कोरोना-काल में बढ़ा बालश्रम का चलन

कविता (बदला हुआ नाम) की उम्र क़रीब 13 साल की है और इस साल उसने आठवीं कक्षा पास की है। वह आगे पढऩा चाहती है; लेकिन इस बात की कोई गांरटी नहीं है। कोरोना महामारी के संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए की गयी तालाबंदी के कारण उसके पिता का काम बन्द हो गया। अब कविता बीते कई महीनों से दिल्ली में एक दम्पति के घर घरेलू नौकरानी का काम कर रही है। उसी घर में रहती है, घर का सारा काम करती है, दो छोटे बच्चों को बड़ा भी कर रही है।
मलावी गणराज्य, जो कि एक अफ्रीकी देश है; वहाँ के एक स्कूली बच्चे ने सर्वे करने वाली एक संस्था को बताया कि कोविड-19 के कारण स्कूल बन्द पड़े हैं और मेरे कई पड़सियों ने अपने बच्चें को बाज़ार में सब्ज़ियाँ व फल बेचने के काम पर लगा दिया है। ऐसा क्यों हो रहा है?

इन दो तस्वीरों से बाल मज़दूरी सरीखी गम्भीर सामाजिक-आर्थिक समस्या के कई पहलुओं पर चर्चा हो सकती है। बहरहाल अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) व यूनिसेफ ने 12 जून को अंतर्राष्ट्रीय बाल श्रम दिवस के मौक़े पर जो रिपोर्ट जारी की है, वह आगाह करती है कि बाल मज़दूरी के उन्मूलन के लिए बनाये गये तमाम राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय क़ानूनों, संधियों के बावजूद बीते चार साल में बाल मज़दूरों की संख्या बढ़ी है, जो गहन चिन्ता का विषय है।

20 साल में पहली बार वैश्विक स्तर पर बाल मज़दूरों की संख्या में वृद्धि दर्ज की गयी है। संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि दुनिया भर में 10 में से एक बच्चा काम कर रहा है। आईएलओ और यूनिसेफ की संयुक्त रिपोर्ट के मुताबिक, 2016 में बाल मज़दूरों की संख्या 152 मिलियन यानी 15.2 करोड़ थी और यह संख्या बढ़कर 2020 में 160 मिलियन यानी 16 करोड़ हो गयी है। 2020 के ये आँकड़े महामारी शुरू होने से पहले के हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मौज़ूदा महामारी के कारण लाखों बच्चे बाल मज़दूर बन सकते हैं। वैश्विक स्तर पर बाल मज़दूरी उन्मूलन के प्रयासों का परिणाम आँकड़ों के लिहाज़ से देखें, तो पता चलता है कि सन् 2000 से सन् 2016 के दरमियान बाल मज़दूरों की संख्या में 9 करोड़ 40 लाख की गिरावट दर्ज की गयी; मगर 2016 व 2020 के दरमियान यानी चार साल की अवधि में बाल मज़दूरों की संख्या में आठ करोड़ 40 लाख की वृद्धि दर्ज की गयी। अर्थात् बीते 20 साल में बाल श्रम को ख़त्म करने की दिशा में जो प्रगति हो रही थी, वह अवरुद्ध हो गयी है। अब प्रगति करने की बजाय पीछे की ओर लौटना सबको सचेत कर रहा है कि इस दिशा में तेज़ी से प्रयास करने की ज़रूरत है। चार साल की अवधि में 5-11 आयुवर्ग के बच्चे जो बाल मज़दूर बने हैं, उनकी संख्या बहुत अधिक है। इसी तरह 5-17 आयुवर्ग के बाल मज़दूरों की संख्या इस अवधि में 6.5 करोड़ से बढ़कर 7.9 करोड़ हो गयी है। आईएलओ के मुताबिक, बाल मज़दूरी से अभिप्राय ऐसा कोई भी कार्य जो 18 साल से कम आयु के बच्चों को उनके बचपन से वंचित करता हो, उनकी सम्भावनाओं व गरिमा को उनसे छीनता हो और उनके शारीरिक व मानसिक विकास के लिए नुक़सानदायक हो।

आईएलओ के महानिदेशक गाय राइडर ने कहा- ‘नयी रिपोर्ट हमें आगाह करने वाली है। हम नयी पीढ़ी के बच्चों को जोखिम में जाते हुए नहीं देख सकते। यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक हेनरिटा फोर एक बयान में कहते हैं- ‘हम बाल श्रम के ख़िलाफ़ लड़ाई में ज़मीन खो रहे हैं। और पिछले साल ने उस लड़ाई को और मुश्किल कर दिया है।
पारिवारिक संकट और बन्द स्कूलों के चलते बच्चे कर रहे काम वैश्विक लॉकडाउन के कारण दूसरे साल स्कूल बन्द होने, आर्थिक संकट ने परिवारों को दिल तोडऩे वाले विकल्प लेने पर मजबूर कर दिया है। सवाल यह है कि जब वैश्विक स्तर पर बाल श्रमिकों की संख्या में 2000-2016 के दरमियान गिरावट आ रही थी, तब 2016-2020 यानी इन चार साल के दरमियान ऐसा क्या हुआ कि बाल श्रमिकों की संख्या में वृद्धि हो गयी। जनसंख्या वृद्धि और ग़रीबी के चलते बीते चार साल में सब सहारा अफ्रीका में बाल श्रमिकों की संख्या में डेढ़ करोड़ से अधिक बाल श्रमिक और जुड़ गये। बाल अधिकारों पर और बाल श्रम उन्मूलन के लिए काम करने वाली अंतर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय संस्थांओं की मौज़ूदा चिन्ता की मुख्य वजह यह भी है कि संयुक्त राष्ट्र ने चालू वर्ष 2021 को बाल श्रम उन्मूलन के लिए अंतर्राष्ट्रीय वर्ष घोषित किया है। और ध्यान देने वाली बात यह भी है कि सतत विकास लक्ष्य 8.7 के अनुसार विश्व से बाल श्रम का उन्मूलन 2025 तक हासिल करना है। लेकिन चार साल में बाल श्रमिकों की संख्या का बढऩा इस लक्ष्य को हासिल करने की राह में रुकावट बन रहा है और इसके साथ-साथ मौज़ूदा कोरोना महामारी ने भी कई चुनौतियाँ सामने लाकर खड़ी कर दी हैं।

कुछ ऐसे क्षेत्र जैसे कि एशिया, लेटिन अमेरिका और कैरेबियन देश, जहाँ 2016 से भी बाल श्रमिकों की संख्या कम करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं; में अब कोरोना वायरस के कारण इस क्षेत्र में हुई प्रगति पर ख़तरा मँडराने लगा है। ग़ौरतलब है कि इस हालिया रिपोर्ट में कोरोना महामारी के कारण बढऩे वाली बाल श्रमिकों की संख्या शमिल नहीं है। महामारी, आर्थिक संकट आदि किस तरह से ग़रीब, मध्यम आय वर्ग के लोगों को प्रभावित करते हैं, उन पुराने अनुमानों व आँकड़ों के मददेनज़र ही नये अनुमान जारी किए जाते हैं। इस रिपोर्ट इस बाबत कहा गया है कि कोरोना महामारी के कारण 2022 तक 90 लाख और बच्चे बाल श्रमिकों की संख्या में जुड़ सकते हैं। एक मॉडल यह भी बताता है कि यह संख्या 4.6 करोड़ भी हो सकती है, अगर उनकी पहुँच अहम सामाजिक संरक्षण तक नहीं होगी। संगठनों का मानना है कि महामारी से सम्बन्धित आर्थिक तंगी और स्कूल बन्द होने के कारण बाल श्रमिकों को अब अधिक घंटे या बदतर परिस्थितियों में काम करना पड़ सकता है।

आर्थिक तंगी की मार सारी दुनिया पर पड़ रही है। कोरोना संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए दुनिया के अधिकतर देशों ने स्कूलों को बन्द कर दिया है। स्कूलों में कुल नामांकित बच्चों में से 90 फ़ीसदी यानी 1.6 अरब बच्चे प्रभावित हुए हैं। बहुत से स्कूलों ने ऑनलाइन शिक्षा का इंतज़ाम किया है; लेकिन इसके साथ यह भी याद रखना होगा कि जिन बच्चों की इंटरनेट तक पहुँच नहीं है, उनकी तादाद अधिक है। मौज़ूदा महामारी में स्कूल बन्द होने के कारण श्रम बाज़ार में बाल श्रमिकों की संख्या बढ़ सकती है। $गरीब व कोरोना वायरस से प्रभावित परिवारों के बच्चों की स्कूल की पढ़ाई बीच में छोडऩे की सम्भावना अधिक है। इस लेख के शुरुआत में कविता का ज़िक्र किया गया है, कोरोना वायरस ने उसकी भी पढ़ाई जारी रखने की सम्भावना को क्षीण कर दिया है। भारत में कविता सरीखे हज़ारों बच्चे होंगे, जिनकी स्कूल में वापसी आसान नहीं दिखती। वे किसी-न-किसी रूप में बाल मज़दूरी करने को विवश होंगे।


नाबालिग़ों से काम कराना ग़ैर-क़ानूनी, फिर भी रोक नहीं
यूँ तो भारत में बाल मज़दूरी ग़ैर-क़ानूनी है और बाल अधिकारों के संरक्षण के लिए कई क़ानून भी हैं। मसलन औद्योगिक विवाद अधिनियम-1947, भारतीय कारख़ाना अधिनियम-1948, बाग़ान श्रम अधिनियम-1951, बाल श्रमिक प्रतिबन्ध एवं नियमन अधिनियम-1986, ये सभी अधिनियम बाल कल्याण के लिए बाल मज़दूरों की सेवाओं, काम के घंटे, मज़दूरी आदि को नियमित करते हैं। बाल श्रमिक प्रतिबन्ध एवं विनियमन अधिनियम-1986 में जुलाई, 2016 में संशोधन किया गया और इस संशोधन विधेयक में 14 साल से कम आयु के बच्चों के लिए परिवार से जुड़े व्यवसाय को छोड़कर विभिन्न क्षेत्रों में काम करने पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दिया गया। 14 साल से कम आयु वाला बच्चा अगर जीविकोपार्जन के लिए काम करे, तो वह बाल मज़दूर कहलाता है और इस पर देश में क़ानूनन प्रतिबन्ध है।

भारत में 14 साल से अधिक आयु के बच्चे ऐसे कार ख़ानों, खदानों में काम नहीं कर सकते, जहाँ अधिक जोखिम है। पर हक़ीक़त यह है कि देश में हर जगह बाल मज़दूर देखने को मिल जाते हैं। चाय की दुकान हो या ढाबा या पंसारी की होम डिलीवरी करने वाला लड़का। भारत में उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश में बाल मज़दूरी एक बड़ी समस्या है। सबसे बड़ी आबादी वाला राज्य उत्तर प्रदेश सिल्क के लिए विशेष पहचान रखता है। यहाँ बाल मज़ूदर काफ़ी तादाद में काम करते हैं।

देश में कृषि के क्षेत्र में बाल मज़दूरों की संख्या चिन्ता पैदा करती है। देश में बाल मज़दूरी को ख़त्म करने के कई उपायों में एक उपाय निरीक्षक के द्वारा छापा डालना भी है। मगर यहाँ भी अधिकतर मामलों में मिलीभगत सामने आती है। नियोक्ता को छापे की जानकारी पहले ही दी जाती है और वो उस दिन बाल मज़दूरों को काम पर बुलाता ही नहीं है। ग़ौरतलब है कि देश में निरीक्षकों की कमी भी है और उन्हें यही तरीक़े से प्रशिक्षण भी नहीं दिया जाता। बाल मज़दूरी से सम्बन्धित शिकायतों का निपटारा करने में भी लम्बा समय लगता है। सर्वोच्च न्यायालय के वकील राजेश त्यागी का कहना है कि महज़ क़ानून बनाने से किसी भी समस्या का हल नहीं हो जाता। उसके अम्ल के लिए मज़बूत ढाँचा खड़ा करना भी ज़रूरी है। इसके लिए निवेश करना होता है। इसके साथ बाल उन्मूलन के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति बहुत ज़रूरी है, जिसका अपने यहाँ अभाव है।