कोई नहीं जानता क्यों मर रहे सांभर झील में प्रवासी पक्षी

भारतवर्ष में सदियों से प्रवासी पक्षियों की बड़ी तादाद आती रही है। ये पक्षी अभूमन अक्टूबर से मार्च तक भारत की झीलों, पोखरों और नदियों में अपना आश्रय तलाश लेते हैं। लेकिन देश में विकास के घूमते पहिए और तरह-तरह के शोर भरे प्रदूषणों के चलते पक्षियों का आगमन घटा है। तकरीबन एक महीने से राजस्थान की सांभर झील में पहुँचे प्रवासी पक्षियों में 20 हज़ार से भी ज़्यादा न जाने क्यों मरे पाये गये। पूरे देश में इस हादसे की गूँज है; लेकिन राज्य और केंद्र सरकार के लिए यह विषय शायद महत्त्वपूर्ण नहीं है।

राजस्थान की सरकार और प्रशासन मेें बैठे मंत्री और अधिकारी प्रवासी पक्षियों की भारत में हुई मौतों की कतई चिंता नहीं कर रहे हैं। राज्य का वन विभाग जो पक्षी विहारों पर भी नज़र रखता है, उसके अधिकारी सिर्फ यही कहते हैं कि मृत पक्षियों की ‘विसरा’ रिपोर्ट जाँच के लिए भेजी गयी है। उसके आने पर ही पता चलेगा कि इन पक्षियों की मौत की असल वजह क्या है? वे इस अंदेशे पर भी एकमत नहीं हैं कि इन पक्षियों की मौतों की वजह इस इलाकेमें होने वाला अवैध खनन है या फिर इस झील में चार नदियों से आया पानी? अधिकारी सिर्फ अफसोस जताते हैं और आसमान ताकते हैं।

दरअसल, जाड़ों में यूरोप, सोवियत संघ के साइबेरिया आदि इलाकों से कम-से-कम 27 प्रजातियों के तरह-तरह के पक्षी भारत की यात्रा करते हैं। हज़ारों किलोमीटर दूर से आने वाले ऐसे पक्षियों का उल्लेख संस्कृत के प्राचीन ग्रंथों मसलन हितोपदेश, कक्षसरित्सागर और अन्य में भी मिलता है। ये प्रवासी पक्षी भारत इसलिए आते हैं। क्योंकि यहाँ ठंड होती तो है, लेकिन गर्माहट भी रहती है। फिर भारत में तकरीबन हर राज्य में ठंड स्थल हैं जहाँ आधुनिक विकास के बावजूद कुछ झीलें, नदियाँ प्रदूषिता होते हुए भी इन प्रवासी पक्षियों को रास आती हैं। इन पक्षियों के लिहाज से कुछ झीलें, पोखरे और नदियों को सुरक्षित करते पर न तो राज्य सरकारें ध्यान देती हैं और न केंद्र सरकार ही। झीलों, पोखरों और नदियों के आसपास रहने वाले लोग भी इन पक्षियों के लिए उदार मन नहीं बना पाते। इस कारण प्रवासी पक्षियों का भारत आना भी कम हो रहा है।

सांभर लेक पर पिछले पच्चीस दिनों में तकरीबन 20 हज़ार से भी ज़्यादा प्रवासी पक्षी मृत पाये गये। स्थानीय लोगों और वन विभाग का दावा है कि हर साल यहाँ दो से तीन लाख पक्षी आते ही हैं। इस बार भी ऐसा ही था। लेकिन अचानक बड़ी तादाद में पक्षियों की मौत से प्रशासन कुछ हद तक विचलित है। मौत की वजह बेहद रहस्यमय है। जितने मुँह हैं, उतनी ही बातें हैं।

कुछ का मानना है कि पक्षियों की मौतें शायद ‘बर्ड-फ्लू’ जैसी बीमारी के चलते हुई। लेकिन इस कथन का आधार नहीं है। कुछ यह कहते हैं कि झील के पानी में ही कोई ज़हरीला रसायन रहा होगा, जिसके कारण इतनी बड़ी यानी 20 हज़ार से भी ज़्यादा पक्षियों की मौतें हुईं। पक्षियों की मौतें जयपुर, नागौर और अजमेर ज़िालों से मिली सूचनाओं पर अधारित हैं।

पक्षियों में दिलचस्पी लेने वाली मनीषा कुलश्रेष्ठ के अनुसार स्थानीय लोग अवैध तौर पर पाइप का इस्तेमाल करके झील के पानी से नमक बनाते हैं। इससे झील में पानी का स्तर घटता है और जल में नमक की मात्रा बढ़ जाती है। इसका पक्षियों के स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ता है।

अवैध तौर पर झील से पानी निकालकर नमक बनाने का काम वन विभाग पुलिस और प्रशासन की मिलीभगत में दशकों से चलता रहा है। लेकिन पक्षियों की इतनी बड़ी तादाद में मौतों का सिलसिला इस साल कुछ ज़्यादा ही रहा इसलिए पूरे देश में शोक की लहर भी है।

साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपुल के अध्यक्ष दिनेश ठक्कर के अनुसार राजस्थान विश्वविद्यालय में बैठरानिरी के प्रोफेसर और माइक्रोवायोलॉजिस्ट ए.के. कटारिया का कहना है कि इन प्रवासी चिडिय़ों की मौत की वजह ‘एवियन बॉटलिज्म’ भी हो सकती है। जयपुर चिडिय़ाघर में अधिकारी और जंगली पशु-पक्षियों के घायल होने पर इलाज में ज़रूरी दवाओं पर शोध का काम कर रहे डॉक्टर अरविंद माथुर का मानना है कि झील के जल में सोडियम का स्तर काफी ज़्यादा हो जाने के कारण प्रवासी पक्षी ‘पैरालिसिस’ की शिकार हुए।

प्रवासी चिडिय़ों की आवाजाही पर नज़र रखने वाले अभिनव वैष्णव का कहना है कि इस साल बड़े ही रहस्यमय तरीके से मौत हुई। उनका यह भी कहना है कि हो सकता है चिडिय़ों का पथ बदलने के लिहाज़ से किसी पड़ोसी देश ने कुछ जादुई रासायनिक प्रयोग किये हों, जिससे चिडिय़ाँ भारत को छोडक़र उस देश में पहुँचें।

यदि फारेस्ट रेंजर राजेन्द्र जाखड़ की मानें तो वे कहते हैं कि कुछ दिनों पहले ही इलाकों में ओला-अंधड़ आया, जिसके कारण ये पक्षी मारे गये पक्षी विजातियों की एक टीम ने अलबत्ता सांभर लेक पहुँचकर झील के पानी के कुछ नमूने और मृत पक्षियों की देह ली।

टीम के ही एक सदस्य अशोक राव का कहना है कि पक्षियों की मौत की वजह का अभी तक पता नहीं चला है; लेकिन यह आभास हो रहा है कि इतनी बड़ी तादाद में पक्षियों का मरने की वजह ‘बर्ड फ्लू’ नहीं है। ऐसा लगता है कि झील के जल में सैलेनिटी खासकर बहुत ज़्यादा बढ़ी है। इसके चलते चिडिय़ों के शरीर के खून में नमक बढ़ा, जिससे खून का प्रवाह थम गया। दिमाग तक खून नहीं पहुँच सका और पक्षियों की सामूहिक मौतें हुईं।

स्थानीय लोगों और वन विभाग का कहना है कि हर साल लाखों की संख्या में विदेशी पक्षी यहाँ आते हैं। झील मेंं औद्योगिक कचरा भी डालने पर रोक है, इसलिए पानी में किसी रासायनिक मिश्रण की सम्भावना भी नहीं के बराबर है। राजस्थान में संचारी रोग जाँच केंद्र के संयुक्त निदेशक अशोक शर्मा का मानना है कि अब तक जा तथ्य सामने आये हैं, उनसे कतई यह नहीं लगता कि पक्षियों के शरीर को ज़मीन में एक गहरा गड्ढा खोदकर गाड़ा गया है। इस काम में बॉम्बे नैचुरल हिस्टी सोसाइटी की ओर से यहाँ पहुँची टीम ने खासा सहयोग किया। टीम ने मृत पक्षियों की खासी पड़ताल की; लेकिन वे भी यह नहीं जान सके कि प्रवासी पक्षियों की मौत की वजह क्या है?

राजस्थान हाई कोर्ट ने अलबत्ता प्रवासी पक्षियों की मौतों पर अपनी चिंता जतायी है। लेकिन अब तमाम जाँच दस्ते की नज़र विसरा रिपोर्ट में मिलने वाले ब्यौरों पर टिकी है, जिसका इंतज़ार है। प्रवासी पक्षियों की भारत में हुई मौतों की वजह जानना बहुत ज़रूरी है, जिसमें ऐतिहासिक तौर पर आने वाले ये पक्षी भारत से विमुख न हों।

आखिर क्यों मौत का सबब बन गयी सांभर झील

भरोसा तो नहीं था कि हर साल बर्फीले और ऊँचे पहाड़ों को लाँघकर अपने सुरीले कलरव से सांभर झील को गुलजार करने वाले दुर्लभ प्रजाति के हज़ारों पक्षी इस बार खामोश मौत का मौत का निवाला बन जाएँगे? लेकिन अब यह भयावह सच्चाई तथ्यगत इतिहास बन चुकी है। 20 नवंबर तक 18 हज़ार से ज़्यादा पक्षी काल के गाल में समा चुके हैं यह संख्या 50 हज़ार का आँकड़ा पार कर सकती है। बेज़ुबान पक्षियों की खामोश मौत के वजूहात को खँगालना तो दरकिनार, सरकार इस त्रासदी के सवाल पर आँख मिलाने को भी तैयार नहीं है। करीब 90 स्कवायर किलोमीटर के दायरे में फैली नमक की सांभर झील स्वाद और सेहत का संतुलन बनाती है। लेकिन दुर्लभ प्रजाति के पखेरुओं के लिए तो मौत का दरिया बन गयी है। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि प्रवासी पङ्क्षरदे पंख फैलाकर झील में उतरते तो हैं; लेकिन मगर फिर वे पंख खोल नहीं पाते। आहिस्ता-आहिस्ता पंख बेजान होकर रह जाते हैं। ऐसा दर्दनाक मंजर तो लोगों ने पहली बार ही देखा है। सांभर झील पर उतरी मौत की परछाइयों ने इस मिथक को भी झुठला दिया है कि नमकीन पानी की बूंदें पखेरुओं के हलक में उतरती हैं, तो उन्हें नयी ज़िान्दगी देती है। पखेरुओं की अन्धी मौतों को लेकर वन विभाग की कोशिशों की कोई कहानी टिकाऊ नहीं है। एक कहानी को हटाने के लिए दूसरी कहानी गढ़ी जा रही है। अधिकारी कैिफयत देते हैं कि ‘हम मौत की वजह खंगालने के लिए पखेरुओं के विसरे की जाँच करा रहे हैं; लेकिन कहाँ? कभी विसरा भोपाल भेजा जा रहा है, तो कभी बरेली या देहरादून? राजस्थान में पक्षियों की हिफाज़त के लिए न तो लेब हैं, न विशेषज्ञ और न ही डॉक्टर। ऐसे बदतर हालात में कैसे होगी मर्ज की शिनाख्त और कौन करेगा दर्द की दवा? जिस ठोर पर हर साल अक्टूबर से फरवरी तक फ्लेमिंग सहित 32 से अधिक दुर्लभ प्रजाति के पक्षी 6 हज़ार किलोमीटर का सफर तय करके सांभर झील पर पहुँचते हैं। लेकिन कोई उनकी हिफाज़त के लिए िफक्रमंद तक नहीं है। भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून की विशेषज्ञ डॉक्टर अंजू बड़ोद के मुताबिक, झील के पानी में नमक की सांद्रता अधिक होने के अलावा कोई और मिलावट नहीं है। विश्वविख्यात सांभर झील में मौत पूरी तरह अपने डैने फैलाये हुये हैं। लेकिन वन मंत्री सुखराम विश्नोई आइंदा की योजनाओं का खाका खींच रहे हैं कि झील क्षेत्र में वन विभाग की चौकी खोली जाएगी। रतन तालाब में रेस्क्यू सेन्टर खोला जाएगा। लेकिन बज़ुबान पखेरुओं को मौत से बचाने के लिए फौरी तौर पर क्या कर रहे हैं? इसका कोई खुलासा नहीं किया वन विशेषज्ञों का कहना है कि जहाँ नेमतों की ज़रूरत है, वहाँ मंत्री नसीहतों की बात कर रहे हैं। मंत्री जी सांभर तो पहुँचे; लेकिन झील की सतह पर परिन्दों के शवों की बिसात देखकर ही लौट आये?

इतनी बड़ी त्रासदी पर अफसरों के टालू बयान भी चौंकाते हैं। मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक अरिन्दम तोमर कहते हैं- ‘पक्षी कैसे मरे? क्यों मरे? इसकी जानकारी पशुपालन महकमा देगा। जबकि पशुपालन विभाग के निदेशक भवानी सिंह राठौर जवाबदेही का ठीकरा वन विभाग पर फोड़ते हैं। पीपुल्स फॉर एनीमल्स संगठन के प्रदेश प्रभारी बाबूलाल जाजू का मानना है कि सांभर झील में पक्षियों की मौत के पीछे सांभर साल्ट लिमिटेड की रिफायनरी ज़िाम्मेदार है। उनका कहना है कि सांभर साल्ट द्वारा झील में फैलाये नये प्रदूषण से पक्षियों की मौत हुई है। उनका कहना है सांभर साल्ट ने प्रदूषण नियंत्रण के सभी उपायों को धत्ता बताते हुए झील क्षेत्र में सैंकड़ों गहरी खाइयाँ खोद दीं। आिखर सांभर साल्ट को झील में एक ही नहीं दो रिफाइनरियाँ लगाने की इजाज़त क्यों दी गयी? रिफाइनरी की धुआँ उगलती चिमनियाँ क्या कम घातक हैं? झील क्षेत्र में रिसोर्ट चलाने की इजाज़त किसने दी? जिसका सारा कचरा और गन्दा पानी झील में जा रहा है। जाजू ने नमक उत्पादन के लिए काम में लिए रसायनों को घातक बताते हुए तुरन्त जाँच की माँग की है। वन विशेषज्ञों का कहना है कि बातें तो बहुत हैं। लेकिन सुलगती सचाइयों को समझने को कोई तैयार नहीं है। सनद रहे कि उद्योगों से निकल रहा घातक कचरा जब झील के पानी में घुलेगा तो पखेरुओं की मौत की कहानी नहीं लिखेगा, तो क्या लिखेगा? मौत की रफ्तार जितनी तेज़ है? बचाव की कोशिशों की रफ्तार उतनी ही धीमी।

सांभर झील में प्रवासी पक्षियों की मौत पर अफसरों की संवेदना बेहद कचोटने वाली है। बुधवार 20 नवंबर की शाम रतन तालाब में रेस्क्यू सेंटर से 36 पक्षियों को बीमार हालत में ही उड़ा दिया गया। वन मंत्री को तो इसकी खबर तक नहीं दी गयी। हाई कोर्ट की ओर से तैनात न्यायमित्र एडवोकेट नितिन जैन मौके पर पहुँचे तो उनकी हैरानी का पारावार नहीं रहा। अफसरों से जवाब तलबी की तो उनका कहना था- ‘हमारे पास पर्याप्त संसाधन नहीं। अब हवा के साथ किनारे पर आने पर पक्षियों को निकाला जाएगा। अब कोर्ट का दखल इस मामले में •ोरे तफ्तीश है। लिहाज़ा उम्मीद तो बनती है कि पक्षियों की सुरक्षा के मुनासिब कदम उठाये जाएँगे। बहरहाल, इसमें कोई संदेह नहीं कि हालात बद से बदतर हैं। इस मामले में सिर्फ सरकारी हरकारे ही आगे है। सरकार पीछे!