कोरोना वायरस: क्या छिपा रहा है चीन?

कोविड-19 (कोरोना वायरस) के ज़रिये दुनिया भर की रीढ़ कमज़ोर करने वाली, भयानक और डरावनी साज़िश की थ्योरी सामने आ रही है। इनमें कई सवाल उठते हैं। पहला यह कि क्यों चीन दूसरे देशों के विशेषज्ञों, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की टीम को भी लॉकडाउन के बहाने कोरोना वायरस की उत्पत्ति वाले मूल शहर वुहान में जाँच के लिए नहीं आने दे रहा है? दूसरा, क्या चीन कोरोना वायरस को लेकर कुछ छिपा रहा है? और तीसरा क्या हम महामारी का सामना करने के लिए तैयार हैं? इस रिपोर्ट में यही सब पता लगाने की कोशिश तहलका के विशेष संवाददाता राकेश रॉकी ने की है :-

कोरोना वायरस (कोविड-19) को लेकर बहुत-सी बातें सामने हैं। इनमें सबसे चिन्ताजनक यह है कि यह वायरस कथित रूप से चीन की एक प्रयोगशाला से लीक हुआ। यह प्रयोगशाला चीन के जिस वुहान में स्थित है, वहीं से वायरस निकला, जिसने दुनिया में महामारी का रूप ले लिया। यहाँ बड़ा सवाल यह है आिखर चीन लॉकडाउन के बहाने दूसरे देशों के विशेषज्ञों, यहाँ तक कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की टीम को भी कोरोना की उत्पत्ति वाले शहर वुहान में जाँच के लिए क्यों नहीं आने देना चाहता? क्या चीन कोरोना नोवेल (कोविड-19) वायरस को लेकर कुछ छिपा रहा है और कोरोना उसका कोई जैविक हथियार है? हालात बताते हैं, ऐसा कुछ ज़रूर है, जो आशंका पैदा करता है। क्या विश्व समुदाय कोरोना के दानव द्वारा दुनिया भर में इतनी इंसानी ज़िन्दगियाँ लील लेने के बाद चीन पर ऐसा दबाव बना पाएगा कि वह कोरोना का सच बता दे? शायद नहीं।

यहाँ एक और बड़ा सवाल है। चीन ने इस वायरस को कुछ समय के बाद ही कंट्रोल कर लिया। वहाँ 3200 मौतों के बाद जिस तरह अचानक मौतों का सिलसिला कमोवेश थम-सा गया, उससे यह सवाल उभर रहा है कि क्या चीन के पास पहले से कोई एंटी कोरोना दवाई उपलब्ध थी? जबकि इसी चीन से दुनिया भर में फैला यही कोरोना तबाही मचा रहा है। इटली जैसे देश में तो मरने वालों की संख्या चीन से दोगुनी से भी ज़्यादा हो गयी है। हालत यह कि लाशें दफनाने के लिए कब्रें कम पड़ गयी हैं। चीन ने भले कोरोना को लेकर उस पर उठ रहे सवालों को झूठ, उसे बदनाम करने और एशिया को अलग-थलग करने की यूरोप की साज़िश बताया है, लेकिन सवाल उठना स्वाभाविक है कि चीन विशेषज्ञों को जाँच के लिए क्यों वुहान नहीं आने देना चाहता। ऐसा नहीं कि चीन अकेला जैविक हथियार बनाने के आरोपों से घिरा है। अमेरिका से लेकर रूस और अन्य कई देशों को लेकर भी ऐसे सवाल उठते रहे हैं। लेकिन चीन का मामला इसलिए बहुत गम्भीर है कि कोरोना नोवेल उसके यहाँ से शुरू हुआ, जिसने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में लेकर हज़ारों-हज़ार लोगों की ज़िन्दगी खत्म कर दी। चीन पर आशंका की कई वजहें हैं। इनमें एक जियोपॉलिटिर्क एंड इंटरनेशनल रिलेशंस पर ग्रेट गेम इंडिया पत्रिका में टायलर डरडेन की एक खोजपूर्ण रिपोर्ट है, जिसमें सवाल उठाया गया है कि क्या चीन ने कनाडा से कोरोना वायरस को एक हथियार बनाने के लिए चुराया है? दिलचस्प यह है कि चीन ने कभी खुले रूप से इस रिपोर्ट के दावे का खण्डन नहीं किया। अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोंपियो ने 21 मार्च को कोरोना को लेकर चीन पर सीधे-सीधे कई आरोप लगाये। पोंपियो ने न केवल कोरोना वायरस को ‘वुहान वायरस’ बताया, बल्कि एक और बहुत गम्भीर बात कही। पोंपियो ने कहा कि हमने चीन को यह प्रस्‍ताव दिया था कि हमारे विशेषज्ञ उनकी और डब्ल्यूएचओ की मदद के लिए चीन जाएँगे; लेकिन हमें इसकी अनुमति नहीं दी गयी। इस तरह की चीज़ें चीनी कम्‍युनिस्‍ट पार्टी ने कीं, जिससे दुनिया और विश्‍वभर के लोग खतरे में आ गये हैं।

चीन पर शंका की एक और वजह है। चीनी सरकार ने उन डॉक्टरों और व्हिसल ब्लोअरों (जासूसों) को सेंसर किया और यहाँ तक कि हिरासत में भी लिया, जिन्होंने कोरोना को लेकर लोगों को अलार्म करने की कोशिश की। चीन के मशहूर डॉक्टर ली वेनलियान्ग (34) ने सबसे पहले कोरोना वायरस और उसके गम्भीर खतरों को लेकर लोगों को जागरूक करने की कोशिश की। वही कोरोना की जानकारी दुनिया के सामने लेकर आये और कई लोगों को इस संक्रमण से बचाया। फिर अचानक चीन के सरकारी मीडिया और फिर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने उनकी मौत की खबर दी। सवाल ये उठे हैं कि क्या ली वेनलियांग किसी साज़िश का शिकार हुए हैं या फिर उनकी जान भी उसी वायरस ने ले ली, जिसके खतरों को लेकर उन्होंने दुनिया को जागरूक किया!  इन सब घटनाओं और आरोपों के बीच यह आशंका गहरा रही है कि कोरोना किसी चमगादड़ या अन्य जीव से नहीं आया, बल्कि वुहान में चीन की किसी गुुप्त प्रयोगशाला से किसी गम्भीर लापरवाही के चलते लीकेज से कोरोना वायरस फैला। चीन इसे छिपाना चाहता है।

चीन का पूरा मीडिया सरकार के अधीन है और वहाँ से जो भी रिपोर्ट आती हैं, वह सरकार की मंज़ूरी के बाद ही आती है, या चीन सरकार की तरफ से ही उपलब्ध करवायी गयी जानकारी पर आधारित होती हैं। कोरोना को लेकर तो कोई भी रिपोर्ट वुहान (चीन) से स्वतंत्र रूप से बाकी दुनिया में नहीं गयी। कोरोना जिस वुहान से शुरू हुआ, वहीं चीन की प्रयोगशालाएँ हैं। इसलिए आशंका लगातार और भी गहरा रही है। डब्ल्यूएचओ की एक विशेषज्ञ टीम ने वुहान का दौरा करके कुछ पीडि़तों वाले अस्पतालों का दौरा किया था। लेकिन उनका दौरा वहीं हो पाया, जहाँ चीन अधिकारी उन्हें ले गये थे। इससे यह ज़ाहिर नहीं हुआ कि कोरोना की उत्पत्ति कहाँ से और कैसी हुई? न ही इसकी कोई जाँच हुई।

चिन्ता की बात यह है कि जैव हथियारों के इस्तेमाल को प्रतिबन्धित करने के लिए जिनेवा में अंतर्राष्ट्रीय सन्धि तो हुई है, लेकिन उसमें यह प्रावधान नहीं है कि कोई दूसरा देश या विशेषज्ञ किसी देश में जाकर यह जाँच कि सन्धि के नियमों की ईमानदारी से पालना हो रही है या नहीं। इसका कारण यह कि इस तरह की जाँच करने के लिए किसी अंतर्राष्ट्रीय जाँच व्यवस्था पर देशों में कोई सहमति सन्धि में नहीं हुई है। समझा जा सकता है कि इसके पीछे बड़ा कारण उन सभी देशों का अपने जैविक हथियार कार्यक्रम को गुप्त रखना चाहता है। आज जबकि कोरोना के वायरस को लेकर चीन पर आरोप लग रहे हैं, जाँच व्यवस्था पर सहमति के अभाव में चीन के खिलाफ आरोपों की जाँच नहीं हो सकती। चीन ही नहीं, अमेरिका और रूस जैसे देशों पर भी जैविक हथियारों के विकास और भण्डारण को लेकर आरोप लगते रहे हैं। यह सभी देश जिनेवा सन्धि के पालन के लिए किसी तरह की जाँच व्यवस्था स्वीकार नहीं करना चाहते।

कोरोना की जैसी वैश्विक व्यापकता रही है और जितनी बड़ी संख्या में लोग मर रहे हैं, उससे इस आशंका को और अधिक बल मिलता है। चीन से लेकर इटली, ईरान और अमेरिका जैसी शक्ति तक पर इस वायरस का असर रहा है, उससे आशंकाएँ बड़ा आकार ले रही हैं। यह आरोप हैं कि चीन के वुहान शहर में वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में घातक विषाणुओं से लडऩे के लिए विषाणु वैज्ञानिक काम करते हैं। यही नहीं, यह इंस्टीट्यूट लाल सेना (चीन की सेना) के लिए जैव युद्ध कार्यक्रम में भी योगदान करता है। वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट में दावा किया गया था कि इस संस्थान को लेकर उसे इज़राइल के एक जैव-वैज्ञानिक और जैव युद्ध विशेषज्ञ डैनी शोहम ने बताया कि यह संस्थान चीन की सबसे अत्याधुनिक जैव शोध प्रयोगशाला है। दिलचस्प यह भी है कि यह विषाणु शोध चीन का एकमात्र शोध संस्थान है, जिसकी मौज़ूदगी के बारे में चीन ने आधिकारिक तौर पर स्वीकार किया है।

साल 2017 के आिखर में एक खुफिया रिपोर्ट में खुलासा किया गया था कि पाकिस्तान के एक दर्जन से ज़्यादा सेना अधिकारी, जिनमें पाक सेना प्रमुख और कैप्टेन रैंक के अधिकारी भी थे, चीन में जैविक युद्ध के प्रशिक्षण के लिये गये थे।

चीन के जैविक युद्ध की तैयारी कहाँ तक पहुँची और कितने या कैसे जैविक हथियार चीन में तैयार हो चुके हैं या हो रहे हैं, अभी कहना मुश्किल है। वैसे अस्सी के दशक के आिखरी साल में चीन के एक जैविक हथियार संयन्त्र में गम्भीर दुर्घटना हुई थी, जिसकी व्यापक चर्चा हुई। इसके बाद जैविक युद्ध के खतरे ने दुनिया भर को चिन्ता में डाल दिया था।

कोरोना वायरस (कोविड-19) एक साधारण वायरस तक सीमित रहता और कुछ समय में ही नियंत्रण में आ गया होता, तो शायद इतने गहरे संदेह नहीं उभरते। लेकिन पूरी दुनिया में हज़ारों मौतों के बीच इस वायरस की उत्पत्ति को लेकर दुनिया की दो बड़ी महाशक्तियों अमेरिका और चीन ने जिस तरह एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप किये हैं, उसने एक बड़ी बहस को जन्म दे दिया है। सवाल यह उठ रहे हैं कि कहीं कोरोना का यह हमला किसी जैविक युद्ध का पूर्वाभ्यास तो नहीं था। आज जो सवाल खड़ा किया जा रहा है, वह यह है कि कोरोना वास्तव में प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि मानव निर्मित आपदा है। अर्थात् वैज्ञानिकों ने इसे किसी खास मकसद के लिए तैयार किया है। यह मकसद जैविक युद्ध का पूर्वाभ्यास भी हो सकता है और जैविक हथियार के निर्माण के दौरान वायरस के लीक हो जाने की चूक भी हो सकती है। फिलहाल यह तो साफ है कि इसे लेकर अभी तक कोई ठोस प्रमाण नहीं कि यह वायरस क्या बला है? कैसे आया? और कहाँ से आया? बहुत से विशेषज्ञ इसे लेकर सावधानी भरे बयान दे रहे हैं और आरोपों से बचने की बात कह रहे हैं। लेकिन सच यह भी है कि दुनिया भर में कोरोना के कहर के बाद रिसर्चर, वैज्ञानिक और जासूस इस बात की खोज में जुट गये हैं कि क्या कोरोना किसी जैविक युद्ध की तैयारी जैसा खतरा है?

आरोप-प्रत्यारोप

अब ज़रा अमेरिका और चीन के एक-दूसरे पर कोरोना को लेकर आरोपों की भी बात कर लेते हैं। दोनों ने एक-दूसरे पर आरोप लगाये। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता कंग श्वांग ने कहा कि ऐसे कयास लगाये जा रहे हैं कि कोरोना वायरस शायद चीन के जैविक युद्ध का एक हिस्सा है और इसे एक प्रयोगशाला से निकला जैविक हथियार बताया गया है। याद रहे चीन की तरफ से कहा गया था कि अमेरिकी सैनिकों के ज़रिये चीन के वुहान में कोरोना वायरस आया। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा था कि वुहान में अमेरिकी सैनिकों के ज़रिये कोरोना वायरस आया और यह एक अमेरिकी साज़िश थी। दरअसल, यहाँ एक दूसरा पहलू भी है, जो चीन और उसके समर्थक देश पेश करते हैं। उनका दावा है कि कोरोना चीन के खिलाफ एक षड्यंत्र है; क्योंकि कुछ ताकतें (अमेरिका और अन्य) उसकी आर्थिक शक्ति से चिन्तित हैं और वे उसे ऐसी मार देना चाहते थे, जिससे उसकी आर्थिकी तबाह हो जाए और वह कंगाल बन जाए। उनकी इस थ्योरी के पीछे तर्क है कि कोरोना चीन, पाकिस्तान आदि में पहुँचा; लेकिन उसके पड़ोसी अफगानिस्तान में नहीं, जहाँ अमेरिका के सैनिक हैं। चीन का विदेश मंत्रालय आरोप लगा चुका है कि अमेरिकी सैनिक कोरोना को चीन में लाये।

पेइचिंग के चाइना रेडियो इंटरनेशनल के माध्यम से फरवरी में ही चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता कंग श्वांग ने कहा था कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के ज़िम्मेदार व्यक्ति ने फिलहाल बताया है कि कोई भी प्रमाण नहीं है कि नया कोरोना वायरस प्रयोगशाला से बना है या जैविक हथियार बनाने से पैदा हुआ है। कंग श्वांग ने कहा कि चीन को आशा है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय एक साथ कोरोना वायरस का मुकाबला करने के साथ षड्यंत्र की राय जैसे राजनीतिक वायरस का भी विरोध करेगा। कंग श्वांग ने कहा कि वर्तमान में चीनी जनता महामारी के मुकाबले की पूरी कोशिश कर रही है। इस वक्त ऐसी सनसनीखेज़ बात करना बदनीयत और बेतुकापन है।

उधर, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप कोरोना वायरस को लगातार चीनी वायरस कह रहे हैं। वैसे इसके लिए ट्रंप की आलोचना भी हुई है। उनके विरोधी कोरोना को चीनी वायरस कहने को ट्रंप की नस्लवादी और चीन विरोधी सोच बता रहे हैं। इसके बावजूद ट्रंप अपनी बात पर दृढ़ हैं और उन्हें लगता है कि कोरोना को चीनी वायरस कहने में कुछ भी गलत नहीं है; क्योंकि यह वायरस वहीं से आया है। चीन ट्रंप की इस बात का कड़ा विरोध कर रहा है। कड़ी आपत्ति के बीच चीन के विशेषज्ञों का कहना है कि इससे कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई कमज़ोर होगी और दोनों देशों के बीच कड़ुवाहट आयेगी। चीन का यह भी कहना है कि इससे दुनिया में एशिया के लोगों के प्रति नफरत पैदा हो सकती है।

यहाँ तक कि भारतीय शोधकर्ताओं के एक समूह ने भी जनवरी के आिखर में एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें कहा गया कि सम्भव है कि कोरोना वायरस जानबूझकर पैदा किया गया हो। रिपोर्ट में कोरोना वायरस (कोविड-19) को चीन के जैविक हथियार होने की आशंका जतायी गयी थी। रिपोर्ट को लेकर काफी विवाद हुआ, जिसके बाद फरवरी के शुरू में ही इस रिपोर्ट को वापस ले लिया गया। वैज्ञानिकों ने इस रिपोर्ट की आलोचना करते हुए कहा कि इसमें कोई ठोस आधार नहीं है, जिसकी बुनियाद पर कहा जा सके कि चीन ने कोरोना को जानबूझकर पैदा किया है।

अमेरिका अब चीन पर आरोप लगा रहा है कि उसने कोरोना वायरस के संक्रमण को ठीक से नहीं सँभाला, जिससे दुनिया भर में यह फैला। न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि ट्रंप प्रशासन भी इस थ्योरी पर चर्चा करता रहा है कि कोरोना वायरस चीन में वुहान के फूड मार्केट से नहीं फैला है, बल्कि चीन की सरकार की वुहान स्थित लैब से फैला है, जहाँ जैविक हथियार को लेकर रिसर्च का काम चल रहा है। अब इसके क्या मायने हैं? यही कि अमेरिका चीन पर सीधे-सीधे यह आरोप कि यह जैविक हथियार हो सकता है।

फॉक्स न्यूज के एक टॉक शो में अमेरिका के रिपब्लिकन सीनेटर टॉम कॉटन ने कहा था कि कोरोना वायरस कैसे आया? इसका अभी कोई सुबूत नहीं। यह वुहान के फूड मार्केट से आया, इसे भी हम निश्चित तौर पर नहीं कह सकते। चीन के बारे में हम जानते हैं कि वह नकल करने और बेईमानी के लिए मशहूर है। हमें इसे लेकर शक करना चाहिए और कड़े सवाल भी करने चाहिए।

टॉम कॉटन ने एक अलग साक्षात्कार में कहा कि वुहान के जिस फूड मार्केट से कोरोना फैलने की बात कही जा रही है, वहीं पर चीनी लैब स्थित है। हमें नहीं पता है कि यह कहाँ से पैदा हुआ। हमें यह पता है कि फूड मार्केट से कुछ किलोमीटर की दूरी पर ही चीन का इकलौता बायोसेफ्टी

लेवल-4 का सुपर लैब है। हालाँकि, हमारे पास कोई सुबूत नहीं है कि कोरोना चीन की उस लैब में पैदा किया गया है। जब टॉम कॉटन ने इस तरह की आशंका की बात कही, तो मशहूर अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट ने विशेषज्ञों से इस मसले पर उनके विचार जाने। हालाँकि, कमोवेश सभी ने इस थ्योरी का समर्थन नहीं किया। किसी ने भी कोरोना को मानव निर्मित नहीं बताया। रटगर्स यूनिवर्सिटी में केमिकल बायोलॉजी के प्रोफेसर रिचर्ड एब्राइट ने अखबार के माध्यम से कहा कि इस वायरस के जीनोम सीक्वेंस को देखें, तो साफ हो जाता है कि इसे जानबूझकर नहीं तैयार किया गया है। कोरोना के इस विवाद पर न्यूयॉर्क टाइम्स टू सेंटर फोर स्ट्रैटिजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज में चीन के विशेषज्ञ स्कॉट केनेडी ने कहा कि कोरोना वायरस को चीनी वायरस कहना चीन को दुनिया भर में किसी डर के रूप में पेश करने की तरह है। यह नफरत न केवल वहाँ की सरकार के प्रति, बल्कि आम चीनी नागिरकों के खिलाफ भी बढ़ेगी। लेकिन ट्रंप ने व्हाइट हाउस में बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि वह कोरोना के साथ चीन का नाम इसलिए जोड़ रहे हैं, क्योंकि वह लोगों को गलत सूचना दे रहे हैं। ट्रंप ने कहा कि चीन की तरफ से ही कहा गया कि अमेरिकी सैनिकों के ज़रिये चीन के वुहान में कोरोना वायरस आया। वह (चीन सरकार) मेरे सैनिकों को बदनाम कर रही है। ट्रंप ने अपने ट्वीट में लिखा- ‘कोरोना वायरस की शुरुआत चीन से हुई, इसलिए उसे चीनी वायरस कहने में कोई समस्या नहीं है।’

व्हाइट हाउस का कहना है कि वायरस का नाम पहले भी उसकी उत्पत्ति की जगह के नाम पर दिया जाता रहा है। स्पैनिश फ्लू, वेस्ट नील वायरस, जीका और इबोला। यह सभी नाम जगह के नाम से हैं। वैसे अमेरिका में कोरोना को चीनी वायरस कहने पर विवाद रहा है। मेडिकल और स्वास्थ्य विशेषज्ञ मानते हैं कि महामारी को किसी नस्ल या समुदाय से नहीं जोडऩा चाहिए; क्योंकि इससे केवल नफरत बढ़ेगी।

वैसे इन आरोपों-प्रत्यारोपों का असर भी दिखा है। चीन ने मार्च में अपने यहाँ से कई अमेरिकी पत्रकारों को जाने के लिए कह दिया। जवाब में ट्रंप प्रशासन ने भी अमेरिका में काम कर रहे कुछ चीनी नागरिकों को जाने के लिए कहा।

क्या है जिनेवा जैविक हथियार सन्धि?

जैव हथियारों के इस्तेमाल को प्रतिबन्धित करने को लेकर 1925 में की जिनेवा अंतर्राष्ट्रीय सन्धि और 1972 में इसमें हुए संशोधन, जिसमें जैविक हथियार के विकास और भण्डारण पर रोक की बात है, के अनुच्छेद एक में कहा गया है- ‘सन्धि पर हस्ताक्षर करने वाला प्रत्येक देश संकृप करता है कि किसी हालत में भी वह जैव हथियारों का विकास, उत्पादन, भंडारण और इस्तेमाल नहीं करेगा। इसके बाद अमेरिकी कांग्रेस ने 1989 में जैव-हथियार को लेकर एक क़ानून बनाया जिसमें जैव हथियार सन्धि के पालन की बात है। इसका मकसद इस तरह के हथियारों को आतंकवादियों के हाथ जाने देने से रोकना है। हमेशा से यह आशंका जतायी जाती रही है कि इस तरह के हथियारों का निर्माण इस लिहाज़ से खतरनाक हो सकता है कि कहीं यह किसी आतंकवादी संगठन के हाथ न लग जाएँ।’

आतंकवादी गुटों का खतरा

अभी तक इस बात के कोई संकेत नहीं हैं कि कोरोना वायरस के फैलने के पीछे किसी आतंकवादी संगठन का हाथ हो सकता है। लेकिन इसके खतरे से इन्कार भी नहीं किया जा सकता। आतंकवादी गुट हमेशा इस तरह के खतरनाक हथियारों की खोज में रहे हैं। वैसे भी दुनिया के खूँखार आतंकी संगठनों ने खतरनाक हथियार हासिल किये हैं। वे इनका इस्तेमाल करके हज़ारों-हज़ार लोगों को मौत के घाट उतार चुके हैं। इस बात के दर्ज़नों सुबूत रहे हैं कि कुछ देश आतंकवादियों की मदद करते रहे हैं। उनके पास खतरनाक हथियार इन देशों से ही पहुँचे हैं। ऐसे में जैविक हथियारों की सुरक्षा में भी सेंध का बड़ा खतरा पैदा हो जाता है। यदि ऐसा होता है, तो यह दुनिया की तबाही का संकेत होगा। हाल के दशक में दुनिया में देशों की आपसी दुश्मनियाँ और व्यापारिक टकराव भी आतंकवादियों के फलने-फूलने का बड़ा कारण रहा है। यह आरोप रहे हैं कि कुछ देश अपने निजी हितों के लिए दूसरे देशों के खिलाफ आतंकवादियों का इस्तेमाल करते हैं।

क्या है जैविक युद्ध?

जैविक युद्ध (बायोलॉजिकल वारफेयर) के मायने हैं- विषाणु युद्ध। यानी इसमें हथियार गोला-बारूद नहीं, बल्कि विषाणु (वायरस) होंगे। जैविक युद्ध के तहत तबाही के लिए जीवाणु, विषाणु या फफँूद जैसे जैविक तत्त्वों को ही हथियार बनाया जाता है। जैविक युद्ध में घातक विषैले या संक्रमणकारी तत्त्वों का उपयोग किया जाता है। जैविक हथियार रोग पैदा करने वाले एजेंट होते हैं। इनमें बैक्टीरिया, वायरस, रिकेट्सिया, कवक, विषाक्त पदार्थ शामिल हैं। बेसिलस एन्थ्रेसिस बैक्टीरिया, जो एंथ्रेक्स का कारण बनता है; जैविक हथियार के रूप में इस्तेमाल किये जाने वाले सबसे घातक एजेंटों में गिना जाता रहा है। एंथ्रेक्स का इस्तेमाल जैविक हथियार के रूप में लगभग एक सदी तक पाउडर, स्प्रे, भोजन और पानी के साथ किया गया है। अदृश्य, संक्रामक, गन्धहीन और स्वादहीन बीजाणु एंथ्रेक्स को एक लचीला जैव हथियार बनाते हैं।

कोरोना ने प्रदूषण करवा दिया कम

भले कोरोना ने दुनिया भर में दहशत भर दी। इस वायरस के कुछ सकारात्मक पहलू भी सामने आये हैं। पहले यह कि चीन में वायु प्रदूषण काफी हद तक कम हो गया है। कुछ समय पहले तक हर देश वायु प्रदूषण से जंग लड़ रहा था। चीन में तो बढ़ता वायु प्रदूषण एक भीषण समस्या बन चुका है। हर साल 10 लाख से अधिक लोगों को वहाँ वायु प्रदूषण के कारण अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है। चीन की अर्थ-व्यवस्था को प्रदूषण से 267 बिलियन युआन (करीब 26,700 करोड़ रुपये) का नुकसान उठाना पड़ रहा था। वायु प्रदूषण से जंग के लिए चीन ने विश्व का सबसे बड़ा एयर प्यूरीफायर टॉवर लगाया। प्लास्टिक को प्रतिबन्धित किया। उद्योगों पर लगाम लगायी। लेकिन नतीजा ज़्यादा उत्साह वाला नहीं रहा। मगर हैरानी की बात है कि आज अंतरिक्ष में चीन के आसमान के ऊपर हमेशा बादलों के रूप में प्रदूषण का धुआँ बहुत कम दिख रहा है। उधर, इटली के वेनिस शहर में एक अप्रत्याशित प्रभाव दिखा है। वहाँ आमतौर पर बादल वाली नहरें पानी के क्रिस्टल में तब्दील हो गयी हैं, जिसमें नीचे मछली तैरते हुए भी साफ दिखती है। ट्रैफिक कम होने से नहरों का रंग-रूप बदल गया है। यही नहीं, बड़ी नदियों में डॉलफिन, जो पहले किनारों पर बहुत काम दिखती थीं; अब दिखने लगी हैं। हो सकता है कि भारत में भी राजधानी दिल्ली जैसे शहरों में ट्रैफिक घटने से प्रदूषण के आँकड़े बेहतर हों। नदियों में प्रदूषण कम हो और ध्वनि प्रदूषण भी कम हो।

खतरे के साये में भारत

करीब 130 करोड़ की आबादी वाले भारत में इस तरह की महामारी का सबसे ज़्यादा खतरा है। देश में अस्पतालों की हालत किसी से छिपी नहीं है। और गरीबी का आलम यह है कि एक-एक कमरे के घर में 10-10 लोग रहते हैं। बस्तियाँ इस तरह की महामारी के लिए सबसे ज़्यादा संवेदनशील स्थान हैं। वहाँ सफाई से लेकर जन सुविधाएँ तक न के बराबर हैं। सेल्फ चेकिंग किट से लेकर आईसोलेशन वाले कमरे भी बहुत कम हैं। ऊपर से भ्रष्ट तंत्र और अराजक तत्त्व महामारी की हालत में भी पैसे के लिए लोगों को लूटने से पीछे नहीं हटते। भारत में शुरू में कोरोना का असर न के बराबर था, लेकिन मार्च के दूसरे पखवाड़े अचानक स्थितियाँ खराब होने लगीं। सच यह है कि फरवरी के अन्त तक भारत में कोरोना से मुकाबले की तैयारियाँ सिर्फ बैठकों तक सीमित थीं। अंतर्राष्ट्रीय हवाई उड़ानों पर पर बहुत देरी से पाबन्दी लगायी गयी, जिसके चलते बड़ी संख्या में विदेशी भी उन देशों से भारत आये, जहाँ कोरोना के बहुत मामले हैं। एयरपोट्र्स पर ऐहतियाती उपाय बहुत देरी से शुरू हुए। एयरपोर्ट पर क्या हालत है, यह गायक कनिका कपूर के उदहारण से साबित हो जाता है। उन्हें इंग्लैंड से वापस आने के बाद एयरपोर्ट पर जाँच के दौरान पॉजिटिव पाया गया, लेकिन वे सीधे अपने घर चली गयीं और तीन पार्टियों में शामिल होकर कितने ही लोगों के लिए खतरा बन गयीं। महामारी से बचने के लिए केंद्र सरकार की तरफ से किसी बड़े बजट की कोई घोषणा मार्च के आिखर तक नहीं की गयी। घर पर रहने और लॉकडाउन के फैसले हुए, लेकिन इसे लेकर कोई योजना रखी गयी कि जो लोग दिन में कमाकर रात को खाना खाते हैं, उनका क्या होगा? बस्तियों, जो भारत की दृष्टि से सबसे संवेदनशील स्थान हैं; में जागरूकता को लेकर कुछ नहीं किया गया। भारत में कोरोना वायरस के मामले में सबसे ज़्यादा संवेदनशील महाराष्ट्र बना हुआ है, जहाँ सबसे ज़्यादा मामले सामने आये हैं। इसके अलावा केरल, दिल्ली, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, हरियाणा, गुजरात, लद्दाख, पंजाब, चंडीगढ़, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़, जम्मू-कश्मीर, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, ओडिशा, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़ और बिहार से भी मामले सामने आये हैं। देश भर में लॉकडाउन की स्थिति है।

पहली बार जनता कफ्र्यू!

कोरोना वायरस को लेकर को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 मार्च की शाम राष्ट्र को सम्बोधित किया। मोदी ने कहा कि इस वायरस से पूरी मानवजाति संकट में है और सावधानी ही बचने का सबसे बड़ा उपाय है। अपने सम्बोधन में मोदी ने जनता से अपील की कि आने वाले कुछ सप्ताह तक घर से न निकलें, बहुत ज़रूरी होने पर ही बाहर निकलें। मोदी ने 22 मार्च को सुबह 7 बजे से रात 9 बजे तक सभी देशवासियों को जनता कफ्र्यू करने के लिए कहा। लोगों ने इसका पालन भी किया। शायद देश में पहली बार इस तरह का कफ्र्यू लगा है। मोदी ने कहा कि जबकि इस बीमारी की कोई दवा नहीं है, तो इस स्थिति में हमारा खुद का स्वस्थ बने रहना बहुत आवश्यक है। इस बीमारी से बचने और खुद के स्वस्थ बने रहने के लिए अनिवार्य है- संयम। कहा कि आज हमें ये संकल्प लेना होगा कि हम स्वयं संक्रमित होने से बचेंगे और दूसरों को भी संक्रमित होने से बचाएँगे। उन्होंने कहा कि जब बड़े-बड़े और विकसित देशों में हम कोरोना महामारी का व्यापक प्रभाव देख रहे हैं, तो भारत पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, ये मानना गलत है। शुरुआती कुछ दिनों के बाद अचानक बीमारी का जैसे विस्फोट हुआ है। इन देशों में कोरोना से संक्रमित लोगों की संख्या बहुत तेज़ी से बढ़ी है। भारत सरकार इस स्थिति पर, कोरोना के फैलाव के इस ट्रैक रिकॉर्ड पर पूरी तरह नज़र रखे हुए है। प्रधानमंत्री ने कहा कि अभी तक विज्ञान कोरोना महामारी से बचने के लिए कोई निश्चित उपाय नहीं सुझा सका है और न ही इसकी कोई वैक्सीन बन पायी है। ऐसी स्थिति में चिन्ता बढऩी बहुत स्वाभाविक है। मैं आप सभी देशवासियों से कुछ माँगने आया हूँ। मुझे आपके आने वाले कुछ सप्ताह चाहिए। आपका आने वाला कुछ समय चाहिए। मोदी ने कहा कि साथियों, आपसे मैंने जो भी माँगा है; मुझे कभी देशवासियों ने निराश नहीं किया है। यह आपके आशीर्वाद की ताकत है कि हमारे प्रयास सफल होते हैं। वैश्विक महामारी कोरोना से निश्चिंत हो जाने की यह सोच सही नहीं है। इसलिए प्रत्येक भारतवासी का सजग रहना, सतर्क रहना बहुत आवश्यक है। प्रधानमंत्री ने कहा कि कोरोना वैश्विक महामारी का डटकर मुकाबला किया है; आवश्यक सावधानियाँ बरती हैं। लेकिन बीते कुछ दिनों से ऐसा भी लग रहा है, जैसे हम संकट से बचे हुए हैं। सब कुछ ठीक है। आमतौर पर कभी जब कोई प्राकृतिक संकट आता है, तो वो कुछ देशों या राज्यों तक ही सीमित रहता है। लेकिन इस बार यह संकट ऐसा है, जिसने विश्व भर में पूरी मानवजाति को संकट में डाल दिया है। उन्होंने कहा कि पूरा विश्व इस समय संकट के बहुत बड़े गम्भीर दौर से गुज़र रहा है। इसलिए मेरा सभी देशवासियों से यह आग्रह है कि आने वाले कुछ सप्ताह तक, जब बहुत ज़रूरी हो तभी अपने घर से बाहर निकलें। जितना सम्भव हो सके, आप अपना काम- चाहे बिजनेस से जुड़ा हो, कार्यालय से जुड़ा हो; अपने घर से ही करें।

कोरोना वायरस को लेकर चीन पर केस दर्ज

चीन से शुरू हुए कोरोना वायरस का मसला अब अदालत में पहुँच गया है। हज़ारों लोगों की जान ले चुके इस वायरस की उत्पत्ति को लेकर आशंकाओं के बीच इस बाबत अमेरिका के टेक्सास की कम्पनी बज फोटोज, वकील लैरी क्लेमैन और संस्था फ्रीडम वॉच ने कोरोना वायरस के प्रसार को लेकर चीन के खिलाफ 200 खरब डॉलर (20 ट्रिलियन डॉलर) यानी लगभग 14,260 खरब रुपये का मुकदमा दायर कर दिया है। मुकदमे में चीन पर दुनिया के 3.34 लाख लोगों को वायरस से संक्रमित करने का आरोप लगाया गया है। दावा किया गया है कि चीन के वुहान शहर में वुहान वायरोलॉजी इंस्टीट्यूट ने यह जैविक हथियार तैयार किया है। जिसमें चीन सरकार, चीन की सेना, वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के डायरेक्टर शी झेनग्ली और चीन के सेना में मेजर जनरल छेन वेई की भूमिका से इन्कार नहीं किया जा सकता है। गौरतलब है कि वायरस के फैलने से अमेरिका में भी बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई है। अब केलमेन ने टेक्सास के उत्तरी डिस्ट्रिक्ट की अदालत में मुकदमा दायर करते हुए आरोप लगाया गया है कि वायरस को चीन ने युद्ध के जैविक हथियार के रूप में तैयार किया है। याचिका में कहा गया है कि चीन इसे आगे बढ़ाते हुए अमेरिकी कानून, अंतर्राष्ट्रीय कानून, समझौतों और मानदंडों का उल्लंघन कर रहा है। केलमेन ने कहा कि इसे एक प्रभावी और विनाशकारी जैविक युद्ध हथियार के रूप में बड़े पैमाने पर आबादी को मारने के लिए डिज़ाइन किया गया है। गौरतलब है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी इस खतरनाक वायरस को फैलाने के लिए चीन को ज़िम्मेदार बताते हुए कहा था कि चीन के कोरोना वायरस पर जानकारी छिपाने की कीमत आज पूरी दुनिया चुका रही है।

दुनिया में कोरोना वायरस के बढ़ते मामले बहुत बड़ी चिंता का कारण हैं।

टेडरोस अडानोम गेबरेइसस,

डब्ल्यूएचओ प्रमुख

चीन के डॉक्टर ने सबसे पहले दी थी चेतावनी

कोरोना का कहर सामने आने के बाद चीन में डॉक्टर सी. उर्फ ली वेनलियान्ग (34) किसी हीरो की तरह उभरे थे। उन्होंने सबसे पहले कोरोना वायरस और उसके गम्भीर खतरों को पहचाना। कई लोगों को संक्रमित होने से भी बचाया था। कोरोना वायरस को दुनिया के सामने लाने इस चीनी डॉक्टर ली वेनलियान्ग की मौत पर सवाल उठे हैं। चीन के सरकारी मीडिया और फिर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने उनकी मौत की खबर दी थी। सवाल यह उठे हैं कि क्या ली वेनलियांग किसी साज़िश का शिकार हुए हैं? या फिर उनकी जान भी उसी वायरस ने ले ली, जिसके खतरों को लेकर उन्होंने दुनिया को जागरूक किया! चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने कहा था कि डॉक्टर वेनलियान्ग की मृत्यु कोरोना वायरस से हुई। उन्हें कोरोना वायरस की चपेट में आने के बाद 12 जनवरी को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा था, क्योंकि वो एक मरीज़ के सम्पर्क में आये थे। जब चीन के वुहान शहर में कोरोना वायरस की खबरें छिपाने की चर्चा तेज़ हुई थी, उस समय डॉक्टर वेनलियान्ग ने अस्पताल से वीडियो पोस्ट करके कोरोना वायरस को लेकर लोगों को चेताया था। कहा जाता है कि इसके बाद चीन के स्वास्थ्य विभाग ने वेनलियान्ग से पूछताछ की थी। वुहान पुलिस के वेनलियान्ग को अफवाह फैलाने के आरोप के साथ नोटिस जारी करने की जानकारी सामने आयी थी। वेनलियान्ग ने 30 दिसंबर, 2019 को साथी डॉक्टरों के एक चैट ग्रुप में अपने साथी डॉक्टरों को संदेश भेजा था और कोरोना वायरस के खतरे के बारे में बताया था। इतना ही नहीं ली वेनलियान्ग ने अपने साथी डॉक्टरों को चेतावनी दी थी कि वो इस वायरस से बचने के लिए खास तरह के कपड़े पहनें। नलियान्ग ने बताया था कि टेस्ट में साफ हुआ है कि लोगों की जान लेने वाला ये वायरस कोरोना समूह का है। इसी समूह के सीवियर एक्यूट रेस्पीरेटरी सिंड्रोम यानी सार्स वायरस भी हैं, जिसकी वजह से 2003 में चीन और पूरी दुनिया में 800 लोगों की मौत हुई थी। वेनलियान्ग ने अपने दोस्तों को कहा कि वे अपने परिजनों को निजी तौर पर इससे सतर्क रहने को कहें। उनका ये मैसेज कुछ देर में ही वायरल हो गया था। यह कहा जाता है कि वेनलियांग ने सबसे पहले चीन की सरकार को इस वायरस से आगाह किया था, लेकिन चीन की सरकार ने डॉक्टर की चेतावनी को संजीदगी से नहीं लिया, जिसका नतीजा खतरनाक हुआ। लांसेट मेडिकल जर्नल में चीनी शोधकर्ताओं के छपे एक शोध में कहा गया है कि कोरोना कोविड-19 से संक्रमण का पहला मामला पिछले साल पहली दिसंबर को ही सामने आ गया था। इसके कुछ दिन बाद तीन और लोगों में कोरोना के लक्षण दिखे। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, कोरोना वायरस से पैदा हुए रोग को लेकर अभी भी यह आशंका खारिज नहीं की जा सकती कि ये बीमारी किसी जानवर से मनुष्य में पहुँची।

कोरोना : थ्योरीज

  1. चीन के वुहान में कथित रूप से सरकारी प्रयोगशाला से यह वायरस किसी लापरवाही के कारण लीक हो गया। इस प्रयोगशाला को लेकर कहा जाता है कि वहाँ चीनी वैज्ञानिक गुप्त रूप से वारफेयर (युद्ध की तैयारी) के कार्यक्रमों पर काम करते हैं। जियोपॉलिटिकल एंड इंटरनेशनल रिलेशंस पर ग्रेट गेम इंडिया पत्रिका में टायलर डरडेन की खोजपूर्ण रिपोर्ट में दावा किया गया कि क्या चीन ने कनाडा से कोरोना वायरस को एक हथियार बनाने के लिए चुराया है? चीन ने आज तक खुले रूप से कभी इस रिपोर्ट के दावे का खंडन नहीं किया।
  2. चीन ने शुरू से यह कहा है कि कोरोना इंसानों में चमगादड़ या इस तरह की किसी प्रजाति से आया। शोधकर्ता प्रामाणिक तौर पर नहीं कह पाये हैं कि यह वायरस किस जानवर से इंसानों में आया है? पिछले हफ्ते एक चीनी टीम ने सुझाव दिया कि यह साँप से आया हो सकता है। लेकिन सवाल है कि वुहान शहर, जहाँ चीन की प्रयोगशाला है; में ही यह घटना क्यों हुई?
  3. चीन क्यों दूसरे देशों को विशेषज्ञों को वुहान में जाँच के लिए नहीं आने दे रहा। क्या उसे डर है कि उसने इसकी इजाज़त दी, तो उसके किसी गुप्त कार्यक्रम की पोल खुल सकती है?
  4. चीन और उसके समर्थक देश दावा करते हैं कि कोरोना चीन के खिलाफ एक षड्यंत्र है। क्योंकि कुछ ताकतें (अमेरिका और अन्य) उसकी आर्थिक शक्ति से चिन्तित हैं और वे उसे ऐसी मात देना चाहती हैं, ताकि चीन की आर्थिकी तबाह हो जाये और वह कंगाल बन जाये। उनकी इस थ्योरी के पीछे तर्क है कि कोरोना चीन, पाकिस्तान आदि में पहुँचा, लेकिन सके पड़ोसी देश अफगानिस्तान में नहीं पहुँचा; जहाँ अमेरिका के सैनिक हैं। तो क्या है जंग भविष्य में कभी किसी विश्व युद्ध का रास्ता भी खोल सकती है?

देश में 14 अप्रैल तक लॉकडाउन

देश में जिस स्तर की सुविधाएँ हैं, उसमें इससे बेहतर और कोई रास्ता देश की सरकार और जनता के पास था भी नहीं। वैसे भी अन्य देशों के अनुभव बता रहे हैं कि जहाँ-जहाँ पूरा लॉकडाउन किया गया, वहाँ कोरोना के इस खतरनाक वायरस को रोकने में बेहतर मदद मिली है। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र्र मोदी ने 24 मार्च की आधी रात से 21 दिन के देशव्यापी लॉकडाउन का ऐलान किया, तो इसे वर्तमान परिस्थिति में सब बेहतर उपाय माना गया। हालाँकि, सच यह भी है कि देश में कोरोना की महामारी के खतरे को लेकर जिन योजनाओं और घोषणाओं की फरवरी में ही कर देने की ज़रूरत थी, वो मार्च की आिखर में जाकर आयीं। कह सकते हैं कि देर आये, दुरुस्त आये। कांग्रेस नेता राहुल गाँधी तक ने सरकार को फरवरी में ही चेताया था कि कोरोना बड़ी मुसीबत बनने जा रहा है, लिहाज़ा सरकार को तत्काल ठोस कदम उठाने चाहिए। लेकिन लगता है कि सरकार ने कुछ ज़्यादा ही लम्बा इंतज़ार किया। प्रधानमंत्री मोदी ने 19 मार्च को राष्ट्र को पहली बार सम्बोधित किया, जिसमें जनता कफ्र्यू का आग्रह किया। हालाँकि, उनके ताली-थाली-घंटी बजाओ वाले आह्वान पर सोशल मीडिया में आलोचना भी हुई कि मोदी को इसकी जगह बड़े उपायों और मदद का ऐलान करना चाहिए था। बहुत-सी जगह दिखा कि लोग बड़े समूहों में सड़कों पर उतरकर ताली-थाली-घंटे-घंटी बजाने पहुँच गये, जो बीमारी को बुलावा देने जैसा था। बहुत-से लोगों को यह भी लगता है कि तानी-थाली बजाने का नारा राजनीतिक नारों जैसा था। राज्यों में भी सरकारों ने लॉकडाउन के ऐलान बहुत पहले से कर दिये। राजस्थान से इसकी पहल हुई। कफ्र्यू की पहली घोषणा पंजाब में कैप्टेन अमङ्क्षरदर सरकार ने की। आकार के लिए यह तय करना बहुत ज़रूरी है कि इन 21 दिनों में जनता को ज़रूरी चीज़ें मिलती रहें। दिल्ली में सरकार की नाक के नीचे सब्ज़ियाँ और दूसरी चीज़ें दोगुने से भी ज़्यादा मूल्य पर बेची जा रही हैं। कोई इस ओर ध्यान नहीं दे रहा है, न इसे रोका जा रहा है। यह भी नहीं बताया जा रहा है कि कोरोना के अलावा दूसरे रोगियों को इमरजेंसी में अस्पताल पहुँचाने का क्या इंतज़ाम होगा? भाषणों में कुछ भी कहना बहुत आसान होता है, मगर उसे ज़मीनी स्तर पर लागू करना बहुत मुश्किल होता है। बहुत से लोग नहीं जानते कि प्रधानमंत्री ने अपनी 24 मार्च की घोषणा में कहा क्या? प्रधानमंत्री ने कहा कि कोरोना वायरस के फैलाव को रोकने के लिए भारत में 24 मार्च की रात 12 बजे से 14 अप्रैल तक कुल तीन सप्ताह यानी 21 दिन का देशव्यापी लॉकडाउन रहेगा। मोदी ने कोरोना वायरस संकट पर राष्ट्र को अपने सम्बोधन में कहा कि ये जनता कफ्र्यू से ज़्यादा कड़ा होगा और लोगों को समझ लेना चाहिए कि कोरोना जैसे संकट से लडऩे और जीतने के लिए कफ्र्यू जैसा कदम ही ज़रूरी है। पीएम मोदी ने कहा कि इस दौरान ज़रूरी सेवाओं को नहीं रोका जाएगा और खाने-पीने या दवा की कोई कमी नहीं होने दी जाएगी।

मोदी ने कहा कि ‘जान है, तो जहान है’ कहावत नहीं है; इसे समझना है। 21 दिन का लॉकडाउन लम्बा समय है। लेकिन देश के लोगों की रक्षा के लिए गाँव और शहर की रक्षा के लिए यह कदम उठाने के अलावा कोई रास्ता नहीं है। दुनिया भर के डॉक्टरों का कहना है कि इस वायरस के संक्रमण चक्र को रोकने के लिए कम-से-कम 21 दिन का समय चाहिए और हमें इस 21 दिन के लॉकडाउन से विजयी होकर बाहर आना है। पूरे देश में 21 दिन के लॉकडाउन के ऐलान से पहले मोदी ने 22 मार्च के जनता कफ्र्यू को सफल बनाने के लिए देश के लोगों को शुक्रिया कहा। उन्होंने कहा कि भारत ने पूरी दुनिया को बता दिया कि संकट के समय मानवता की रक्षा के लिए भारतीय कैसे एकजुट होकर संकल्प लेते हैं और उसे पूरा करते हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि दुनिया के दूसरे देशों में इस बीमारी का सबक यही है कि केवल आपसी दूरी (सोशल डिस्टेंसिंग) अर्थात् घर में बन्द रहने से ही इस बीमारी को रोका जा सकता है। उन्होंने कहा कि घर की दहलीज़ एक लक्ष्मण रेखा है और ज़िन्दा रहने के लिए इसे नहीं लाँघना है।