क्या ख़तरे में है मतदाताओं की गोपनीयता?

 मतदाता पहचान पत्र से आधार कार्ड जोड़ रही केंद्र सरकार

 संसद में चुनाव अधिनियम (संशोधन) विधेयक 2021 पास

अब मतदाता पहचान पत्र से आधार कार्ड को जोड़ दिया जाएगा। इस बाबत लोकसभा और राज्यसभा चुनाव अधिनियम (संशोधन) विधेयक 2021 पास हो गया है। बड़ी बात यह है कि इस शीतकालीन सत्र में कई विधेयकों की तरह ही यह विधेयक भी विपक्ष के विरोध के बावजूद संसद में पारित किया गया है। कुछ लोगों का कहना है कि इससे मतदान प्रक्रिया में अहम सुधार को बल मिलेगा और पारदर्शिता भी आएगी। वहीं कुछ का कहना है कि इससे मतदाता की निजता ख़तरे में पड़ जाएगी। क्योंकि मतदान एक गोपनीय और मतदाता के अधिकार की प्रक्रिया है, जिसमें वह अपने विचार को गोपनीय रख सकता है। लेकिन आधार कार्ड से हर किसी का पूरा बायोडाटा जुड़ा होता है। यहाँ तक कि आधार कार्ड धारक कहाँ रहता है? उसका फोन नंबर क्या है? वह सोशल मीडिया पर कितना और किस रूप में सक्रिय रहता है? किस-किस से बात करता है? क्या विचार रखता है? अगर उसका आधार कार्ड मतदाता पहचान पत्र से जुड़ता है, तो ज़ाहिर है कि वह किस पार्टी या नेता के पक्ष में है, इसका भी पता बहुत हद तक चुनाव आयोग अथवा सरकार को लग सकता है। ऐसे में हो सकता है कि उसकी निजता का हनन हो।

सरकार के पक्ष के लोग और कुछ अन्य लोगों का कहना है कि मतदाता पहचान पत्र के बाद यह दूसरा बड़ा सुधार कहा जा सकता है। जबकि विपक्ष का कहना है कि यह विधेयक नागरिकों के बुनियादी अधिकारों का हनन करता है।

बताते चलें सन् 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने अहम् फ़ैसले में उसने आधार कार्ड के मामले में निजता को सर्वोच्च माना था और इसे ज़रूरी नहीं माना था। लेकिन बैंक से लेकर किसी भी सरकारी या ग़ैर सरकारी कार्यालय में चले जाओ. आधार कार्ड के बग़ैर कोई काम ही नहीं होता। मतलब, सरकार ने यह कहते हुए कि आधार कार्ड तो लोगों की मर्जी पर निर्भर करेगा, इस दस्तावेज़ को बनाया था और आज आधार कार्ड को अति आवश्यक दस्तावेज़ बना दिया गया है।

अनेक बार आधार कार्ड के ज़रिये लोगों के डाटा में सेंध लगने की ख़बरें सामने आ चुकी हैं और इसमें कोई दो-राय नहीं कि निजता के ख़तरे को लेकर इस दस्तावेज़ पर सवालिया निशान लगते रहे हैं और लगेंगे भी; क्योंकि इससे किसी व्यक्ति की निजता को सरकार और साइबर अपराधी कभी भी देख सकते हैं, उसका उपयोग कर सकते हैं। विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के आधार पर ही इस विधेयक का विरोध किया था। जबकि सरकार का कहना है कि विधेयक के उद्देश्यों एवं अन्य कारणों से निर्वाचन सुधार में एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है, जिसको केंद्र सरकार समय-समय पर अन्य राज्यों से चुनाव सुधार के प्रस्ताव प्राप्त कर रही है। इसमें भारत का निर्वाचन आयोग भी शामिल है। निर्वाचन आयोग के प्रस्तावों के आधार पर लोक प्रतिनिधत्व अधिनियम-1950 और अधिनियम-1951 के उपबन्धों के संशोधन करने का प्रस्ताव है। इसी के तहत निर्वाचन विधि संशोधन विधेयक-2021 के प्रस्तावित किया गया है। केंद्र सरकार ने चुनाव सुधार से जुड़े इस विधेयक के मसौदे पर साफ़ कहा है कि मतदाता सूची में दोहराव और फ़र्ज़ी मतदान को रोकने के लिए मतदाता पहचान पत्र और सूची को आधार कार्ड से जोड़ा जाएगा। विधेयक के मुताबिक, चुनाव सम्बन्धी क़ानून को सैन्य मतदाताओं के लिए लैगिंक निरपेक्ष बनाया जाएगा। वर्तमान चुनावी क़ानून के प्रावधानों के तहत किसी भी सैन्यकर्मी की पत्नी को सैन्य मतदाता के रूप में पंजीकरण कराने की पात्रता है। लेकिन महिला सैन्यकर्मी का पति इसका पात्र नहीं है। लेकिन अब स्थितियाँ बदल जाएँगी। पुलिसकर्मी, सैनिक और अर्धसैन्य बल के अधिकारी अपने पति या पत्नी का नाम भी मतदाता के तौर पर दर्ज कर सकेंगे। संवैधानिक लोकतंत्र में मतदान करना नागरिकों का प्राथमिक अधिकार है। ऐसे में अब ज़रूरी है कि उससे मत की सर्वोच्चता बनी रहे।

आधार कार्ड और मतदाता सूची को लिंक किये जाने पर विपक्ष के सवालों का जबाव देते हुए केंद्रीय क़ानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि चुनाव सम्बन्धी सुधार देश के लिए ज़रूरी है। इससे न केवल फ़र्ज़ी मतदान रुकेगा, बल्कि लिंगभेद भी समाप्त करने में सहायता मिलेगी। किरेन रिजिजू ने कहा कि इस विधेयक के माध्यम से मतदाता कार्ड को आधार कार्ड से जोडऩे का प्रावधान किया गया है, जो अनिवार्य नहीं, बल्कि स्वैच्छिक है।

जबकि कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि यह विधेयक सदन की विधिक क्षमता के बाहर है। अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि पुत्तास्वामी बनाम भारत सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आधार अधिनियम यह इजाज़त नहीं देता कि आधार नंबर को निर्वाचन सूचियों से जोड़ा जाए।

मतदाता पहचान पत्र और आधार कार्ड को जोड़े जाने पर हुए हंगामे को अधिवक्ता पीयूष जैन का कहना है कि राजनीतिक दलों की कथनी और करनी में बड़ा अन्तर अक्सर देखने को मिल जाता है। उनका कहना है कि समय-समय पर देश के चुने हुए नेता चुनाव को पारदर्शी बनाने की बात करते हैं, ताकि देश में मतदान प्रकिया में फ़र्ज़ीवाड़े को रोका जाए। लेकिन जैसे ही कोई सुधार प्रक्रिया धरातल पर आती है, विरोध होने लगता है। उन्होंने बताया कि अगस्त, 2018 में सभी विपक्षी दलों ने चुनाव सुधारों को लेकर बैठक बुलायी थी; जिसमें राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तरीय स्तर की पार्टियाँ शामिल हुई थीं। इस बैठक में चुनाव आयोग से आधार कार्ड को मतदाता सूची से जोडऩे की अपील की गयी थी। बताते चलें मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस ने फ़र्ज़ी मतदाताओं का मामला उठाया था। इतना ही नहीं, उसने इन फ़र्ज़ी मतदाताओं की जाँच कराने की माँग भी की थी।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने ‘तहलका’ से कहा कि अब देश में पढ़ाई-लिखाई से लेकर लेकर बैंक, डाकख़ाने, किसी अन्य सरकारी काम कराने वालों, यहाँ तक कि टीकाकरण कराने वालों तक से आधार कार्ड माँगा जाता है। बैंकों से लेकर अन्य संस्थाओं में बिना आधार कार्ड के काम नहीं बनता है। तो मतदान प्रकिया को आधार कार्ड से लिंक किये जाने पर जो विरोध हो रहा, वो दिखावा ही है। जबकि सच्चाई तो यह है केंद्र की मनमोहन सरकार ही आधार कार्ड योजना लायी है। तब यह तय हो गया था कि आने वाले दिनों में जो भी सरकारी व्यवस्था है, उसको आधार कार्ड से लिंक किया जाएगा। लेकिन इतना ज़रूर हो जाएगा कि अब फ़र्ज़ीबाड़े पर रोक लगेगी और जातीय समीकरण जो भी हैं, वो भी सामने आएँगे, ताकि जो कुछ अभी दवे मामले हैं, वे सार्वजनिक हो जाएँगे।

लेकिन सवाल यह है कि एक तरफ़ भारत जैसे देश में जातिगत समानता की बात होती है, वहीं दूसरी ओर सरकार ही इसे ख़त्म करने से परहेज़ कर रही है, तो फिर समानता कैसे आ सकती है? इसके अलावा लोगों की निजता पर पहले से ही मँडराये ख़तरे को कैसे रोका जा सकेगा, जब उसकी गोपनीयता लगातार उजागर होगी?

कई बार लोगों की गोपनीयता बेचे जाने की ख़बरें भी सामने आ चुकी हैं। ऐसे में अगर मतदाता पहचान पत्र से आधार कार्ड लिंक हो जाएगा, तब तो ग़लत हाथों में किसी की और भी मज़बूत जानकारी लग सकती है। ऐसे में क्या सरकार लोगों को इस बात की गारंटी दे सकती है कि देश की जनता की निजता को वह आउट नहीं होने देगी? सवाल यह भी है कि चुनाव आयोग एक स्वायत्त संस्था है। ऐसे में सरकार उसके काम में अपनी मर्ज़ी से दख़ल कैसे दे सकती है? आज देश में किसी भी नागरिक की गोपनीयता ख़तरे में नहीं है, इस बात की गारंटी कोई नहीं दे सकता। पेगासस जासूसी मामला इसका ताज़ा उदाहरण है।