कौन समझेगा बेज़ुबानों का दर्द?

दिल्ली सहित अन्य राज्यों में कोरोना वायरस के बढ़ते कहर से लगे लॉकडाउन ने फ़क़त लोगों को ही नहीं, बेज़ुबान पशु-पक्षियों को भी मरने की स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है। जंगली जानवरों और खुले आसमान में उड़ते पक्षियों के लिए भले ही लॉकडाउन से राहत मिल रही हो, लेकिन पालतू जानवरों और पक्षियों को इससे परेशानी हो रही है। ख़ासकर शहरों में बने पशु-पक्षियों के बाज़ारों में और दुकानों में कै़द पक्षियों को इससे विकट परेशानी हो रही है।
इसकी वजह यह है कि न तो दुकानें, शोरूम आदि खुल रहे हैं और न ही इन पक्षियों को समय पर सही तरीके़ से दाना-पानी मिल पा रहा है। इनके व्यापारी मालिक भी इस बात से परेशान हैं। कई व्यापारी तो ऐसे हैं, जिनका कारोबार उनके निवास से काफी दूरी पर है, जिसके चलते वह बेचने के लिए पिंजरों में कै़द और अब दुकानों तथा शोरूम्स में कै़द पक्षियों को दाना-पानी देने समय पर नहीं पहुँच पा रहे हैं। क्योंकि अगर बार-बार जाकर दुकानों और शोरूम्स को खोलेंगे, तो पुलिस तंग कर सकती है। ऐसे में बेज़ुबानों पक्षी एक तरह से ख़तरनाक कै़द में हैं।
बिक्री के लिए रखे गये पशुओं को भी कुछ इसी तरह की परेशानी हो रही है। लेकिन पक्षियों की समस्याएँ ज्यादा हैं। हमारे ख़याल से सरकारें को इन पक्षी बाज़ारों को चलाने की भले ही चलने की इजाजत न दें; लेकिन दुकानों और शोरूम्स को हर दिन कम-से-कम चार-पाँच घंटे खोलने की अनुमति जरूर दें, ताकि पक्षियों का दम न घुटे। हालाँकि देश में लगभग सभी व्यापारिक गतिविधियाँ ठप-सी पड़ी हुई हैं। ऐसे में पशु-पक्षियों के बाज़ार में सन्नाटा पसरना स्वाभाविक है। लेकिन यह जीवित प्राणियों का मामला है, इसलिए इस पर केंद्र समेत सभी सरकारों को संज्ञान लेना चाहिए।
तहलका संवाददाता ने पक्षियों के बाज़ार में पड़ताल की, तो कई पक्षियों के विक्रेताओं ने अपना दर्द बयाँ किया। एक व्यापारी ने बताया कि जब 2020 में देशव्यापी सम्पूर्ण लॉकडाउन लगा था, तब पक्षियों का कारोबार तो ठप हुआ ही था, इन बेज़ुबानों का पालन-पोषण भी मुश्किल हो गया था। अब इस साल कुछ सही होने की उम्मीद थी, लेकिन उससे भी बुरा दौर आ गया है।
दिल्ली के जामा मस्जिद, लाल क़िले के पास और चाँदनी चौक में पक्षियों के विक्रेता सादिक़ ख़ान ने बताया कि मौजूदा समय में देश में अजीब माहौल में है। एक ओर मानव जीवन कोरोना जैसी संक्रमित बीमारी से जूझ रहा है, तो वहीं बेज़ुबानों पशु-पक्षियों का जीवन-यापन भी एक संकट और संघर्ष से भरा हुआ है। सादि$क का कहना है कि जामा मस्जिद में देश-विदेश से पक्षियों को बेचने और ख़रीदने वाले आते रहे हैं। पक्षियों के पालने वाले के शौ$क, दीवानगी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि लोग कई पक्षियों की तो मुँह माँगी $कीमत तक देने को तैयार रहते है। हैदराबाद से लेकर दिल्ली में दो-दो कबूतरों के जोड़े दो से तीन लाख रुपये तक में बिकते हैं।
कबूतरों के जानकार और विक्रेता सलीम का कहना है कि दिल्ली-6 का अपना ही मिजाज है। यहाँ के लोग नवाबी शौ़क की तरह कबूतरों को पालते हैं। शर्त लगाकर कबूतरों की उड़ान तक कराते हैं। कबूतरों के लिए अपने घरों की छत पर घर बनवाना उनका एक अलग शौ$क रहा है। कबूतरों को शान्ति के प्रतीक के तौर पर भी लोग पालते हैं। लेकिन इन दिनों कोरोना-काल और उस पर लगे लॉकडाउन के चलते इन पक्षियों का जीवन-यापन करना बहुत मुश्किल हो रहा है। क्योंकि दिल्ली में बढ़ता तापमान और धन्धे-पानी पर चोट लगने से कबूतरों, पक्षियों को दाना-पानी देना मुश्किल साबित हो रहा है। उनका कहना कि लोगों में तोतों को पालने का शौ$क सदियों पुराना है। आजकल लोग विदेशी, पहाड़ी और हरे रंग के आम भारतीय तोतों को, ख़ासकर पढऩे और बोलने वाले तोतों को ख़ूब ख़रीदते हैं। हम लोग सिखे-पढ़े तोतों को ख़रीदकर लाकर बेचते हैं। अगर सिखा-पढ़ा तोता नहीं मिलता, तो उसे सिखाते-पढ़ाते हैं और बेचते हैं। मोटी लागत और कड़ी मेहनत के इस धन्धे पर पिछले साल कोरोना-काल में लगे लॉकडाउन से लगभग ग्रहण लगा हुआ है, जो अब बढ़ता ही जा रहा है। दुकानों और शोरूम्स में तोतों और दूसरे बेज़ुबानों पक्षियों का दम घुटने लगा है। अगर कोई थोड़ी-बहुत देर को दुकान या शोरूम खोलकर उन्हें साँस दे भी दे, तो बिक्री तो बिल्कुल ही ठप पड़ी हुई है। जबकि पक्षियों पर रोजाना हजारों रुपये का ख़र्च होता है।
पक्षियों के जानकार और विक्रेता इकबाल का कहना है कि दिल्ली में रंगीन पक्षियों का बाज़ार किसी अन्य बाज़ार से कम नहीं है। यहाँ की रौनक़ देखते ही बनती है। पक्षियों के कारोबार में हजारों लोगों का जीवन-यापन होता है, परिवार पलते हैं। पक्षियों के साथ-साथ उनके पिजड़़ों की बिक्री का कारोबार भी का$फी बड़ा है। एक-एक पिजड़े की $कीमत 200 रुपये से लेकर 5,000 रुपये या उससे भी अधिक तक होती है। आधुनिक तरी$के से बने स्टील और प्लास्टिक के कोटेड पिजड़े भी बिकते हैं। इसके अलावा पक्षियों के दाने-पानी से लेकर उनके लिए काजू-किसमिस आदि का बाज़ार भी पक्षियों के कारण का$फी गर्म रहता है। लेकिन लॉकडाउन के चलते इन दिनों पक्षियों की बिक्री कम होने से पक्षियों के विक्रेता काजू-किसमिस और अच्छी ची•ों खिलाने से बच रहे हैं। इतना ही नहीं, आम लोग जो चौक-चौराहों पर पक्षियों को दाना डालते थे, वह भी अभी अधिकतर बन्द है। इससे न केवल पक्षियों को भूखा रहना पड़ता है, बल्कि पक्षियों का दाना बेचने वाले व्यापारियों के काम भी बन्द पड़ा है।
दिल्ली के भोगल, गोविन्दपुरी सहित साप्ताहिक बाज़ारों में पक्षियों के बेचने वाले बबलू कहते हैं कि अगर ऐसा ही कोरोना-काल चलता रहा, तो पक्षियों के साथ-साथ उनसे जुड़े व्यापारीगणों और उनके परिवार का भी पालन-पोषण मुश्किल हो जाएगा।
‘तहलका’ ने पूछा कि क्या कोरोना-काल और लॉकडाउन को देखते हुए पक्षियों को कै़द से आजाद नहीं कर देना चाहिए? इस पर बबलू ने कहा कि यह व्यापार से जुड़ा मामला है, जो करोड़ों का है। पक्षियों को आजाद करने पर व्यापारियों की लाखों-करोड़ों की पूँजी तो चली ही जाएगी, साथ ही हमेशा के लिए उनका सदियों से चला आ रहा पुस्तैनी और उम्र भर का कारोबार बर्बाद हो जाएगा। ऐसा नहीं है कि यह व्यापारी अपने पालतू पक्षियों का ख़याल नहीं रख रहे हैं, लेकिन उस तरह नहीं रख पा रहे हैं, जिस तरह सामान्य दिनों में रख पाते हैं। दिल्ली के चिडिय़ा घर में कार्यरत रहे कर्मचारी पी.सी. शर्मा ने कहा कि जिस तरह नवजात शिशु का माँ पालन-पोषण करती है, वैसे ही इन पक्षियों को पालने वाले, बेचने वाले इनकी देख-रेख करते हैं।
देशी-विदेशी पक्षियों और छोटी-छोटी रंगीन चिडिय़ों के विक्रेताओं ने बताया कि कई लोग ऐसे भी आते हैं, जो कहते हैं कि बेज़ुबानों पक्षियों को पकडक़र कै़द में रखकर उन्हें बेचकर आप लोग ख़ुद आजाद घूमते हो। क्या पक्षियों को बुरा नहीं लगता? लेकिन ये लोग यह नहीं जानते कि कितने ही दुर्लभ प्रजाति के पक्षियों को बचाने का काम भी करते हैं। पक्षियों के विक्रेता मुस्तफ़ा का कहना है कि उनका पुस्तैनी कारोबार दिल्ली तक ही नहीं, बल्कि हैदराबाद, गुजरात, भोपाल और लखनऊ तक फैला है। उन्होंने बताया कि जब मोबाइल युग नहीं था, तब टेलीफोन के जरिये पक्षियों की बिक्री-ख़रीद होती थी। अब तो इंटरनेट और सोशल मीडिया का युग है। लोग देश-विदेश से अपने मन पसन्द के पक्षियों का चयन करके ख़रीदते हैं। लोग पक्षियों को लेकर कोरोना वायरस की अ$फवाहें भी फैला रहे हैं, जो कि एकदम निराधार और $गलत हैं।
पक्षी बाज़ार कम होने से और संगठित एसोसिएशन न होने की वजह हम लोगों की आवाज सरकार तक नहीं पहुँच पाती है। इसलिए सरकारों को चाहिए कि इन दिनों वो पक्षियों की और भी ध्यान करें और इनके व्यापारियों की पीड़ा समझें; ताकि बेज़ुबानों के साथ-साथ जुबानदानों यानी लोगों का जीवन भी सही तरी$के से चल सके। क्योंकि पक्षियों के व्यापारी सामान्य दिनों में रोजाना पक्षी बाज़ारों में उत्तराखण्ड, राजस्थान और उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों से पक्षियों को पकडक़र बेचने लाते हैं। लेकिन अब सब कुछ बन्द होने के चलते उनकी आजीविका भी चौपट पड़ी है। इस तरह इस कारोबार से जुड़े लाखों लोग इन दिनों बेरोजगार बैठे हैं।

पक्षियों की सारी दुकानें और पक्षी बाज़ार इल्लीगल (अवैध) हैं। उन्हें बन्द करके मालिकों को अरेस्ट (गिरफ्तार) करना जरूरी है।’’
मेनका गाँधी
केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री