्तविकता में बाधा डालती हैं। जिस भी जगह वो रहते हों, लड़कियाँ और लडक़े अपने घरों और समुदायों में हर दिन लैंगिक असमानता देखते हैं। पाठ्यपुस्तकों में, फ़िल्मों में, मीडिया में और उन पुरुषों और महिलाओं के बीच जो उनकी देखभाल और सहायता प्रदान करते हैं, महिलाएँ भेदभाव का शिकार हैं। पूरे भारत में लैंगिक असमानता के परिणामस्वरूप असमान अवसर मिलते हैं, और जबकि यह दोनों लिंगों के जीवन पर प्रभाव डालता है, सांख्यिकीय रूप से सबसे अधिक वंचित लड़कियाँ हैं।

भारत में लड़कियाँ और लडक़े किशोरावस्था को अलग तरह से अनुभव करते हैं। जहाँ लडक़ों को अधिक स्वतंत्रता का अनुभव होता है, लड़कियों को स्वतंत्र रूप से आगे बढऩे और अपने काम, शिक्षा, विवाह और सामाजिक सम्बन्धों को प्रभावित करने वाले निर्णय लेने की क्षमता पर व्यापक सीमाओं का सामना करना पड़ता है। जैसे-जैसे लड़कियों और लडक़ों की उम्र बढ़ती है, लैंगिक बाधाएँ बढ़ती रहती हैं और वयस्कता तक में जारी रहती हैं। जिसका बड़ा उदाहरण हम औपचारिक कार्यस्थल में केवल एक-चौथाई महिलाओं के रूप में देखते हैं।

पाँच साल से कम उम्र की महिला मृत्यु दर को कम करने, महिलाओं और लड़कियों के पोषण में सुधार लाने, स्कूल न जाने वाली लड़कियों को सीखने में सक्षम बनाने के लिए लिंग उत्तरदायी समर्थन और अधिक लिंग-उत्तरदायी पाठ्यक्रम और शिक्षाशास्त्र को सक्षम करने, बाल विवाह को समाप्त करने, मासिक धर्म स्वच्छता के लिए लड़कियों की पहुँच सुनिश्चित करने के लिए कार्यों में कटौती की गई है। सरकार ने अपनी ओर से ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ जैसी योजनाएँ शुरू की हैं, ताकि बालिकाओं की सुरक्षा, अस्तित्व और शिक्षा सुनिश्चित की जा सके। महिलाओं को ज़मीनी स्तर पर राजनीतिक नेतृत्व की मुख्यधारा में लाने के लिए सरकार ने पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए 33 फ़ीसदी सीटें आरक्षित की हैं। निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों सहित पंचायत हितधारकों की क्षमता निर्माण का आयोजन महिलाओं को शासन प्रक्रियाओं में प्रभावी ढंग से भाग लेने के लिए सशक्त बनाने की दृष्टि से किया जाता है। लैंगिक अंतर को पाटने के लिए सभी हितधारकों विशेष रूप से पुरुषों को इस ज़िम्मेदारी को निभाने की आवश्यकता है।

यह लिंग या लैंगिक पहचान की परवाह किये बिना, महिलाओं द्वारा समानता की दिशा में की गयी प्रगति का जश्न मनाने का समय है। पुरुषों को लैंगिक समानता का समर्थन करने के लिए अपने विशेषाधिकार का उपयोग करने के लिए तैयार रहना चाहिए। नारीवाद केवल महिलाओं के जीवन में सुधार के बारे में नहीं है, यह सभी हानिकारक लैंगिक रूढिय़ों और भूमिकाओं को ख़त्म करने के बारे में है। लैंगिक समानता हासिल करना पुरुषों के लिए उतना ही महत्त्वपूर्ण होना चाहिए जितना कि महिलाओं के लिए।