क्या उत्तर प्रदेश पर चढ़ रहा साम्प्रदायिक रंग?

कर्नाटक से उठा हिजाब का विवाद उत्तर प्रदेश में ऐसे समय में फैला, जब वहाँ विधानसभा चुनाव चल रहे हैं। उत्तर प्रदेश के बारे में कहा जाता है कि इसके कई शहर साम्प्रदायिकता की आग पर बैठे हुए हैं। मगर इस बार हिजाब का मुद्दा गरमाने के बावजूद साम्प्रदायिकता के मामले में संवेदनशील उत्तर प्रदेश में यह मुद्दा इसलिए थोड़ा-बहुत शान्त है, क्योंकि मुस्लिम किसी भी हाल में इस बाज़ी को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के हाथ में नहीं जाने देना चाहते और वहीं दूसरी ओर हिन्दू भी साम्प्रदायिक मामलों से बचकर रहने में ही भलाई समझ रहे हैं, विशेषकर वे हिन्दू, जो भाजपा को साम्प्रदायिक रंग देने में माहिर मानते हैं।

विदित हो कि कुछ दिनों पहले प्रदेश के कुछ लोगों पर भारत को तालिबान बनाने का आरोप लगाने का इशारा करते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हिजाब वाले मामले पर कहा था कि कोई बच्ची अपनी मर्ज़ी से हिजाब नहीं पहनती। हम भगवा किसी अन्य पर थोप नहीं रहे हैं, तो कोई किसी पर हिजाब कैसे थोप सकता है? भगवा पहनने के सवाल पर उन्होंने कहा कि भगवा कपड़े वह अपनी मर्ज़ी से पहनते हैं, किसी का उन पर दबाव नहीं है।

हिजाब को लेकर योगी आदित्यनाथ का जवाब सही हो सकता है; लेकिन गजवा-ए-हिन्द की बात उन्होंने चुनाव के समय पर क्यों कही, इसका उत्तर जीत की मंशा में ही छिपा है। लेकिन हिजाब के मुद्दे पर पूरे प्रदेश में इन दिनों बात हो रही है। कहीं-कहीं हिजाब के समर्थन और विरोध में रैलियाँ भी निकल रही हैं। इसी दौरान एक अच्छा फ़ैसला अलीगढ़ के एक कॉलेज ने लिया है। जानकारी के अनुसार, अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज ने बाक़ायदा कैंपस में हिजाब और भगवा को पूरी तरह से बैन करते हुए नोटिस लगा दिये हैं। इस नोटिस में लिखा गया है कि सभी विद्यार्थियों को सूचना दी जाती है कि उन्हें निर्धारित यूनिफॉर्म में कॉलेज आना चाहिए। यदि वे निर्धारित यूनिफॉर्म में नहीं आते हैं, तो कॉलेज प्रशासन उन्हें कॉलेज में प्रवेश से रोकने के लिए बाध्य होगा। इसलिए इस आदेश का सख़्ती से पालन किया जाना चाहिए। एक तरह से अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज प्रशासन का यह फ़ैसला काफ़ी सराहनीय है और प्रदेश भर के स्कूलों व कॉलेजों को इस तरह के कड़े नियम अपने यहाँ भी लागू करने चाहिए। हालाँकि बहुत-से स्कूल और कॉलेज अभी बन्द हैं, मगर मुस्लिम लड़कियाँ हिजाब पहनने देने की माँग उठाकर इसे अपना हक़ बता रही हैं। वहीं कुछ हिन्दू संगठन इसे ग़लत बताकर इस पर प्रतिबन्ध की माँग कर रहे हैं। अलीगढ़ जैसे संवेदनशील शहर में यह मुद्दा आज भी छाया हुआ है और कभी भी हालात बिगाड़ सकता है। क्योंकि हिजाब का मामला केवल अलीगढ़ या ग़ाज़ियाबाद में ही गरमाया हुआ नहीं है, बल्कि इसकी आँच पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी फैली हुई है और कई जगह हिन्दू संगठन से जुड़े लोग और दूसरे हिन्दू विद्यार्थी विरोध प्रदर्शन पर उतरे हुए हैं। कुछ दिन पहले वाराणसी के शिवपुर में एक निजी स्कूल के सामने भी कुछ युवाओं ने हिजाब को लेकर विरोध किया। हालाँकि वहाँ कुछ ही समय में पुलिस पहुँच गयी और प्रदर्शनकारियों को वहाँ से खदेड़ दिया। इस स्कूल के प्रशासन ने बताया कि स्कूल में ड्रेस कोड लागू है और कोई भी लडक़ी हिजाब में नहीं आती है, फिर भी कुछ लोग साम्प्रदायिक तूल देने के लिए जबरन विरोध कर रहे थे।

हिजाब के मामले ने उत्तर प्रदेश में इस क़दर तूल पकड़ा हुआ है कि तीसरे चरण के चुनाव के दौरान कई मतदान केंद्रों (पोलिंग बूथों)पर हिजाब को लेकर विवाद हुआ। कानपुर में तो एक मतदान केंद्र पर मुस्लिम महिलाओं ने यह कहते हुए हंगामा कर दिया कि उनसे हिजाब उतारने को कहा जा रहा है। स्थानीय जानकारी कहती है कि बूथ अधिकारियों ने इन महिलाओं की पहचान ज़ाहिर करके ही वोट डालने को कहा, जो कि हिजाब में सम्भव नहीं थी।

इधर कासगंज में अल्ताफ़ की मौत से साम्प्रदायिक दंगों का डर था, मगर वहाँ चुनाव सही सलामत हो गये। इसके अलावा कई अन्य जगहों पर भी हिन्दू-मुस्लिम का राग अलापा जा रहा है, जिसमें साम्प्रदायिक रंग देने की सबसे बड़ी कोशिश भाजपा की ओर से की जा रही है। इसका एक उदाहरण यह है कि कुछ महीने पहले मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने कहा था कि 2017 से राशन सिर्फ़ उन लोगों को ही मिलता था, जो अब्बा जान, अब्बा जान करते थे। लेकिन उनकी भाजपा सरकार ने हर घर में राशन पहुँचाया है। हालाँकि यह बात कुछ पुरानी है, मगर साम्प्रदायिक रंग देने की ताज़ा हवा पिछले महीने तब चलाने की एक कोशिश हुई, जब ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी की गाड़ी पर फायरिंग हुई और उन्हें जेड प्लस सुरक्षा केंद्र सरकार ने मुहैया करायी। वैसे तो साम्प्रदायिक रंग देने में उत्तर प्रदेश की कोई भी पार्टी पीछे नहीं है, मगर भाजपा को हिन्दू कार्ड खेलकर जो फ़ायदा मिल सकता है, वो किसी अन्य पार्टी को शायद ही मिले। क्योंकि भाजपा जानती है कि उसे ऐसा करने पर हिन्दुओं के वोट सबसे ज़्यादा मिलेंगे, जो कि संख्या में 75 से 80 फ़ीसदी तक हैं। विधानसभा चुनावों की हवा चलने के दौरान तो योगी आदित्यनाथ ने कहा भी था कि मुक़ाबला 80-20 का है। जब लोगों ने इस पर आपत्ति जतायी और सवाल उठाया कि क्या वे हिन्दू-मुस्लिम की बात कर रहे हैं, तो उन्होंने कहा था कि नहीं, वह उन 80 फ़ीसदी लोगों की बात कर रहे हैं, जो प्रदेश में शान्ति चाहते हैं और उन 20 फ़ीसदी की बात कर रहे हैं, जो प्रदेश में अशान्ति और गुंडाराज चाहते हैं। अगर अखिलेश की बात करें, तो उनके शासन के मुज़फ़्फ़रनगर के 2013 के हिन्दू मुस्लिम दंगों को कौन भूल सकता है? मायावती के शासनकाल में भी कई ऐसे साम्प्रदायिक दंगे हुए। मगर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और समाजवादी पार्टी (सपा) के शासनकाल के मुक़ाबले मायावती के शासनकाल को काफ़ी हद तक क़ानून हालात के मामले में अच्छा माना जा सकता है।

इधर आगरा में अराजक तत्त्वों ने एक मन्दिर में रखी गणेश जी की प्रतिमा को तोडक़र झाडिय़ों में फेंक दिया, जिससे मामला काफ़ी गरमा गया। लेकिन स्थानीय पुलिस ने इसे सँभाल लिया और साम्प्रदायिक तूल नहीं देने दिया। हालाँकि मन्दिर में प्रतिमा क्षतिग्रस्त किये जाने की जानकारी मिलते ही वहाँ पर काफ़ी भीड़ जमा हो गयी और हिन्दू संगठनों के लोगों ने आरोपी की गिरफ़्तारी की माँग को लेकर हंगामा किया। पुलिस के आश्वासन के बाद ही लोग शान्त हुए। यह घटना आगरा के थाना लोहामंडी अंतर्गत सेंट जॉन्स लोहा मंडी रोड पर पुल के बराबर में एक प्राचीन मन्दिर की है।

इन छिटपुट घटनाओं से लगता है कि उत्तर प्रदेश में कुछ ताक़तें हिन्दू मुस्लिम कर करके साम्प्रदायिकता की आग भडक़ाने की जो कोशिश कर रहे हैं, उस पर पुलिस प्रशासन को ध्यान देने की आवश्यकता है। क्योंकि यह एक ऐसा प्रदेश है, जिसमें साम्प्रदायिक दंगों की संख्या देश के दूसरे प्रदेशों से कहीं ज़्यादा है। इस प्रदेश में साम्प्रदायिक सौहार्द भी बहुत है; लेकिन यहाँ साम्प्रदायिक आग भडक़ाना अराजक तत्त्वों और सियासियों के लिए बायें हाथ का खेल है। क्योंकि इस प्रदेश का ऐसा कोई शहर या गाँव शायद ही होगा, जहाँ हिन्दू मुस्लिम एक साथ न रहते हों। यही वजह है कि सियासियों को यहाँ आग भडक़ाने में वक़्त नहीं लगता। इन दिनों प्रदेश में चुनाव उस मोड़ पर पहुँच गये हैं, जिस मोड़ पर हर पार्टी अपनी जीत के लिए प्रचार-प्रसार में दिन-रात एक कर देती है। ऐसे समय में छोटी-छोटी साम्प्रदायिक घटनाएँ भी कई बार बड़ा विकराल रूप धारण कर लेती हैं और लोग लडऩे-मरने के लिए बिना किसी सोच विचार के उठ खड़े होते हैं। ऊपर से इस बार के चुनावों में आमजन के मुद्दों और उसकी समस्याओं से हटकर जिन्ना, अब्बा जान, गजवा-ए-हिन्द, 80-20 की बातें हो रही हैं।

चुनावी गतिविधियों पर पैनी नज़र रखने वाले राम प्रसाद कहते हैं कि हमारा देश साम्प्रदायिक सौहार्द की मिसाल है। यहाँ हर धर्म के लोग रहते हैं। हिन्दू और मुसलमानों का यहाँ बहुत गहरा नाता है। हमने दोनों की धर्मों के लोगों को एक साथ दोनों ही धर्मों के त्योहार मनाते देखा है। मगर अब सियासियों की कुर्सी की भूख ने इस एकता की जड़ में मट्ठा डाल दिया है। राम प्रसाद कहते हैं कि जब सियासी लोगों के पास जनता के हित के मुद्दे नहीं होते हैं, तो वे साम्प्रदायिकता को तूल देने का प्रयास करते हैं। यह बात हर आदमी को अच्छी तरह समझनी चाहिए। उनका कहना है कि साम्प्रदायिकता उन लोगों का खेल है, जो बड़ी-बड़ी कोठियों में लम्बे-चौड़े सुरक्षा घेरे में रहते हैं और लोगों के हित में काम करने के बजाय उन्हें ऐसे मुद्दों में उलझाकर रखते हैं, जिनकी आग अगर लग जाए, तो लम्बे समय तक सियासी लोग उसे अपने फ़ायदे के लिए भुना सकें।