कोरोना वायरस के चक्कर में नहीं हो रहा दूसरे मरीज़ों का इलाज

कई बार शासन-प्रशासन से जुड़े लोग पद के घमंड में मानवीय संवेदनाओं को ऐसे भूल जाते हैं कि उन्हें अपनी इस बड़ी भूल का अहसास ही नहीं रहता। ऐसा ही आजकल केंद्र व राज्य सरकारों में बैठे अफसर, कर्मचारी कर रहे हैं। सरकार भी कोविड-19 के मरीज़ों के अलावा बाकी रोगों से पीडि़त मरीज़ों की ओर ध्यान नहीं दे रही। इनमें अनेक मरीज़ ऐसे हैं, जिनको तत्काल इलाज की सख्त ज़रूरत है। यही वजह है कि सरकार के इस रवैये और पुलिस के डर से देश भर के हज़ारों मरीज़ इलाज के अभाव में मरने को मजबूर हैं।

उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली व पंजाब के मरीज़ों के परिजनों ने बताया कि निजी स्वास्थ्य सेवाएँ बन्द हैं और सरकारी अस्पतालों में अधिकतर कोरोना वायरस के मरीज़ों का ही इलाज हो रहा है। ऐसे में टीबी, कैंसर, लीवर, किडनी, न्यूरो और नेत्रों के रोगी इलाज से वंचित हैं। अस्पतालों में उनकी कोई सुनवाई भी नहीं हो रही है। दिल्ली में देश भर से, खासकर उत्तर भारत से मरीज़ इलाज कराने को आते हैं। मगर 22 मार्च से देश की स्वास्थ्य सेवाएँ प्रभावित होने से उन्हें अपनी ज़िन्दगी बचाने के लाले पड़े हैं। यूपी के कुलपहाड़ निवासी सूरज कुशवाहा और झांसी के चुरारा गाँव निवासी अन्नू सरकार से पूछते हैं कि क्या सिर्फ कोरोना वायरस के मरीज़ों को इलाज की ज़रूरत है, अन्य रोगों से पीडि़तों को नहीं? सूरज को किडनी की परेशानी के अलावा मधुमेह और अन्य कई रोग हैं। उनका इलाज दिल्ली के एम्स में चल रहा था, जो कि अब नहीं हो पा रहा है। इसकी वजह लॉकडाउन के साथ-साथ सरकारी अस्पतालों में ओपीडी सेवा का बन्द होना है। इसी तरह अन्नू का एम्स में ऑपरेशन 23 अप्रैल को होना था, पर लॉकडाउन के चलते नहीं हो सका। उनका कहना है कि सरकार को कोरोना के अलावा अन्य मरीज़ों के लिए भी अलग से चिकित्सा सेवाओं की व्यवस्था करनी थी, पर ऐसा नहीं हो रहा है, जिससे मरीज़ ज़िन्दगी और मौत के बीच झूल रहे हैं। एम्स तो छोड़ो, मरीज़ पुलिस के डर से ज़िला स्तरीय अस्पतालों तक में इलाज को नहीं जा रहे हैं।

मध्य प्रदेश के दमोह ज़िले के बेनीदास का कहना है कि उनका न्यूरो सम्बन्धी रोग का इलाज दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में चल रहा है। उन्हें महीने में एक बार स्वास्थ्य जाँच की ज़रूरत होती है, पर लॉकडाउन के चलते वह इलाज से वंचित हैं। लेकिन वह इसके लिए सरकारी सिस्टम को दोषी मानते हैं।  छतरपुर के धीरज कुमार का कहना है कि वह मुँह के कैंसर से पीडि़त हैं। उनका वर्षों से मुम्बई के टाटा मेमोरियल अस्पताल में इलाज चल रहा है, जहाँ उनकी नियमित कीमोथैरेपी होती है, जो कि बहुत ज़रूरी है। पर लॉकडाउन के चलते वह रुकी हुई है। उन्होंने सरकार से अपील की है कि कोरोना वायरस के अतिरिक्त उन मरीज़ों की सुध ले, जो दूसरी बीमारी के इलाज के अभाव में तड़प रहे हैं। अलवर (राजस्थान) के एस. कुमार ने बताया कि उनके परिजन एम्स में नौकरी करते हैं। इस लिहाज़ से राजस्थान के गरीबों का एम्स में बड़ी आसानी से उपचार हो जाता है। राजस्थान के अनेक मरीज़, जो गम्भीर रोगों से पीडि़त हैं; लॉकडाउन खुलने के इंतज़ार में बेठे हैं; ताकि इलाज़ करवा सकें। एस. कुमार ने कहा कि अगर सरकार लॉकडाउन में दूसरे गम्भीर मरीज़ों को विशेष सुविधाएँ नहीं देगी, तो उनका जीवन जा सकता है। हरियाणा और पंजाब से भी ज़्यादातर मरीज़ दिल्ली के एम्स में या गुरुग्राम के प्रमुख अस्पतालों में इलाज के लिए आते हैं। उनका इलाज तो हो रहा है, लेकिन वे पुलिस के तांडव से परेशान हैं। पंजाब के भरत कपूर कहते हैं कि उनके परिजन का इलाज गुरुग्राम के एक बड़े अस्पताल में करीब दो माह से चल रहा है। ऐसे में उन्हें दिल्ली सहित अन्य जगहों पर आना-जाना पड़ता है, पर अस्पताल का पास दिखाने पर पुलिस उन्हें परेशान और बेइ•ज़त करती है। दिल्ली के मयूर विहार निवासी मोहन बिष्ट की कहानी भी काफी दु:ख भरी है। 17 और 18 मार्च को उनके सीने में तेज़ दर्द उठा। सफदरजंग अस्पताल में उन्होंने जाँच भी करवाई थी। डाक्टरों 22 मार्च को उन्हें भर्ती करने को कहा था। लेकिन तभी लॉकडाउन होने के चलते वे घर में इलाज के लिए तड़प रहे हैं। क्योंकि सफदरजंग अस्पताल में कोरोना वायरस के मरीज़ो का ही इलाज चल रहा है। जब देश में चिकित्सा विस्तार का ङ्क्षढढोरा पीटा जा रहा था, तब चिकित्सा से जुड़े लोगों दावा कर रहे थे कि देश के महानगरों में महामारी के दौरान भी अन्य बीमारियों के इलाज में कोई बाधा नहीं आयेगी। पर आज देश के कई महानगरों में कोरोना वायरस के मरीज़ों के अलावा अन्य मरीज़ो को इलाज नहीं मिल रहा है।

आईएमए के पूर्व सचिव अनिल बंसल का कहना है कि सरकार को कोई ठोस फैसला लेना होगा, ताकि कोरोना वायरस के मरीज़ो के अलावा दूसरे मरीज़ों का इलाज भी हो सके। चाहे इसके लिए मेडिकल पास मुहैया कराये जाएँ या अन्य कोई रास्ता निकाला जाए अन्यथा यह दूसरे मरीज़ों के जीवन से खिलवाड़ ही माना जाएगा। उनका कहना है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन और तमाम स्वास्थ्य संस्थाओं का कहना है कि भारत में मधुमेह, तनाव, उच्च रक्तचाप सहित मोटापे जैसी बीमारियों के कारण युवा वर्ग गम्भीर रोगों की चपेट आ चुका है। इसलिए सरकार को कोरोना वायरस के मरीज़ों के अलावा अन्य मरीज़ों के इलाज के लिए जल्द-से-जल्द स्वास्थ्य सेवाएँ बहाल करनी चाहिए।