कोविड-19 का अर्थ-व्यवस्था पर सम्भावित असर और भविष्य की तैयारी

कोविड-19 एक अनिश्चित अन्त की कहानी है। हालाँकि, यह निश्चित है कि इसने व्यवसाय के लिए नयी चुनौतियाँ पेश की हैं, जिनसे निबटने के लिए राजनीतिक और व्यापारिक नेतृत्व से एक व्यावहारिक और परिपक्व दृष्टिकोण की अपेक्षा है। हमें यह भी महसूस करने की ज़रूरत है कि कोविड-19 हमें एक ऐसी स्थिति की तरफ ले जा सकता है, जहाँ व्यवसायों और अर्थ-व्यवस्थाओं को कोविड-19 बाद की स्थिति के लिहाज़ से जागरूक और तैयार रहने की ज़रूरत होगी। रिसर्च नतीजों के आधार पर हमें यह भी महसूस करने की आवश्यकता है कि एक नयी महामारी के फैलने के समय में उपभोक्ता के व्यवहार में विमुखता दिखने लगती है।

01 अप्रैल से नया वित्तीय वर्ष शुरू हो चुका है। नोवेल कोरोना वायरस ने 150 से अधिक देशों में 30 लाख से ज़्यादा लोगों को प्रभावित किया है। यह माना जाता है कि भारत अन्य उन्नत देशों की तुलना में बेहतर तरीके से इससे उबरेगा। यूएनसीटीडी की नवीनतम रिपोर्ट में भविष्यवाणी की गयी है कि मंदी के सबसे कम असर वाली प्रमुख अर्थ-व्यवस्थाएँ चीन और भारत होंगी।

एक बहुराष्ट्रीय पेशेवर सेवा नेटवर्क केपीएमजी ने एक अध्ययन रिपोर्ट सामने रखी है, जो व्यावसायिक परिदृश्य पर दूरदॢशता प्रदान करती है। इस रिपोर्ट में इस महामारी के प्रभाव का विश्लेषण करते हुए लॉकडाउन के बीच भारतीय अर्थ-व्यवस्था की समग्र स्थिति पर कुछ प्रकाश डाला गया है। इसमें कहा गया है कि अगर भारत में कोविड-19 और फैलने से लॉकडाउन बढ़ा और वैश्विक अर्थ-व्यवस्था मंदी के गर्त में गयी, तो इस साल भारत की वृद्धि दर तीन प्रतिशत से नीचे फिसल सकती है। इससे सकल घरेलू उत्पाद में तीन प्रमुख योगदानकर्ता- निजी खपत, निवेश और बाहरी व्यापार; सभी प्रभावित होंगे। ऐसे में वैश्विक मंदी और बढ़ेगी और यह अर्थ-व्यवस्था पर दोहरी मार होगी। क्योंकि घरेलू और वैश्विक माँग, दोनों को इसका खामियाज़ा भुगतना पड़ेगा। केपीएमजी रिपोर्ट में कहा गया है कि लम्बे समय तक लॉकडाउन आॢथक परेशानियों को बढ़ायेगा। इस परिदृश्य में भारत का विकास तीन फीसदी से नीचे आ सकता है।

रिपोर्ट में केएमएमजी के (भारत में) चेयरमैन और सीईओ अरुण एम. कुमार कहते हैं- ‘कोविड-19 आपूर्ति, माँग और बाज़ार को बड़ा झटका है। वायरस फैलने से रोकने के लिए उठाये गये राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन जैसे कदमों ने आॢथक गतिविधियों में एक ठहराव ला दिया है; जिसका उपभोग और निवेश दोनों पर प्रभाव पड़ता है।’ उनके मुताबिक, इस प्रकोप में कुछ क्षेत्रों को छोड़कर भारतीय कारोबार सम्भवत: मध्यवर्ती आयात पर अपेक्षाकृत कम निर्भरता के कारण वैश्विक आपूॢत शृंखला व्यवधानों से खुद को बचा सकता है और वायरस संक्रमित राष्ट्रों को उसका निर्यात नयी ऊँचाइयाँ छू सकता है।

प्रभाव वाले क्षेत्र

शहरी गतिविधियों के अचानक रुकने से गैर-ज़रूरी सामानों की खपत में भारी गिरावट आयी है। शहरी भारत में लगभग 37 फीसदी नियमित वेतन और वेतनभोगी कर्मचारी अनौपचारिक क्षेत्र (गैर-कृषि क्षेत्र) में हैं और उन्हें अनिश्चित आय स्थिति का सामना करना पड़ेगा। इससे कॉन्ट्रेक्ट वेतन वाले कर्मचारियों की छँटनी से उनमें अशान्ति और क्रय शक्ति की कमी जैसे विपरीत प्रभाव पड़ सकते हैं। अध्ययन में देश के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों पर कोरोना वायरस प्रभाव का आकलन भी किया गया है। इसका बड़ा असर परिधान और वस्त्र, ऑटो और ऑटो घटक, विमानन और पर्यटन, भवन और निर्माण, रसायन और उर्वरक, उपभोक्ता खुदरा, इंटरनेट, शिक्षा और कौशल, वित्तीय सेवाओं, खाद्य और कृषि, धातु और खनन, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम, तेल और गैस, फार्मास्यूटिकल्स, बिजली, दूरसंचार, परिवहन और रसद आदि सेक्टरों पर पड़ेगा। रेस्तरां के उदाहरण से पता चलता है कि 18 मार्च से रात्रिभोज (डिनर) में 89 फीसदी गिरावट आयी है और आने वाले समय में यह गिरावट 100 फीसदी हो सकती है, जिसके परिणामस्वरूप  रेस्तरां कर्मचारियों की छँटनी हो सकती है। इसके अलावा डॉलर की मज़बूती ने ऋणधारकों को चोट पहुँचायी है। क्योंकि अन्य मुद्राएँ कमज़ोर हुई हैं। आपसी दूरी के नियम से बड़े समारोह रद्द हुए हैं, जिससे खपत में कटौती आयी है। यह रिपोर्ट महामारी के बीच भारतीय अर्थ-व्यवस्था की समग्र स्थिति पर कुछ प्रकाश डालती है। इसका प्रसार रोकने के लिए उठाये गये कदमों, जैसे- 40 दिन से अधिक का राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन और कई राज्यों के पूर्ण लॉकडाउन ने आॢथक गतिविधियों को लगभग ठप कर दिया है। यह स्थिति उपभोग और निवेश दोनों को प्रभावित कर रही है। हालाँकि, मध्यवर्ती आयात पर अपेक्षाकृत कम निर्भरता के कारण कुछ क्षेत्रों को छोड़कर भारतीय कारोबार वैश्विक आपूॢत शृंखला व्यवधान से खुद को बचा सकता है।

केपीएमजी रिपोर्ट में ने भारत के बारे में कहा गया है कि कोविड-19 के दुनिया भर में जल्दी खत्म होने की स्थिति में अप्रैल अन्त से मई मध्य तक भारत की जीडीपी वृद्धि 5.3 फीसदी से 5.7 फीसदी तक दर्ज की जा सकती है। हालाँकि अगर भारत वायरस पर नियंत्रण पा लेता है, लेकिन वैश्विक मंदी रहती है; तो यह विकास दर 4 से 4.5 फीसदी के बीच हो सकती है। रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक आपूर्ति शृंखला व्यवधान के बाजजूद भले ही कुछ क्षेत्र मध्यवर्ती आयात पर अपेक्षाकृत कम निर्भरता के कारण खुद को नुकसान से बचा सकते हों, पर लॉकडाउन का उपभोग क्षेत्र पर सबसे अधिक प्रभाव पडऩे की उम्मीद है। संक्रमित राष्ट्रों का निर्यात प्रभावित हो सकता है।

वहीं शहरी गतिविधि के अचानक रुकने से गैर-ज़रूरी सामानों की खपत में भारी गिरावट आयेगी। अगर लॉकडाउन से आवश्यक घरेलू आपूर्ति प्रभावित होती है, तो यह प्रभाव और भी गम्भीर होगा। इससे आपूर्ति शृंखला प्रतिबन्ध और अपेक्षित श्रम प्रवास वसूली के लिए अन्य बाधाएँ पैदा हो सकती हैं। अप्रैल-जून तिमाही में कपड़ा और परिधान उत्पादन 10 फीसदी घटकर 12 फीसदी रहने की सम्भावना है। रिपोर्ट में कहा गया है कि ऑटो कम्पोनेंट्स की सोॄसग से दुनिया भर में सप्लाई चेन में गड़बड़ी हो सकती है। हालाँकि, यह भी कहा गया है कि भारतीय ऑटो घटक उद्योग मध्यम से दीर्घावधि में आपूर्ति के वैकल्पिक स्रोत के रूप में उबर सकता है।

भारतीय पर्यटन और आतिथ्य उद्योग को लगभग 38 मिलियन और कुल कार्यबल का लगभग 70 फीसदी सम्भावित नुकसान हो सकता है। नये लॉन्च में बड़ी कमी के कारण आवास क्षेत्र कमज़ोर माँग की स्थिति झेल सकता है। पेट्रो तेल की कीमतों में कमी के कारण पेट्रो केमिकल की कीमतें कम रहेंगी। अनिश्चित घरेलू और वैश्विक माँग पर प्रभाव पड़ेगा। इसके अलावा खुदरा वित्त उद्योग, बैंङ्क्षकग और एनबीएफसी क्षेत्र, जो प्रमुख वाहकों में से एक है; पर ऋण वृद्धि के लिए कम-से-कम दो तिमाहियों के लिए प्रभाव पड़ेगा। चूँकि खाद्य और कृषि राष्ट्र की रीढ़ हैं और सरकार की घोषणा में आवश्यक श्रेणी का हिस्सा हैं; लिहाज़ा प्राथमिक कृषि उत्पादन, बीज, कीटनाशक और उर्वरक जैसे कृषि-आदानों के उपयोग पर कम प्रभाव पडऩे की उम्मीद है। हालाँकि, ऐसे में प्रवासी मज़दूरों की गतिविधियों का खास महत्त्व होता है। यह एक तथ्य है कि 2019-20 की तीसरी तिमाही में भारत का वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद छ: साल में सबसे कम हो गया है और अब कोविड-19 ने नयी चुनौतियाँ पैदा कर दी हैं।

कोविड-19 के बाद

हम नये आॢथक हालात के सामने होंगे। सात प्रकार के व्यवसाय परिदृश्य – स्थानीयकरण की ओर जाना, डिजिटल को वास्तविक प्रोत्साहन, नकदी की प्रधानता, अस्थायी लागत मॉडल की तरफ बढऩा, बिल्डिंग सेंसिंग और कंट्रोल टॉवर क्षमताएँ, आपूॢत शृंखला लचीलापन और निर्माण में चपलता आदि केवल भारत तक ही सीमित नहीं होंगे, बल्कि दुनिया को भी प्रभावित करेंगे।