कौशल विकास समय की माँग

कुछ सप्ताह पूर्व कोर्सेरा द्वारा वैश्विक कौशल रिपोर्ट (ग्लोबल स्किल्स रिपोर्ट) 2022 जारी की गयी, जिसमें भारत को समग्र कौशल दक्षता के मामले में 68वाँ स्थान मिला है। अगर बात एशिया स्तर पर करें, तो भारत को 19वाँ स्थान हासिल हुआ है। इस रिपोर्ट को भारतीय मीडिया में वैसी तवज्जो नहीं मिली, जैसी मिलनी चाहिए थी। इस रिपोर्ट के अनुसार, डाटा विज्ञान में देश की दक्षता सन् 2021 की 38 फ़ीसदी से घटकर सन् 2022 में 26 फ़ीसदी हो गयी है, जो कुल 12 रैंक की गिरावट है। वहीं दूसरी तरफ़ देश में प्रौद्योगिकी प्रवीणता का स्तर 38 फ़ीसदी से बढक़र 46 फ़ीसदी हो गया है। इसमें भारत ने अपनी रैंकिंग को छ: स्थान तक मज़बूत किया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, यूरोपीय देश स्विट्जरलैंड में सबसे अधिक कुशल शिक्षार्थी हैं। डेनमार्क और बेल्जियम जैसे विकसित यूरोपीय देश भी कुशल शिक्षार्थियों की संख्या की दृष्टि से टॉप देशों में शामिल हैं। भारतीय राज्यों में पश्चिम बंगाल कौशल दक्षता के मामले में अन्य राज्यों से बहुत आगे है। देश में डिजिटल कौशल दक्षता का उच्चतम स्तर दिखाते हुए इसने कर्नाटक जैसे प्रौद्योगिकी कौशल राज्य को भी पीछे छोड़ दिया है।

कोर्सेरा की इस रिपोर्ट से हमें यह स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि विश्व के अलग-अलग देशों में कौशल अर्जित करने में बड़ा अंतराल है। भारत जैसे विशाल देश जहाँ जनसंख्या की लिहाज़ से दुनिया में सबसे ज़्यादा आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती हैं, वहाँ लोगों को ख़ासकर युवा वर्ग को डिजिटली कौशल बनाना समय की माँग है। हाल ही में भारत समेत पूरी दुनिया में विश्व युवा कौशल दिवस मनाया गया। भारतीय सन्दर्भ में हमें इस दिवस का महत्त्व अच्छे से समझना होगा। पिछले कुछ वर्षों में भारत के शहरों में तो डिजिटल व्यवस्था काफ़ी मज़बूत हुई है और इसका फ़ायदा शहरी समाज को मिल भी रहा है; लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में हमें हालात को बेहतर करने होंगे।
भारत सरकार ने सन् 2015 में डिजिटल इंडिया कार्यक्रम शुरू किया था, जिसका प्रमुख उद्देश्य भारतीय समाज को डिजिटल रूप से सशक्त बनाना तथा इसे ज्ञान अर्थ-व्यवस्था में बदलना था, ताकि आम लोगों की ज़िन्दगी को बेहतर और आसान बनाया जा सके। इस कार्यक्रम के माध्यम से महानगरों से लेकर पंचायतों तक छोटे-बड़े सरकारी विभागों को डिजीटल रूप से विकसित करने पर ज़ोर दिया गया। डिजिटल व्यवस्था के कारण आज शिक्षा, स्वास्थ्य, बैंकिंग, प्रशासन, कृषि, पर्यटन, बाज़ारीकरण इत्यादि क्षेत्रों में बड़े बदलाव देखने को मिल रहे हैं। देश में ई-क्रान्ति से आज डिजिटल भुगतान और ऑनलाइन व्यापार बहुत आसान हो गये हैं। ऑनलाइन एजुकेशन स्टार्टअप्स को नयी रफ़्तार मिली है। हालाँकि ग्रामीण क्षेत्र में इंटरनेट की धीमी रफ़्तार, डिजिटल निरक्षरता तथा लगातार बिजली की कटौती कुछ ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर शीघ्र ध्यान देने की ज़रूरत हैं।

कोरोना-काल में भारत समेत सैकड़ों देशों में काम करने के तरीक़ों में व्यापक परिवर्तन देखने को मिले हैं। इस दरमियान डिजिटाइजेशन की तरफ़ दुनिया तेज़ी से बढ़ी है और एक प्रकार की हाइब्रिड कार्य संस्कृति पनपी है, जिसने सभी देशों को बुनियादी डिजिटल व्यवस्था को मज़बूत करने के लिए बाध्य किया है। यूनेस्को समेत कई बड़े संस्थानों के पहले के रिपोट्र्स यह बताते हैं कि भारत में शिक्षित युवा वर्ग की एक बड़ी आबादी जॉब पाने की योग्यता नहीं रखती। देश के अलग-अलग क्षेत्रों की कई नियोक्ता कम्पनियों को अक्सर शिकायत होती हैं कि यहाँ के युवा वर्ग में मार्केट के हिसाब से ज़रूरी स्किल्स नहीं होते।
आज के इस तकनीक आधारित समय में नौकरी पाने की लालसा रखने वाले भारतीय युवा वर्ग को यह बात स्पष्टता से समझने की ज़रूरत है कि नये कौशल अर्जित करने से ही उन्हें नौकरी मिल पाएँगी तथा वे अपने करियर में लम्बे समय तक टिके रह पाएँगे। देश के नागरिकों ख़ासकर ग्रामीण युवा वर्ग को चाहिए कि केंद्र तथा राज्य सरकार द्वारा चलाये जा रहे फ्री ऑनलाइन तथा ऑफलाइन स्किल्स ओरिएंटेड कोर्सेज से जुडक़र ट्रेनिंग लें और अपने भविष्य को बेहतर बनाएँ।

(लेखक जामिया मिल्लिया इस्लामिया में शोधार्थी हैं।)