कोविड-19 से हो रहा बड़ा नुकसान

कोरोना वायरस (कोविड-19) से वैश्विक स्तर पर दहशत का माहौल बना हुआ है। अब तक 168 देशों को यह अपनी गिरफ्त में ले चुका है, जिसमें बढ़ोतरी की सम्भावना बनी हुई है। चीन में मरने वालों की संख्या कम हो गयी है, लेकिन दूसरे देशों में संक्रमित लोगों की संख्या बढ़ रही है। वैश्विक स्तर पर कोरोना से संक्रमित लोगों की संख्या लगभग एक लाख पहुँच चुकी है। बड़ी संख्या में चिकित्सा कर्मचारी भी इसके गिरफ्त में आ चुके हैं। चीन के विभिन्न इलाकों में भारतीय मूल के लगभग हज़ारों लोग अभी भी फँसे हुए हैं। पहले भारत में इससे संक्रमित मरीज़ों की संख्या न्यून थी, लेकिन अब इसमें इज़ाफा हो रहा है। अभी तक यहाँ 606 से अधिक संक्रमित मरीज़ों की पहचान की गयी है।

वैश्विक स्तर पर अर्थ-व्यवस्था में मंदी

कोरोना के कारण चीन के साथ-साथ दूसरे देशों की अर्थ-व्यवस्थाओं को भी नुकसान पहुँचा है, जिसमें भारत भी शामिल है। विश्व बैंक ने कोरोना की वजह से वैश्विक वृद्धि दर में एक फीसदी गिरावट आने की आशंका जतायी है। कंसल्टेंसी ऑक्सफोर्ड इकनॉमिक्स के मुताबिक भी कोरोना के कारण वैश्विक अर्थ-व्यवस्था में 0.2 फीसदी की कम वृद्धि होगी। इसकी वजह से दुनिया की दो बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं चीन और अमेरिका के कारोबार में सुस्ती गहरा रही है। सिंगापुर ने भी कोरोना वायरस के प्रतिकूल प्रभावों को देखते हुए वर्ष 2020 के लिए अपने विकास दर के अनुमान को कम कर दिया है।

ओईसीडी का सुस्ती का आकलन

आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के अनुसार विश्व के केंद्रीय बैंकों को आर्थिक सुस्ती से निपटने के लिए विशेष प्रयास करने चाहिए। इस साल वैश्विक अर्थ-व्यवस्था में महज़ 2.4 फीसदी की दर से वृद्धि हुई है, जो 2009 के बाद सबसे कम है। ओईसीडी का कहना है कि 2021 में वैश्विक अर्थ-व्यवस्था में 3.3 फीसदी की दर से वृद्धि हो सकती है। कोरोना वायरस ने उल्लेखनीय रूप से वैश्विक विकास दर की रफ्तार को रोकने का काम किया है।

चीन की अर्थ-व्यवस्था में मंदी

कंसल्टेंसी ऑक्सफोर्ड इकनॉमिक्स के मुताबिक, कोरोना अगर महामारी का रूप लेती है, तो वर्ष 2020 की पहली तिमाही में चीन की अर्थ-व्यवस्था पिछले साल के मुकाबले 4 फीसदी कम की दर से आगे बढ़ेगी। इस एजेंसी के अनुसार, वर्ष 2020 में चीन की अर्थ-व्यवस्था 5.6 फीसदी के औसत दर से आगे बढ़ेगी। चीन का शेयर बाज़ार भी इससे प्रभावित हुआ है। कोरोना की वजह से कई बड़ी कम्पनियाँ, जैसे- फर्नीचर कम्पनी आइकिया, स्टारबक्स आदि ने अस्थायी रूप से अपना कारोबार चीन में बन्द कर दिया है। कई एयरलाइंसों ने चीन की अपनी सभी उड़ानों को रद्द कर दिया है। होटल, ग्राहकों का एडवांस पैसा वापस लौटा रहे हैं।

चीन के सामान से परहेज़

कोरोना के कारण चीन के निर्माताओं को देश के अंदर और बाहर दोनों जगह नुकसान उठाना पड़ रहा है। विदेशों में भी लोग चीन में बना सामान खरीदने से परहेज़ कर रहे हैं।

चीन पर निर्भरता

चीन आज कम्प्यूटर, ऑटोमोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री का बादशाह है। वह वैश्विक स्तर पर इनके कलपुर्ज़ों का विभिन्न देशों में निर्यात करता है। चीन में ऑटोमोबाइल, मोबाइल और कम्प्यूटर के कलपुर्जों का बड़ी मात्रा में निर्माण किया जाता है। दक्षिण कोरिया की कम्पनी हुँडई ने भी अपने कार उत्पादन को अस्थायी रूप से बन्द कर दिया है, जिसका कारण चीन से कार के कलपुर्जों का आयात का फिलवक्त बन्द होना है।

तेल की कीमतें स्थिर रखने की कोशिश

चीन में कारोबारी गतिविधियों में अयी गिरावट के कारण तेल की माँग में भी कमी आयी है। एक अनुमान के मुताबिक, विगत 15 दिनों में कच्चे तेल की माँग में 15 फीसदी की गिरावट आयी है। इसलिए, तेल निर्यात करने वाले देशों के समूह तेल उत्पादन में कटौती करने की योजना बना रहे हैं, ताकि कच्चे तेल की गिरती कीमतों को रोका जा सके।

भारत का चीन के साथ कारोबार

अभी, चीन से भारत आयात किये जाने वाले उत्पादों में इलेक्ट्रॉनिक्स का 20.6 फीसदी, मशीनरी का 13.4 फीसदी, ऑर्गेनिक केमिकल्स का 8.6 फीसदी और प्लास्टिक उत्पादों का 2.7 फीसदी योगदान है। जबकि भारत से चीन निर्यात किये जाने वाले उत्पादों में ऑर्गेनिक केमिकल्स का 3.2 फीसदी और कॉटन का 1.8 फीसदी का योगदान है। भारत चीन से इलेक्ट्रिकल मशीनरी, मैकेनिकल उपकरण, ऑर्गेनिक केमिकल, प्लास्टिक और ऑप्टिकल सर्जिकल उपकरणों का ज़्यादा आयात करता है; जो भारत के कुल आयात का 28 फीसदी है। भारत चीन से सबसे ज़्यादा यानी 40 फीसदी ऑर्गेनिक केमिकल्स का आयात करता है। लेकिन वह इससे बने उत्पादों का चीन निर्यात भी करता है। कोरोना से विनिर्माण, परिवहन, मशीनरी विनिर्माण पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। भारत इन वस्तुओं का चीन से 73 अरब डॉलर का आयात करता है; जबकि भारत का कुल आयात 507 अरब डॉलर का है। भारत चीन को अपने कुल निर्यात का महज़ 5 फीसदी ही निर्यात करता है। भारत ने वित्त वर्ष 2019-20 में अप्रैल से दिसंबर के दौरान चीन से 3,65,377 करोड़ रुपये का आयात किया था; जबकि समान अवधि में 91,983 करोड़ रुपये का निर्यात किया था। इस प्रकार वित्त वर्ष 2019-20 के अप्रैल से दिसंबर के दौरान भारत को चीन के साथ कुल 2,73,394 करोड़ रुपये का व्यापार घाटा हुआ था।

सरकार और केंद्रीय बैंक की पहल

स्थिति की गम्भीरता को देखते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कोरोना से प्रभावित क्षेत्रों के प्रभारियों को सतर्क रहने का निर्देश दिया है। वित्त मंत्री ने यह भी कहा है कि ज़रूरी वस्तुओं की कालाबाज़ारी पर नियंत्रण रखने की हर सम्भव कोशिश की जाए और कारोबारी ज़रूरी वस्तुओं की कृत्रिम संकट पैदा करने से बाज़ आएँ। भारतीय रिजर्व बैंक भी भारत में कोरोना के बढ़ते प्रभावों पर लगातार नज़र रखे हुए है।

निष्कर्ष

कहा जा सकता है कि कोरोना वायरस की वजह से भारत का चीन के साथ होने वाले आयात और निर्यात दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, लेकिन आयात पर प्रभाव ज़्यादा पड़ सकता है। क्योंकि भारत चीन से निर्यात की जगह आयात ज़्यादा करता है। भारत में भले ही चीन के सामान के बहिष्कार की बात कही जाती है, लेकिन भारत के बहुत सारे उद्योग कच्चे माल एवं कलपुर्जों के लिए चीन पर निर्भर हैं। चीन से आयात बन्द होने पर भारत के कई उद्योग बन्द हो सकते हैं।

भारतीय अर्थ-व्यवस्था पर प्रभाव

भारत में कोरोना वायरस से सबसे ज़्यादा प्रभावित होने वाले क्षेत्र कम्प्यूटर, खिलौने, मोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण, ऑटोमोबाइल, टेक्सटाइल और फार्मा हैं। इन उद्योगों के लिए कच्चे माल या कलपुर्जों का फिलहाल भारत में चीन से आयात बन्द है। कम्प्यूटर, मोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण, ऑटोमोबाइल, फार्मा, टेक्सटाइल जैसे अनेक उद्योगों की अधिकांश फैक्ट्रियाँ कोरोना वायरस के कारण चीन में अस्थायी रूप से बन्द हो चुकी हैं। कुछ उत्पादों, जैसे- मोबाइल और खिलौने के स्टॉक भारत में खत्म होने वाले हैं, जिनकी वजह से इन उत्पादों की भारत में कालाबाज़ारी की जा रही है। ऑटोमोबाइल उद्योग पर कोरोना वायरस का नकारात्मक प्रभाव पडऩे के कारण देश में

1 अप्रैल, 2020 से लागू होने वाली बीएस-6 पर भी प्रतिकूल प्रभाव पडऩे की सम्भावना है। पर्यटन उद्योग भी चरमरा गया है। इतना ही नहीं, कोरोना की वजह से चालू वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में वृद्धि दर में और भी गिरावट आने की सम्भावना बढ़ गयी है। चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में भारत का विकास दर 4.7 फीसदी दर्ज की गयी थी, जो 6 साल में सबसे कम है। चालू वित्त वर्ष में आर्थिक सर्वेक्षण में विकास दर के 5 फीसदी रहने का अनुमान लगाया है, लेकिन संशोधित अनुमान के मुताबिक यह 4.7 फीसदी रह सकता है।