कोरोना पर सियासत हावी

कुछ समय से घटने लगी थी मरीज़ों की संख्या, चुनाव और त्योहारों के निपटते ही बढ़े मामले

कोरोना महामारी के बढ़ते मामलों को लेकर सरकार ने चिन्ता व्यक्त करके सभी देशवासियों को चिन्ता में डाल दिया है। चिन्तित लोगों का कहना है कि कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों पर फिर अब सियासत हो रही है। क्योंकि अब त्योहार निकल गये हैं और राज्यों के चुनाव भी हो चुके हैं। दुर्गा पूजा से लेकर दीपावली तक और बिहार विधानसभा चुनाव से लेकर अन्य  11 राज्यों के उप चुनावों के दौरान देश में अप्रत्याशित तरीके से देश में कोरोना के मामले घटने लगे थे। जैसे ही चुनाव परिणाम घोषित हुए, बिहार में सरकार बनी और त्योहारों की रौनक कम हुई; फिर से कोरोना के मामले बढऩे लगे।

तहलका संवाददाता को कोरोना महामारी को लेकर जानकारों और डॉक्टरों ने बताया कि अगर देश में इसी तरह सियासत होती रही, तो आने वाले दिनों में कोरोना भयंकर रूप ले लेगा। जहाँ आपदाएँ, विपदाएँ आती हैं, वहाँ कुछ व्यापारिक और सियासी लोग अपना लाभ देखते हैं। दिल्ली के डॉक्टरों का कहना है कि अचानक कोरोना के मामले बढऩे के पीछे दवाओं और वैक्सीन का बाज़ारीकरण है।

मौज़ूदा समय में देश में कोरोना को लेकर लोग आशंकित है कि कोरोना की वापसी में कहीं कोई अनहोनी न हो जाए। सरकार की ओर से कोरोना के बचाव के लिए जो कदम उठाये जा रहे हैं, उससे अधिक परेशान करने के लिए भी प्रयास किये जा रहे हैं। जैसे मास्क न लगाने पर दो हज़ार रुपये का ज़ुर्माना, एक राज्य से दूसरे राज्य में आने-जाने पर कोरोना की जाँच कराना आदि। सरकार की ओर से धरातल पर न के बराबर काम हो रहा है। हो-हल्ला इस कदर हो रहा है कि लोगों के बीच हाहाकार मचा हुआ है।

कोरोना को रोकने में जो भी सरकारी सिस्टम लगा है, वह काफी हद तक नाकाम रहा है। कोरोना के कारण अन्य बीमारियों से पीडि़त मरीज़ों को सही उपचार नहीं मिल पा रहा है। कोरोना वायरस के भय से लोग बड़े शहरों में अपने मरीज़ परिजनों का इलाज कराने से कतरा रहे हैं। हृदय के मरीज़ों, कैंसर, किडनी और लीवर सहित तामाम गम्भीर रोगों से पीडि़त मरीज़ों के इलाज के नाम पर सरकार की ओर से कारगर कदम नहीं उठाये जा रहे हैं, जिसके कारण मरीज़ों की हालत दिन-ब-दिन गम्भीर रोग होती जा रही है और असमय मरने वालों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है।

कोरोना बढ़ते मामले को लेकर जाने-माने ईएनटी विशेषज्ञ डॉक्टर एम.के. तनेजा का कहना है कि देश में हड्डी रोग, नैत्र रोग, त्वचा रोग, गैस्ट्रो सहित अन्य पैथियों के चिकित्सक सरकारी दबाव में या अपनी नौकरी बचाने के लिए आठ महीने से कोरोना वायरस से संक्रमितों का उपचार करें जा रहे हैं; जबकि सच्चाई यह है कि कोरोना के इलाज में चेस्ट के मरीज़ों को मेडिसिन फिजिशियन की ज़रूरत है, जो देश में काफी कम है। तो ऐसे में कैसे उम्मीद की जा सकती है कि कोरोना के मरीज़ों का सही तरीके से इलाज हो रहा है? डॉक्टर तनेजा का कहना है कि पीजी और अंडर पीजी करने वालों को पहले प्रशिक्षित करें और उन्हें अकादमिक सुविधाएँ दी जाएँ, तो वे भी काफी हद तक मरीज़ों का इलाज कर सकते हैं। अन्यथा साधनों और योग्यता के अभाव में कोरोना का उपचार दिखावा होगा। उनका कहना है कि क्षेत्रीय और ज़िला स्तरीय अस्पतालों में कोरोना संक्रमितों के इलाज की तामाम बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।

कोरोना वायरस की आड़ में चिकित्सा से जुड़े बहुत-से लोगों में मनमानी पनपी है। कोरोना रोग के अलावा किसी अन्य रोगियों को देखने से पहले सरकारी अस्पताल के डॉक्टर कोरोना की जाँच कराने का दबाव भी बनाते हैं, जिससे काफी लोग अपनी दूसरी बीमारियों का इलाज अपने तरीके से करने में लगे हैं। एम्स के डॉक्टरों का कहना है कि कोरोना एक संक्रमित और छुआछूत की बीमारी है, जिसे सामाजिक दूरी (सोशल डिस्टेंसिंग) और जागरूकता के माध्यम से कम किया जा सकता है। सरकार इसको करने-कराने में नाकाम है। कोरोना के नाम पर पैसे का जमकर दुरुपयोग किया जा रहा है। कोविड सेंटर बनाये जाने से लेकर विज्ञापन के ज़रिये प्रचार-प्रसार करने तक में जमकर घोटाला किया जा रहा है, जिसका कोरोना की रोकथाम से लेकर दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है।

  बताते चलें कि कोरोना के टीके को लेकर लोगों में एक उम्मीद है कि आने वाले दिनों में कोरोना-टीका आ जायेगा, जिससे कोरोना वायरस से राहत मिलेगी। लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं और कोरोना वायरस से निपटने को लेकर उसकी साख कमज़ोर हो रही है।

जानकारों का कहना है कि अगर कोरोना वायरस का टीका आता है, तो इसका मतलब यह नहीं कि जादू की छड़ी हाथ आ जाएगी, जिससे एक साथ कोरोना भगा दिया जाएगा। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के पूर्व संयुक्त सचिव डॉक्टर अनिल बंसल का कहना है कि कोरोना वायरस को रोकने में सरकार के प्रयास सराहनीय नहीं हैं। सरकार को सब मालूम है कि कोरोना वायरस एक घातक महामारी है और लम्बे समय तक रहने वाली है। इसमें विशेष सावधान रहने की ज़रूरत है; लेकिन सरकार अपने हिसाब से काम करती है। सियासत करती है। बिहार के विधानसभा चुनाव और दूसरे 11 राज्यों के उप चुनाव के साथ-साथ त्योहारों के दौरान जो भीड़ देखी गयी है, वो भी बढ़ते कोरोना का एक कारण है। डॉक्टर बंसल का कहना है कि कोरोना की जाँच तो शहरों में हो रही है, सो मामले भी आ रहे हैं, अगर छोटे कस्बों, गाँवों में जाँच हो, तो मरीज़ों की संख्या और भी बढ़ सकती है। मैक्स अस्पताल के कैथ लैब के डायरेक्टर विवेका कुमार का कहना है कि कोरोना के साथ-साथ दूसरे मरीज़ों का भी समय पर इलाज होना चाहिए, ताकि किसी अन्य बीमारी के मरीज़ों की स्वास्थ्य सम्बन्धी दिक्कत न बढ़े और न किसी की इलाज के अभाव में मौत हो।

कोरोना के मामलों में गिरावट भले ही न आयी हो, लेकिन कोरोना वायरस की जाँच के नाम पर देश में प्रमाणित और गैर-प्रमाणिक लैबों का कोरोबार भी खूब बढ़ा है। जबसे सरकार ने कहा है कि कोरोना वायरस की जाँच आम नागरिक स्वेच्छा से कहीं भी करवा सकते हैं, तबसे लोगों ने अपनी जाँच स्वयं ही लैबों में करवानी शुरू कर दी है, जिससे निजी लैब वालों का कारोबार जमकर फल-फूल रहा है।

दवा कम्पनी में काम करने वाले सचिन का कहना है कि कोरोना के बढ़ते मामलों के पीछे कहीं कोरोना-टीके का बाज़ार मज़बूत करने की साज़िश तो नहीं है? क्योंकि कोरोना-टीका बनाने और सफलता का दावा करने में तामाम नामी-गिरामी कम्पनियाँ लगी हुई हैं। इन कम्पनियों का मकसद है कि कैसे इस महामारी में उन्हें फायदा मिले। इसे लेकर भी एक सुनियोजित तरीके से लोगों में भय का माहौल तैयार किया जा रहा है, ताकि टीके का बाज़ार गर्म रहे, जिसके मार्फत जनता का पैसा खींचा जा सके। आयुर्वेदाचार्य डॉक्टर दिव्यांग देव गोस्वामी का कहना है कि कोरोना को लेकर जो वैक्सीन तैयार की जा रही है, वह आधुनिक चिकित्सा पद्धति की सबसे बड़ी खोज होगी। लेकिन लोगों को यह नहीं समझ लेना चाहिए कि इससे कोरोना वायरस का पूरा उपचार सम्भव हो गया है; यह आसानी से जाने वाला नहीं है। चेचक, हैजा, प्लेग और खसरा जैसी बीमारियों के टीके आने बाद भी ये बीमारियाँ अभी भी काफी परेशान कर रही हैं।

जिस प्रकार कोरोना को लेकर फिर से हाहाकार भरा माहौल बना हुआ है, उससे अधिक माहौल और उत्सुकता कोरोना-टीके को लेकर है। लेकिन भारत एक बड़ी आबादी वाला देश है और अगर टीका आ भी गया, तो भी यहाँ पर इस महामारी से निपटने में समय लगेगा।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन का कहना है कि स्थानीय तौर पर विकसित एक कोरोना-टीके का परीक्षण अन्तिम चरण में है। वहीं भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद् (आईसीएमआर) और निजी कम्पनी भारत बायोटेक ने नवंबर में कोराना-टीके के तीसरे चरण का परीक्षण शुरू कर दिया है। माना जा रहा है कि यह टीका विदेशी कम्पनियों द्वारा तैयार से पहले भारतीयों को मिलेगा।

नेशनल मेडिकल फोरम के चैयरमेन डॉक्टर प्रेम अग्रवाल का कहना है कि सरकार को सारा ज़ोर कोरोना वायरस को रोकने में लगाना चाहिए। कोरोना-टीका जब आयेगा, तब आयेगा। इस समय तो कोरोना वायरस के तेज़ी से फैलते संक्रमण को रोकना ज़रूरी है, जिसके लिए एक बेहतर पहल की आवश्यकता है। क्योंकि कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के कारण पनपी बेरोज़गारी से लोग आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं, जिससे उनका मानसिक तनाव बढ़ रहा है और सामाजिक ताना-बाना बिगड़ रहा है। इंडियन हार्ट फांउडेशन के चैयरमेन डॉक्टर आर.एन. कालरा का कहना है कि कोरोना एक नयी बीमारी है। इस बीमारी को लेकर तामाम शोध चल रहे हैं। इसकी दवा आने में समय लग सकता है। सर्दी के मौसम में अगर कोरोना के फैलाव को रोकना है, तो मास्क लगाने के साथ-साथ आपसी दूरी का विशेष ध्यान देना होगा; अन्यथा घातक परिणाम सामने आ सकते हैं।